Tuesday, April 30, 2019

वंशवाद का खात्मा कर सकता है ये आम चुनाव

लोकतंत्र के आसाराम और नारायणसाई बेनकाब होने को हैं

राहुल गांधी अगर राष्ट्रीय स्तर पर वंशवाद के प्रतीक हैं तो अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, कुमार स्वामी, स्टालिन, चंद्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक, जगनमोहन रेड्डी जैसे नेता क्षेत्रीय स्तर पर परिवारवाद के पोषक । इसके बाद आप स्थानीय पर स्तर पर शोध करेंगे तो हजारों ऐसे परिवारों को  पायेंगे जो पॉवर और पैसे के लिए  लोकतंत्र का इस्तेमाल शातिर तरीके से कर रहे हैं। आजादी के बाद इस देश में सबसे बड़ी लड़ाई इसी परिवारवाद से, वंशवाद से लड़ी जा रही है।

अब सवाल ये है कि आखिर लोकतंत्र इस वंशवाद और परिवारवाद की चपेट में फंसा कैसे है? जाहिर है उम्मीदों और अपेक्षाओं के साथ जनता ने जिनती बार अपना प्रतिनिधि चुना उसमें से अधिकांशत: लोगों ने खुद को  सेवक की जगह भगवान मान लिया । जी हां! भगवान मान लिया और अपनी  झूठी खुदाई को बचाने के लिए  पद और प्रभाव का जमकर दुरूपयोग किया गया। लोकतंत्र के मंदिर में  इन पुजारियों ने अपने अहंकार के दीपक को जलाया । लोभ की वेदी सजाई , शक्ति का शंखनाद  किया, महत्वाकांक्षा का घंटा बजाया और इस शोर में राष्ट्र भक्ति प्रदर्शन बन गई, जिस मंदिर में सत्य, प्रेम और न्याय को प्रमाणित करना था वहां पर पथभ्रष्ट लोगों के लिए आरती गायी जाने लगी । लोकतंत्र के भक्तों को  वैसे ही ठगा गया जैसे आसाराम, राम-रहीम, और तमाम ठोंगी बाबाओं धर्म के नाम पर लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ किया।

सोचिए जिस कांग्रेस के महान नेताओं ने अपने त्याग से, बलिदान से भारत को गुलामी से छुटकारा दिलाया उन महान लोगों की पार्टी आजादी के बाद कैसे एक विशेष परिवार तक सिमट कर रह गयी । जाहिर है जब परिवार ने अपनी महत्वाकांक्षा को पोषित किया तो सबसे पहले बड़ी चालाकी से उन लोगों को हटाया जो उनके लिए चुनौती बन सकते थे। अवसरवादी और चाटुकार लोग वक्त के साथ इस परिवार की ताकत बनते चले गये और उसूलों और सिंद्धांतों के लिए कांग्रेस का झंडा लेकर चलने वाले अब इतिहास में भी नहीं दिखते । इतिहास में अगर कुछ दिखता है तो वो है इस परिवार के नाम पर यूनिवर्सिटी, कॉलेज, स्टेडियम, चौराहे, सड़क, इमारतें, स्टेशन औऱ हवाई अड्डे । नामदार बनने की अभिलाषा में इस परिवार ने लाखों महापुरुषों को मिटाने की कामयाब साजिश रची।

 आप अध्ययन करेंगे तो पायेंगे सत्रह साल तक पंडिंत नेहरू ने अपने जीते जी किसी को भी प्रधानमंत्री पद के आसपास फटकने नहीं दिया।  उसके बाद उनके चाटुकारों ने धीरे से उनकी बेटी इंदिरा को औऱ फिर उनके बेटे राजीव  को और उसके बाद उनकी बहू सोनिया गांधी को शक्तिमान बनाये रखा । इस दौरान सरदार पटेल , कामराज, वी पी सिंह, नरसिम्हा राव, सीताराम केसरी जैसे तमाम वो लोग  जिन्होंने ने  भी इनको चुनौती देने की कोशिश की उन्हें कांग्रेस के इतिहास से ही मिटा दिया गया। मौजूदा दौर के कांग्रेसी इन्हें खुलकर कांग्रेसी नेता  तक नहीं मानते । इनके साथ हुए अपमानों की कहानियों को  लोकतंत्र में गांधी-नेहरू परिवार से टकराने के अंजाम के तौर सुनाया जाता है।

आप देखिए मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह परिवार, सिंधिया परिवार, दिग्विजय सिंह परिवार , छत्तीसगढ़ में सिंहदेव परिवार, महाराष्ट्र में चव्हाण परिवार, राजस्थान में पायलट परिवार ऐसे सैकड़ों उदाहरण है जिन्होंने ने इस परिवार के आगे घुटने टेक दिये वो लोकतंत्र में अपने वंशवाद को लेकर स्थानीय स्तर पर शक्तिशाली बना हुआ है।

भारत में गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, बेरोजगारी, आपातकाल को लेकर इस परिवार के खिलाफ ऐतिहासिक लड़ाईयां लड़ी गयी लेकिन दुर्भाग्य कि जनता ने जिन पर भी भरोसा किया वो खुद मठाधीश बन गये। लोहिया के बलिदान को मुलायम सिंह यादव के पारिवारिक समाजवाद ने कलंकित कर दिया । जेपी के जनआंदोलन को जेल में सड़ रहे लालू यादव के परिवार ने बर्बाद कर दिया । दुर्भाग्य देखिए दक्षिण में कांग्रेस से लड़ने वाले  देवेगौड़ा परिवार, स्टालिन परिवार, चंद्रबाबू नायडू, उड़ीसा में पटनायक परिवार भी जनता को भूल कर अपने वंश को सींचने में लगे हैं ।  महाराष्ट्र में शरद पवार ने सोनिया के विदेश मूल के खिलाफ सबसे बड़ी लड़ाई छेड़ी लेकिन वो भी बेटी और भतीजे में जाकर फंस गये और बाकियों की तरह  भष्ट्र राजनीति का चेहरा बन कर रह गये । मायावती जैसी दलित की बेटी भी ताकत पाकर महारानी जैसा बर्ताव कर रही हैं और सबके सब मिलकर इस परिवार की महत्वाकांक्षा में सहयोगी बनने को बेकरार है।
  
