Monday, June 1, 2020

हर हर गंगे

आज गंगा दशहरा है । ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दसमी तिथि को भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा धरती पर अवतरित हुई और तब से अब तक युग बीत गये है मां गंगा  अनवरत मानव को तार रही हैं। महान भागीरथ और दिव्य  गंगा के चरणों में मेरा कृतज्ञता का भाव समर्पित हैं।
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एक राजा ने जीवन जंगल में बिता दिया 
भूख -प्यास को भूल वो सर्दी-गर्मी में तपता रहा 
बारिश में गला नहीं, आंधियों में अडिग रहा 
दिन, महीने साल और ना जाने कितनी सदियां एक ही नाम जपता रहा 
थकता था, पर थका नहीं 
हताशा से घिरता था , पर गिरा नहीं 
मृत्यु भी आई लेकिन वो  मरा नहीं 
काल का हर चक्र जब विफल हुआ 
तब उस योगी का पराक्रम सफल हुआ 
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स्वर्ग का द्वार खुला 
दिव्य किरणों  से धरती धन्य हुई
फिर ना रूकी वो ऐसे दौड़ी  
अंतरिक्ष में पायल गूंजी 
क्षितिज में पदचाप का शोर उठा   
देव, यक्ष, गंधर्व, अप्सराएं   तकते रह गये 
उस आमंत्रण में सब के सब सम्मोहित रह गये 
उस देवी की  आतुरता ने उसे भूमंडल पर पहुंचा दिया ।
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दिव्य हिमालय कृतकृत्य हुआ 
वो उपवन हरितिमा से  भर गया  
वृक्षों ने किल्लोल किया 
पक्षियों ने कलरव के  गाये गीत  
औषधियों ने सुगंध किया
पर्वतराज का रोम- रोम झंकृत था 
तपोभूमि में अदभुत उमंग 
बरसों का वो योगी सहसा सूर्य सा दमक उठा 
उस तेज के सम्मुख,  एक पावन प्रकाश उपस्थित  
आनंद इधर भी,  आनंद उधर भी  
कैसा क्षण था वो
एक, अब भी  आंखों को मूंदे विश्वस्त 
कि वो आएगी 
मेरी पुकार ना व्यर्थ जाएगी 
तो वो, करूणा नयन देखें
कि ये कैसा नर जिसने स्वर्ग को झुका दिया 
अपने पूजन और पुरषार्थ से मुझे धरती पर बुला लिया। 
नभ से सुमन वृष्टि हुई 
देवों के आशीषों की सृष्टि हुई 
संगीत सा स्वर गूंजा 
उठो तपस्वी आंखें खोलों देखों तप कैसे साकार हुआ 
आखिर तुमने गंगा को धरती पर बुला लिया । 
आखिर तुमने धरती पर गंगा को बुला लिया ।    
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हम भागीरथ के वंशज है आईये उनके महान तप का सम्मान करें और मां गंगा का मान करें।  सदैव गंगा भारत में अविरल और निर्मल रहे ये सुनिश्त करें ताकि आने वाले पीढ़ियां गंगाजल से वंचित ना रहे और गंगा दशहरा का उत्सव हमारे आचरण में जीवंत रहे ।