Sunday, April 2, 2017

आइसक्रीम और टॉफी के लिए तरस गई लेकिन देशवासियों को खुशियों से लाद लिया

शर्मीली लड़की के रौब और रूतबे की कहानी   
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यूं तो किसी लड़की का चीखना और उसका आक्रामक स्वभाव प्रथम दृष्टया नकारात्मक गुण ही माना जाएगा लेकिन जब किसी बेहद सरल और शर्मीली लड़की को रूला -रुला कर उसे चीखना सिखाया गया हो और आक्रामकता उसमें ठूंसी गयी हो तो आप क्या कहेंगे । जी हां! भारत के कोच पुलेला गोपीचंद ने  उस लड़की से सिर्फ इसलिए बोलचाल बंद कर दी थी क्योंकि उसे कोर्ट में चीखना नहीं आता था । चारों तरफ जूनियर खिलाड़ियों का मेला था और सबकी नजरें उस लड़की  पर थी और गोपी का फरमान था जब तक पागलों की तरह चीखोगी नहीं तब तक कोई कोचिंग ट्रेनिंग नहीं होगी । उस बेहद शर्मीली लड़की ने तीन-चार घंटे कोर्ट में मायूसी और संकोच में गुजार दिये लेकिन जब लगा की गुरू और बैडमिंटन की आन पर बन आई है तो उसने रोते- रोते ही सही चीखना शुरू किया । उसकी यही चीख उसे रियो ओलम्पिक्स के फायनल तक ले गई और उसने भारत को बैंडमिंटन का पहला रजत पदक दिलाया ।

जी हां ये कहानी ही भारतीय बैंडमिंटन की स्टार पीवी सिंधु की है , जिसने रविवार को एक बार फिर भारतीय खेलप्रेमियों को गर्व का अवसर तोहफे में दिया । साथ ही सिंधु ने रियो की एक हार का बदला सूद समेत ले लिया है । अपनी सबसे बड़ी रायवल स्पेन की कैरोलीना मरीन को सिंधु ने रियो के बाद सबसे पहले DUBAI WORLD SUPERSERIES FINALS  में हराया और फिर 2 अप्रैल की शाम को पहले YONEX SUNRISE INDIA OPEN सुपर सीरीज के फायनल में हराया ।  इसी दिन साल 2011 को भारतीय क्रिकेट टीम ने वर्ल्डकप जीता था , उस जीत की सालगिरह को  सिंधु ने अपनी जीत ने यादगार बना दिया । 

पहले इंडिया ओपन सीरीज जीतना को साधारण नहीं था । सिंधु ने इस टूर्नामेंट में पहले भारतीय प्रतिद्वंदी साइना नेहवाल को हराया और फिर सेमीफायनल में उन्होंने वर्ल्ड नंबर टू सुन जी ह्यू को हराया और फिर ओलंपिक चैम्पियन मारिन को फायनल में मात दी ।

ये जीत हर उस खिलाड़ी को, चाहे वो पुरूष हो या स्त्री उसे प्रेरित करेगी  क्योंकि इसमें लगन है ऐसी लगन जिसमें 10 साल की लड़की  सुबह 3 बजे उठ कर दो घंटे का सफर करके अपने एकेडमी पहुंचती है ।  जिस उम्र में बच्चे चॉकलेट और टॉफी की जिद करते है उस उम्र में सिंधु ने फीका दूध पिया । बड़ी हुई ,कॉलेज पहुंची तो त्याग ऐसा कि फेवरेट मूवी छूट गई, दोस्तों की बर्थडे पार्टी छूट गई, जब सारी सहेलियां आइस्क्रीम के मजे लेती थी तो सिंधु ने बैंडमिंटन के लिए मन को मार दिया, मोबाइल तक तो  गोपीचंद ने छिना कर अपने पास रख लिया था । 

लगन, मेहनत और त्याग के अंतहीन उदाहरण जब सफल हुए तब जाकर सिंधु जैसा सागर तैयार हुआ, जिसमें आसमान तक उठनेवाली  गर्व की ऊंची- ऊंची लहरों में पूरा देश झूम रहा है । 

धन्यवाद सिंधु !  

5 comments:

Sanjay Banerjee said...

बधाई, अच्छे आलेख के लिए। सिंधु सिर्फ खेल रत्न ही नहीं, हम सब के लिए भारत रत्न है।

DARBAR - E - SHRIDHAR said...

वाकई संजय सर सिंधु पर गर्व है

Smita Rajesh said...

वाह सिंधु। गर्व है तुम पर। देखो तुम्हारा समर्पण और त्याग आज हमें खुशी किस कदर दे रहा है।
श्रीधर, बेहद प्रेरक प्रसंग। छोटा बेटा कल के पेपर की तैयारी कर रहा है और इस बीच मैंने ये प्रसंग उसे सुनाया।☺

Smita Rajesh said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

सिंधु की कहानी ये बताती है कि चैंपियन पैदा नहीं होते उन्हें बनाना पड़ता है और इसमें माता पिता का योगदान बच्चे से भी ज़्यादा है, अगर सिंधु के माता पिता ट्रेनिंग सेंटर की उस 2 घंटे की दूरी को रोज़ तय करने का संकल्प ना लेते तो आज सिंधु भी गुमनामी में खो जाती। नमन उन माता पिता को जिन्होंने चैंपियन का सृजन किया।