लेकिन 2014 के बाद पहली बार इस परिवार को दिन में तारे नजर आ रहे है क्योंकि पाला इस बार ऐसे शख्स से पड़ा है जिसके ना तो आगे कोई है और ना पीछे। और उससे बड़ी बात इस शख्स को इस परिवार की हर शातिर चाल का जवाब उसी की भाषा में देना आता है । इस परिवार ने नरेंद्र मोदी को हत्यारा कहा, हिटलर कहा, मौत का सौदागर कहा, नीच कहा लेकिन जितनी बार हमला बोला परिवार का दांव उतना ही उल्टा पड़ा । भष्ट्राचार का आरोप मढ़ने के चक्कर में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अदालत के सामने नाक रगड़ रहे हैं । 2019 आते -आते आलम ये है कि  गांधी परिवार के साथ- साथ  इनके चमचे भी पनाह मांग रहे हैं । सोनिया गांधी  और राहुल गांधी  जमानत पर पर है । दामाद रोज कचहरी के चक्कर लगा रहे है । कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को उनकी असली नागरिकता को लेकर नोटिस गया है, पहली बार किसी ने इस परिवार से पूछा है कि बताओं किस देश के हो? जाहिर है  परिवार के खिलाफ लड़ाई निर्णायक दौर में पहुंच गयी है। लोकतंत्र के मंदिर में  आसाराम और नारायणसाई बना बैठा ये परिवार और इनके चेले सब बेनकाब होने को है।      

Wednesday, April 24, 2019

इतनी जिल्लत कांग्रेस ने कभी नहीं झेली

डिजिटल दौर में जनता जेब में सच लेकर घूम रही है 

मुंह पर विरोध, आमने-सामने जलील करना, नेताओं को आइना दिखाने का एक नया ट्रेंड इस बार के लोकसभा चुनावों में बहुत तेजी से उभर कर सामने आया  है । हाल ही में भोपाल संसदीय सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजिय सिंह को अपने ही कार्यक्रम में शर्मिंदगी झेलनी पड़ी जब उन्होंने मोदी पर हमला बोलने के लिए भीड़ में खड़े एक युवक को मंच पर बुला लिया । अब उस ग्रामीण युवक ने बिना डरे जिस तरह अपनी बात रखी उससे बाद दिग्विजय सिंह अपने ही लोगों के बीच लज्जित हो गये । पंद्रह लाख रूपये सवाल पर युवक ने कहां कि मेरे रुपये तभी वसूल हो गये जब प्रधाममंत्री ने पाकिस्तान पर  एयर स्ट्राइक कर दिया । इसके बाद दिग्विजय सिंह ने उस युवक से माइक छीन ली और एक समर्थक ने धक्के देकर उसे मंच से उतार दिया । इस घटना से एक बात साबित हो गई कि लोग जागरूक हो रहे है और नेताओं से बिना डरे अपने मन की बात कह रहे हैं।  

हाल ही में मुंबई में कांग्रेस प्रत्याशी फिल्म स्टार उर्मिला मातोंडकर खुली गाड़ी में रोड शो के जरिए अपने लिए वोट मांग रही थी तभी दादर स्टेशन के पास कुछ युवक जो ट्रेन से उतरे थे उन्होंने मोदी -मोदी के नारे लगाने शुरू कर दिये। इस बात को लेकर बवाल तो बहुत मचा लेकिन ये स्पष्ट हो गया कि भारत का मतदाता निर्भीक हो गया है।

कांग्रेस ने इस चुनाव अपना सबसे बड़ा दांव चला प्रियंका गांधी को चुनाव के मैदान में उतार कर । लेकिन उनका ये दांव भी इस नये ट्रेंड से से नहीं बच पाया । यूपी में रोड शो के दौरान मोदी समर्थकों के जयकारे सुनने को मजबूर होना पड़ा प्रियंका को ।

पुणे और बेंगलुरू में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जनता से बात करने के दौरान लोगों ने मोदी के मामले में ना केवल उन्हें दो टूक जबाव दिया बल्कि कार्यक्रम में भी  मोदी -मोदी के नारे गूंजने लगे।

हालही में एक न्यूज चैनल के कार्यक्रम में एसपी और कांग्रेस के नेताओं ने  मुसलमानों के मुद्दे पर बीजेपी को घेरने की कोशिश की लेकिन कार्यक्रम की महिला एंकर जो खुद एक मुसलमान थी  और शो  में मौजूद मुसलमानों ने इन आऱोपों को खुल कर खारिज कर दिया कि मोदी राज में मुसलमान डरा हुआ है । 

पूरे देश में इस तरह के सैकड़ों उदाहरण है इसके अलावा टिवट्रर और सोशल मीडिया आप खोल कर देखिए पब्लिक पूरी बेबाकी से पार्टियों को, उनके नेताओं के जवाब दे रही है और इस लड़ाई में बीजेपी बहुत मजबूत है । नाम के आगे चौकीदार लगाने के ट्रेंड ने चौकीदार चोर के विपक्ष के अभियान को पूरी तरह से फेल कर दिया है । 
गौर करने वाले बात ये हैं कि टीवी, मीडिया और डिजिटल इस दौर में जनता लोकतंत्र को लेकर निर्भीक हुई है और वो वोट की ताकत को ना केवल समझती है बल्कि उसे समझाने का दम भी रखती है । ये प्रमाण है कि भारत का लोकतंत्र आने वाले दिनों में और मजबूत होगा ।

दूसरा जनता की इस बेबाकी से नेता बहुत डरे हुए है इससे ये तय हो गया कि अब वो अपनी जनसभाओं में और संवाद कार्यक्रमों में झूठ बोलने की राजनीति से बचेंगे । डिजिटल दौर में जनता जेब में सच लेकर घूम रही है ।
तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि मुंह पर जनता के विरोध का सबसे बड़ा दंश झेल रही है कांग्रेस जबकि बेचारी ये कमजोर विपक्ष है । जबकि अमूमन होता ये है कि जनता से सबसे ज्यादा डर सरकार को लगना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है। इसका मतलब है कि लोगो को सरकार पर भरोसा है और भरोसा इस कदर है कि वो उसके विरोधियों को मुंह पर नकारने का दम भी रखती है । 


2019 आम चुनाओं  में नेताओं को सामने से खड़ा उन्हें आइना दिखाने का ये जो देशव्यापी चलन चल निकला है अगर इसका आंकलन करें तो मुझे फिलहाल यही समझ आ रहा कि मौजूदा सरकार और मजबूती से रीपीट होने वाली है । 


Monday, April 22, 2019

राहुल ने कांग्रेस की भी विश्वसनीयता गवां दी

सत्ता के लोभ में देश की सुरक्षा से खिलवाड़ तो नहीं! 

