Monday, April 24, 2017

शिक्षा के निजीकरण, व्यवसायीकरण पर लगाम लगानी होगी

शिक्षा देना सरकार और समाज की जिम्मेदारी है 

राजधानी दिल्ली के बदलते सरकारी स्कूलों की इनसाइड स्टोरी 

दिल्ली के शिक्षामंत्री मनीष सिसौदिया मंत्रालय संभालने के अपने शुरूआती दिनों में एक दिन एक विद्यालय के औचक दौरे पर गये । वहां उन्होंने देखा कि टीचर बच्चों को गांधीजी का सफाई सिद्दांत पढ़ा रही हैं  लेकिन जब कमरे में चारो तरफ नज़र दौड़ाई तो उन्होंने देखा छत मकड़ी के जालों से अटा पड़ा है, दीवारे गंदी है, कुर्सी -टेबल पर धूल जमी है और फर्श साफ नहीं है । उन्होंने फौरन शिक्षक से पूछा क्यों पढ़ा रही हैं गांधी का सफाई का सिद्धांत? तो उस टीचर के पास सिवाय इस बात के कोई जवाब नहीं था कि ये पाठ्यक्रम का हिस्सा है इसलिए पढ़ा रही हूं । और बच्चों ने कह दिया कि जो टीचर पढ़ाती हैं हम तो वहीं पढ़ते हैं । 
कुल मिलाकर शिक्षामंत्री को ये समझ आ गया कि ना टीचर को पता है कि वो क्यों पढ़ा रहा है? और क्या पढ़ा रहा है?  और ना छात्रों को पता है कि वो क्यों पढ़ रहे हैं । इस तरह उन्होंने दिल्ली के स्कूलों का हाल जाना ।
दिल्ली के कई पिछड़े इलाकों में सरकारी स्कूलों का हाल तो इससे भी बुरा था । वहां अभिभावक और पैरेंट्स के बीच कोई संवाद ही नहीं है । शिक्षक दो घंटे स्कूल जाकर खुद को ऐसे जाहिर करता था जैसे वो उस विद्यालय पर एहसान कर रहा हो और रोज-मर्रा की रोजी-रोटी के लिए परेशान अभिभावक को ये लगता था कि कम से कम उसकी संतान स्कूल तो जा रही है ।
इन दो उदाहरणों से आप समझ लीजिए दिल्ली के करीब 90 हजार सरकारी शिक्षक,  करीब ढाईलाख से ज्यादा छात्रों का जीवन और उनसे जुड़े परिवार और परिवार से जुड़ा समाज  किस दिशा में जा रहा था।   सिसौदिया समझ गये कि सालों से जिस  वैल्यू ऐजुकेशन  की बात हो रही है वो पूरी तरह से फेल है और उन्होंने वैल्यू ऑफ ऐजुकेशन को ही अपना लक्ष्य बना लिया ।
शिक्षामंत्री ने सुधार की प्रक्रिया अफसरों से शुरू की । मंत्रालय का कार्यभार संभालने के महीनेभर में वो करीब पैंतीस जिम्मेदार अफसरों को लेकर वो रायपुर में ऐसी जगह पहुंचे जहां मानव दर्शन को पढ़ाया जाता है,  जहां मानवीकरण पर बात होती । जहां मनुष्य जीवन के गूढ़ रहस्यों पर नित शोध होता है । सिसौदिया अपने अफसरों के साथ वहां सात दिन डटे रहे  और इस दौरान ना कुछ बोलना पड़ा, ना कहना पड़ा,  अफसर समझ गये कि मंत्री क्या चाहता है ।
अस्तित्व में मानव की महती भूमिका को समझने के बाद दिल्ली के  अफसरों में एक नया जोश था। इसके बाद  दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में शिक्षकों को मानव शिक्षा का महत्व बताने के लिए महाशिविर किया गया जिसके चमत्कारी नतीजे सामने आये और इसके साथ ही ऐसे शिक्षकों और प्राचार्यों की पहचान शुरू की गई जो वाकई दिल से शिक्षा से जुड़े हुए थे । जिनके पास शिक्षा को लेकर एक विजन था । वो इस काम में अपना जी जान लगाना चाहते थे ।
करीब 54 प्राचार्यों के विजन को सिसौदिया के मंत्रालय ने स्वीकृति दी । उन प्राचार्यों ने जो सुविधा मांगी उन्हें वो सुविधा प्रदान की गई  । कर्मचारी से लेकर बजट तक,  बिल्डिंग से लेकर उसके देखभाल की जिम्मेदारी तक, सब प्राचार्यों के मन का किया गया औऱ बदले में उनसे सिर्फ यही अपेक्षा की गई कि स्कूल और बच्चों को लेकर जो उनका सपना है वो पूरा होना चाहिए । शिक्षकों के कहने पर भारीभरकम सलेबस में 25 प्रतिशत तक की कटौती भी कर दी गई । अब वो प्राचार्य और उनकी टीम नतीजे देने में जुट गई है ।
यही नहीं दिल्ली के टीचर्स को जनसंख्या और तमाम दूसरे सरकारी कामों से दूर रखने का फैसला लिया गया और तय किया गया कि उनसे अधिकतम शिक्षा का ही काम लिया जाएगा ।
दिल्ली के पिछड़े तबके के इलाकों से लेकर भगभग हर सरकारी स्कूलों में शिक्षक और अभिभावक सम्मेलन शुरू हुए । शिक्षकों और अभिभावकों में रिश्ता बना, विश्वास जगा और अब दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षक और अभिभावक सम्मेलन उत्सव का रूप ले चुका है ।
इसी  का नतीजा है कि दिल्ली के कई स्कूलों और मोहल्लों में रीडिंग बेला , रीडिंग कैम्पेन शुरू हो गया है जहां बच्चों को जोर- जोर से किताबें पढ़ना सिखाया जाता है । ये करना इसलिए जरूरी था क्योंकि एक एनजीओं की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चे सातवीं- आठवीं की कक्षाओं में पहुंच तो गये थे लेकिन कई बच्चों को दूसरी कक्षा की किताब भी पढ़नी नहीं आती थी । अब ये भरोसा जग गया है कि बच्चे कम के कम स्कूल की किताबों को जान तो सकेंगे कि उसमें है क्या?और क्यों है?
यही नहीं सरकारी स्कूलों में मेंटर शिक्षकों की पहचान की जा रही है उन्हें मानव विज्ञान की ट्रेनिंग दी जा रही है और शिक्षकों का ग्रुप बना बना कर उन्हें तर्क सहित ये बताया जा रहा कि शिक्षा में मूल्यों का होना क्यों जरूरी है । अच्छे इंसान समाज के लिए कितने उपयोगी है । दिल्ली के इन मेंटर शिक्षकों को चुनौती दी गई है वो ऐसा जीवन जिये जिससे दूसरों को प्रेरणा मिले । और ये काम कोई सरकार दबाव से नहीं बल्कि उनकी स्वीकृति से हो रहा है ।
सिसौदिया को उम्मीद है कि अब अगर ये प्रयोग सफल रहा तो गांधी का सफाई सिद्धांत किताबों से बाहर निकलकर व्यवहार के धरातल पर दिखने लगेगा । उन्हें उम्मीद है कबीर के दोहे हमारे व्यहारिक जीवन का हिस्सा होंगे । यही नहीं शिक्षक और छात्र के बीच परिवार जैसा रिश्ता होगा ।
स्कूलों में दिल्ली के शिक्षामंत्री की इस अभिनव प्रयोग की सफलता की मैं दिल से कामना करता हूं । क्योंकि सवाल मानव निर्माण का है ।
( ये लेख हापुड़ में जीवन विद्या अध्ययन शिविरके दौरान मेंटर शिक्षकों को संबोधित करते हुए मनीष सिसौदिया के भाषण पर आधारित है )
ये लेख यूसी न्यूज ने भी प्रकाशित किया है
http://tz.ucweb.com/5_d3qm

Sunday, April 23, 2017

यूरिन पीते किसानों पर सियासत का दिल क्यों नहीं पसीजता?

सूखे की मार झेलते किसान अब मानवता की मार से परेशान!

जब एक तरफ प्रधानमंत्री नीति आयोग की बैठक कर नये भारत की तस्वीर पेश करने की तैयारी कर रहे थे वहीं दूसरी तरफ पूरी दिल्ली में एमसीडी के चुनाव को लेकर माहौल गर्म है । क्या मीडिया, क्या नेता, क्या पुलिस और क्या  प्रशासनिक अधिकारी सबके के सब दिल्ली चुनावों में लगे हैं । वोट और सियासत  के  इस पागलपन में इंसानियत किस कदर गुम हो गई है इसका ताजा नमूना है जंतर-मंतर, जहां 40 दिन से ज्यादा हो गये 40 डिग्री से ज्यादा के तापमान में आधे-अधूरों कपड़ों में तमिलनाडु के किसान अपनी पीड़ा लेकर बैठे हैं ।

समस्या से तड़पते किसान अपना यूरिन पी गये । सुनकर ही कैसा लगता है लेकिन ये सच है देश में राजधानी में अनाज उगाने वाला किसान, अपनी बात सुनाने के लिए, अपनी बात सरकार तक पहुंचाने के लिए, मीडिया का ध्यान खींचने के लिए यूरिन पी गये । लेकिन मीडिया को चिंता इस बात कि है अजान की आवाज के चलते एक फिल्मी सितारा अपनी नींद क्यों पूरी नहीं कर पा रहा है ? कॉमेडियन गुत्ती और कपिल शर्मा का झगड़ा क्यों नहीं सुलग रहा ? मीडिया को आडवाणी और जोशी के राजनीतिक करियर की भी चिंता भी दिन- रात खाये जा रही है ।

उधर तमिलनाडु के  किसान सिर पीट रहे हैं, कभी चूहे मार कर खा रहे हैं तो कभी सांप । कभी पेड़ पर चढ़ जाते है तो कभी पत्ते लपेट कर रहते हैं ।  जिस सड़क पर सोते हैं वहीं पर खा रहे हैं , सुबह सरकारी टॉयलेट बंद रहते हैं इसलिए सड़क पर ही शौच के लिए जा रहे हैं । देश की राजधानी में इंसानियत हर दिन, हर पल शर्मसार हो रही है ।
चुनावों के दौरान किसानों की आत्महत्या के नाम पर गला फाडनेवाला विपक्ष  कहां है?  चुनाव से पहले  दादरी से लेकर रोहित वुमेला को लेकर इंसानियत की लड़ाई के नाम पर देश के सदभाव को खतरे में डालने वाले वो लोग  कहां है?  वो लोग कहां हैं जो जेएनयू में देशद्रोही नारे लगानेवालों के साथ सिर्फ इसलिए खड़े हो जाते हैं क्योंकि उनको इसमें अन्याय नजर आता है ?  कहां पर है वो संगठन जो आतंकवादियों की मौत पर मानवधिकार की बात करते हैं ?  दिल्ली की सड़कों पर  किसानों के साथ जो हो रहा है क्या उससे कहीं मानवाधिकारों का उल्लघंन नहीं हैं ?

कहां हैं दिल्ली के वो वकील जो आतंकवादी की फांसी रूकवाने लिए आधी रात को सुप्रीम कोर्ट खुलवा लेते हैं ?असहिष्णुता के मुद्दे पर पुरस्कार लौटनेवाले वो विद्वान कहां हैं ?  क्या वो इस कदर सहिष्णु हो गये हैं कि यूरिन पीते किसानों के दर्द को ही उन्होंने नियति मान लिया है!

दिल्ली के मुख्यमंत्री तो आमआदमी की राजनीति करते हैं । आमआदमी के लिए दिल्ली से लेकर पंजाब और गोवा से लेकर गुजरात तक सब एक कर दिया । लेकिन उनके इलाके में  क्या यूरिन पीते ये किसान उन्हें आम आदमी नहीं लगते । उन्हें कहीं ये तो नहीं लगता कि ये सब के सब विरोधियों से मिले हुए है जो उनका पेट डायलॉग हैं । या फिर तमिलनाडु में अभी उनकी पार्टी की नींव नहीं पड़ी है ?

