Thursday, June 20, 2019

विश्व योग दिवस पर विशेष -कर्म कुशलता से मोदी ने योग को स्थापित किया

योग तो सिर्फ शुरूआत है अब वैदिक ज्ञान की बारी है



भारत में संक्रमण का एक दौर ऐसा आया जब हमारा ज्ञान, हमारा विज्ञान, हमारी परंपराएं परिस्थियों के सामने विवश होकर रह गईं । जाहिर है  आक्रमण का दौर था , आंक्राताओं का युग था  तो लोग अपने प्राणों को, धर्म को, संस्कारों को बचाने में लगे रहे, ऐसे में ज्ञान, विज्ञान और परंपराओं को तो कहीं ना कहीं  दबना ही था । ज्ञान के केंद्र मंदिरों को तोड़ा गया तो आम लोगों का आत्मविश्वास हिल गया, धन के लिए मंदिरों को लूटा तो स्वाभिमान डोल गया, बड़े ही सुनियोजित तरीके से आश्रम, शिक्षा  के केंद्र और विश्वविद्यालयों को नष्ट किया गया तो लोगों ने प्राणों संकट से बचने के लिए ज्ञान-विज्ञान से दूरी बना ली । कुछ लोभी राजा-महाराजाओं ने रही -सही कसर पूरी कर दी  लेकिन त्यागी, तपस्वी और बलिदानी राजर्षियों और आम लोगों ने उम्मीद का दीया नहीं छोड़ा । अंधेरे में छोटा ही सही ज्ञान का दीया जला कर रखा । ज्ञान की लौ को बुझने नहीं दी, खोने नहीं दी । उम्मीद का वही दीया आज दावानल बन गया है, पूरी दुनिया ने भारतीय योग के ज्ञान को स्वीकार ही नहीं किया बल्कि इस योग को अपना लिया है । 21 जून  योग दिवस के रूप में पूरे विश्व में उत्सव की तरह प्रतिस्थापित हो चुका है।

 40 से लेकर 90 के दशक बीच पैदा हुए लोगों से पूछिए जब वो अपने-अपने दौर में भारतीय पुरातन ज्ञान-विज्ञान, परंपरा, वैदिक साहित्य, पुराण, उपनिषद की बातें करते थे तो अंग्रेजियत के नशे में चूर लोग  किस तरह से उनका मजाक उड़ाते थे । अंग्रेजियत का फैशन कुछ ऐसा था कि जिमिंग और स्विमिंग स्टेट्स सिंबल हो गया । लेकिन धन्यवाद दीजिए हमारे ऋषियों को. मुनियों को और संतों को जिन्होंने योग को, वैदिक ज्ञान को, आयुर्वेद को, मानव के व्यवहारिक ज्ञान दर्शन  को हमारी पूजा-पद्धति से, कर्मकांडों से, हमारे रीति-रिवाजों से जोड़ कर रखा। बंद कमरों में ही सही, कभी -कभार पड़नेवाले तीज-त्योहारों में ही सही, बड़े-बुजुर्गों के लिहाज के लिए ही सही,  हम अंग्रेजियत का लबादा ओढ़ कर भी इससे अपनाते रहे । शर्मिंदंगी उठाते रहे लेकिन इससे छोड़ा नहीं । ऐसे में खुले में होने वाली शास्त्रार्थ की परंपरा खत्म हो गयी । वैदिक ज्ञान को लेकर शोध बंद हो गये । धर्म को ढोते -ढोते पता ही नहीं चला कि कब हमने तर्कों के लिए अपने दरवाजे ही बंद कर दिये । हमारे पास  हमारी परंपराओं को लेकर जवाब ही नहीं थे सो ऐसे सवालों का हमने स्वागत नहीं किया बल्कि उसे अपना अपमान समझ बैठे  और यहीं पर आधुनिक भौतिक विज्ञान ने बाजी मार ली । उसने तर्कों और सवालों का स्वागत किया और वो हमारे वैदिक औऱ आध्याात्मिक ज्ञान से आगे निकल गया ।

