अपने ही बुने जाल में फंस गये दिग्गी राजा!
क्रेंद्र हो या प्रदेश, कांग्रेस का कार्यकाल हमेशा षडयंत्रों से भरा रहा है। शासन करने की मुगलों और अंग्रेजों की नीति कांगेस को हमेशा से सूट करती रही । इसीलिए आजादी के बाद से हिंदु बहुसंख्यक देश में कांग्रेस ने अपनी ताकत का इस्तेमाल हमेशा हिंदुओं को तोड़ने में लगाया बजाय सदभाव से भरे राष्ट्र को बनाने के । सत्ता समीकरण बनाने के चक्कर में कांग्रेस ने धर्म, जाति, समुदाय, अमीर-गरीब ऊंच-नीच, आरक्षण हर पैंतरे का इस्तेमाल किया इसी कड़ी में हिंदुत्व पर नकेल कसने की उसकी कोशिश भी जारी रही । लेकिन वो ये भूल गई कि दूसरों के लिए खोदा गड्ढा एक दिन उसके लिए खाई भी बन सकता है । वही हुआ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को कमजोर करने की साजिश के तहत हिंदू आतंकवाद को गढ़नेवाले दिग्गी राजा ने जिस प्यादे को चुना था अब वो प्यादा शतरंग के खेल की तरह वजीर बन कर उनके सामने खड़ा हो गया है । साध्वी प्रज्ञा के हाथों दिग्गी को मात मिलनी तय मानी जा रही है।
ये राजनीति है, पावर और पैसे का खेल है, इस खेल में नैतिकता और नियम कानून जैसे चीजें सिर्फ बहलाने के लिए होती है। पूरी दुनिया में युगों युगों से, सदियों से राजनीति ऐसी ही रही है । मुसलमानों की तरह हिंदुत्व की विचारधारा भी विस्तारवादी रही होती मानचित्र में हिंदुकुश तक फैला भारत आधे कश्मीर तक नहीं सिमटा होता । लेकिन आरएसएस एक मात्र शक्तिशाली संस्था है जो 1925 से हिंदुत्व की अलख में जगाये हुए है और तभी से कांग्रेस की आंखों में कांटे तरह चुभती रही क्योंकि उसे पता था कोई उसे सत्ता के अखाड़े में पटखनी दे सकता है सिर्फ संघ के स्वयंसेवक । यही वजह रही कि कांग्रेस ने ऊंच-नीच, जात-पात, अगड़े-पिछड़े, सवर्ण-दलित जैसी सामाजिक बुराई को हिंदुत्व के खिलाफ सुनियोजित तरीके से हवा दी ताकि हिंदू कभी एक ना होने पाये ।
आजादी के बाद सोमनाथ के मंदिर से अयोध्या और अब शबरीमला तक आते -आते कांग्रेस ने हजारों बार हिंदुओं का अपमान किया । महात्मा गांधी की हत्या की आड़ में संघ को बदनाम करने की तगड़ी कोशिश की गई । दंगों के नाम पर कभी मुसलमानों को भड़काया, कभी सिखों को, कभी दलितों को । ये बहुत बड़ी श्रृंखला है कि कैसे गौसेवक करपात्री महाराज और उनके समर्थकों पर संसद के सामने गोलियां चलवाई गई । बस्तर के महराजा प्रवीरचंद भंजदेव को कैसे उनके महल में घुस कर मारा गया ? आपातकाल में संघ के स्वयंसेवकों के साथ कैसा सलूक किया गया ? पंडित दीनदयाल और श्यामाप्रसाद मुखर्जी की हत्या है या स्वाभाविक मौत ये जाहिर ही नहीं हो पाया । दुनिया को पता है आडवानी की सोमनाथ यात्रा को कैसे कुचला गया ।
लेकिन हिंदुत्व का दीप जब दावानल बन गया तब सबसे बड़ी साजिश रची गई और उसे नाम दिया गया हिंदू आतंकवाद का । ताकि प्रज्ञा और असीमानंद की आड़ में संघ को बदनाम किया जा सके । भगवा आतंकवाद का हौवा कांग्रेस के वोट बैंक को सूट करता था । मालेगांव ब्लास्ट में अगर कांग्रेस की नीयत साफ होती तो वो प्रज्ञा और असीमानंद की कार्रवाई को सिर्फ कार्रवाई और अपराध तक सीमित रखता लेकिन जिस तरह दिग्विजय सिंह, चिदम्बरम और सुशील शिंदे ने सोनिया गांधी की शह पर हिंदू आतंकवाद के नारे को उछाला और सियासत में इस्तेमाल किया वो सिर्फ संघ के खिलाफ साजिश ही नहीं बल्कि हिंदुत्व के खिलाफ घृणित कृत्य भी था । संघ से कांग्रेसी कितना डरते है इसका उदाहरण है कमलनाथ का मध्यप्रदेश के चुनावों के दौरान आया वीडियो टेप था जिसमें वो संघ के नाम पर मुसलमानों को डरा रहे थे और उसके बाद भोपाल संघ कार्यालय से उनका सुरक्षा हटाने का फैसला ।
अब कांग्रेस के नेता चिल्ला रहे हैं, उमर अबदुल्ला बेचैन है और मीडिया में बयान दे रहे है कि प्रज्ञा जमानत पर है उसे टिकट देकर बीजेपी ने अच्छा उदाहरण पेश नहीं किया । तो सुनिये राहुल गांधी और सोनिया गांधी भी जमानत पर है और हिम्मत हो तो बोलिए । प्रज्ञा का मामला अब जनता की अदालत में है, जाहिर है दिग्विजय सिंह और पूरी कांग्रेस अपने ही बुने जाल में फंसती मालूम पड़ रही है ।