राहुल गांधी तो एक दिन गये थे किसानों से मिलने, लेकिन बताया नहीं कि उनके दर्द को क्या समझा? क्या उनकी तकलीफों को सुनकर उनकी सवेंदनाएं नहीं उमड़ी । अगर राहुल गांधी को किसान का यूरिन पीना बेचैन नहीं करता है तो इसका मतलब है किसान 40 दिन से दिल्ली में ड्रामा कर रहे है! वर्ना तो ऐसा आंदोलन खड़ा कर देते की सरकार हिल जाती । क्यों सही है ना राहुल जी !
हमारे प्रधानमंत्री जी मन की बात करते हैं लेकिन क्या तमिलनाडु के किसानों के पास कोई  मन ही नहीं । पीएम ने  सिविल सर्विस डे पर प्रशासनिक अधिकारियों को इंसान बनने की सलाह दी है । लाल बत्ती उतरवाकर उन्होंने आम और खास के फर्क को खत्म करने का संदेश दिया तो फिर इन दीन- हीन किसान पर उनका  दिल क्यों नहीं पसीजा ? सूखा झेलते किसान क्या आम लोगों में नहीं आते ?
 बीजेपी कहती है कि मुसलमान बीजेपी को वोट नहीं देते लेकिन बीजेपी उनके साथ भी अन्याय नहीं होने देगी । तो
फिर ये किसान किस श्रेणी में शामिल हो ताकि इनको भी न्याय मिल सकें ?  मगर ये किसान तो तमिलनाड़ु के हैं और वहां उनके विधाता पनीरसेल्वल और पलानीस्वामी  इस बात में डूबे हैं कि शशिकला से कैसे निपटे? करूणानिधि इन दोनों पर घात लगाये बैठे हैं कि ये दोनों गलती करें कि वो मौका हासिल करें । ऐसे में  पिछले 140 सालों में अब तक का सबसे बड़ा सूखा झेल रहे है तमिलनाडु के किसान कहां जाते ?
इन अनपढ़ किसानों ने किस्सों में सुना था कि जब कहीं इंसाफ नहीं  होता तो दिल्ली इंसाफ करती है । भूख और सूखे का दर्द झेलते ये किसान दिल्ली तो पहुंच गये लेकिन दिल्ली इतनी बेहरम निकली बेचारे अपना यूरिन पीने को मजबूर हो गये ।  और अब ये अच्छी तरह समझ गये होंगे कि तमिलनाडु से लेकर दिल्ली तक सियासत का एक ही भाषा समझती है और वो है वोट की भाषा ।
अगर प्रदर्शन कर  रहे इन किसानों के पास वोट होता, इनकी कोई जाति होती, संख्याबल का कोई संप्रदाय होता तो शायद सियासत इनके कदमों में लोटती । मीडिया को इनमें मार्केट नज़र आता और तब इनके हक की लड़ाई के लिए नेता यूरिन पी लेते ।

Saturday, April 22, 2017

आईपीएल2017- रैना और शिखर के पास जान लड़ाने के सिवा कोई चारा नहीं

चैम्पियंस ट्रॉफी खेलना है तो दम लगाओ प्यारे 




मौजूदा आईपीएल भारतीय क्रिकेट टीम की शान माने जाने वाले शिखऱ धवन और सुरेश रैना दोनों के लिए किसी इम्तिहान से कम नहीं है  क्योंकि इसके बाद चैम्पियन्स ट्रॉफी के लिए भारतीय टीम का एलान होना है और उसे लेकर सेलेक्टर्स इस टूर्नामेंट पर नजरें गढ़ाये बैठे हैं ।
शिखर और रैना की मुश्किल ये हैं कि एक से बढ़ एक युवा खिलाड़ी लगातार दमदार प्रदर्शन कर रहे हैं और उनसे खुद को बेहतर साबित करने के लिए इन दोनों खिलाड़ियों को जान लड़ाना ही होगा । इन दोनों के पास बोनस इस बात का है हुनर और अनुभव से दोनों लदे हुए हैं ।
शुक्रवार की रात सुरेश रैना ने 84 रन की ताबड़तोड़ पारी खेलकर केकेआर के विजय अभियान को रोक दिया और गुजरात लायंस ने दूसरी जीत अपने नाम की  । रैना ने इस दौरान 9 चौके औऱ 4 छक्के लगाये । आईपीएल10 में वो अब तक दो फिफ्टी जड़ चुके हैं और करीब 60 की औसत से रन बना रहे हैं ।
अगर उन्होंने अपने इस लय को थोड़ा अपलिफ्ट किया तो सेलेक्टर्स उन्हें नज़र अंदाज करने की स्थिति में नहीं होंगे । विषम परिस्थियों में अकेले अपने दम पर टीम का जिताने का दम रखते है रैना । उन्होंने कई मौकों पर ऐसा साबित किया है ।
लेकिन टीम इंडिया का हिस्सा बनने में रैना पर तलवार इसलिए लटक रही है क्योंकि इंगलैंड सीरीज जनवरी 2015 में पुणे और कटक में खेल गये मैचों में वो कोई खास छाप नहीं छोड़ सके थे ।
उधर शिखर धवन  का बल्ला भी इस आईपीएल हैदराबाद के लिए रह -रह कर गरज  रहा है आरसीबी के विरूद्द 40 रन की पारी , मुंबई इंडियन्स के खिलाफ 48 रन की भारी और इन सब पर भारी थी डेयरडेविल्स के खिलाफ 70 रन की पारी ।
ऐसे में चैम्पियन्स ट्रॉफी के टीम में सेलेक्ट होने के शिखऱ के अवसर इसलिए भी बढ़ गये हैं क्योंकि के एल राहुल कंधे की चोट का शिकार हो गये हैं  और टीम को चाहिए एक भरोसेमंद ओपनर जो बनाएगा लेफ्ट -राइट का कांबीनेशन ।
अक्टूबर 2015 के बाद से वनडे टीम से बाहर बैठे शिखर को देखने के लिए उनके फैन्स बेकरार है और फिर जब बात चैम्पियंस ट्रॉफी को हो तो शिखर से बड़ा कोई नहीं । कोई कैसे भूल सकता है चैम्पियन्स ट्रॉफी 2013 को ।  पांच मैचों में उन्होंने करीब 90 की औसत से दो शतक और एक अर्धशतक की मदद से 363 रन बनाये थे । शिखर मैन ऑफ द सीरीज रहे ।
तो टीम इंडिया के गब्बर शिखर और टीम के तूफान रैना को आईपीएल में आनेवाले दिनों में और आक्रामक होना ही होगा ।

ब्रम्हांड में तैरती धरती की नैय्या में छेद हो चुका है

22 अप्रैल -धरती दिवस पर विशेष 


धरती को समझने के लिए हमें सबसे पहले इस अस्तित्व को समझना होगा । इस अस्तिव की गूढ़ता को जाने बिना हम धरती का उध्दार कर ही नहीं सकते । इस धरती पर मुख्य रुप से चार चीजे हैं पहला पदार्थ- जिसमें  पहाड़, मिट्टी खेत, खदान आदि जैसी चीजें आती है । दूसरा है प्राण - जिसमें पेड़- पौधे आते हैं । तीसरा है जीव- जिसमें पशु-पक्षी कीड़े-मकोड़े आते हैं । और चौथी चीज है ज्ञान जिसे हमने मानव की संज्ञा दी है ।
सबसे पहले हम धरती पर मौजूद  पदार्थ को समझते हैं । मिट्टी उपजाऊ है इसलिए हमारे खेत लहलहा रहे हैं । खदानें है इसलिए हम जरूरत का सारा सामान धरती भीतर से निकाल पा रहे हैं । पानी , तेल से लेकर सोना और चांदी तक धरती हमको दे रही हैं । जरा सोचिए  कि इनमें से कई चीजें जिसका हम भंडार कर रहे हैं उनका जिंदा रहने के अर्थ में कितना उपयोग है ।
दूसरी चीज है प्राण जिसका मोटा मतलब है  पेड़-पौधे  । धरती के लिए सबसे खतरनाक चीज है कार्बनडाई आक्साइड जिसे पैड़ पौधे ग्रहण करते हैं और आक्सीजन से वातावरण को भर देते है यानी लेते कम है और वायुमंडल , धरती को देते बहुत कुछ हैं ।
तीसरी चीज है जीव-जंतु जितनी जरूरत होती है उनता आहार लेते हैं, मौसम और प्रकृति के अनुकूल मैथून करते हैं और जरा चिंतन करें तो देखेंगे पशु अपने मल से इस धरती पर पेड़- पौधे को पोषण प्रदान करने का सबसे बढ़िया तरीका रहा है ,वहीं वनों के विस्तार में पक्षियों के मल की उपयोगिता स्वयं में प्रमाणित है ।
अब अगर तीनों का बारीकी से अध्ययन करें तो पायेंगे पदार्थ, प्राण और जीव एक दूसरे के पूरक है जितना एक -दूसरे से लेते हैं उससे ज्यादा एक दूसरे को देने का भाव इन तीनों में स्वस्फूर्त है । जबकि अस्तित्व ने इनको सोचने- समझने और जानने की शक्ति से वंचित कर रखा है ।
और आइये इस अस्तित्व में मानव को पहचानते हैं । मानव जिसे जिंदा रहने के अर्थ में प्रतिदिन थोड़ा सा भोजन चाहिए । वो सभ्यता का दावा करता है इसलिए तन ढंकने के लिए कपड़ा चाहिए और खुद को अनुशासित कहता है इसलिए उसे सिर पर छत चाहिए । उसकी ये जरूरते इस विशाल अस्तित्व में कुछ भी नहीं है, बहुत थोड़ी है ।
आप कल्पना करिए कि जीव-जंतु, पेड़-पौधे,  जिनके पास सोचने की समझने की शक्ति नहीं वो कभी भूख, से, दरिद्रता से नहीं मरे तो फिर मानव कैसे मर सकता है !
लेकिन मानव ने अपने सुविधा के लिए जंगल के जंगल साफ कर दिये । मानव की कृत्रिम भूख के चलते  नदियों का वजूद खत्म होने की कगार है । कई नदियां तो जीते जी मर गई । मानव ने अपने  शरीर को सुविधा सम्पन्न बनाने के लिए वायुमंडल को जहरीला बना दिया । मानव के चलते जीव-जंतुओं की कई प्रजातियां, वनस्पतियों की असंख्य प्रजातियां लुप्त हो चुकी है ।
तो ये समझ आता है कि पदार्थ, प्राण और जीव की तरह मानव को भी इस व्यवस्था में पूरक होकर जीना था। लेकिन सिर्फ मानव का  प्रकृति से व्यवहार एक तरफा रहा । उसने सिर्फ लिया ही लिया है दिया कुछ भी नहीं ।
कल्पना की असीम शक्ति से भरा मानव दरिद्रता के दुर्गण में इस कदर लिप्त है कि उसकी सोचने, समझने की शक्ति ही खत्म हो गई है । यहां दरिद्रता से तात्पर्य ये हैं कि जितना भी आपके पास है आप उससे संतुष्ट नहीं हो । सुविधा का संग्रह करने में मनुष्य ने अपने ज्ञान का और कल्पना शक्ति का दुरूपयोग किया और सिर्फ जिंदा शऱीर बन कर रह गया । इस चक्कर में जीवन उससे कोसों पीछे छूट गया । लोभ में ग्रस्त मानव जीवन -जीने की कला ही नहीं सीख पाया । जिनता साधन-सम्पन्न मनुष्य वो अस्तित्व का उनता बड़ा अपराधी ।  
तो इतना जान लीजिए कि मानव जब तक खुद को जानने की शिक्षा से अछूता रहेगा वो इसी तरह धऱती को विनाश की तरफ लेकर जाता रहेगा और एक दिन खुद इस विनाश में अपने खूबसूरत अस्तित्व को खो देगा ।
आपको पता है इस विशाल ब्रम्हांड में तैरती धरती की नैय्या में  ओजोन नामक  छेद हो चुका है वायुमंडल में ज़हर तेजी से घुस रहा है अभी भी आप नहीं चेते तो आप ,अपने बच्चों के कातिल कहलाओगे ।

( ये लेख भारत के परंपरागत ज्ञान और बाबा नागराज के मध्यसस्थ दर्शन पर आधारित है )
  

