जाने-माने गायक सोनू निगम ने सोमवार सवेरे अपने ट्वीट से सोशल मीडिया पर बवाल मचा दिया. उन्होंने लिखा, ''ऊपरवाला सभी को सलामत रखे. मैं मुसलमान नहीं हूं और सवेरे अज़ान की वजह से जागना पड़ता है. भारत में ये जबरन धार्मिकता कब थमेगी.''
सोनू के इस ट्वीट को धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक लोग अगर विवाद की दृष्टि से देखेंगे तो विवाद ही होगा । लेकिन अगर धर्म की दृष्टि से देखेंगे तो आत्मअवलोकन का अवसर मिलेगा । इसलिए हमारे धर्मगुरूओं को सबसे पहले खुद के सामने प्रश्नों की झड़ी लगानी होगी । ये सवाल पहली बार सोनू निगम ने खड़ा नहीं किया, हिंदू, मुसलमान और तमाम धर्मों में लोगों ने समय- समय पर धर्म के नाम पर होने वाले दिखावे और आडम्बर पर प्रहार किया है और मेरी समझ के मुताबिक रूढ़िवादी मान्यताओं के सामने सवाल खड़ा करने का ये सिलसिला संत कबीर दास जी ने बड़ी ही बहादुरी से शुरू किया था वो लिखते हैं -
"कंकर पत्थर जोरि के मस्जिद लयी बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।"
कबीर दास जी ने इस मामले में हिंदुओं को भी नहीं छोड़ा
"पाहन पुजे तो हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़
ताते तो चाकी भली, पीस खाए संसार "
कितनी गहरी और सच्ची बात है । लेकिन फिर भी हमने कबीर के इस दर्शन को समझने की कोशिश ही नहीं की । हम उन्हीं जड़ परंपराओं को पकड़े रहे और वक्त के साथ जिस धर्म को मानवतावादी होना था । संपूर्ण अस्तित्व के संदर्भ में होना था वैसा नहीं हुआ बल्कि धर्म दिन ब दिन और जटिल होता गया । जैसे -जैसे मानव का विकास हुआ वैसे वैसे हमें अपने धर्म का भी विकास करना था । धर्म के नाम पर इंसान ने हजारों भव्य मंदिर- मस्जिद बना लिए लेकिन आजतक किसी को राम नहीं बना सके । किसी को अल्लाह का सच्चा बंदा नहीं बना सके ।
सोचिए हर दिन मोबाइल का एक नया वर्जन आ जाता है , गाड़ी का नया मॉडल हर छह महीने में नया आ जाता है ।सुख सुविधाओं की तमाम वस्तुएं हर दिन बेहतर हो रही है । लेकिन जो धर्म हमें सुख देता है, शांति देता है, सदभाव देता है हमे अभावमुक्त करता है, एक मानव का दूसरे मानव से शिकायत मुक्त करता है उस धर्म को वक्त के साथ हमने कितना सुधारा ? मानवीय दृष्टिकोण से उसे कितना बेहतर किया ? धर्म को हमने अपने अहंकार और पहचान से इस कदर जोड़ लिया है कि जो धर्म हमारे जीने का आधार होना चाहिए वो जड़ वस्तु बन कर रह गयी । हम ईश्वर के उपदेशों को सिर्फ सुनते रह गये लेकिन उसे समझ कर अपने जीवन में उतार नहीं सके ।
अगर आप हिंदू और मुसलमान के अहंकार से ऊपर उठ कर खुद को उस ईश्वर और अल्लाह के बंदे के स्थान पर रखकर सोचेंगे तो समझ आएगा की कोई धर्म किसी को भी शिकायत का अवसर नहीं देता । तो सोनू की ये शिकायत सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि तमाम धर्मों को भी आत्मअवोलन के लिए मजबूर करती हैं । सोनू निगम के लिए समाधान खोजें इसे समस्या ना बनाये ।
सोनू के इस ट्वीट को धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक लोग अगर विवाद की दृष्टि से देखेंगे तो विवाद ही होगा । लेकिन अगर धर्म की दृष्टि से देखेंगे तो आत्मअवलोकन का अवसर मिलेगा । इसलिए हमारे धर्मगुरूओं को सबसे पहले खुद के सामने प्रश्नों की झड़ी लगानी होगी । ये सवाल पहली बार सोनू निगम ने खड़ा नहीं किया, हिंदू, मुसलमान और तमाम धर्मों में लोगों ने समय- समय पर धर्म के नाम पर होने वाले दिखावे और आडम्बर पर प्रहार किया है और मेरी समझ के मुताबिक रूढ़िवादी मान्यताओं के सामने सवाल खड़ा करने का ये सिलसिला संत कबीर दास जी ने बड़ी ही बहादुरी से शुरू किया था वो लिखते हैं -
"कंकर पत्थर जोरि के मस्जिद लयी बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।"
कबीर दास जी ने इस मामले में हिंदुओं को भी नहीं छोड़ा
"पाहन पुजे तो हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़
ताते तो चाकी भली, पीस खाए संसार "
कितनी गहरी और सच्ची बात है । लेकिन फिर भी हमने कबीर के इस दर्शन को समझने की कोशिश ही नहीं की । हम उन्हीं जड़ परंपराओं को पकड़े रहे और वक्त के साथ जिस धर्म को मानवतावादी होना था । संपूर्ण अस्तित्व के संदर्भ में होना था वैसा नहीं हुआ बल्कि धर्म दिन ब दिन और जटिल होता गया । जैसे -जैसे मानव का विकास हुआ वैसे वैसे हमें अपने धर्म का भी विकास करना था । धर्म के नाम पर इंसान ने हजारों भव्य मंदिर- मस्जिद बना लिए लेकिन आजतक किसी को राम नहीं बना सके । किसी को अल्लाह का सच्चा बंदा नहीं बना सके ।
सोचिए हर दिन मोबाइल का एक नया वर्जन आ जाता है , गाड़ी का नया मॉडल हर छह महीने में नया आ जाता है ।सुख सुविधाओं की तमाम वस्तुएं हर दिन बेहतर हो रही है । लेकिन जो धर्म हमें सुख देता है, शांति देता है, सदभाव देता है हमे अभावमुक्त करता है, एक मानव का दूसरे मानव से शिकायत मुक्त करता है उस धर्म को वक्त के साथ हमने कितना सुधारा ? मानवीय दृष्टिकोण से उसे कितना बेहतर किया ? धर्म को हमने अपने अहंकार और पहचान से इस कदर जोड़ लिया है कि जो धर्म हमारे जीने का आधार होना चाहिए वो जड़ वस्तु बन कर रह गयी । हम ईश्वर के उपदेशों को सिर्फ सुनते रह गये लेकिन उसे समझ कर अपने जीवन में उतार नहीं सके ।
अगर आप हिंदू और मुसलमान के अहंकार से ऊपर उठ कर खुद को उस ईश्वर और अल्लाह के बंदे के स्थान पर रखकर सोचेंगे तो समझ आएगा की कोई धर्म किसी को भी शिकायत का अवसर नहीं देता । तो सोनू की ये शिकायत सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि तमाम धर्मों को भी आत्मअवोलन के लिए मजबूर करती हैं । सोनू निगम के लिए समाधान खोजें इसे समस्या ना बनाये ।
2 comments:
So True
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