आखिकार सुप्रीम कोर्ट में माफी मांग कर राहुल ने जनता की अदालत में  अपने साथ -साथ अपनी पार्टी की विश्वसनीयता भी खो दी । सोचिए चुनाव के मौसम में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की जनता के सामने जो फजीहत होने वाली है उसका कितना नकारात्मक असर पड़ने वाला है कांग्रेस पार्टी के प्रदर्शन पर । राहुल गांधी ने अपने हलफ़नामे में लिखा है कि  "मेरा बयान सियासी प्रचार की गर्मा-गर्मी में दिया गया था. इसे मेरे विरोधियों ने ग़लत ढंग से पेश करके जान-बूझकर ऐसा जताया कि मैंने ये कहा हो कि अदालत ने कहा है कि चौकीदार चोर है. ऐसी सोच तो मेरी दूर-दूर तक नहीं थी, ये भी साफ़ है कि कोई भी अदालत ऐसा कुछ कभी नहीं कहेगी, इसलिए इस दुर्भाग्यपूर्ण संदर्भ जिसके लिए मैं खेद व्यक्त करता हूँ को ये न समझा जाए कि अदालत को दिया हुआ कोई निष्कर्ष या टिप्पणी है.." राफेल मामले में सियासी फायदा उठाने के राहुल के  मंसूबों पर ये तगड़ा झटका है  अब वो किसी मुंह से अपने मतदाताओं से बात करेंगे ।
इससे पहले राहुल फ्रांस के राष्ट्रपति एमानुएल मेक्रॉन के हवाले से राफेल के मामले में गलतबयानी कर  सारी दुनिया के सामने अपनी और पार्टी की खिल्ली उड़वा चुके हैं । राहुल ने संसद में खड़े होकर फ्रांसीसी राष्ट्रपति से मुलाकात का जिक्र करते हुए कहा था कि उन्होंने स्पष्ट किया कि राफेल खरीद मे कोई गोपनीयता का क्लाज नहीं था । उन्होंने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए ये भी कह दिया कि  फ्रांस के राष्ट्रपति ने उनसे कहा कि पूरे देश को डील की सच्चाई बता दो राहुल । लेकिन दो घंटे के अंदर ही खुद फ्रांस ने साफ कर दिया कि राहुल झूठ बोल रहे हैं । इस तरह उन्होंने विपक्ष के साथ -साथ भारतीय संसद की गरिमा को भी चोट पहुंचाई।
राफेल को लेकर राहुल गांधी हंसी के पात्र भी बन चुके हैं क्योंकि जितनी चुनावी सभा में उन्होंने इसे घोटाला बता कर रकम का जिक्र किया उतनी बार उन्होंने नयी नयी रकम बतायी । जाहिर है हवा में तीर चला रहे है वर्ना एक फिगर पर कायम रहते ।  
राफेल को लेकर राहुल जिस तरह से आक्रामक है उससे पहले जानकारों को ये  समझ में तो आता था  कि वो अपने परिवार पर लगे बोफोर्स के दाग को कम करना चाहते हैं । पर हर बार और हर मोर्चे पर उन्हें मुंह की खानी पड़ी है । सुप्रीम पर कोर्ट भले ही नये सिरे से दस्तावेजों को लेकर  राफेल मामले की सुनवाई कर रही हो लेकिन इससे पहले वो  सरकार को क्लीन चिट दे चुकी है । इतना कुछ होने के बाद भी  राहुल गांधी जिस तरह से राफेल को लेकर चौकीदार चोर है के नारे को बुलंद कर रहे है उससे ये आशंका दिन ब दिन गहराने लगी है कि राफेल  को लेकर कोई और साजिश तो नहीं ? । राफेल की नाकामी से सिर्फ तीन लोगों को सबसे बड़ा फायदा होगा एक चुनाव में कांग्रेस को और दूसरा  सुरक्षा के मामले में भारत के सबसे बड़े दुश्मन पाकिस्तान को । लेकिन पाकिस्तान की इतनी हैसियत नहीं कि वो भारत के चुनावों को प्रभावित कर सके । अब तीसरी आशंका  बचती है  चीन को लेकर  । चीन किसी कीमत पर नहीं चाहता कि राफेल के जरिए भारत की सैन्य ताकत मजबूत हो । ये एक आशंका है और  देश की सुरक्षा ऐजेंसियों को इस दिशा में भी जांच करने की जरूरत है आखिर भारत की सुरक्षा का मसला है ।      
रक्षा मामले में कांग्रेस पर एक कलंक पहले ही लगा हुआ है जब उन्होंने अटल जी सरकार को कारगिल शहीदों के कफन घोटाले के नाम पर  चुनावों में बदनाम किया था और  जार्ज फर्नांडिस जैसे फकीर आदमी पर आरोप लगाया । लेकिन जब तक सच्चाई सामने आती तब तक कांग्रेस ने  सियासी फायदा ले लिया था । उम्मीद है जनता राफेल को लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस के हमलों से इस बार सतर्क रहे । चुनाव के चक्कर में देश का नुकसान ना हो ये जनता कि जिम्मेदारी है । क्योंकि राहुल तो संसद , संसद के बाहर और दुनिया में अपनी साख गवां चुके हैं।
  