Friday, April 21, 2017

देश की दुर्दशा के मूल कारण को पीएम ने पकड़ लिया

प्रधानमंत्री का अब का सबसे बढ़िया भाषण
प्रशासनिक अधिकारियों को प्रधानमंत्री ने आइना दिखाया
सिविल सर्विस डे पर प्रधानमंत्री ने दिल से बोला
---
संयोग की बात है कि आज मेरी एक ऐसे लड़के से बात हुई जो दिल्ली में रहकर सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा है ।
मैंने पूछा क्यों कर रहे हो इनती तपस्या?
वो फौरन बोला देश के लिए कुछ करना चाहता हूं ।
मेरा दूसरा सवाल था देश की सेवा करना चाहते हो कि अपना भविष्य सुरक्षित करना चाहते हो?
उसने ईमानदारी से कहा हां ये भी एक कारण है।  
मैने उससे कहां तो फिर सीधे- सीधे कहो की खुद के लिए कुछ करना चाहते हो देश को बीच में क्यों ला रहे हो और वो चुप ।
ये सिर्फ इस युवक की बात नहीं है इस देश में जिनते भी लोग सिविल सर्विसेज की तैयारी करते हैं सब का प्राथमिक दृष्टिकोण हूबहू ऐसा ही रहता है । अतीत का दुख, वर्तमान का दर्द और भविष्य के देवत्व में झूलती इनकी जिंदगी ही भारत के विकास की सबसे बड़ी बाधा है । यही वजह कि प्रशासनिक सेवा में पहुंचते ही व्यक्ति अपने खुद के भविष्य को सुरक्षित करने में इस कदर भिड़ जाता है देश की सेवा, मानव की सेवा सब बातें बन कर रह जाती है ।
सिविल सर्विस डे के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हंसी -हंसी में ही सही लेकिन साफ- साफ कहा कि आप लोगों की जिंदगी दफ्तर की फाइल बन कर रह गई है । प्रधानमंत्री ने अधिकारियों के मुरझाये चेहरे से बात शुरु की और परिवार तक ले गये । परिवार के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताने का जिक्र कर उन्होंने कह दिया कि जब आपकी भागमभाग भरी जिंदगी से परिवार ही खुश नहीं तो आप लोग आम लोगों को क्या खुशी दे पायेंगे!
प्रधानमंत्री मोदी की लभगभ हर बात से जीवन का दर्शन झलक रहा था उन्होंने कहा कि कहीं आप रोबोट की जिंदगी तो नहीं जी रहे । कहीं आप लोगों के अंदर का इंसान खो तो नहीं गया । उन्होंने यहां तक कह दिया कि मसूरी में मिली ट्रेनिंग के दौरान आप लोगों को मिली शिक्षा भी शायद आपको याद नहीं ।
अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए उन्होंने मसूरी में शिलालेख पर उद्धरित सरदार पटेल के उस वाक्य का जिक्र किया जिसका मज़मून ये है कि आप तब तक स्वतंत्र भारत की कल्पना नहीं कर सकते जब तक आपके पास स्वतंत्रता पूर्वक व्यक्त करने वाली प्रशासनिक व्यवस्था ना हो ।
प्रधानमंत्री के मुताबिक व्यवस्था को समझने की जरूरत है, जिसके भीतर का इंसान ही खो गया होगा वो कैसे स्वतंत्र होगा ? जिसका स्वयं पर कोई नियंत्रण नहीं हो,    जिसने  अव्यवस्था को ही अपनी सेवा का हिस्सा मान बैठा हो । उसके अंदर का जीवन,  जिसे हम इंसान कहते हैं वो सत्य ,प्रेम और न्याय मूल भावना से  कब का कोसो दूर हो गया है  ।  अब ऐसे  लोग उस भारत को कभी नहीं बना सकते जैसी कल्पना सरदार पटेल और अन्य महापुरूषों ने की है ।
सत्य को प्रमाणित करने के लिए वो  प्रशासनिक सेवा से जुड़े लोगों को उस भाव की ओर ले गये जिस पवित्र भाव से उन्होंने प्रशासनिक सेवा से जुड़ने का मन बनाया था वैसे ही जैसे मैंने लेख के शुरू में एक युवा के प्रसंग का वर्णन किया । उन्होंने स्पष्ट कहा इस नौकरी में आपका वो परम पवित्र भाव विचार खो गया है।
मोदी के विचारों समझे तो वो कहते हैं कि असल में आपका वो भाव ही नहीं खोया इस नौकरी में आप का अस्तित्व ही खो गया है । तभी उन्होंने अपनी बात की शुरूआत सभा में मुरझाये बैठे अधिकारियों को इंगित करके कही । फिर उन्होंने कहां कि आपका परिवार ही आपसे प्रसन्न नहीं है । जब परिवार ही प्रसन्न नहीं है तो फिर आप लोग दूसरों की परेशानियों को कैसे समझेंगे ?
उन्होंने कहां कि आप अपने बच्चों के उदाहरण बने, सोशल नेटवर्किंग साइट पर खुद के महिमामंडन आपके अहंकार का प्रतीक है । इसमें सेवा की भावना परिलक्षित नहीं होती ।
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री ने इस देश की सबसे बड़ी कमजोरी को पकड़ लिया है । वो जान गये है मानव को मानव बनाये बिना ये देश, ये समाज और ये राष्ट्र समस्यामुक्त नहीं हो सकता । उन्होंने अफसरों से अपील की मसूरी ट्रेनिंग कैंप के ध्येय वाक्य "शीलम परम भूषणम" को कृपया आप लोग अपने जीवन का हिस्सा बनाये देश अपने आप सुधर जायेगा ।

लालबत्ती की बंदी तो बदलाव का सिर्फ ट्रेलर है



पुराने सरकारी ढर्रों के दिन अब लद गये 


देश के लिए सिस्टम को बेहतर 
करना ही होगा  

 
मंत्रियों और अफसरों की गाड़ियों से लाल बत्ती हटा कर बीजेपी ने वीआईपी कल्चर खत्म करने की शुरूआत कर दी है । बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्दे ने इसे  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  की आम आदमी को ताकतवर बनाने के दिशा में एक और प्रभावशाली कदम बताया है । इस मामले में पूरी बीजेपी प्रधानमंत्री के साथ है, पार्टी चाहती है कि आम और खास के बीच का फर्क खत्म हो, इसके लिए प्रतीकों को ध्वस्त करना जरूरी था ।
लालबत्ती की बंदी से पहले प्रधानमंत्री नोटबंदी कर सुधारवादी इच्छाशक्ति का प्रदर्शन कर चुके हैं । वो कहते हैं कि विरोधी भले ही कुछ कहे लेकिन प्रधानमंत्री के इस फैसले ने नकली नोट बनाने वालों, तस्करी करने वालों, नशे का कारोबार करने वालों , कालाबाजारी करने वालों, कालाधन रखने वालों ,  हवाला कारोबारी , आतंकवाद में शामिल लोगों में एक डर पैदा किया है । नोटबंदी के इस फैसले से ईमानदारी प्रमाणित हुई है और बेईमान लोगों में पहली बार इस कदर हड़कंप मचा है ।
साधारण आदमी को सशक्त बनाने के लिए सरकार पिछले ढाई सालों में लगातार इस प्रयास में लगी है कि पुराने बेकार हो चुके कानून के बोझ से आम जनता का मुक्त कराये औऱ वो कानून मुहैया कराया जाय जिससे साधारण आदमी सरलता से व्यवस्था में भागीदार बना रहे ।
64 साल पुराने योजना आयोग की जगह नीति आयोग को अस्तित्व में लाने के प्रधानमंत्री के फैसले को भी सहस्त्रबुद्दे आधुनिक सोच से भरा कदम मानते हैं । उनका मानना है आयोग का एक धड़ा राज्यों और क्रेंद्रीय सचिवालयों के बीच समझ को विकसित कर सबका साथ और सबके विकास  की दिशा में काम कर रहा है, तो ज्ञान और नवप्रवर्तन से जुड़े एक दर्जन स्तरों पर विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता विकसित करने का काम सौंपा गया है,जैसे-व्यापार और वृहद स्वास्थ्य, कृषि, ग्रामीण विकास, शिक्षा तथा कौशल विकास । ताकि समृद्धि का आधार  ठोस हो, नतीजे सकारात्मक हो ।
रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बनाकर बीजेपी सरकार ने दूरदर्शिता का परिचय दिया है । तो वहीं जीएसटी के मूल में भी आम आदमी की सहूलियतें ही सर्वोपरि हैं।  
सहस्त्रबुद्दे का मानना है कि आनेवाले दिनों सरकार और भी ऐसे साहसिक फैसलों से अपने विश्वास को प्रदर्शित करती रहेगी । वो अब तक उठाये कदमों को सिर्फ शुरूआत की संज्ञा देते हैं उनका कहना है विकसित और समृद्धिशाली भारत बनाने के लिए हर मोर्च पर बहुत बदलाव की जरूरत है जो आनेवाले दिनों जनता महसूस करेगी ।

( ये लेख बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे से श्रीधर राव की बातचीत पर आधारित है )

Thursday, April 20, 2017

सचिन..! सचिन..! जीत का मंत्र

जब मैंने भगवान को अनुभूत किया!

डाक्यूमेंट्री फिल्म सचिन ए बिलियन्स ड्रीम पर प्रतिक्रिया







आज भी मैं अपनी किस्मत का शुक्रिया अदा करते नहीं थकता वाकई ना जाने इस किस्मत पे कितनों ने रश्क किया होगा । जी हां मैं उन इंसानों में शामिल हूं जिसने सचिन तेंदुलकर के टेस्ट करियर के आखिरी मैच को अपनी आंखों से देखा ।
मै स्टार स्पोर्टस के साथ  टीवी प्रोडक्शन क्रू का हिस्सा था । वानखेड़े स्टेडियम में भीतर बैठ कर बिना पलक झपकाये सारे लोग अपना काम कर रहे थे ।
चौदह नवंबर को पहले दिन मुझे लगता है करीब तीन बजे के आसपास शिलिंगफोर्ड पारी का चौदहवा ओवर फेंक रहे थे ।  पहली गेंद में उन्होंने शिखर धवन को आउट किया और चौथी गेंद में विजय को । भारत के दोनों ओपनर आउट हो गये ।
तभी अचानक वानखेड़े का जर्रा-जर्रा शोर से गूंज उठा उस शोर में कुछ ऐसा था जिसने रोम-रोम को रोमांचित कर दिया । दिल की धड़कनों में अचानक मानों एक नई उर्जा हो गई हो । दिमाग उत्साह से भर गया । हर आंखों में अजीब से चमक थी ।
मुझसे रहा नहीं गया उत्सुकता वश प्रोडक्शन रूम से मेरे कदम खुद का खुद खुले स्टेडियम की तरफ दौड़ पड़े। वानखेड़े का कोना कोना भरा हुआ था । एक एक दर्शक खड़ा था । पूरी दुनिया की मीडिया हैरान थी कि हो क्या रहा है । करीब चालीस हजार से ज्यादा लोग एक आवाज में पूरे लय के साथ चिल्ला रहे थे सचिन..... सचिन ......
हमेशा की तरह अनंत अंतरिक्ष को देखते सचिन बाहर निकले और गार्ड ऑफ ऑनर के लिए पूरी वेस्टइंडीज की टीम उनके सामने खड़ी थी । अभी तो चमत्कार को देखने का सिलसिला शुरु हुआ था  और  परिदृश्य में सचिन..! सचिन ..!की गूंज थमने का नाम नहीं ले रही थी ।
सचिन ने सोलहवें ओवर की पहली गेंद पर भाग कर एक रन लिया । भाई साहब!  इस रन पर दर्शकों का शोर एक साथ ऐसे गूंजा मानों सचिन के इस शॉट से एक हजार रन निकले हो । दर्शक थे कि अपनी सीट पर बैठने को तैयार नहीं थे । अनगितन तिरंगे झंडों से लहलहा रहा था स्टेडियम
अठारहें ओवर की दूसरी गेंद में सचिन के बल्ले से पहला चौका निकला आप सिर्फ कल्पना कीजिए कि चालीस हजार से ज्यादा लोगों ने क्या किया होगा ऐसा शोर जो आज भी कानों में शक्ति बन कर गूंजता है । वो दिन जिंदगी का पहला दिन था कि मेरे रोम रोम बिना थके लगातार नर्तन कर रहे थे ।
मैंने गांधी की लोकप्रियता के किस्से पढ़े थे । मैंने भगवान राम के लिए जनता को उनके पीछे दौड़ने की कहानियां सुनी थी । लेकिन पहली बार किसी व्यक्ति के प्रभाव का ऐसा जीवंत दर्शन कर रहा था । सचिन का सिर्फ एक हाथ उठता था और स्टेडियम में ऐसी शांति हो जाती कि मानों खाली पड़ा हो स्टेडियम ।
शायद वो मेरे जीवन का पहला दिन था जब मैंने भगवान को देखा , क्रिकेट का भगवान ।  अगले दिन मैच के खत्म होने के बाद सचिन अपना विदाई भाषण पढ़ रहे और स्टेडियम में खड़े दर्शकों की आंखों से आंसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे । सचिन बोल रहे थे पूरा समां शांत था, स्तब्ध था,  वहां भावनाओं का ऐसा ज्वार था कि उस वक्त शायद अरब सागर में लहरें भी ना उठी हो ।
26 मई को रीलीज हो रही उनकी डाक्यूमेंट्री फिल्म "सचिन ए बिलियन्स ड्रीम" के ट्रेलर में सचिन कहते है कि क्रिकेट खेलना मेरे लिए मंदिर जाने जैसा था ।  उनकी पत्नी कहती है उनके लिए हम सब बाद में थे पहले क्रिकेट था और इसको स्वीकार करने के सिवा हमारे पास कोई चारा नहीं था ।
निश्चित तौर पर ये कहानी एक साधारण लड़के के जीते जी  भगवान बनने की कहानी है , जिसका इंतजार पूरी दुनिया के क्रिकेट प्रेमी कर बेसब्री से रहे हैं ।

