Sunday, June 12, 2016

सब ठीक है लेकिन ...( पार्ट -2)

गांधीजी के वर्धा आश्रम में उनका एक दर्शन बोर्ड पर लिखा है जिसका शीर्षक है "पगला दौड़" जिसमें उन्होंने बताया है कि हर व्यक्ति पैसा कमाने की रेस में लगा है और जिसका कोई अंत नहीं है । और नतीजा ये है कि हर किसी के जीवन का उद्देश्य अच्छा इंसान बनना नहीं बल्कि धनवान बनना रह गया है । जी हां आप अपने घऱ, मोहल्ले, आसपास हर जगह नजर दौड़ाकर देख  लीजिए हर शख्स पैसा कमाने की जुगत में लगा है । लेकिन फिर भी हमारे  देश का नाम विकासशील देशों की सूची से हटा दिया गया क्योंकि यहां प्रति व्यक्ति आय 1586 डॉलर प्रति वर्ष रह गई है । और भारत के साथ निम्न मध्यआय़वाले देशों की सूची में पाकिस्तान, यमन, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देश शामिल है ।
अब आप हैरान होंगे कि ज़ांबिया (1715 डॉलर), वियतनाम (2015 डॉलर), सूडान (2081 डॉलर) और भूटान (2569 डॉलर) जैसे देश भारत से आगे हैं. श्रीलंका (3635 डॉलर) में प्रति व्यक्ति आय भारत से दोगुनी है। हैरानी का सिलसिला और आगे बढ़ाते है इस सूची में शीर्ष स्थानों पर यूरोप के छोटे देश शामिल हैं. इसमें मोनाको (187650 डॉलर), लिचटेंस्टाइन (157040 डॉलर) और लग्ज़मबर्ग (116560 डॉलर) काफ़ी अमीर देश हैं. जबकि सिंगापुर (55910 डॉलर) और संयुक्त राज्य अमरीका (54,306 डॉलर) उच्च आय वाले देशों में शामिल हैं।
जरा सोचकर देखिए भारत में सर्दी ,गर्मी और बरसात तीनों मौसम है । भारत में नदियों की, तालाबों की, झरनों और झीलों कभी कोई कमी कभी नहीं रही ।रेगिस्तान , जंगल , पर्वत, पहाड़, समुद्र इसकी शोभा है । भारत प्राकृतिक संपदा से भरा-पूरा देश है । हजारों जातियां, सैकड़ों भाषाएं , और अनंत संस्कृतियों  की विविधता समाये सवा अरब लोग रहते हैं ।  इतने तीज- त्यौहार है कि चाह कर भी पैसा रूक नहीं सकता उसे बाजार में आना ही आना है । ये देश युवाओं का है ।  भारत के पास उसके नागरिकों के मौलिक अधिकारों की हिफाजत के लिए संविधान है ।  भारत में मजबूत अर्थव्यवस्था बनने के सारे तत्व कुदरती तौर पर विद्यमान है । उस पर दुनिया भर के तमाम तरह के टैक्स के बोझ तले दबा भारतीय । यहां सब ठीक है लेकिन  खुद में खुद को झांककर देखता हूं तो  गड़बड़ी मुझमें हैं । क्योंकि अपना काम निकालने के लिए रिश्वत मैं देता हूं । दफ्तर में बॉस की गलत बात पर भी सिर मैं  हिलाता हूं । बदतमीजियों को सहना सीख लिया है मैंने ।  
जी हां इस देश में सब ठीक है लेकिन सदभाव नहीं है ।
सब ठीक है लेकिन व्यक्तियों के लिए सम्मान नहीं है ।
सब ठीक है लेकिन अतिथि को भगवान मानने वाले देश में अजनबियों को ठगनेवाले ज्यादा है ।
 सब ठीक है लेकिन सड़कें हर साल उखड़ती और बनती है ।
सब ठीक है लेकिन बिजली जब चाहे तब चली जाती है।
सब ठीक है लेकिन हजारों टन आलू, प्याज, टमाटर सड़कों पर फेंका जाता है।
सब ठीक है लेकिन नकली दूध, नकली फल, नकली सब्जियां, नकली दवा, मिलावटी सामान हमारी जिंदगी की हिस्सा है ।
सब ठीक है लेकिन हमारे घर के नीचे कचरे का ढेर है ।
सब ठीक है लेकिन नदियों में हम अपनी नाली और फैक्ट्री का पानी छोड़ते है ।
सब ठीक है लेकिन सरकारी स्कूल, सरकारी दफ्तर, ट्रेन, बस को मौका मिलने पर हम आग में झोंकने से नहीं चूकते ।
सब ठीक है लेकिन हम अपने बुजर्गों को बोझ समझते हैं
सब ठीक है लेकिन महिलाओं पर फब्तियां कसने से बाज नहीं आते
सब ठीक है लेकिन ये जान लीजिए हम इंसान ठीक नहीं है । क्योंकि हमारे स्कूलों में, घरों में अब ये नहीं सिखाया जाता । और यकीन मानिए सरकार से ज़्यादा समाज में सुधार की ज़रूरत है. इसी से देश की आमदनी बढ़ती है और प्रति व्यक्ति आय में  बढ़त होती है। सरकार को कोसने के चक्कर में हम सबसे बड़े कसूरवार बन गये है ।  

10 comments:

Smita Rajesh said...

बिलकुल सही जगह कटाक्ष किया है। हम ही मैं है दोष और आरोप औरों पर लगाते हैं।
कुछ करते हैं इस पर। मेरे पास एक पूरा पीपीटी है जो इसी सोच पर आधारित है।

'MASROOR' said...

Shandar..zabardast.. is desh me jahan kayi Jagah pyaz lehsun takk khane se Parhez hota hai..Wahan ghus khane fareb karne aur beimaani se pehle log sochte bhi Nahi.

'MASROOR' said...

Shandar..zabardast.. is desh me jahan kayi Jagah pyaz lehsun takk khane se Parhez hota hai..Wahan ghus khane fareb karne aur beimaani se pehle log sochte bhi Nahi.

Utkarsh Mishra said...

Fully agree sir. .. An apt analysis...

jaideep shukla said...

Wakai bahoot khoob likha hai bhaiya... shandaar

Shilpa Sharma said...

कड़वा सच, जिसे हम कभी नहीं मानते। हम भारतीयों में सोशल करैक्टर है ही नहीं। अपना घर साफ़ किया और कचरा दूसरे के घर के सामने रख दिया...इससे आगे जा ही नहीं पाते...पूरी तरह सहमत हूं श्रीधर!

Shilpa Sharma said...

कड़वा सच, जिसे हम कभी नहीं मानते। हम भारतीयों में सोशल करैक्टर है ही नहीं। अपना घर साफ़ किया और कचरा दूसरे के घर के सामने रख दिया...इससे आगे जा ही नहीं पाते...पूरी तरह सहमत हूं श्रीधर!

Abhinandan said...
This comment has been removed by the author.
Abhinandan said...

Bhout badiya

Unknown said...

http://www.madhyamat.com/its-ok-but-we-are-not-good-human
इस आलेख को मध्यमत ने वेब पोर्टल ने भी स्थान मिला