दुनिया में ज्ञान कोई भी हो उसके जीवंत होने का प्रमाण देना पड़ता है, कारण देना पड़ता है । ज्ञान परंपराओं की दुहाई से नहीं विज्ञान की कसौटी पर जांचा और परखा जाता है । भारतीय योग ने , पतंजलि के दर्शन ने, स्वर्गीय आयंगरजी  और रामदेव जैसे हजारों संतों ने इसे अपने आचरण से, अपने प्रयासों से  प्रमाणित करके दिखाया । अपना जीवन लगाया । ऐसे महाने लोगों की कोशिशों से योग ने लोगों के जीवन को बदला, काया ही नहीं माया से भी मुक्ति दिलाई । धन से ऊब चुके लोगों को,  सुख और शांति की तलाश में भकटती आत्माओं को भारतीय योग ने सहारा दिया । उसके बाद 130 करोड़ लोगों का नेता जब विश्व के मंच पर खड़े होकर अपनी सफलता के लिए भारतीय योग की ब्रांडिंग करता है तो  दुनिया में ये ज्ञान जिज्ञासा पैदा करती हैं। आजादी के बाद भारत में  नरेंद्र दामोदर दास मोदी ऐसे पहले नेता हैं जो विशुद्ध हिंदुत्व की विचाराधारा से ओतप्रोत हैं और उन्हें इतना बड़ा जनसमर्थन मिला है । हिंदूवादी  मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए भारत में 2014 और फिर 2019 में जो मोमेंटम बना है ऐसा मूवमेंटम पिछले हजार सालों में इतने बड़े भूभाग में कभी नहीं बना । मोदी ने इस भावना को विश्व के मंच पर कैश करा लिया । अब विश्व के राष्ट्राध्यक्षों को हम गीता और रामचरित मानस तोहफे में देते हैं । विश्व के मंचों पर वेदों को उदाहरण गूंजते हैं ।  उसी परिपाटी में  योग को लेकर हमारे पास अब सम्मत तर्क भी है और सवालों का प्रामाणिक जवाब देने की हैसियत भी है और योग से जीवन को बेहतर बना कर जी रहे लोगों के जीवंत प्रमाण भी हैं ।योग: कर्मसु कौशल - भगवतगीता में कृष्ण ने ये उद्घघोष किया कि योग से कर्म में कुशलता आती है । आपके सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बाबा रामदेव उदाहरण हैं।

अब दुनिया को पता चल चुका है कि योग की शुरूआत शऱीर को साधने से होती है और अपने आचरण को बेहतर बनाते हुए व्यक्ति आत्मा और फिर परमात्मा तक की यात्रा पूरी करता है । योग के आठ नियम है पहला यम यानी सत्य, अहिंसा, विकार वृत्ति को रोकना, इंद्रिय सुख पर नियंत्रण और लोभ से बचना । दूसरा है नियम यानी कि शौच, संतोष, अभ्यास,स्वाध्याय और विश्वास पर विजय पाना । तीसरा है आसन यानी कि शरीर पर नियंत्रण । चौथा है प्राणायाम यानी सांस पर नियंत्रण , पांचवां है प्रत्याहार यानी कि इंद्रिय सुख पर नियंत्रण और फिर धारणा, ध्यान और समाधि का संबंध एकाग्रता औऱ मन पर विजय प्राप्त करने से हैं । अब लोग योग के इन नियमों पर अभ्यास कर रहे हैं । विदेशों में योग पर प्रयोग हो रहे हैं । स्वयं पर किया जाने वाला ये प्रयोग स्वयं के कल्याण से प्रेरित है । स्वयं के कल्याण से प्रेरित व्यक्ति का जीवन जब दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाये, दूसरे भी बिना किसी दबाव के उसके जैसा बनना चाहे यही मानव जीवन की और योग की सार्थकता है, सफलता है । योग की ही महिमा है कि हम भारत में राम राज्य की सदियों से कल्पना कर है और मोदी युग इसकी सफलता के सकेंत भी मिल रहे हैं । हर भारतीय कृष्ण जैसे कर्मयोगी बनना चाहता हैं प्रधानमंत्री मोदी के अथक मेहनत की आज दुनिया भर में चर्चा होती है ।  और फिर गांधी जी ने जिस शांति, सत्य और अहिंसा को पूरे विश्व में स्थापित करना चाहा है कुछ वैसी भावना मोदी के सबका साथ, सबका विकास और सबके विश्वास वाले मंत्र में भी मिलती है ।  विश्व योग दिवस के दिन हमारे पुरखों के ऐसे महान संकल्पों को  पूरा करना ही हर भारतीय की भावना है ।


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