संविधान बनाने के बाद डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने कहा था हमने इस पवित्र ग्रंथ में वो सब बाते समाहित की है जिसमें मानव कल्याण की भावना निहित है। लेकिन ये सब बातें तब तक बेमानी रहेंगी जब तक इसे अमल में लाने के लिए जिम्मेदार लोग और जिनको इस पर अमल करना है उनकी नीयत में खोट रहेगी । 70 साल की आजादी में अम्बेडकर की ये आशंका हर दिन मजबूत हुई है और इस दौरान ऐसा कोई नेतृत्व भारतीय जनमानस में स्थापित नहीं हो सका जिसने उच्चतम नैतिक मूल्यों को आंदोलन बनाया हो । इसका ये मतलब कतई नहीं है कि इस देश में उच्चतम नैतिक आदर्शों के लोग नहीं हुए , नेता नहीं हुये लेकिन वो राजनीति के अखाड़े में भष्ट्राचार, गरीबी, शोषण और महंगाई को ही हथियार बना कर लड़ते रहे, सपने दिखा -दिखा कर सरकारें बनाते रहे और गिराते रहे । कितनी पार्टियां आई और गई, कितनी सरकारें बनी और बिगड़ीं लेकिन समस्या जस की तस रही और आलम ये है कि सबसे बड़े लोकतंत्र का ढिंढोरा पीटनेवाला देश राजनीतिक पार्टियों का अब तक खिलौना ही साबित हुआ ।
आजादी के बाद का इतिहास उठा कर देख लीजिए चंद नेताओं की महत्वाकांक्षा में देश बंट गया / करोड़ों लोगों बेघर हो गये लाखों लोग मारे गये । एक व्यक्ति की चूक के चलते संयुक्तराष्ट्र में हमने अपना दुश्मन पाल लिया । कश्मीर का घाव है कि भरने का नाम नहीं ले रहा । पड़ौसी मुल्क ने हमारी जमीन हथिया ली तो हमने बंजर कह कर वोटरों का मुंह बंद कर दिया । हम सुधरे नहीं . हम चेते नहीं । उनके बाद वारिस को जनता से सहानुभूति से लादा तो उन्होंने अदालत को ही ठुकरा दिया । लोकतत्र का गला घोंट दिया । फिर जिन लोगों ने लोकतंत्र बचाने के नाम पर लड़ाई लड़ी, सत्ता की मलाई चाटने के चक्कर में वो आपस में ही भिड़ गये । अपना लक्ष्य भूल गये और जनता को ठग लिया । क्या करती भगवान को मानने वाले देश की जनता ने उसे ही अपना भाग्यविधाता मान लिया जिसने उनके अधिकारों को छीना था। काल के क्रूर चक्र ने वो भाग्यविधाता छीना तो जैसा कि फर्ज था देशवासियों का उसके वारिस को अपना सब कुछ सौंप देने का , सो सौंप दिया ।21वीं सदी का सपना दिखानेवाले उस महानायक ने शाहबानों के जरिये गरीब अल्पसंख्यक महिलाओं के लड़ने की ताकत को ही कुचल दिया । हिंदू और मुसलमान के बीच की खाई को कांटों से भर दिया । बोफोर्स का डर दिखा कर , एक राजा ने अपनी फकीरी की दुहाई देकर इस देश को आरक्षण की आग में झोंक दिया । फिर तो वोट के नाम पर हिंदू बंटे, मुसलमान बंटे । जातिया बंटी । गरीब बंटे अमीर बंटे । दलित औऱ महादलित तक बंट गये । औऱ इसके नीचे अभी ना जाने कितना बंटना बाकी है । और सब होता रहा सत्ता के लिए । भगवान भी नहीं बचे । मंदिर के नाम पर सरकार बन गई । लेकिन मंदिर नहीं बना वैसे ही जैसे गरीबी नहीं हटी । वैसे ही जैसे भष्ट्राचार नहीं मिटा । वैसे ही जैसे मंहगाई नहीं रूकी । दिल्ली में तो गजब हो गया एक आम आदमी ने । वाकई एक मामूली से आदमी ने लोकपाल का सपना दिखा कर लगभग सारी की सारी सीटें जीत ली औऱ सरकार बना ली । लेकिन आज वो आम आदमी लोकपाल की बात भी नहीं करता । उधर केंद्र में विकास के नाम पर, कालेधन की वापसी के नाम पर, सत्ता से वंशवाद मिटाने के नाम पर एकदम नई सरकार बनी है । ये सरकार आजाद भारत की सबसे ज्यादा उम्मीदोंवाली सरकार मानी जारी रही है । इस सरकार ने दो साल पूरे कर लिए है, और दो साल में उपलब्धियों की बहुत लंबी लिस्ट भी प्रचारित है ।
सब ठीक है लेकिन जिन भष्ट्राचारों का जिक्र कर आपने सत्ता पाई उस पर काबू पाने में पर इतनी देरी क्यों ?