क्रेंद्र हो या प्रदेश, कांग्रेस का कार्यकाल हमेशा षडयंत्रों से भरा रहा है। शासन करने की मुगलों और अंग्रेजों की नीति कांगेस को हमेशा से सूट करती रही । इसीलिए आजादी के बाद से हिंदु बहुसंख्यक देश में कांग्रेस ने अपनी ताकत का इस्तेमाल हमेशा हिंदुओं को तोड़ने में लगाया बजाय सदभाव से भरे राष्ट्र को बनाने के । सत्ता समीकरण बनाने के चक्कर में कांग्रेस ने धर्म, जाति, समुदाय, अमीर-गरीब ऊंच-नीच, आरक्षण हर पैंतरे का इस्तेमाल किया इसी कड़ी में हिंदुत्व पर नकेल कसने की उसकी कोशिश भी जारी रही । लेकिन वो ये भूल गई कि दूसरों के लिए खोदा गड्ढा एक दिन उसके लिए खाई भी बन सकता है । वही हुआ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को कमजोर करने की साजिश के तहत हिंदू आतंकवाद को गढ़नेवाले दिग्गी राजा ने जिस प्यादे को चुना था अब वो प्यादा शतरंग के खेल की तरह वजीर बन कर उनके सामने खड़ा हो गया है । साध्वी प्रज्ञा के हाथों दिग्गी को मात मिलनी तय मानी जा रही है।
ये राजनीति है, पावर और पैसे का खेल है, इस खेल में नैतिकता और नियम कानून जैसे चीजें सिर्फ बहलाने के लिए होती है। पूरी दुनिया में युगों युगों से, सदियों से राजनीति ऐसी ही रही है । मुसलमानों की तरह हिंदुत्व की विचारधारा भी विस्तारवादी रही होती मानचित्र में हिंदुकुश तक फैला भारत आधे कश्मीर तक नहीं सिमटा होता । लेकिन आरएसएस एक मात्र शक्तिशाली संस्था है जो 1925 से हिंदुत्व की अलख में जगाये हुए है और तभी से कांग्रेस की आंखों में कांटे तरह चुभती रही क्योंकि उसे पता था कोई उसे सत्ता के अखाड़े में पटखनी दे सकता है सिर्फ संघ के स्वयंसेवक । यही वजह रही कि कांग्रेस ने ऊंच-नीच, जात-पात, अगड़े-पिछड़े, सवर्ण-दलित जैसी सामाजिक बुराई को हिंदुत्व के खिलाफ सुनियोजित तरीके से हवा दी ताकि हिंदू कभी एक ना होने पाये ।
आजादी के बाद सोमनाथ के मंदिर से अयोध्या और अब शबरीमला तक आते -आते कांग्रेस ने हजारों बार हिंदुओं का अपमान किया । महात्मा गांधी की हत्या की आड़ में संघ को बदनाम करने की तगड़ी कोशिश की गई । दंगों के नाम पर कभी मुसलमानों को भड़काया, कभी सिखों को, कभी दलितों को । ये बहुत बड़ी श्रृंखला है कि कैसे गौसेवक करपात्री महाराज और उनके समर्थकों पर संसद के सामने गोलियां चलवाई गई । बस्तर के महराजा प्रवीरचंद भंजदेव को कैसे उनके महल में घुस कर मारा गया ? आपातकाल में संघ के स्वयंसेवकों के साथ कैसा सलूक किया गया ? पंडित दीनदयाल और श्यामाप्रसाद मुखर्जी की हत्या है या स्वाभाविक मौत ये जाहिर ही नहीं हो पाया । दुनिया को पता है आडवानी की सोमनाथ यात्रा को कैसे कुचला गया ।
लेकिन हिंदुत्व का दीप जब दावानल बन गया तब सबसे बड़ी साजिश रची गई और उसे नाम दिया गया हिंदू आतंकवाद का । ताकि प्रज्ञा और असीमानंद की आड़ में संघ को बदनाम किया जा सके । भगवा आतंकवाद का हौवा कांग्रेस के वोट बैंक को सूट करता था । मालेगांव ब्लास्ट में अगर कांग्रेस की नीयत साफ होती तो वो प्रज्ञा और असीमानंद की कार्रवाई को सिर्फ कार्रवाई और अपराध तक सीमित रखता लेकिन जिस तरह दिग्विजय सिंह, चिदम्बरम और सुशील शिंदे ने सोनिया गांधी की शह पर हिंदू आतंकवाद के नारे को उछाला और सियासत में इस्तेमाल किया वो सिर्फ संघ के खिलाफ साजिश ही नहीं बल्कि हिंदुत्व के खिलाफ घृणित कृत्य भी था । संघ से कांग्रेसी कितना डरते है इसका उदाहरण है कमलनाथ का मध्यप्रदेश के चुनावों के दौरान आया वीडियो टेप था जिसमें वो संघ के नाम पर मुसलमानों को डरा रहे थे और उसके बाद भोपाल संघ कार्यालय से उनका सुरक्षा हटाने का फैसला ।
अब कांग्रेस के नेता चिल्ला रहे हैं, उमर अबदुल्ला बेचैन है और मीडिया में बयान दे रहे है कि प्रज्ञा जमानत पर है उसे टिकट देकर बीजेपी ने अच्छा उदाहरण पेश नहीं किया । तो सुनिये राहुल गांधी और सोनिया गांधी भी जमानत पर है और हिम्मत हो तो बोलिए । प्रज्ञा का मामला अब जनता की अदालत में है, जाहिर है दिग्विजय सिंह और पूरी कांग्रेस अपने ही बुने जाल में फंसती मालूम पड़ रही है ।
1 comment:
Superb se bhi upper. Wakai shaandar limha hai
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