Saturday, April 20, 2019

दुनिया में धाक मगर मोदी विरोधियों में धकधक

प्रधानमंत्री की गरिमा के विरूद्ध साजिश!    
इस देश ने एक से बढ़कर एक प्रधानमंत्री हुए सबको को उनके हिस्से का सम्मान भी मिला और आलोचना भी । लेकिन क्या नरेंद्र मोदी को उनके हिस्से का  सम्मान मिला?  उलटे आलोचना की जगह वो पिछले पांच साल  एक खास वर्ग की नफरत और घृणा के शिकार बने रहे । इससे पहले जब तक वो गुजरात के मुख्यमंत्री रहे दिल्ली की मीडिया के एक बहुत बड़े वर्ग  ने मोदी को हमेशा विलेन की तरह पेश किया। इसके बाद जब वो प्रधानमंत्री बने एक ऐसा वर्ग सक्रिय हो गया जिसने बाकायदा उनके खिलाफ अभियान छेड़ दिया, इसके लिए कुछ गणमान्य  लोगों ने पुरस्कार लौटाये, कुछ विद्ववानों ने  टॉलरेंस और इनटॉलरेंस जैसे शब्द गढ़े ताकि दुनिया में मोदी शासन को बदनाम किया जा सके। कुछ एक घटनाओं के चलते मॉब लिंचिंग जैसा भयानक शब्द तैयार किया गया, जैसे इससे पहले इस देश में कभी भीड़ ने कुछ किया ही ना हो। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने  मौत का सौदागर, नीच और चौकीदार चोर तक कह दिया। इस  अभियान में देश का एक खास वर्ग जिसमें विपक्ष भी है, मीडिया भी है, बुद्धिजीवी भी हैं, कई एनजीओज हैं और फिर अलग- अलग विचारधारा के कई लोग शामिल हैं, हैरानी होती है ये लोग एक प्रधानमंत्री को लेकर इस बार तरह क्यों  आक्रामक हैं?  बल्कि ये कहें कि ये चुनिंदा तबका मोदी को हमेशा नीचा दिखाने पर आमदा रहा।      

अब इसके ठीक उलट हम दुनिया में मोदी की इमेज को देखे तो हाल-फिलहाल का भारत का कोई भी नेता उनके आसपास नहीं टिकता है । पिछले पांच साल की अपने विदेश नीति के दम पर मोदी ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया तो चीन पर दबाव बनाने में वो कामयाब रहे । चीन की जरा भी चलती तो रूस उन्हें अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान (Order of St Andrew the Apostle ) देता । दुनिया में मोदीनॉमिक्स का डंका ही था कि उन्हें अक्टूबर 2018 में  "सियोल शांति पुरस्कार" से नवाजा गया । सितंबर 2018 में यूएन ने  उन्हें "चैम्पियन ऑफ द अर्थ अवॉर्ड" से नवाजा । वहीं जनवरी 2019 में उन्हें प्रतिष्ठित " फिलिप कोटलर प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड" से नवाजा गया तो राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर उनकी जमकर खिल्ली उड़ायी।

मोदी विरोधी चुनावों में उनकी इमेज मुस्लिम विरोधी नेता के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहे हैं । भारत में मुसलमान मतदाताओं को मोदी के नाम पर डराया जा रहा है ।  लेकिन इसके उलट पिछले पांच सालों में  दुनिया के मुस्लिम देशों में मोदी सम्मानित करने की होड़ लगी रही । अप्रैल 2016 में सऊदी अरब ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान "किंग अब्दुल्ला अजीज शाह अवॉर्ड", जून 2016 में अफगानिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "अमीर अमानुल्लाह खान अवार्ड" से नवाजा । इजराइल के साथ मोदी ने अपने गर्मजोशी का डंका पीटा तो उसके धुर विरोधी फिलीस्तीन ने फरवरी 2018 में  'Grand Collar of the State of Palestine' से सम्मानित किया । हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात ने मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान "जायेद मेडल" दिया । मुस्लिम देशों में मोदी की धाक ही है कि पांच सालों में हज का कोटा 46 प्रतिशत बढ़ गया पाकिस्तान से ज्यादा भारत के मुसलमान अब हज यात्रा पर हर साल जा सकेंगे ।

पिछले पांच साल में दुनिया भर से मिले सम्मान मोदी की  दुनिया में जो धाक की कहानी बयां कर रहे हैं । लेकिन अब  आप खुद इसका आंकलन करें वो क्या देश के भीतर उन्हें उनके हिस्से का सम्मान मिला तो जवाब होगा नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई देवदूत नहीं कि उनसे और उनकी सरकार से गलतियां ना हुई हो। आलोचना होनी चाहिए और हो भी रही है ये अच्छी बात है लेकिन जिस तरह से चुनावों में  सार्वजनिक मंचों पर उनकी निजी जिंदगी को घसीटा जा रहा है, अपशब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है, तथ्यहीन आरोप लगाने का अभियान जारी है उससे ये बात पुख्ता होती है एक तबका है जो मोदी को नीचा दिखाने पर आमदा है और आलोचना की आड़ में उन्हें नीचा दिखाने की हद तक आमादा हो रहा है ।  मोदी विरोध में ऐसे लोगों ने साजिश के तहत भारत के प्रधानमंत्री की गरिमा को भी नुकसान पहुंचाया है ।          

Friday, April 19, 2019

माया-मुलायम और शर्मसार सियासत!

चुनाव के बहाने बेनकाब होते मसीहा

सत्ता का लोभ स्वाभिमान की बलि कैसे ले लेता है? 19 अप्रैल 2019 मैनपुरी की माया-मुलायम की रैली हमेशा इस बार की तस्दीक करेगी । लखनऊ गेस्ट हाउस कांड में बीजेपी नेता ब्रम्हदत्त द्विवेदी ना होते शायद माया की बोली पर मुलायम को ताली बजाने का मौका नहीं मिलता । यहां माया ने सिर्फ अपने स्वाभिमान का गला ही नहीं घोंटा बल्कि अपने उन हजारो-लाखों समर्थकों को भी नीचा दिखा दिया जो माया के सम्मान में जीने-मरने के लिए तैयार रहते थे । उससे भी बड़ा समझौता नारी की गरिमा के साथ हुआ है । माया ने मैनपुरी के मंच पर बूढ़े -लड़खड़ाते मुलायम को सहारा तो दे दिया लेकिन दलित सम्मान, नारी की गरिमा, कांशीराम के सपने और उसूलों की राजनीति को ठेंगा दिखा दिया । सब कुछ खत्म हो गया शेष कुछ बाकी है तो वो है स्वार्थ, सत्ता और बेशर्म सियासत। 