Wednesday, April 19, 2017

नोटबंदी से भी बड़ा और कड़ा है ये फैसला

लाल बत्ती गुल,  बजा लोकतंत्र का बिगुल

आपको को जनता ने चुना था, आपने जनता से सेवा का वादा किया था, हाथ जोड़- जोड़ कर, पैर पकड़-पकड़ कर  आपने अपने लिए वोट मांगा  । जनता को आपने  भरोसा दिया है कि आपकी ये विनम्रता दिखावटी नहीं, शाश्वत रहेगी। 

जनता के हर दुख में आपने साझेदारी का संकल्प लिया । जनता में अपनी उपयोगिता साबित करने के लिए आपने धर्म, मजहब, जात-पात धन-दौलत, ऊंच-नीच, अगड़ा-पिछड़ा, प्रांत-भाषा जहां जिससे जैसी बात बने उसे वैसे लुभाया । 

आप चुनाव जीते, किस्मत से मंत्री बने, आपको सुरक्षा मिली, सेवा करने और सेवक बनने का वादा किया था लेकिन आप तो हमारे सरकार ही बने बैठे और  आपके सिर पर लपलपाती ये लाल बत्ती उसी ठगी का बरसों से प्रतीक बनी रही । पहली बार किसी ने इतने ताकतवर तबके पर करारी चोट की है । 

पिछले 70 सालों में हमने पाया कि इस लालबत्ती में दम होता इसे लगाने वालों की पूजा होती, लोग अपने बच्चों को इन लालबत्तीवालों जैसा बनने का उदाहरण देते । लालबत्तीवालों के पीछे लोग स्वार्थवश घूमते रहे लेकिन इस वर्ग ने इसे श्रद्दा समझ लिया । लालबत्ती के दम पर जनता को शक्तिशाली होना था लेकिन इस लालबत्ती के चक्कर में जनता की बत्ती गुल रही । लोकतंत्र के नाम पर सामंती स्वरूप को इस लालबत्ती ने जिंदा रखा।  

लाल बत्ती हटाने का मोदी का ये फैसला नेता-अफसरों की इस गठजोड़ पर करारी चोट है जो इस सिस्टम पर कुंडलीमार कर बैठे है और इन लोगों ने ऐसा मकड़जाल बुन रखा है कि परेशान जनता सालों से इसमें फंसती रही और ये उससे अपना पोषण करते रहे । 

जिस तरह नोटबंदी से कालेधन के कुबेर बौखलाये हैं उससे ज्यादा अब हलचल होगी क्योंकि किसी ने पहली बार लालफीताशाही के सुरक्षित किले में सेंध मारी है । सफेदपोशों के गुरूर को चूर किया है । 

अभी तो ताकत के उन्माद का प्रतीक टूटा है,  अहंकार से निपटना अभी बाकी है । जनता के सेवकों को आईना दिखाने के लिए धन्यवाद मोदीजी!        


Tuesday, April 18, 2017

आईपीएल 2017 - मनन बने मिसाल

आईपीएल 2017  में सोमवार का दिन अब तक का सबसे रोमांचक दिन साबित हुआ । किंग्स इलेवन पंजाब के मनन वोहरा ने 190 के स्ट्राइक रेट से बल्लेबाजी की । 50 गेंद में 95 रन ठोक दिये । इस दौरान उन्होंने 9 चौके और 5 छक्के लगाये । अकेले अपने दम पर उन्होंने मैच को उस मुकाम पर पहुंचा दिया था जहां से सनराईजर्स हैदराबाद की टीम लगभग ये मैच गवां ही चुकी थी । 159 का पीछा करते हुए, मरे हुए मैच में मनन ने अपनी आतिशी पारी से जान फूंक दी । लेकिन पारी के 19 वें ओवर में भुवनेश्वर की कुमार की एक लो फुल टॉस गेंद पर मनन का बल्ला गेंद की रफ्तार को भांप नहीं पाया और गेंद सीधे उनके पैड से जा टकरायी । इस घटना पर हर क्रिकेट फैन के दिल से बस एक ही बात निकली कि काश! बल्ले ने थोड़ा संयम बरता होता या भुवी की गेंद थोड़ी ठहर जाती । लेकिन क्रिकेट में कहते है ना गेंद से ज्यादा बेहरम चीज कुछ नहीं होती । बस वो इंतजार करती है बल्लेबाज की एक गलती का और फिर बड़े से बड़ा पहाड़ रेत की तरह भरभरा जाता है । मनन के साथ बिलकुल यही हुआ उन्होंने अकेले अपने दम पर जीत का पहाड़ खड़ा कर दिया था, उम्मीदों का हिमालय उनके कदमों में था, शिखर पर पहुंच कर मनन जीत झंडा गाड़ने ही वाले थे कि हिमायल में हिमस्खलन हो गया और किंग्स इलेवन पंजाब की टीम मैच हार गई । 
लेकिन मनन की ये कहानी उस पर्वतारोही की तरह आनेवाले कई सालों तक क्रिकेटरों की प्रेरणा देती रहेगी जिसके सफर को बर्फ की आंधियां कभी डरा नहीं सकती  वो सिर्फ ये जानता है कि मौत किसी भी हो सकती है लेकिन रूकना नहीं है ।

Monday, April 17, 2017

सोनू निगम के लिए समाधान खोजें समस्या ना बनाये

जाने-माने गायक सोनू निगम ने सोमवार सवेरे अपने ट्वीट से सोशल मीडिया पर बवाल मचा दिया. उन्होंने लिखा, ''ऊपरवाला सभी को सलामत रखे. मैं मुसलमान नहीं हूं और सवेरे अज़ान की वजह से जागना पड़ता है. भारत में ये जबरन धार्मिकता कब थमेगी.''
सोनू के इस ट्वीट को धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक लोग अगर विवाद की दृष्टि से देखेंगे तो विवाद ही होगा ।  लेकिन अगर  धर्म की दृष्टि से देखेंगे तो आत्मअवलोकन का अवसर मिलेगा । इसलिए हमारे धर्मगुरूओं को सबसे पहले खुद के सामने प्रश्नों की झड़ी लगानी होगी । ये सवाल पहली बार सोनू निगम ने खड़ा नहीं किया, हिंदू, मुसलमान और तमाम धर्मों में लोगों ने समय- समय पर धर्म के नाम पर होने वाले दिखावे और आडम्बर पर प्रहार किया है  और मेरी समझ के मुताबिक रूढ़िवादी मान्यताओं के सामने सवाल खड़ा करने का ये सिलसिला संत कबीर दास जी ने बड़ी ही बहादुरी से शुरू किया था  वो लिखते हैं -
"कंकर पत्थर जोरि के मस्जिद लयी बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।"
कबीर दास जी ने इस मामले में हिंदुओं को भी नहीं छोड़ा
"पाहन पुजे तो हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़
ताते तो चाकी भली, पीस खाए संसार "
कितनी गहरी और सच्ची बात है । लेकिन फिर भी हमने कबीर के इस दर्शन को समझने की कोशिश ही नहीं की । हम उन्हीं जड़ परंपराओं को पकड़े रहे और वक्त के साथ जिस धर्म को मानवतावादी होना था । संपूर्ण अस्तित्व के संदर्भ में होना था वैसा  नहीं हुआ  बल्कि धर्म दिन ब दिन और जटिल होता गया । जैसे -जैसे मानव का विकास हुआ वैसे वैसे हमें अपने धर्म का भी विकास करना था । धर्म के नाम पर इंसान ने हजारों भव्य मंदिर- मस्जिद बना लिए लेकिन आजतक किसी को राम नहीं बना सके । किसी को अल्लाह का सच्चा बंदा नहीं बना सके ।
सोचिए हर दिन मोबाइल का एक नया वर्जन आ जाता है , गाड़ी का नया मॉडल हर छह महीने में नया आ जाता है ।सुख सुविधाओं की तमाम वस्तुएं हर दिन  बेहतर हो रही है । लेकिन जो धर्म हमें सुख देता है,  शांति देता है,  सदभाव देता है हमे अभावमुक्त करता है,  एक मानव का दूसरे मानव से शिकायत मुक्त करता है उस धर्म को वक्त के साथ हमने कितना सुधारा ? मानवीय दृष्टिकोण से उसे कितना बेहतर किया ? धर्म को हमने अपने अहंकार और पहचान से इस कदर जोड़ लिया है कि जो धर्म हमारे जीने का आधार होना चाहिए वो जड़ वस्तु बन कर रह गयी । हम ईश्वर के उपदेशों को सिर्फ सुनते रह गये लेकिन उसे समझ कर अपने जीवन में उतार नहीं सके ।
अगर आप हिंदू और मुसलमान के अहंकार से ऊपर उठ कर खुद को उस ईश्वर और अल्लाह के बंदे के स्थान पर रखकर सोचेंगे तो समझ आएगा की कोई धर्म किसी को भी शिकायत का अवसर नहीं देता । तो सोनू की ये शिकायत सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं  बल्कि तमाम धर्मों को भी आत्मअवोलन के लिए मजबूर करती हैं । सोनू निगम के लिए समाधान खोजें इसे समस्या ना बनाये ।        

Sunday, April 16, 2017

गोरेपन का बाजार, कुंठा पे कारोबार

मॉडल और एक्टर सोनल सहगल ने एक वीडियो बनाकर गोरेपन का झूठ बेचने वाली इंडस्ट्री का काला सच खोलकर कर रख दिया है । उन्होंने बताया कि कैसे अपने करियर के शुरूआती दिनों में फेयरनेस क्रीम के विज्ञापन में काम करके उन्होंने झूठ को बेचा । सोनल कहती है कि कोई भी क्रीम किसी काले को गोरा नहीं कर सकती । वो अपने फेसबुक पोस्ट पर  लिखती है कि मैंने कई सांवली लड़कियों को धोखा दिया । और वो ये भी बताती है 14 साल पहले जब वो मुंबई में करियर बनाने आई थी तो उन्हें पैसों की जरूरत थी, मॉडलिंग और एक्टिंग में करियर बनाना चाहती थी । सोनल ने ये पोस्ट तब लिखी जब उन्हें ये पता चला कि अभिनेता अभय देओल ने ने गोरेपन का दावा करने वाली क्रीम के विज्ञापनों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है । दिलचस्प बात ये हैं कि इस झूठ के विज्ञापन में शाहरुख खान, दीपिका पादुकोन जैसे कई दिग्गज फिल्मी हस्तियां शामिल हैं ।
फेयरनेस क्रीम का बाजर करीब 20 मिलियन से ज्यादा का है । इन कंपनियों ने समाज में फैले काले और गोरे के नस्ली भेदभाव की बुराई को अच्छे से कैश किया । इस भाव को इन कंपनियों ने आत्मविश्वास और काबिलियत से जोड़ दिया । यही नहीं गोरेपन को सफलता सूत्र तक साबित कर दिया । नस्ली भेदभाव के खुल्लम -खुला कारोबार में सरकारों का मौन हैरान करने वाला रहा ।
इसके मूल में जाये तो सबसे बड़ा कारण जो समझ आता है वो है लाभोन्मादी अर्थव्यवस्था का है । जिसका मतलब अधिकतम फायदे के लिए मानव मन की कमजोरियों को पकड़ कर उसे फैलाया जाय और हताश लोगों का  बाजार तैयार किया जाय । कुंठा का ये एक ऐसा कारोबार है जिसने पूरी दुनिया में सद्भभाव के ताने-बाने को भी गहरी चोट पहुंचायी । इन विज्ञापनों ने मानव तन को घटिया बताया,  मन को हताश किया और जमकर धन लूटा । जबकि अर्थव्यवस्था का स्वरूप ऐसा हो जिसमें तन को स्वस्थ करने की भावना हो , मन को सुख मिले और धन ऐसा हो जो समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी हो,  जब तक इस दृष्टिकोण के साथ कारोबार नहीं होगा गोरपन का गोरखधंधा यूं ही अनवरत चलता रहेगा क्योंकि लोभ की सीमा अनंत है जिससे सरकारें भी अछूती नहीं हैं ।

Saturday, April 15, 2017

योगी बोले अली दा पहला नंबर, बजरंग बली का दूजा!


