Tuesday, December 1, 2020

 

ये कैसा कोरोना आया 

हमको होश में लाया 

कमाई के चक्कर में जिस घर से भागे थे 

अब जान- बचाने उस घऱ के आगे थे

सालों से आस-पड़ोस से अनजाने थे 

आंगन में स्वागत को चेहरे सारे जाने- पहचाने थे  

परदेश में हम भूलें चूके थे बंधु और भाई, 

 पड़े मुश्किल में तो दोस्ती ही  काम आई

भागम- भाग के दिनों में अम्मा के फोन से भी बचते थे 

देखो कुदरत की माया... नाती-पोते दादा की गोद में हंसते है

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ये कैसा कोरोना आय़ा 

हमको होश में लाया 

पहले सुबह-शाम को भूलें थे 

गर्मी में कूलर, बारिश में पकौड़े, देखों सर्दी की धूप में झूलें हैं 

कुछ दिन पहले तक हम अपने में खोय़े थे 

 फिर क्यो जैकी हमसे ही खाता है गाय का बछड़ा दौड़ा आता है 

सिर पर आसमान का भान नहीं था

खिड़की की गौरया, छत की बुलबबुल ने बताया पहचान पुराना है

सेहत, स्वाद, सुगंध  से... छूटा सारा नाता था 

बाड़ी की भाजी, बगिया की फुलवारी से तन -मन में छायी हरियाली है 

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ये कैसा कोरोना आया 

हमको होश में लाया 

 नकली हंसी में जीते थे 

अब पेट पकड़ कर हंसते है 

मतबल से ही मिलते थे 

रिश्तों में गर्माहट.. देखों देर रात तक बतियाते हैं  

कल के चक्कर में खूब कलह मचाते थे 

अब तो हम अपने आज को सजाते है 

दौलत-शोहरत का सपना था 

  समझ आ गया खुश रहना और खुशियां देना ही जीना है 

ये कैसा कोरोना आया 

हमको होश में लाया 

सबको होश में लाया 

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