इससे पहले दिल्ली में अरविंद केजरीवाल में कभी टीवी के कैमरों पर जनता के सामने अपने बच्चों की कसम खाई थी कि कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाउंगा । सोचिए ये आदमी अपने बच्चों से कैसे नजर मिलाता होगा। कांग्रेस के भष्ट्राचार पर अन्ना के साथ मिलकर मुहिम छेड़ी थी और कांग्रेस की तत्कालीन मुख्यमंत्री  शीला दीक्षित को सबसे ज्यादा अपमानित किया था ।  ये शख्स कहां अन्ना हजारे के कंधे पर बैठ कर निकला था और अब शीला चरणों में लोट- लोट कर राजनीतिक दीक्षा की गुहार लगा रहा है।  सत्ता का भांग इस कदर  चढ़ा है कि आंखों में शर्म का पानी भी नहीं बचा । केजरीवाल का अपराध सिर्फ सियासी होता तो कोई बात नहीं थी दरअसल उन्होंने उन लोगों के साथ धोखा किया जो ईमानदारी की, शुचिता की, सत्य और पारदर्शिता की राजनीतिक को स्थापित करने के लिए अपना सबकुछ छोड़ कर आंदोलन औऱ रैलियों में कूद पड़े थे । सत्ता के लोभ में इस आदमी ने एक आंदोलन की हत्या कर दी है।

कल तक कांग्रेसी नेता रही  प्रियंका चतुर्वेदी ने आज बयान दिया कि वो बचपन से शिवसेना को प्यार करती हैं । इसका मतलब पिछले 10 साल वो कांग्रेस के लव जिहाद का शिकार हो गयी थी । प्रियंका को होश आते ही उन्होंने कहां कि कांग्रेस गुंडों की पार्टी है । प्रिंयका ने शिवसेना की सहयोगी पार्टी बीजेपी की नेता स्मृति ईरानी पर दो दिन पहले पैरोडी गाकर उन्हें जलील किया अब उन्हें उन्हीं साथ काम करना है।


जाहिर है ये सियासत है, फिलहाल यहां संघर्ष सुशासन के लिए नहीं सत्ता के लिए है, ये लोग भारत को  नहीं, खुद को बनाने निकले हैं । संविधान की आड़ में देश को लूटने, ठगने, धोखा देने निकले हैं  लेकिन लोगों को  निराश होने की जरूरत नहीं है लोकतंत्र ऐसे ही परिवक्व होता है मतदाता देर से ही सहीं  अब इन्हें समझने लगा है ज्यादा दिन नहीं चलेगा ठगों का महागठबंधन। 

Thursday, April 18, 2019

साध्वी प्रज्ञा से नहीं, हिंदुत्व और संघ से डरती है कांग्रेस

अपने ही बुने जाल में फंस गये दिग्गी राजा!

क्रेंद्र हो या प्रदेश, कांग्रेस का कार्यकाल हमेशा षडयंत्रों से भरा रहा है। शासन करने की मुगलों और अंग्रेजों की नीति कांगेस को हमेशा से सूट करती रही । इसीलिए आजादी के बाद से हिंदु बहुसंख्यक देश में कांग्रेस ने अपनी ताकत का इस्तेमाल हमेशा हिंदुओं को तोड़ने में लगाया बजाय सदभाव से भरे राष्ट्र को बनाने के ।  सत्ता समीकरण बनाने के चक्कर में  कांग्रेस ने धर्म, जाति, समुदाय, अमीर-गरीब ऊंच-नीच, आरक्षण हर पैंतरे का इस्तेमाल किया इसी कड़ी में  हिंदुत्व पर नकेल कसने की उसकी कोशिश भी जारी रही । लेकिन वो ये भूल गई कि दूसरों के लिए खोदा गड्ढा एक दिन उसके लिए खाई भी बन सकता है । वही हुआ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को कमजोर करने की साजिश के तहत हिंदू आतंकवाद को गढ़नेवाले दिग्गी राजा ने जिस प्यादे को चुना था अब वो प्यादा शतरंग के खेल की तरह वजीर बन कर उनके सामने खड़ा हो गया है । साध्वी प्रज्ञा के हाथों दिग्गी को मात मिलनी तय मानी जा रही है।

ये राजनीति है, पावर और पैसे का खेल है, इस खेल में नैतिकता और नियम कानून जैसे चीजें सिर्फ बहलाने के लिए होती है। पूरी दुनिया में युगों युगों  से, सदियों से राजनीति ऐसी ही रही है । मुसलमानों की तरह हिंदुत्व की विचारधारा भी विस्तारवादी रही होती मानचित्र में हिंदुकुश तक फैला भारत आधे कश्मीर तक नहीं सिमटा होता । लेकिन आरएसएस एक मात्र शक्तिशाली संस्था है जो 1925 से  हिंदुत्व की अलख में जगाये हुए है और तभी से कांग्रेस की आंखों में कांटे तरह चुभती रही क्योंकि उसे पता था कोई उसे सत्ता के अखाड़े में पटखनी दे सकता है सिर्फ संघ के स्वयंसेवक । यही वजह रही कि कांग्रेस ने ऊंच-नीच, जात-पात, अगड़े-पिछड़े, सवर्ण-दलित जैसी सामाजिक बुराई को हिंदुत्व के खिलाफ सुनियोजित तरीके से हवा दी ताकि हिंदू कभी एक ना होने पाये ।

आजादी के बाद सोमनाथ के मंदिर से अयोध्या और अब शबरीमला तक आते -आते कांग्रेस ने हजारों बार हिंदुओं का अपमान किया । महात्मा गांधी की हत्या की आड़ में संघ को बदनाम करने की तगड़ी कोशिश की गई । दंगों के नाम पर कभी मुसलमानों को भड़काया, कभी सिखों को, कभी दलितों को । ये बहुत बड़ी श्रृंखला है कि कैसे गौसेवक करपात्री महाराज और उनके समर्थकों पर संसद के सामने गोलियां चलवाई गई । बस्तर के महराजा प्रवीरचंद भंजदेव को कैसे उनके महल में घुस कर मारा गया ? आपातकाल में संघ के स्वयंसेवकों के साथ कैसा सलूक किया गया ?  पंडित दीनदयाल और श्यामाप्रसाद मुखर्जी की हत्या है या स्वाभाविक मौत ये जाहिर ही नहीं हो पाया । दुनिया को पता है आडवानी की सोमनाथ यात्रा को कैसे कुचला गया ।

