Friday, April 19, 2019

माया-मुलायम और शर्मसार सियासत!

चुनाव के बहाने बेनकाब होते मसीहा

सत्ता का लोभ स्वाभिमान की बलि कैसे ले लेता है? 19 अप्रैल 2019 मैनपुरी की माया-मुलायम की रैली हमेशा इस बार की तस्दीक करेगी । लखनऊ गेस्ट हाउस कांड में बीजेपी नेता ब्रम्हदत्त द्विवेदी ना होते शायद माया की बोली पर मुलायम को ताली बजाने का मौका नहीं मिलता । यहां माया ने सिर्फ अपने स्वाभिमान का गला ही नहीं घोंटा बल्कि अपने उन हजारो-लाखों समर्थकों को भी नीचा दिखा दिया जो माया के सम्मान में जीने-मरने के लिए तैयार रहते थे । उससे भी बड़ा समझौता नारी की गरिमा के साथ हुआ है । माया ने मैनपुरी के मंच पर बूढ़े -लड़खड़ाते मुलायम को सहारा तो दे दिया लेकिन दलित सम्मान, नारी की गरिमा, कांशीराम के सपने और उसूलों की राजनीति को ठेंगा दिखा दिया । सब कुछ खत्म हो गया शेष कुछ बाकी है तो वो है स्वार्थ, सत्ता और बेशर्म सियासत। 

इससे पहले दिल्ली में अरविंद केजरीवाल में कभी टीवी के कैमरों पर जनता के सामने अपने बच्चों की कसम खाई थी कि कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाउंगा । सोचिए ये आदमी अपने बच्चों से कैसे नजर मिलाता होगा। कांग्रेस के भष्ट्राचार पर अन्ना के साथ मिलकर मुहिम छेड़ी थी और कांग्रेस की तत्कालीन मुख्यमंत्री  शीला दीक्षित को सबसे ज्यादा अपमानित किया था ।  ये शख्स कहां अन्ना हजारे के कंधे पर बैठ कर निकला था और अब शीला चरणों में लोट- लोट कर राजनीतिक दीक्षा की गुहार लगा रहा है।  सत्ता का भांग इस कदर  चढ़ा है कि आंखों में शर्म का पानी भी नहीं बचा । केजरीवाल का अपराध सिर्फ सियासी होता तो कोई बात नहीं थी दरअसल उन्होंने उन लोगों के साथ धोखा किया जो ईमानदारी की, शुचिता की, सत्य और पारदर्शिता की राजनीतिक को स्थापित करने के लिए अपना सबकुछ छोड़ कर आंदोलन औऱ रैलियों में कूद पड़े थे । सत्ता के लोभ में इस आदमी ने एक आंदोलन की हत्या कर दी है।

कल तक कांग्रेसी नेता रही  प्रियंका चतुर्वेदी ने आज बयान दिया कि वो बचपन से शिवसेना को प्यार करती हैं । इसका मतलब पिछले 10 साल वो कांग्रेस के लव जिहाद का शिकार हो गयी थी । प्रियंका को होश आते ही उन्होंने कहां कि कांग्रेस गुंडों की पार्टी है । प्रिंयका ने शिवसेना की सहयोगी पार्टी बीजेपी की नेता स्मृति ईरानी पर दो दिन पहले पैरोडी गाकर उन्हें जलील किया अब उन्हें उन्हीं साथ काम करना है।


जाहिर है ये सियासत है, फिलहाल यहां संघर्ष सुशासन के लिए नहीं सत्ता के लिए है, ये लोग भारत को  नहीं, खुद को बनाने निकले हैं । संविधान की आड़ में देश को लूटने, ठगने, धोखा देने निकले हैं  लेकिन लोगों को  निराश होने की जरूरत नहीं है लोकतंत्र ऐसे ही परिवक्व होता है मतदाता देर से ही सहीं  अब इन्हें समझने लगा है ज्यादा दिन नहीं चलेगा ठगों का महागठबंधन। 

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