मुसलमानों की पहले और चौथे नंबर के खलीफा की लड़ाई सुलझ नहीं रही है । अब योगी भी भारत के पूर्ववर्ती राजनेताओं की तरह इस कोशिश में कूद पड़े हैं। योगी ने इस मामले में सबसे ज्यादा हैरान किया 10 अप्रैल को , संयोग से इस दिन बजरंग बली की जयंती भी थी और हजरत अली साहब का भी जन्म दिन था । योगी ने उस दिन सबसे पहले प्रदेशवासियों को हजरत अली साहब के जन्मदिन की शुभकामना दी और उसके दो मिनट के बाद बजरंगबली का ध्यान किया । शायद योगी की जिंदगी में ये पहला मौका होगा जब अली दा पहला नंबर रहा और बजरंग  बली का दूसरा ।  
योगी जिस तरह से यूपी के मुसलमानों का दिल जीतने निकले हैं उससे लगता है वो कांग्रेस, और सपा को इस मामले में पीछे छोड़ देंगे । अब देखिए ना योगी सरकार मुस्लिम लड़कियों की शादी के लिए मेहर देने की योजना ला रही। अल्पसंख्यक विभाग की समीक्षा बैठक में योगी ने इस प्लान को हरी झंडी दिखा दी है। इसके लिए सामूहिक शादियों का आयोजन कर सरकार मेहर की रकम के रूप में बेटियों की शादी में मदद करेगी।
यही नहीं उत्तर प्रदेश के 19,213 मदरसों का आधुनिकरण किया जाएगा। मदरसों के आधुनिकरण के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव होगा। हिंदी, अंग्रेजी गणित और विज्ञान पढ़ाया जाएगा। इसके संदर्भ में जल्द बैठक बुलाई जाएगी। पुराने मदरसों के आधुनिकरण के लिए ये बैठक होगी ।
 और सुनिए!  जुलाई में हज यात्रा शुरू हो रही है । योगी आदित्यनाथ चाहते हैं हज यात्रियों को पर्याप्त सुविधाएं मुहैया कराई जाए ।
मुसलमानों को लेकर योगी के इन  फैसलों में एक तरफ सकारात्मका फूट रही है तो दूसरी तरफ आंशकाओं का आकाश भी फट रहा है । आंशका इस बात कि जिस तरह से  कांग्रेस ने मुसलमानों को वोट बैंक समझा और अपने प्रलोभनों के जाल में उलझा कर रखा, फिर सपा और बसपा में मुसलमानों को अपना बनाने की होड़ मची थी।  अब योगी जी के फैसलों को देखकर लगता है कि वो 2019 की तैयारी में पूरी ताकत से जुट गये हैं ।
सबसे पहली आशंका ये है एक तरफ आप सबका साथ और सबके विकास की बात करते हैं दूसरी तरफ आपके फैसलों से हिंदू औऱ मुसलमान रंग नज़र आने लगा हैं । लगता है  योगी जाति,  वर्ग और संप्रदाय के सबसे बड़े हितैषी बनने  की होड़ में  मुख्यमंत्री पद को अवसर की तरह ले रहे हैं।
दूसरा अगर सरकारें ही शादी, मदरसे, हज, मंदिर, मस्जिद तीर्थयात्रा का काम करने लगे तो फिर शासन -प्रशासन का काम कौन करेगा ?
तीसरा समाज और संप्रदाय का दिल जीतने की कोशिश में कहीं योगी  प्रदेश के कमजोर व्यक्तियों  को सरकारों पर निर्भर तो नहीं कर रहे हैं?  ऐसे में जाहिर है  व्यक्ति  कमजोर होगा , कमजोर व्यक्ति मतलब कमजोर समाज और कमजोर समाज मतलब कमजोर राज्य ।
चौथा ऐसे ऐसे लोकलुभावनों फैसलों के चलते सरकार पर पढ़नेवाला आर्थिक बोझ कल्याणकारी राज्य की नींव को ही कमजोर कर देता है ।
जाहिर है योगी प्रथम दृष्टया वहीं कर रहे हैं जो गलतियां पूरवर्ती सरकारें करती रही है जिसे हम  तुष्टीकरण कहते हैं । बस इस भगवा खलीफा का अंदाज फायर ब्रांड है । 

धर्म परिवर्तन एक असंभव घटना

मानवीय दृष्टिकोण 

पाकिस्तान में ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए सिंध असेंबली के पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एफ़) के सदस्य नंद कुमार ने क्रिमनल लॉ एक्ट 2015 पेश किया था।  पाकिस्तान के सिंध प्रांत की सरकार तीन महीने गुज़र जाने के बावजूद अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए बनाए बिल को लागू नहीं करवा पाई है। अधिकांश सांसदों का मानना है कि सिंध सरकार एक ओर रूढ़िवादी समूहों के दबाव के कारण इस बिल पर दोबारा चर्चा शुरू करने से कतरा रही है तो दूसरी ओर पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों में दहशत बढ़ गई है। ये अगर पाकिस्तान का हाल है  तो सोचने वाले बात ये है कि भारत इस बात से कितना अछूता है । हमारे देश में आये दिन  घर वापसी, जबरिया धर्मपरिवर्त की  खबरें सुनते रहते हैं । भारत हो या पाकिस्तान आखिर ये कौन सी मानसिकता है जिनके सिर पर  धर्म परिवर्तन जुनून है इसके मूल में जाये इसके पीछे ज्यादातर वो लोग है जिनके इरादे सियासी है । जिनको धर्म के नाम पर धंधा करना है । जिनको धर्म के नाम पर सम्मान हासिल करना है । इसका मतलब वो लोग धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश करते हैं जो मूलत: धार्मिक नहीं है । 
मानव को , इंसान को दृष्टि में रखकर अगर हम प्रचलित धर्म को समझने जाये तो पता चलता है कि सारे लोग सुख और शांति की कामना लेकर भटक रहे हैं और ये तभी संभव है जब व्यक्ति से लेकर परिवार, परिवार से लेकर समाज और समाज से लेकर ये धरती पूरी तरह से अभाव मुक्त और शिकायत मुक्त होकर एक दूसरे के कल्याण के विषय में कार्य करें । शायद इसी लिए इस्लाम में कहा हैं कि जो इस्लाम का विरोधी है वो काफिर है । इस्लाम का विरोधी मतलब जो इंसानियत का दुश्मन है, जो प्रेम का दुश्मन है जो मानवता का दुश्मन है । हिंदू धर्म में हर  हवन , हर पूजा के बाद हम कहते हैं अधर्म का नाश हो  । यहां पर भी अधर्म का तात्पर्य सत्य, प्रेम, न्याय और मानवता विरोधी कार्यों से हैं । बाइबिल में भी इंसान से इंसान के प्रेम और भाईचारे की बात कही गई है । तो फिर सवाल ये उठता है कि आखिर वो कौन लोग है जो मानव को जबरदस्ती भय दिखाकर, डराकर, धमका कर, प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन करा रहे हैं ? क्या उनके परिवार, उनके समाज पूरी तरह से भयमुक्त और शिकायतमुक्त जीवन जी रहे हैं । क्या वो लोग आपस में शांति और सदभाव स्थापित कर पाये ? 
   
ये धरती,  प्राण ( पेड़- पौधे), जीव ( पशु-पक्षी) और पदार्थ ( नदी पर्वत हवा ) और मानव  इस चार ईकायों से बनी है । और इसमें सिर्फ एक मानव है जिसके पास  ज्ञान की असीमित क्षमता है । लेकिन विडंबना देखिए इस प्रकृति में प्राण, जीव और पदार्थ तीनों एक दूसरे के पूरक होकर जीते हैं । जितना एक दूसरे से ग्रहण करते हैं उतना ही एक दूसरे को देते हैं । यानी प्रकृति में इनका धर्म निश्चित है और ये अपने धर्म से टस से मस नही होंते । जैसे कभी शेर ने बकरी को भय दिखा कर उसे शेर बनाने की कोशिश नहीं की । लेकिन जिस मानव के पास ज्ञान की असीमित क्षमता है उसके कारण ये धरती आज ग्लोबल वार्मिंग का शिकार हो गई । परमाणु खतरे से विश्व जूझ रहा है । मानव के कथित भौतिक विकास की प्रकिया में कई जीव- जंतु नदिया, वनस्पतियां लुप्त हो गई और लुफ्त होने की कगार पर है । ऐसे  मानव को आप धार्मिक कैसे कह सकते हैं फिर वो  वो हिंदू कहलाता हो  , चाहे मुसलमान ,  ईसाई या फिर किसी और संप्रदाय को मानने वाला। 
प्रकृति के मुताबिक समझे तो जिस प्रकार प्राण, जीव और पदार्थ का धर्म एक है और  वो ये है  कि किसी को भी नुकसान पहुंचाये, एक दूसरे के पूरक होकर , अपनी जरूरतों को पूरा करना । तो फिर मानव ज्ञानवान होकर भी ऐसा क्यों नहीं कर पा रहा है । क्यों मानव इस सरलतम धर्म को पहचान नहीं पा रहा है । जाहिर है वो अपने मौलिक धर्म को छोड़ कर, शऱीर की आवश्यकताओं के लिए लोभ में फंस कर, असुरक्षा के चलते प्रकृति की व्यवस्था में अराजकता पैदा कर रहा है । जबकि प्रकृति की बाकी ईकाइयों की तरह उसका मूल धर्म है एक दूसरे के पूरक होकर जीना , एक दूसरे के लिए जीना । 
जाहिर है अब आप किसी को जबरदस्ती हिंदू बना लो, मुसलमान बना लो, ईसाई बना लो, लेकिन जब तक आप इंसान नहीं बनाओं, मानव को मानव नहीं बनाओगे आपका धर्म बेकार है व्यर्थ है । तो फिर भारत हो या पाकिस्तान अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हमेशा चिंता की बात रहेगी बस कहीं कम होगा तो कहीं ज्यादा और अगर इस भय से मुक्त होना है सारे मतावलंबियों को ये समझना होगा कि इस धरती पर धर्म परिवर्तन कराना एक असंभव घटना है क्योंकि  प्रकृति से टकराने की उनकी हैसियत ही नहीं है ।  

मोदी वर्सेज देशभक्त मोर्चा

एनसीपी महासचिव और राज्यसभा सांसद देवी प्रसाद त्रिपाठी का बयान है कि अगर मोदी के ख़िलाफ़ वैचारिक और राजनीतिक संघर्ष को कामयाब करना है तो सभी विपक्षी दलों को साथ मिलकर ये लड़ाई लड़नी होगी। ज़रूरी नहीं है कि विपक्षी पार्टियों के साथ आने को महागठबंधन कहा जाए, ये 'देशभक्त मोर्चा' भी हो सकता है।
अब आप अंदाजा लगा लीजिए मोदी का खौफ किस कदर विरोधी पार्टियों पर हावी है । इसकी शुरूआत की थी जम्मू -कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला ने ,  जिस दिन उत्तर प्रदेश के नतीजे आये थे उसी दिन उमर अबदुल्ला ने कहा था इस वक्त देश में मोदी के कद का कोई नेता नहीं है ।  एक टीवी इंटरव्यू में कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर भी ये मान चुके हैं कि मोदी को हराने के लिए महागठबंधन पर विचार हो सकता है । ईवीएम के मुद्दे को लेकर मायावती किसी भी दल से हाथ मिलाने को तैयार हैं ।
आने वाले दिनों में सियासी खेल बेहद दिलचस्प होने जा रहा है । शरद पवार से लेकर शरद यादव तक, नवीन पटनायक से लेकर नीतिश कुमार तक ,  ममता से लेकर मायावती तक सब कही ना कहीं 2019 के आम चुनावों  लेकर परेशान हैं । इनमें ज्यादातर वो  लोग हैं जो  किसी वक्त बीजेपी के साथ थे । 1967 में दोनों वामपंथी पार्टियां जनसंघ के साथ समर्थन में थीं । और तब इन लोगों की लड़ाई कांग्रेस के विरुद्ध थी । लेकिन आज जब सत्ता बीजेपी के पास है तो सारे क्षेत्रीय दल कांग्रेस का मुंह ताक रहे हैं । अखिलेश कांग्रेस का दामन थाम कर नतीजा भुगत चुके हैं जिसके चलते  कांग्रेस को भी अपनी हैसियत का अंदाजा तो हो ही गया है ।
अब अगर डीपी त्रिपाठी के मुताबिक सारा विपक्ष एक जुट होकर देशभक्त मोर्चा बनाने की दिशा में आगे बढ़ता है तो   ऐसा आभास होता है कि वर्तमान सरकार के खिलाफ मुद्दों की खोज शुरू हो चुकी है ।  लेकिन सबसे बड़ा सवाल ले है कि कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष के पास क्या कोई ऐसा नेतृत्व है जिसकी बात पर जनता यकीन कर ले । मोदी से लड़ने के लिए और मोदी से जीतने के लिए सिर्फ एकजुटता से काम नहीं चलने वाला  बल्कि एक मिशन लेकर चलना होगा लेकिन इसका कोई आधार दूर- दूर तक नहीं दिख रहा । जनता को साफ समझ आ रहा है कि चुनाव गवां चुकी पार्टियां सत्ता के लिए किस कदर छटपटा रही है।  


Friday, April 14, 2017

अंबेडकर का डर सही था!