लेकिन हिंदुत्व का दीप जब दावानल बन गया तब सबसे बड़ी साजिश रची गई और उसे नाम दिया गया हिंदू आतंकवाद का । ताकि प्रज्ञा और असीमानंद की आड़ में  संघ को बदनाम किया जा सके । भगवा आतंकवाद का हौवा कांग्रेस के वोट बैंक को सूट करता था  । मालेगांव ब्लास्ट में अगर कांग्रेस की नीयत साफ होती तो वो प्रज्ञा और असीमानंद की कार्रवाई को सिर्फ कार्रवाई और अपराध तक सीमित रखता  लेकिन जिस तरह दिग्विजय सिंह, चिदम्बरम और सुशील शिंदे ने सोनिया गांधी की शह पर हिंदू आतंकवाद के नारे को उछाला और सियासत में इस्तेमाल किया वो सिर्फ संघ के खिलाफ साजिश ही नहीं बल्कि  हिंदुत्व के खिलाफ घृणित कृत्य भी था । संघ से कांग्रेसी कितना डरते है इसका उदाहरण है कमलनाथ का मध्यप्रदेश के चुनावों के दौरान आया वीडियो टेप था जिसमें वो संघ के नाम पर मुसलमानों को डरा रहे थे और उसके बाद भोपाल  संघ कार्यालय से  उनका सुरक्षा हटाने का फैसला ।

अब कांग्रेस के नेता चिल्ला रहे हैं, उमर अबदुल्ला बेचैन है और मीडिया में बयान दे रहे है कि प्रज्ञा जमानत पर है उसे टिकट देकर बीजेपी ने अच्छा उदाहरण पेश नहीं किया । तो सुनिये राहुल गांधी  और सोनिया गांधी भी जमानत पर है और हिम्मत हो तो बोलिए ।  प्रज्ञा का मामला अब जनता की अदालत में है,  जाहिर है दिग्विजय सिंह और पूरी कांग्रेस अपने ही बुने जाल में फंसती मालूम पड़ रही है ।

Wednesday, April 17, 2019

सिद्धू ने सिद्ध कर दिया कि अवसरवादिता की राजनीति में वो सिद्धहस्त है

ठोको ताली गैंग लेकर इस बार मुसलमानों को डराने निकले हैं सिद्धू 

सिद्धू का हालिया बयान ये है कि "मुसलमानों एकजुट होकर मोदी को सुलटा दो" । आजम खान, अतीक अंसारी, मुख्तार अंसारी, शहाबुद्दीन, शकील अहमद, हामिद अंसारी, ताकिर अनवर, अहमद पटेल, उमर अबदुल्ला, मेहबूबा मुफ्ती और ओवैसी बंधु जैसे तमाम मुस्लिम नेता क्या कम पड़ गये थे जो सिद्धू भी मुसलमानों को डराने की इस होड़ में शामिल हो गये । विपक्ष हर कीमत में इस चुनाव को मोदी वर्सेज मुसलमान बनाने में लगा है और मुसलमानो को ये यकीन दिला रहा है कि वो एकजुट ना हुए तो मोदी आ जाएगा । पहले मुसलमानों को इस देश में आरएसएस के नाम पर डराया गया  जो आज भी कायम है । फिर राजनैतिक मंच पर जनसंघ और बीजेपी के नाम पर डराया गया. इस बार मोदी के नाम पर और इस डर को इतने सुनियोजित तरीके से पाला गया है कि मुसलमान भी इस डर से शायद कभी खुद को निकाल नहीं पाया । वो ये भी नहीं सोच पा रहा कि मोदी ने तो सिर्फ पांच साल केंद्र की सरकार चलाई और उसका क्या नुकसान हुआ और क्या फायदा? फायदा तो सिर्फ सिद्धू जैसे नेताओं का तय है जो कल बीजेपी में थे, आज कांग्रेस में और कल पता नहीं किसमें होंगे । 


मुसलमानों को सिद्दू की बात पर यकीन करने से पहले सिद्दू के पुराने भाषणों को सुनना चाहिए जब वो बीजेपी में थे । सिद्धू कोई बहुत विद्वान नहीं है, उनके पास कुछ रटे-रटाये जुमले हैं एक जमाने में जिन जुमलों को उन्होंने बीजेपी नेताओं की चाटुकारिता में  चिपकाया था अब वो उन्हीं जुमलों को कांग्रेस के नेताओं पर बिना किसी झिझक के चिपका रहे हैं। उनके पास जुमलों का इतना टोटा है कि यहीं जुमले वो क्रिकेट की कांमेट्री के दौरान इस्तेमाल करते थे । ना कोई सोच, ना कोई विजन बस उनका एक मंत्र है ठोको ताली ।  ताली ठुकवाने का उनका ये ये विशेष गुण पहली बार प्रकाश में तब आया जब उन्हे लाफ्टर चैलेंज नाम के एक कार्यक्रम में अवसर मिला । बस फिर क्या था जब उन्होंने देखा कि  क्रिकेट के छक्कों से ज्यादा  मनोरंजक कार्यक्रमों में ताली ठुकवाने में ज्यादा कमाई है उन्होंने टीवी को पकड़ लिया । फिर हर चौके-छक्कों पर ताली ठुकवाने के इस हुनर से सिद्धू एक स्पोर्ट्स चैनल में क्रिकेट कांमेटेटर बन गये । फिर ताली ठुकवाने के लिए ज्यादा बोली लगी तो वो दूसरे टीवी चैनल में पहुंच गये ।  एक कॉमेडी  शो में बकायदा सोफा लगवा कर सिद्धू को ताली ठुकवाने के लिए बैठाया गया । जहां हाल ही में वो ताली ठुकवाने के चक्कर में शो से हाथ धो बैठे ।

ताली ठुकवा ठुकवा कर पैसा कमाने तक तो बात ठीक थी लेकिन पावरगेम में भी इन्होंने ताली ठोकवाने के अपने हुनर को आजमाया और वहां भी कामयाब हो गये ।  ताली ठुकवा कर पैसा और पावर के खेल में सिद्धू मिसाल बन गये । पहले बीजेपी के लिए ताली बजवाते थे अब कांग्रेस के लिए । मुसलमानों को सोचना होगा पैसा और पावर के लिए ताली बजाने और बजवाने वाले इस शख्स पर भरोसा कर वो अपने कौम की किस्मत कैसे तय करेंगे?  