सब ठीक है लेकिन वाड्रा की संपत्ति की जांच पर कोई कुछ क्यों नहीं बोलता?
सब ठीक है लेकिन कालेधन पर ये चुप्पी क्यों है ?
सब ठीक है लेकिन विजय माल्या हजारों करोड़ों का चूना लगा कर कैसे फरार हो गये ?
सब ठीक है लेकिन महंगाई क्यों नहीं रुकती ? दाल बहुत महंगी है साहब
सब ठीक है लेकिन देश दफ्तरों में 500 रूपये से शुरू होने वाली नुचाई क्यों नहीं रूकी?
सब ठीक है लेकिन ट्रेन में रिर्जेशन अब भी क्यों नहीं मिलता , क्यों नहीं मिलता दलालों से छुटकारा?
सब ठीक है लेकिन सरकारी अस्पतालों में स्वीपरों के मत्थे मरीजों कि जिंदगी क्यों हैं?
सब ठीक है लेकिन फर्जी लोगों के टॉपर बनने का सिलसिला क्यों नहीं रूका?
सब ठीक है लेकिन नकली डॉक्टर, नकली इंजीनियर, नकली अध्यापकों की मौज क्यों नहीं रूकी?
सब ठीक है लेकिन खाकी वर्दीवाले अब भी गुंडे क्यों लगते हैं ?
सब ठीक है लेकिन कल तक फटेहाल घूमनेवाले अचानक कोठियों के मालिक कैसे बन गये?
सब ठीक है लेकिन प्रधानसेवक के मातहत काम करनेवाले नेता, अधिकारी से लेकर संतरी तक राजा जैसा बर्ताव क्यों कर रहै हैं ?
सब ठीक है लेकिन बच्चे भूख से क्यों मर रहे है? किसान आत्महत्या क्यों कर रहे है, क्यों इमानदार आदमी अब भी न्याय के लिए दर- दर की ठोकर खा रहा है ।
सब ठीक है साहब ... 70 साल हो गये है ...प्लीज! इस बार तरस खा लो ।
9 comments:
Very nice article.... wakai is article ne mujhe sochne par majboor kar dia...
बहुत ही अच्छा लिखा है भैया।। समाज की अलग अलग परतों का एकदम सही विवेचन।
बहुत पारदर्शिता लिया हुआ लेख। सवाल ये की इन सवालों के परिप्रेक्ष्य में हम जागरूक नागरिकों की भूमिका क्या हो?
बहुत पारदर्शिता लिया हुआ लेख। सवाल ये की इन सवालों के परिप्रेक्ष्य में हम जागरूक नागरिकों की भूमिका क्या हो?
Mai vo bhi likhoonga di
Mai vo bhi likhoonga di
सटीक आकलन श्रीधर! अब हमारे कर्तव्यों वाले आलेख का इंतज़ार रहेगा...
http://www.madhyamat.com/everything-is-ok-but/
इस आलेख को वेब पोर्टल मध्यमत ने भी प्रकाशित किया
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