 अंबेडकर जयंती पर विशेष

संविधान निर्माण के काम को सम्पन्न करने के बाद डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने कहा था मैं कह सकता हूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था। आज अम्बेडकर जयंती के मौके पर जब हम उनकी इस बात पर गौर करते हैं तो पाते हैं कि  मनुष्य के अधम होने की उनकी आशंका कितनी सही साबित हुई । संविधान बनने के साढ़े छह दशक के बाद भी  आज भारत में मनुष्य को हम वो गरिमा नहीं दे सके हैं जिसका वो हकदार है ।
गांधी जी का वो अंतिम छोर में खड़ा इंसान आज भी व्यवस्था से परेशान है । सवाल ये है कि क्यों इतनी सारी सवैंधानिक संस्थाओं के मौजूद रहते भारत का नागरिक परेशान है? क्यों एक से बढ़ कर एक इंजीनियर पैदा करने के बाद भी हम तकनीक के मामले में दुनिया के कई देशों से पीछे हैं ? आज भारत में इतने मेडिकल कॉलेज है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों के डॉक्टर बनने का सपना सच हो सकता है  लेकिन हमारी चिकित्सा व्यवस्था में हमें ही भरोसा क्यों नहीं रहा ?  देश का बेस्ट टैलेंट आएएस बनता है लेकिन क्यों सरकारी संस्थाओं ने नाम पर लोग मुंह बना लेते हैं, देश के लिए कुछ कर गुजरने का इरादा रखनेवाले लोग  आईपीएस बनते हैं  लेकिन जनता को बदमाशों से ज्यादा पुलिस से डर लगता है ! कुल मिलाकर तमाम भौतिक विकास के बावजूद हम भारत के नागरिकों में  विश्वास का विकास  नहीं कर  सके । लोकतंत्र की सच्चाई आप सब जानते हैं  राजनीतिक पार्टियों ने इंसान को वोट बैंक समझ लिया जिसके चलते इस देश में वर्ग, जाति, संप्रदाय का भेद खड़ा हो गया है । जिस देश को एक दिखना था वो अंदर से टूटा -टूटा और खोखला लगता है ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  अंबेडकर जंयती के मौके पर नागपुर की उस दीक्षा भूमि पर पहुंचे जहां उन्होंने बौद्ध धर्मअपनाया था । उस बौद्ध धर्म को जिसने दुनिया शांति, अहिंसा, न्याय और प्रेम का संदेश दिया । लेकिन सोचने की जरूरत है कि  हमने क्या किया ?  हमने बुद्ध की मूर्ती को याद रखा,  हमने अंबेडकर के नाम पर चौराहे बना दिये लेकिन इतने सालों में हम किसी को बुद्ध नहीं बना सके किसी को अम्बेडकर जैसा नहीं बना सके । अरे बुद्ध और अम्बेडकर को भी भूल जाइये हम चंद अच्छे इंसान भी तैयार नहीं कर सके जिससे हमारे बच्चे कुछ सीख सकें  और  नतीजा आपके सामने है कि भारत के संविधान में तमाम अच्छी बातें होने के बावजूद बहुत  सारी संस्थाएं नाकाम और नाकार ही साबित हो रही है जिसको लेकर प्रधानमंत्री भी चिंतित हैं ।
अंबेडकर हो या फिर कोई भी महापुरूष , उनके प्रति अर्पित होनेवाली  तमाम श्रद्दांजलियां , उनके नाम से बने तमाम चौराहे पाखंड ही कहलाएंगे क्योंकि हमारी शिक्षा व्यवस्था में वो  बात नहीं जिसमें कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी निकलते हो , मानवता के भाव से भरा चिकित्सक निकलता हो, सेवा भाव से भरे नेता और समाजसेवी निकलते हो । हर वर्ग में धन कमाने की ऐसी होड़ मची है कि जरूरत पड़ने पर लोग देश के सम्मान को  भी दांव पर रखने से नहीं चूक रहे । देश में चुनाव के साथ सरकारें बदल जाती लेकिन अभी तक ऐसी सरकार नहीं दिखी जिसने देश का नजरिया बदला हो, स्वस्थ सोच दी हो ।    जरूरत है अंबेडकर की उस आशंका को झुठलाने की जिसमें उन्होंने मानव के अधम होने की बात की थी । कोई भी सरकार और उसके सुशासन का प्रयास  तब तक सफल नहीं होगा जब तक वो इस देश में अच्छे आदमी तैयार करने का आंदोलन ना चलाये । भारत माता को  इंतजार है अंबेडकर का अनुसरण कर सके ऐसे नागरिकों का, नेताओं का, अधिकारियों का ।

Tuesday, April 11, 2017

कृपया गाय को कलंकित ना करें

गौसेवा, गौरक्षक और गोरखधंधा




दादरी से लेकर अलवर तक जो मनुष्य की कथित हत्या का जो मामला सामने आया है उसकी वजह गाय है, जिसे हम श्रद्दा से गौमाता कहते हैं । गौमाता को लेकर गौरक्षकों की सेना पता नहीं हाल- फिलहाल के दिनों में कहां से खड़ी हो गई? प्रधानमंत्री ने भी इस बात को भांप लिया है और उन्होंने ये कहने में देर नहीं कि इस देश में गौरक्षा के नाम पर हो रहा गोरखधंधा बन्द होना चाहिए । बंद तो अवैध बूचड़खाने भी होने चाहिए सो यूपी के सीएम ने सबसे पहले रातों- रात अवैध बूचड़खाने बंद करा दिये ।  तो एक तरफ हजारों लोगों के बेरोजगार होने का मुद्दा उठा कर सड़क से लेकर सोशल-नेटवर्किंग साइट तक लोगों ने आंदोलन छेड़ रखा है । एक तरफ गाय के नाम पर हो रही हत्या को लेकर राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेंकने का कोई मौका नहीं जाने देना चाहती । इसके समाधान से किसी को कोई मतलब नहीं है बस समस्या बनी रहे । इससे बहाने मीडिया को भी मसाला मिल रहा है उसके एंकर चीख -चीख कर टीआरपी बटोर रहे हैं ।

अब जो देश का आम आदमी है उसकी चिंता ये है करें तो करें क्या ? एक वर्ग कहता है बीफ के नाम पर गायों का कत्लेआम बंद होना चाहिए  । एक वर्ग कहता है कि बीफ के कारोबार बंद हो गया तो उनकी रोजी -रोटी का क्या होगा । कहीं  बीफ के नाम पर एक वर्ग विशेष का टारगेट किया जा रहा है तो कहीं बीफ के धंधे में उस संप्रदाय के लोग शामिल है जिनके धर्म में गाय का माता का दर्जा हासिल है । इस बीच कुछ पाश्चात्य  विद्वानों ने ये मत रख दिया की जुगाली करने के दौरान गायें जो डकार छोड़ती है उससे मीथेन गैस निकलती है जिसके कारण सबसे ज्यादा नुकसान ओजोन परत को होता है ।

इन सब बातों से बेखर गौ-माता दूध लगातार दे रही हैं लोगों का स्वास्थ्य बन रहा है । गौमाता के गोबर से भूमि उर्वरा हो रही है । गोबर का इस्तेमाल ईधन में भी हो रहा है । गोमूत्र  से दवाईंयां भी बन रही है । गाय की मृत्यु के बाद उसके चमड़े का भी इस्तेमाल हो रहा है । गाय की तरफ से ऐसी कोई बंदिश नहीं है कि उसका इस्तेमाल सिर्फ हिंदू करेगा या फिर सिर्फ मुसलमान करेगा या फिर फला जाति के लोग ही करेंगे  । हर संप्रदाय के लोग गाय के गुणों क लाभ ले रहे हैं ।

अब आइये गाय के पौराणिक महत्व को भी समझ लेते हैं । हिंदुओं की मान्यता है कि गाय के शरीर में 33 करो़ड़ देवी -देवताओं का वास है । कुछ हिंदु विद्वान इसे अनंत गुणों के जोड़ कर देखते हैं । हिंदु पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस धरती पर गाय अमृत मंथन से प्रगट हुई थी । जिसे कामधेनु के नाम से जाना गया ।  भगवान राम के गुरू वशिष्ट के आश्रम में रहती थी कामधेनु । जिसे प्राप्त करने के लिए राजा विश्वामित्र ने बलपूर्वक  प्रयास किया लेकिन कामधेनु को वो हासिल ना सकें । कामधेनु के सामने अपने सारे वैभव को बौना पाकर कर विश्वामित्र राजा से ऋषि बन गये । यानी एक गाय ने अहंकारी मनुष्य को संत बनने पर मजबूर कर दिया ।

फिर एक पौराणिक कथा है देश के सबसे प्रसिद्द तिरूपति बालाजी की । जहां भगवान विष्णु एक अंधेरी गुफा में अज्ञातवास कर रहे थे । तब शिव और ब्रम्हा धऱती पर गाय औऱ बछड़े के रूप में वहां रह कर भगवान को अपना दूध पिलाने लगे । जब उनके ग्वाले ने देखा की गाय अपना सारा दूध रोज उस गुफा पर उतार देती है तो गुस्से से आग बबूला हो ग्वाले ने अपनी कुल्हाड़ी शिव रुप धारी गाय पर दे मारी । तब ध्यान में मग्न विष्णु , गाय और कुल्हाड़ी के बीच आ गये और उनके माथे पर घाव बन गया । तब लेकर अब तक तिरुपति बालाजी के माथे पर चंदन का लेप लगाने की  परंपरा बन गई ।  भगवान चाहते तो ग्वाले को मार सकते थे लेकिन ग्वाले के गुस्से और अज्ञानता को उन्होंने अपने ऊपर ले लिया ।  गाय के नाम पर तो मौका पाकर भी भगवान ने नर संहार नहीं किया ।

भगवान कृष्ण ग्वाल बाल थे । गौ के सबसे बड़े रक्षक । गायों को सुरक्षित जंगल लेकर जाना और  लेकर आना उनका कतर्व्य था । लेकिन इस दौरान कभी ऐसी कोई कथा नहीं आती कि उन्होंने गाय के नाम पर किसी की हत्या की हो  । दूध देनवाली गाय भारत में कभी भी रक्त  पिपासु जीव नहीं रही । लेकिन मौजूदा दौर में नफरत की  हवा कुछ ऐसी चली है कि निर्दोष गाय पर मानव रक्त के दाग लग गये हैं ।

कोई इन  गौ -रक्षकों समझाएं कि कि गौ की रक्षा ही करनी है कि  कृष्ण की तरह करें ।  ये चिंता करें की भूख के बिलबिलाती हमारी गौ-माता कैसे विषाक्त पोलीथीन को खा रही है । ये उनके साथ- साथ हमारे जीवन के लिए कितना ज्यादा खतरनाक है । कैसे गायें आवारा  सड़कों पर घूमती है और कोई भी वाहन उन्हें ठोकर मार कर निकल जाते हैं । कैसे इस देश में दर्जनों गायें रोज ट्रेनों के नीचे आकर और भारी वाहनों से टकरा कर मर जाती है । गायें जब दूध देना बंद कर देती है तो उनके मालिक उन्हें सड़कों पर खुला छोड़ देते हैं औऱ वो भूख- प्यास से  मर जाती हैं । अगर आप सच्चे गौ-रक्षक है  तो पहले उन भूखे- प्यास से तड़पती  गायों की चिंता करिये  ।

 इन कथित गौरक्षकों को कोई ये बताओं की जिस गाय को बचाने लिए भगवान विष्णु ने कुल्हाड़ी की मार सह ली थी उस गौ के नाम पर तुम किसी जान कैसे ले सकते हो? गाय कि रक्षा ही करनी है तो मथुरा के कृष्ण की तरह उसके भोजन का प्रबंध करो. उसके लिए पानी का प्रबंध करो, उसके लिए छाया का प्रबंध करों । एक गाय अहंकारी राजा विश्वामित्र को ऋषि बना सकती है तो उस गाय के नाम पर आप कैसे असुरों का व्यवहार कर सकते हो ?

