अरनब बनाम सोनिया मामले में अपने जाल में ही फंस गयी कांग्रेस
कहते हैं जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है एक ना एक दिन वो गड्ढा उसके लिए खाई का काम करता है। सवाल ये हैं कि इस देश की मीडिया को सरकारी भोंपू बनाने की परंपरा किसने शुरू की ? सरकारी विज्ञापनों के जरिए मीडिया में भेदभाव की शुरूआत किसने की? किसने मीडिया में अपने चहेते लोगों को उपकृत करने की परंपरा शुरू की? वो कौन से नेता थे, वो कौन सी पार्टी थी और वो कौन से सरकारें थी जिसने मीडिया को दशकों दलाल बना कर रखा । मीडिया के माध्यम से विरोधियों को निपटाने में छद्म लड़ाई की शुरूआत किसने की? सरकार विरोधी पत्रकारों को जेलों में ठूंसने की परंपरा किसने और क्यों शुरू की? ऐसे हर सवाल पर पहली ऊंगली कांग्रेस और उसके नेताओं पर ही उठती है । यही वजह है कि आज कांग्रेस अपने बुने जाल में ही फंस गयी है ।
कहते हैं जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है एक ना एक दिन वो गड्ढा उसके लिए खाई का काम करता है। सवाल ये हैं कि इस देश की मीडिया को सरकारी भोंपू बनाने की परंपरा किसने शुरू की ? सरकारी विज्ञापनों के जरिए मीडिया में भेदभाव की शुरूआत किसने की? किसने मीडिया में अपने चहेते लोगों को उपकृत करने की परंपरा शुरू की? वो कौन से नेता थे, वो कौन सी पार्टी थी और वो कौन से सरकारें थी जिसने मीडिया को दशकों दलाल बना कर रखा । मीडिया के माध्यम से विरोधियों को निपटाने में छद्म लड़ाई की शुरूआत किसने की? सरकार विरोधी पत्रकारों को जेलों में ठूंसने की परंपरा किसने और क्यों शुरू की? ऐसे हर सवाल पर पहली ऊंगली कांग्रेस और उसके नेताओं पर ही उठती है । यही वजह है कि आज कांग्रेस अपने बुने जाल में ही फंस गयी है ।
ना तो मैं अरनब गोस्वामी स्टाइल की पत्रकारिता का फैन हूं और ना ही चीख-चिल्लाकर अपनी बात कहने का । लेकिन इस वक्त देश के जो भी मूर्धन्य पत्रकार अरनब गोस्वामी को दिन-रात पानी पी- पी कर कोस रहे हैं, उन्हें पत्रकारिता का बुरा उदाहरण बता कर पेश कर रहे हैं , ऐसे जितने भी स्वनाम धन्य पत्रकार है वो खुद अपने गिरेबां में झांके और देखें कि जब उनके हाथ में अधिकार था तो उन्होंने क्या किया था? कैसे उन्होंने सत्ता की दलाली की थी। सरकार की सहूलियत के हिसाब से खेल -खेलते थे । भले ही तरीका गरिमामय दिखता हो । आज उनमें से बहुत सारे नैतिकता की दुहाई देते नहीं थक रहे ।