आखिर में एक बात जो ताकत  संविधान ने इस देश के हिंदूओं की दी है, सिखों को दी है ईसायों को दी है हर वर्ग और समुदाय के लोगों को दी ही है वही ताकत मुसलमानों के पास भी है । ये संविधान की ताकत है कि तमाम सांप्रदायिक साजिशों के बाद भी इस देश में मुसलमानों का कोई कभी भी बाल बांका ना कर पाया है ना कर पायेगा । जैसे बाकी लोगों ने भारत को गढ़ा है वैसा योगदान  मुसलमानों का भी है । उदाहरण है जिन मुसलमानों ने भारत पर यकीन किया, संविधान पर यकीन किया  उनकी औलादें अब्दुल कलाम बनकर पूजी जा रही है और सिद्दू जैसे नेताओं के बहकावे में आकर जिन्होंने  नफरत की फसलें तैयार की वो अफजल गुरू बन कर रह गये, उनको भारत के संविधान ने वैसे ही दंड दिया जैसे बाकी देशद्रोहियो को । मेरी प्रार्थना है कि मुसलमान इन चुनावों में  सिद्धू जैसे ठोको ताली गैंग पर नहीं  बल्कि स्वयं के विवेक से वोट करे और जिसे चाहे उसे वोट दे ताकि भारत और भारत का लोकतंत्र कमजोर ना होने पाये 



Tuesday, April 16, 2019

आजम का बयान अशिक्षा और अहंकार का प्रमाण है

बैन लगा कर आयोग ने भी जता दिया कि आजम से सावधान!  

द वायर की पत्रकार से इंटरव्यू करते हुए आजम खान ने बताया कि वो बच्चों को पढ़ाते है और ये भी दावा किया वो बेहतरीन शिक्षा देते हैं, यही नहीं वो वो यूनिवर्सिटी और कालेज के बच्चों को भी पढ़ाते है । उस इंटरव्यू  में उन्होंने दावा किया कि उनकी शिक्षा का असर है कि रामपुर की चौथी पीढ़ी के लोग उन्हें चुनाव में जिताने जा रहे हैं । जयाप्रदा के लिए चुनावी मंच से आजम ने जिस जबान में बात की है जाहिर है ये जबान उनके शिक्षण संस्थानों में भी गूंजती है अंदाजा लगाइये इस शख्स ने रामपुर की आबोहवा में और वहां के शिक्षण संस्थानों में कितना ज्यादा जहर घोल रखा होगा । 

ये सिर्फ एक वाक्या नहीं है आजम खान के पूरे राजनीतिक करियर को उठा कर देखिए ये व्यक्ति बोलता है तो सिहरन होती है । अपनी बदजुबानी से ये सैकड़ों बार  सुर्खियां बटोर चुके है और सबसे बड़ा कारण ये है कि इसके सिवा इन्हें कुछ आता भी नहीं है । आजम खान के भाषण और इंटरव्यूज को सुनें तो पता चलेगा कि इन्होंने हिंदु और मुसलमान के नाम हर होने वाली सियासत को हमेशा हवा दी है । अपनी कौम को खतरे में बता -बता कर आजम जैसे लोग सियासी रोटियां सेंक रहे हैं  और स्कूल -कॉलेज के नाम पर नफरत की नस्ल तैयार कर रहे हैं ।
आजम की भाषा में अशिक्षा और सांप्रदायिकता तो झलकती ही है साथ ही इस आदमी की बोली में अहंकार भी कूट-कूट कर भऱा हुआ है । विदिशा के हालिया प्रवास के दौरान आजम ने एक पत्रकार से कहां कि हम आपके वालिद की मय्यत में शामिल होने आये हैं अंदाजा लगाइये ये आदमी खुलेआम शिष्टाचार की सारी मर्यादाओं को सीना तान कर तोड़ रहा है और वजह है रामपुर । आजम कहते हैं रामपुर की एक एक गली में, एक एक घर में मेरी पैठ है ऐसा बोलकर वो अपनी शेखी नहीं बघारते बल्कि हर पल रामपुर के लोगों को दुनिया के सामने अपमानित कर रहे हैं और ये जताने की कोशिश कर रहे हैं कि मैंने इतना जहर घोल रखा है कि मेरी इजाजत के बगैर यहां कोई अमन और भाईचारे की सांस भी नहीं ले सकता । 

खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा रहनुमा बताने वाले आजम खान को लगता है हिंदुस्तान छोड़ने की उनकी धमकियों से, देश का गाली देने से, चंद घटिया लोगों की करतूतों का हवाला देकर भारत के अंदरूनी मसलों को यूएन में उछालने से  उनकी धाक मजबूत बन रही है लेकिन रामपुर के लोगों को, मुसलमानों को ये सोचना होगा कि जो आदमी अपने देश को दुनिया में बदनाम करने की साजिश रचे उसे क्या कहते हैं ? जो आदमी एक चुनाव जीतने के लिए महिलाओं की इज्जत को तार-तार करे उसे क्या कहते है ? ऱामपुर के लोगों को सोचना होगा वो अपने बच्चों को कितने खतरनाक आदमी का चारा बना रहे हैं? जिस शख्स की शख्सियत अहंकार का प्रतीक बन गई हो, जो जानबूझ कर सांप्रदायिकता को हवा दे रहा हो वो रामपुर के लिए, यूपी के लिए, भारत के लिए कितना ज्यादा नुकसानदेह है ।

चुनाव आयोग ने आजम की बोलती पर बैन लगा कर ये जता  दिया है ये आदमी सिर से पैर तक अशिक्षित है और इससे सावधान रहने की जरूरत है,अब इंसाफ करने की बारी रामपुर के लोगों की है ।              