अगर ये मानते हो कि गाय ये देवता वास करते हैं फिर उसके नाम पर दया और करूणा का प्रदर्शन करो । दादरी और अलवर की सच्चाई मुझे नहीं पता लेकिन लेकिन इतना पता है गाय इस धरती पर कभी भी मनुष्य के मृत्यु का कारण नहीं रही वो तो सदा सनातन से मानव की अमरता का,  उसके अमृत्व का कारण रही है इसलिए सच्चे गौरक्षक बनो उसे नरसंहार के कथित कलंक से बचाओं । तभी बचेगी हमारी महान संस्कृति हमारी महान सभ्यता ।

Friday, April 7, 2017

"हिंदी मीडियम" ने मार डाला




फिल्म "हिंदी मीडियम" के ट्रेलर पर प्रतिक्रिया 


इंगलिश इज इंडिया एंड इंडिया इज इंगलिश ,  हाल ही में रीलीज हुई फिल्म "हिंदी मीडियम" के ट्रेलर का ये डॉयलाग है जब आप सुनते है तो निश्चित तौर पर कहीं ना कहीं  भारत के हिंदी भाषी राज्यों के बहुतायत लोग इससे इत्तेफाक रखते होंगे । इस देश में  अंग्रेजी की फांस कुछ ऐसी है कि ना तो लोगों से  निगलते बन रहा है ना ही थूंकते । हिंदी के अच्छे -खासे विद्वानों को मैंने अंग्रेजी बोलनेवाले लोगों के सामने दुम हिलाते और दांत निपोरते देखा हैं । हैरानी की बात तो ये हैं फिल्म इंडस्ट्री , न्यूज इंडस्ट्री , टीवी इंडस्ट्री,  मीडिया से लेकर स्पोर्टस तक हिंदी का बाजार जबरदस्त है लेकिन यहां का वर्क कल्चर इंगलिश है । कुल मिलाकर अंग्रेजी की कुंठा ने  ज्यादातर होनहार लोगों की जिंदगी का सुकून और चैन हराम कर रखा है । वैसे ही जैसे फिल्म हिंदी मीडियम के ट्रेलर में इरफान खान का किरदार दिख रहा है ।     


फिल्म के ट्रेलर में एक और डॉयलॉग है जिसमें नायिका कहती है कि "इस देश में अंग्रेजी ज़बान नहीं क्लास है " फिल्म के कहानीकार ने मानों भारतीय जनमानस की नब्ज पकड़ी है । मैं भी इससे अछूता नहीं हूं / मध्यप्रदेश के शहडोल के देसी माहौल में पलकर, पढ़कर जब मैं पहली बार नौकरी की तलाश में भोपाल पहुंचा, तो जितने भी हिंदी अखबारों के दफ्तर में इंटरव्यू के लिए पहुंचता था  सारे संपादकों ने एक ही सवाल किया कि क्या अंग्रेजी आती है ? तो मैं सीधे कहता कि नहीं आती बस  मुझे हिंदी आती है, एक -दो बार तो मैंने खिसियाकर कह भी दिया कि अंग्रेजी आती तो अंग्रेजी अखबार में नौकरी करता आपके यहां नौकरी मांगने क्यों आता!   जाहिर है ऐसे जवाब से भला मुझे कौन नौकरी देता । लेकिन एक वक्त के बाद नौकरी मुझे हर हाल में चाहिए थी ,सो मैंने समझौता किया और इस बार अंग्रेजी के दो- चार जुमले रटकर इंटरव्यू देने पहुंचा । संपादक महोदय ने हिंदी में अंग्रेजी ज्ञान पर सवाल पूछा तो मैंने अंग्रेजी के रटे- रटाये जुमले चिपका दिये । यहां भाषा ने नहीं मेरे बनावटी मनोबल ने रंग दिखाया और मेरा सेलेक्शन हो गया । फिर आगे  मुझे नौकरी में कभी कोई दिक्कत नहीं हुई क्योंकि सारा काम हिंदी में होता था, हां! जब छुट्टी लेनी होती थी,  जब साल भर की परफॉरमेंस रिपोर्ट भरनी होती थी या संपादक से कोई पत्रव्यवहार करना होता था तब अंग्रेजी जानने वालों के आगे- पीछे घूमना पढ़ता और काम हो जाता था ।  अपना काम तो हो जाता था लेकिन क्लास कोई और ही  मेंटेन करता था । मीटिंग्स में, बॉस के साथ उन महिलाकर्मियों का और चुनिंदा पुरूष कर्मियों का  बोलबाला रहता था जो हिंदी की चीजों को भी अंग्रेजी में घिट-पिट करके पेश करते थे । ये एक सामाजिक समस्या भी थी क्योंकि ज्यादातर महिलाकर्मी अंग्रेजी में ही वार्तालाप करती थी। सो ज्यादातर हिंदी भाषी मनमसोस कर, आहें भरकर रह जाते ।कईयों को इस चक्कर में नौकरी के दौरान इंग्लिश क्लास ज्वाइन करते देखा है मैंने ।  


नौकरी के लिए एक और इंटरव्यू देने जब मैं मुंबई पहुंचा तो बहुत बड़े न्यूज चैनल की चकाचौंध देखकर और वहां रिसेप्शनिस्ट की अदा और अंग्रेजी अंदाज- ए- बयां को देखकर ही समझ गया कि यहां मेरी दाल नहीं गलनेवाली । लेकिन जिन दो लोगों ने मेरा इंटरव्यू किया वो मीडिया जगत में आज की तारीख में देश के सबसे ताकतवर लोगों में हैं उन्होंने प्रभावशाली तरीके से इंटरव्यू किया, मैंने उतनी ही ईमानदारी से जवाब दिया और मेरा चयन हो गया । लेकिन मेरे कुछ साथी जिनकों मेरी अंग्रेजी अज्ञानता का भान था उन्होंने मेरी नौकरी लगने पर आश्चर्य प्रगट ही नहीं किया बल्कि समय- समय पर मुझे मेरी औकात बताने में भी पीछे नहीं रहे । हिंदी संस्थान में अंग्रेजी का हौवा जबरदस्त तरीके से हावी था । मुंह बंद करके दफ्तर जाता था और मुंह बंद करके आता था ।    इस दौरान दो तरह के लोगों के पाला पड़ा एक वो जिनको अंग्रेजी विरासत में मिली थी वो उसी माहौल में पले-बढ़े थे उनसे कभी भी बातचीत करने में उनके साथ रहने में असहजता नहीं हुई । लेकिन जिन लोगों ने नई-नई अंग्रेजी सीखी थी, यही नहीं शायद वो अपनी पीढ़ी के पहले अंग्रेज होंगे वो अंग्रेजी झाड़ने में और अंग्रेजी का दिखावा करने में सबसे आगे रहते थे ।  लेकिन इतना जरूर महसूस किया कि कई अंग्रेजी बोलनेवाली सुंदरियों ने अपने इस हुनर का इस्तेमाल हथियार की तरह किया और आगे बढ़ने के लिए बॉसेज को जमकर ठगा और शायद वो उस लायक  भी थे । 


फिल्म हिंदी मीडियम में एक और डायलॉग है जिसमें इरफान खान कहते हैं की माई लाइफ इज  हिंदी बट माई वाइफ इज इंग्लिश । छोटे- छोटे हिंदी भाषी शहरों से बड़े शहरों में  आये नौजवानों में अंग्रेजी बोलने वाली लड़कियों को लेकर बड़ा क्रेज मैंने देखा  ।  कई लड़कियों में तो बात करने की तमीज भी नहीं थी लेकिन लड़के इस बात पे खुश कि मोहतरमा अंग्रेजी बोलती है और उन्हें अंग्रेजी में गरियाती है । एफ से शुरू होनेवाले अंग्रेजी के कुछ घटिया और सस्ते शब्द तो आम बोलचाल में मंत्र की तरह  इस्तेमाल करती हैं  / करते हैं ।  कई लोग अच्छे ओहदों पर है लेकिन लेकिन अंग्रेजी बोलने वाली बीवी हासिल करने के चक्कर में घर का सुकून भी गवां बैठे हैं । यहां इस बात को कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि कैसे अंग्रेज जीवन संगिनी चुनने के चक्कर में अच्छे खासे भले लोग अपनी मति खो बैठते हैं । कई साथी तो ऐसे है जो आज भी अंग्रेजी से जूझते है लेकिन अपने बच्चों को अंग्रेज बनाने के चक्कर में उनसे ऐसी अंग्रेजी बोलते है कि अंग्रेज भी पगला जाये । हंसे की सिर कूटे आप को भी समझ नहीं आएगा । 

 मैं अंग्रेजी भाषा का कतई विरोधी नहीं हूं ,भाषा का सम्मान करता हूं बस दुख इस बात का है कि क्लास के चक्कर में खुद का , संस्कृति का और सभ्यता का कचरा होते नहीं देख पा रहा ।  मुझे आपत्ति है कि लोग दिखावे के चक्कर में भारत को इंडिया बनाये डाल रहे हैं जहां अंग्रेजी की जरूरत नहीं है वहां भी अंग्रेजी ठूंसे जा रहे है । आपको भी पता है कि  ऐसे लोग कहीं से भी अंग्रेजी का भला नहीं कर रहे  बल्कि  हिंदी का भी सत्यानाश किये जा रहे हैं । 

मुझे बस एक ही बात का मलाल है वो ये कि जब बचपन में मेरे पिताजी मुझे अंग्रेजी पढ़ाते थे तो भाग क्यों जाता था ? क्यों डरता था ?  जिसके चलते आज भी मैं अंग्रेजी से भाग रहा हूं लेकिन हां 17 साल से ज्यादा पत्रकारिता में गुजारने के बाद ये बात जरूर कहूंगा कि मैंने भले ही झूठ बोलकर ये किला भेदा हो लेकिन मैंने अपने काम से कभी बेईमानी नहीं की । 


इरफान खान अभिनीत फिल्म "हिंदी मीडियम" का ट्रेलर देखने के बाद मुझे लगता है कि जिस तरह इस फिल्म ने मेरी कमजोर नस को छेड़ा है वैसा कईयों के साथ हुआ हो । ये फिल्म हो सकता है भारत में अंग्रेजी  भाषा के नाम पर जो कूड़ा , कचरा, दिखावा हो रहा है उस पर एक करारा प्रहार साबित होगी । 12 मई को रीलीज हो रही फिल्म हिंदी मीडियम को मेरी शुभकामनाएं ।   

Thursday, April 6, 2017

बीजेपी अपने महापुरुषों के आदर्शों का अपमान ना करें

स्थापना दिवस पर विशेष



6 अप्रैल 1980 को जब भारतीय जनता पार्टी बनी तो अटलबिहारी वाजपेयी ने एलान किया था कि "अंधेरा छंटेगा और कमल खिलेगा"

अटलजी की वो भविष्यवाणी तो उसी दिन सच हो गई थी जब 1999 को बीजेपी ने 182 सीटें लेकर  20 से अधिक दलों के साथ एनडीए की सरकार बनाई , पहली गैरकांग्रेसी सरकार जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया ,गठबंधन धर्म की मिसाल पेश की। पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने की बात हो , लाहौर बस यात्रा हो , पोखरण का विस्फोट हो , कश्मीर में हालत सुधारने की बात हो, उत्तर -पूर्व का मसला हो , छोटे राज्यों का गठन हो , सड़कों का जाल बिछाना हो ( Pradhan Mantri Gram Sadak Yojana (PMGSY), National Highway Development Project (NHDP) ,Golden Quadrilateral ) , सर्वशिक्षा अभियान हो अटलजी की सरकार ने पूरी दमदारी से फैसले लिए ,  सरकार को चलाया  और जब जरूरत पड़ी अपनों को डांटने- डपटने में भी पीछे नहीं रहे । सबका साथ सबका विकास इस भावना की नींव अटलजी ने ही रखी जिसको वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नारा बना कर जन- जन तक पहुंचा दिया ।