Monday, April 15, 2019

भक्तों की बयार और प्यार से सराबोर है 2019 का आम चुनाव

भक्ति फैक्टर भटका सकता है बड़े -बड़ों का गणित 

कोलकाता के एक ब्रिज पर पढ़ा-लिखा एक दंपति नमो टी शर्ट पहने अकेले ही मोदी सरकार फिर एक बार के नारे लगाता दौड़ा चला जा रहा था पढ़े -लिखे लोग अगर ये करे तो उनकी बेचैनी को समझा जा सकता है कि वो मोदी पर किस कदर भरोसा लगाये बैठे है और वो पिछली सरकारों से कितने हताश । मोदी विरोधी ऐसे लोगों को भक्त कहते हैं लेकिन उन्हें ये जरूर सोचना होगा कि आखिर विपक्ष ऐसा क्यों नहीं कर सका। भक्ति फैक्टर विपक्ष के लिए  ऐसी चुनौती है जिसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है क्योंकि ये कहां कहां सक्रिय है कितनी तादाद में है? खुद बीजेपी वालों को भी नहीं पता । 
मुंबई में लोकल ट्रेनों में यात्रा करने वालों को पता है कई समूह लंबी यात्रा को आसान बनाने लिए मिलकर सुंदरकांड का पाठ करते है, कई समूह रामधुन गाते चलते है तो कई लोग भजन मिलकर गाते हैं  लेकिन इस बार लोकल ट्रेन में पहली बार देखा कि लोग मोदी सरकार को वापस लाने के लिए भजन गा रहे हैं और ये कोई राजनैतिक कार्यकर्ता नहीं है ये लोग नौकरीपेशा और कामकाजी लोग है । सुबह लोकल ट्रेन से निकलते है और शाम को लौटते है । हर बार रामधुन गाते थे इस बार मोदी धुन गा रहे हैं ताकि मोदी के लिए माहौल बनाया जा सके । 
गुड़गांव के एक पार्क का नजारा देखा मार्निग वॉक के लिए आने वाले लोग मोदी मोदी के नारे लगा कर माहौल बना रहे हैं । वो सारे लोग भी किसी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के लोग नहीं है ना ही पार्टी के कार्यकर्ता । वाकिंग के साथ साथ मोदी के लिए टॉकिंग भी कर ली । 
अब सुनिये एक और दिलचस्प वाक्या  मैं दफ्तर के टी ब्रेक में नीचे चाय की गुमटी पर चाय पी रहा था । चाय पर चर्चा के दौरान मेरे साथियों ने मोदी सरकार की खिंचाई करनी शुरू कर दी । उस इलाके चाय पीने वालों में ज्यादातर लोग मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते है ऐसे ही एक ग्रुप हमारे बगल में खड़ा था और उस ग्रुप से एक आदमी जिसको हम जानते भी नहीं थे वो आया और मेरे मित्र से बोला आप लोग कितना भी मोदी की विऱोध कर लो सरकार तो मोदी की ही बनेगी । 
लंबे समय से मैं राजनीति को समझ रहा हूं इस दौरान चापलूसों को पनपते देखा है । चाटुकारों को देखा है । चमचों की चांदी देखी है लेकिन इस बार ये लोग कुछ अलग है । इनको बदले में कुछ नहीं चाहिए । ये वर्ग अपने पैरों का खड़ा है लेकिन मोदी का जबरदस्त समर्थक है विपक्ष ने अगर ऐसे लोगों को भक्त की संज्ञा दी है तो बिल्कुल सही संज्ञा दी है क्योंकि ये मोदी काम से खुश ही नहीं है बल्कि इनकों लगता है मोदी नहीं तो मुश्किल हो जाएगी जिंदगी । 
हैरान कर देने वाला एक और वाक्या मेरे साथ हुआ मेरी मुलाकात अनायास गौरव प्रधान नाम के एक शख्स से हुई उसने खुद को एनआरआई बताया और वो शख्स शहर शहर घूम कर लोगों को जागरूक कर रहा है लोगों से मिल रहा है और लोगों को बता रहा है क्यों मोदी सरकार को लाना जरूरी है । उसका कहना है मोदी के कारण विदेश में हमारी इज्जत बढ़ गई है लोग देश का नाम बड़ी इज्जत से लेते हैं ।  उस शख्स ने मोदी विरोधी हर बात का जवाब देने के लिए तगड़ी  रिसर्च की हुई है। वो शख्स इस काम के लिए बाकायदा हाल किराये पर ले रहा है उससे मिलने दर्जनों लोग जमा होते हैं उनके बीच बातचीत होती और फिर सब से  मोदी सरकार के लिए माहौल बनाने की अपील की जाती है । 
कई  मां-बाप ऐसे मिले जो अपने बच्चों को मोदी सरकार के समर्थन में नारे रटवा रहे हैं और उन वीडियोज को सोशल मीडिया पर डाउनलोड किया जा रहा है। ये सब फैब्रिकेटेड बिल्कुल नहीं है ये सब मोदी भक्ति का खुल्लम-खुल्ला प्रदर्शन कर है । 
दो हजार चौदह के चुनाव में मोदी के समर्थन में ऐसा बिल्कुल नहीं था । इस बार मोदी के प्रचार की बहुत बड़ी कमान इस तरह के भक्तों ने संभाल रखी है । इन भक्तों में कोई कामकाजी महिला है तो कोई घरेलू। कोई नौकरीपेशा शख्स है तो कोई कारोबारी । कोई शिक्षक है तो कोई चिकित्सक,कोई वकील। मेरे अनुभव में आये ज्यादातर मध्यवर्गीय है और मैं बार बार ये कहने की कोशिश कर रहा हूं कि ये भाजपा के कार्यकर्ता नहीं है बदले में इनकों कुछ नहीं चाहिए लेकिन डरे हुए है मोदी नहीं आये तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी ।
मुश्किल के बारे में पूछने जाओ तो कभी ये राष्ट्रीय सुरक्षा की बात करते हैं तो कभी आतंकियों की बात करते हैं तो कभी कट्टरपंथी सोच के लोगों को बारे में बता कर सिहर जाते हैं देश के सम्मान और ताकत के लिए इन भक्तों को हाल-फिलहाल की राजनीति में मोदी से बेहतर कोई नहीं लगता । भारत की राजनीति में नेता भक्ति की ऐसी बयार दशकों के बाद लौटी है जाहिर है असर तो दिखाएगी ही । कितना!  ये तो 23 मई को ही पता चलेगा ।