बीजेपी की वर्तमान सरकार के पास गठबंधन की मजबूरी नहीं है। यही वजह कि मोदी सरकार साहसिक और सधे हुए फैसले लेने में कोई ढील नहीं बरत रही । सर्जिकल स्ट्राइक हो , नोटबंदी हो , विदेश नीति हो , योजना आयोग जैसी पुराने संस्थाओं को खत्म करना  हो , पुराने और बेकार कानूनों को खत्म करने का मामला हो,  फैसलों में तेजी लाने के लिए कई मंत्रीमंडलीय समितियों को खत्म करना हो, पाकिस्तान -चीन के साथ संबंधों का मामला हो  सरकार ने साफ कर दिया कि देशहित से कोई समझौता नहीं ।

सरकार की नीति और नियत एकदम साफ है तुष्टीकरण नहीं होगा, बहुसंख्यकों की अनदेखी नहीं होगी और अल्पसंख्यकों का नाम पर ठगी की राजनीति बंद होगी ।  सबका साथ सबका विकास के नाम पर खुलकर अपने फ्रंट पर काम कर रही है सरकार ।


डिजिटल इंडिया, मेकइन इंडिया, कौशल भारत,  स्मार्ट सिटी जैसे य़ोजनाओं ने कारोबार कि दुनिया में उत्साह का संचार किया है ।जीएसटी हो या कर प्रणाली में सुधार की बात सरकार व्यवस्था को सरतलम करने के तरीकों की तरफ बढ़ रही है ।   डिफेंस तो  सरकार की हाई प्रायोरिटी में है, रक्षा उत्पादों के मामले में विदेशी निवेश 49 फीसदी हो चुकी है, प्रोद्योगिकी हस्तांतरण में 74 फीसदी और रक्षा खरीदी में राफेल की रफ्तार से फैसलों को अंजाम दिया जा रहा है ।
गरीबी मिटाने के मामले में पहले दिन से सरकार कमर कस कर तैयार है जन- धन योजना , गैस सब्सिडी,  कृषि उत्पादों से लेकर, जल, जंगल और जमीन , पर्यावरण पर सरकार अपने दृष्टिकोण से काम कर रही है ।

प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने पहले भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छता की बात करके साफ कर दिया कि ये सरकार सिर्फ तन की सफाई नहीं  बल्कि मन और धन के मामले में भी सफाई चाहती है, भष्ट्राचार और कालेधन को रोकने के लिए सरकार कोई कसर नहीं छोड़ रही ।

तो भारतीय जनता पार्टी आज भारत को विश्वगुरू के मुकाम पर ले जाने के लिए पूरी तरह सक्षम है । पार्टी स्थापना के 37वें वर्ष में वैभव के चरम पर स्थापित है बीजेपी  और इसकी बुनियाद में हैं कश्मीर के लिए बलिदान देनेवाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी , एकात्म मानववाद के लिए पार्टी को रक्त से सींचनेवाले दीनदयाल उपाध्याय और प्राणों का बलिदान देकर  राममंदिर की अलख जगानेवाले  कारसेवक ।  जी हां ये तीन नहीं होते और पृष्ठभूमि में आरएसएस के  निस्वार्थ स्वयंसेवक नहीं होते तो सत्ता और शक्ति का ये दौर भी नहीं होता ।


शायद इसलिए आज बीजेपी के पास चुनौतियां पहले के मुकाबले कई गुना ज्यादा है  और इस बात के समझने के लिए बस एक ही उदाहरण है कि जिस तरह शहीदों और क्रांतिकारियों के, उसूल, उनके  त्याग, तपस्या और बलिदान का अपमान कर कांग्रेस ने सिर्फ सरकार बनाने-बिगाड़ने  का खेल खेला और  नतीजा पार्टी की दुर्गति हो गई। तो आज के दिन बीजेपी को बस इसी बात को समझना है और संकल्प लेना है कि वो अपने  बलिदानियों का अपमान ना करें,  जनता ने उसे सेवा का  अवसर दिया है ना कि खुद के लिए वैभव और विलासिता का इंतजाम करने के लिए चुना है, और इसके लिए बीजेपी को अब खुद से लड़ना होगा क्योंकि पार्टी को खतरा बाहर से नहीं उसके भीतर बैठे अवसरवादी लोगो से हैं । खैर  पहले दिन ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद की देहरी को दंडवत प्रणाम कर ये स्पष्ट चुके हैं कि राष्ट्रदेवता की भक्ति की आड़ में आनेवाले हर विघ्न का हरण करने में वो पूरी शक्ति लगा देंगे ।

Sunday, April 2, 2017

आइसक्रीम और टॉफी के लिए तरस गई लेकिन देशवासियों को खुशियों से लाद लिया

शर्मीली लड़की के रौब और रूतबे की कहानी   
----------------------------------------------------


यूं तो किसी लड़की का चीखना और उसका आक्रामक स्वभाव प्रथम दृष्टया नकारात्मक गुण ही माना जाएगा लेकिन जब किसी बेहद सरल और शर्मीली लड़की को रूला -रुला कर उसे चीखना सिखाया गया हो और आक्रामकता उसमें ठूंसी गयी हो तो आप क्या कहेंगे । जी हां! भारत के कोच पुलेला गोपीचंद ने  उस लड़की से सिर्फ इसलिए बोलचाल बंद कर दी थी क्योंकि उसे कोर्ट में चीखना नहीं आता था । चारों तरफ जूनियर खिलाड़ियों का मेला था और सबकी नजरें उस लड़की  पर थी और गोपी का फरमान था जब तक पागलों की तरह चीखोगी नहीं तब तक कोई कोचिंग ट्रेनिंग नहीं होगी । उस बेहद शर्मीली लड़की ने तीन-चार घंटे कोर्ट में मायूसी और संकोच में गुजार दिये लेकिन जब लगा की गुरू और बैडमिंटन की आन पर बन आई है तो उसने रोते- रोते ही सही चीखना शुरू किया । उसकी यही चीख उसे रियो ओलम्पिक्स के फायनल तक ले गई और उसने भारत को बैंडमिंटन का पहला रजत पदक दिलाया ।

जी हां ये कहानी ही भारतीय बैंडमिंटन की स्टार पीवी सिंधु की है , जिसने रविवार को एक बार फिर भारतीय खेलप्रेमियों को गर्व का अवसर तोहफे में दिया । साथ ही सिंधु ने रियो की एक हार का बदला सूद समेत ले लिया है । अपनी सबसे बड़ी रायवल स्पेन की कैरोलीना मरीन को सिंधु ने रियो के बाद सबसे पहले DUBAI WORLD SUPERSERIES FINALS  में हराया और फिर 2 अप्रैल की शाम को पहले YONEX SUNRISE INDIA OPEN सुपर सीरीज के फायनल में हराया ।  इसी दिन साल 2011 को भारतीय क्रिकेट टीम ने वर्ल्डकप जीता था , उस जीत की सालगिरह को  सिंधु ने अपनी जीत ने यादगार बना दिया । 

पहले इंडिया ओपन सीरीज जीतना को साधारण नहीं था । सिंधु ने इस टूर्नामेंट में पहले भारतीय प्रतिद्वंदी साइना नेहवाल को हराया और फिर सेमीफायनल में उन्होंने वर्ल्ड नंबर टू सुन जी ह्यू को हराया और फिर ओलंपिक चैम्पियन मारिन को फायनल में मात दी ।

ये जीत हर उस खिलाड़ी को, चाहे वो पुरूष हो या स्त्री उसे प्रेरित करेगी  क्योंकि इसमें लगन है ऐसी लगन जिसमें 10 साल की लड़की  सुबह 3 बजे उठ कर दो घंटे का सफर करके अपने एकेडमी पहुंचती है ।  जिस उम्र में बच्चे चॉकलेट और टॉफी की जिद करते है उस उम्र में सिंधु ने फीका दूध पिया । बड़ी हुई ,कॉलेज पहुंची तो त्याग ऐसा कि फेवरेट मूवी छूट गई, दोस्तों की बर्थडे पार्टी छूट गई, जब सारी सहेलियां आइस्क्रीम के मजे लेती थी तो सिंधु ने बैंडमिंटन के लिए मन को मार दिया, मोबाइल तक तो  गोपीचंद ने छिना कर अपने पास रख लिया था । 

लगन, मेहनत और त्याग के अंतहीन उदाहरण जब सफल हुए तब जाकर सिंधु जैसा सागर तैयार हुआ, जिसमें आसमान तक उठनेवाली  गर्व की ऊंची- ऊंची लहरों में पूरा देश झूम रहा है । 

धन्यवाद सिंधु !  

Saturday, April 1, 2017

शौक, शराब और सिम ने लूट लिया चरित्र!

सब ठीक है लेकिन .. पार्ट-8


31 मार्च 2017 का मेरा पहला वाक्या - शौक
बीएस-चार मानक वाले वाहनों के लिए जो ईंधन चाहिए वह काफी स्वच्छ होता है । इस प्रकार के ईंधन का उत्पादन करने के लिए रिफाइनरी कंपनियों ने 2010 के बाद करीब 30,000 करोड़ रुपए खर्च किए हैं । सो सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि बीएस-4 मानक एक अपैल से पूरी तरह लागू हो ।  सुप्रीम कोर्ट की इस सख्ती को ग्राहकों ने जमकर कैश किया । ऑटोमोबाइल कंपनियों ने 31 मार्च तक सारे बीएस-3 मानक वाले वाहन निकालने के चक्कर में दाम क्या घटाये शोरूम्स में भारी भीड़ लग गई । गाड़ी लेने वाले ज्यादातर पढ़े- लिखे और मध्यमवर्गीय लोग है,  ये वो लोग है जो भारत की तकदीर गढ़ते हैं , इन्हे पता हैं कि बीएस-3 मानक का प्रभाव वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए  कितना खतरनाक है । लेकिन सस्ते के चक्कर में  वाहन हासिल करने की इस वर्ग की होड़ देखकर ये तो यकीन के साथ कह सकते है  कि सब ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट ने लोगों के स्वास्थ्य को व्यवसायिक हितों से ज्यादा तरजीह दी लेकिन शौक भी कोई चीज होती है और शौक में लोग अपनी जान की बाज़ी लगा देते है तो लोगों कर दिया अपने बच्चों की जान लेने का इंतजाम ।

31 मार्च 2017 का मेरा दूसरा वाक्या - शराब

मैं अपने एक मित्र के साथ शाम को अपने शहर शहडोल की सैर पर निकला तो देखा कि शराब की दुकानों पर भारी भीड़ , जिसमें  किशोर, नौजवान,अधेड़, शहरी- ग्रामीण , अमीर -गरीब कुल मिलाकर हर तरह के लोगों को एक बोतल हासिल करने के लिए  एक के ऊपर एक चढ़े देखकर हैरान रह गया  । शहर में नवरात्री का उत्सव भी चल रहा है सो जितनी भीड़ मंदिरों में दिखी उतनी ही शराब के ठेकों पर । मैंने उत्सुकतावश अपने मित्र से पूछा ऐसा क्यों ? तो उसने तपाक से बोला भाईसाहब एक अप्रेल से नया ठेका शुरू होगा । सो पुराने ठेकेवाले अपना स्टॉक खत्म कर रहे हैं और सस्ते के चक्कर में शराब के शौकीन इस अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहते । अब आप सोचिए नवरात्री में अंडा और मांस त्यागने की बात करनेवाले समाज में सस्ती शराब हासिल करने की होड़ । तो मानते हैं ना नवरात्री की मान्यताएं वगैरह सब ठीक है लेकिन कहीं धर्म गंवाने के गम को हलका करने की दवा भी ना गवां बैठे ।

31 मार्च 2017 का मेरा तीसरा वाक्या - सिम

जियो सिम की प्राइम मेंबरशिप हासिल करने की आखिरी तारीख 31 मार्च थी तो मोबाइल की दुकानों में सस्ता और सुपरफास्ट डेटा इस्तेमाल करने वालों की भारी भीड़ थी । शुक्रवार तक करीब सवा सात करोड़ लोगों ने जियों की सब्सक्रिप्शन हासिल कर ली है । भीड़ का जोश  देखकर मुकेश अंबानी को भी जोश आ गया उन्होंने तारीख बढ़ा कर 15 अप्रेल कर दी । अरे भई ये डिजीटल दौर का टशन है सब ठीक है लेकिन डर एक बात का है ये कारोबारी पहले मुफ्त की लत लगाते हैं फिर लत से लूटने का इनका पुराना शगल रहा है
तो आर्थिक वर्ष का क्लोजिंग दिन शौक, शराब और सिम की होड़ के नाम रहा, लूट मची थी जिसको जहां से मिला उसने वहां लूटा,  उपभोक्तावाद के नाम पर तो ये सब ठीक है लेकिन सोचिएगा जरा इस दौरान एक देश, उसके समाज का चरित्र कितना ज्यादा लुट गया ।