Sunday, October 6, 2019

क्या मां-बेटे में बंट गई कांग्रेस?


मुंबई में राहुल गांधी के समर्थक बीजेपी को जिताने में लगाएंगे दम   

मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरुपम कांग्रेस को निपटाने के काम में जुट चुके हैं उनके बयान से उनके इस संकल्प का अंदाजा लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा कि मुंबई में 3-4 सीट को छोड़ कर हर जगह हमारी जमानत जप्त होगी, मैं चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं लूंगा और सीधे 24 अक्टूबर को मीडिया से बात करूंगा ताकि वो इस बात की पुष्टि कर सकें।

मुंबई में 36 विधानसभा सीटें है और महाराष्ट्र की जीत का रास्ता यहीं से निकलता है। बीजेपी ने यहां से मौजूदा मंत्री विनोद तावड़े समेत कई दिग्गज विधायकों का टिकट काट दिया है, लेकिन छुटपुट विरोध से ज्यादा ये नेता कोई प्रभाव नहीं छोड़ सके हैं। जाहिर है नेतृत्व दमदार होगा तो किसी हैसियत नहीं है कि खुलकर कुछ बोल सकें। वहीं कांग्रेस में हालात बेकाबू है।


हताशा और निराशा से उपजे हालात में मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरुपम और हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने सीधे सीधे आलाकमान को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है। निरुपम ने तो खुल कर ये कह दिया कि पार्टी राहुल और सोनिया के नाम पर दो धड़ों में बंट गई है। यानी की मां-बेटे के नाम पर पार्टी में फूट पड़ चुकी है। उन्होंने कहा –जो लोग राहुल गांधी से जुड़ कर पार्टी में काम कर रहे थे ऐसे तमाम लोगों को सिस्टमेटिकली खत्म करना, उनको महत्वहीन करना और उनको पार्टी के सिस्टम से बाहर निकाल कर फेंक देना ऐसा षड़यंत्र दिल्ली से चलाया जा रहा है  निरुपम के इस बयान को बारीकी से समझने पर आप पायेंगे कि जब राहुल गांधी के हाथ में पार्टी की कमान थी तो उनका काकस अलग था। राहुल के कोर ग्रुप में ज्यादातर युवा थे, सो इन युवाओं ने राहुल के नेतृत्व में जब जहां मौका मिला पार्टी के उम्रदराज और वरिष्ठ लोगों को ठिकाने लगा दिया था। मुंबई के उस समय के तमाम कांग्रेसी दिग्गजों के बावजूद राहुल के करीबी होने के चलते चलते ही निरुपम मुंबई कांग्रेस के अध्य़क्ष बने ये इस बात का उदाहरण हैं। जिसके चलते गरूदास कामत और देवड़ा गुट तक एक हो गये थे।
अब जब कांग्रेस की कमान बेटे के हाथ से निकलकर एक बार फिर मां के हाथ में गई है तो सोनिया समर्थक पुराने नेता भी अपने रंग में लौट चुके है। अपना दुखड़ा सुनाते हुए निरुपम कहते हैं मैं पूरा दम लगा कर भी अपनी पसंद के एक उम्मीदवार को टिकट नहीं दिलवा सका। उन्होंने कहा कि  मल्लिकार्जुन खड़गे ने उनकी बात को सुनना भी जरूरी नहीं समझा। उन्होंने खड़गे पर जमकर भड़ास निकालते हुए साफ-साफ कहा कि सोनिया जी के ईर्द-गिर्द जो लोग भी बैठे है वो सब बायस्ड हैं, उनकी कोई पकड़ नही, कोई समझ नहीं है, कैसे पार्टी में एक-एक को निपटाया जाय वो लोग इस तरह के षड़यंत्र को अंजाम दे रहे हैं  मुंबई में उर्मिला मातोंडकर और कृपाशंकर सिंह पहले ही कांग्रेस पार्टी से अपना पल्ला झाड़ चुके हैं। महाराष्ट्र के एक और दिग्गज नेता हर्षवर्धन पाटिल ने भी पार्टी छोड़ दी है। जाहिर है कांग्रेस पार्टी दिन- ब -दिन संकट से उबरने के बजाय नयी-नयी मुसीबतों से घिरती जा रही है। राहुल और सोनिया गांधी के समर्थकों की इस फूट का असर हरियाणा में भी बीजेपी की जीत को पुख्ता करता दिख रहा है, जहां पर हरियाणा के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने पार्टी छोड़ने के बाद खुल कर कहा कि अब पार्टी में कमेटियां बन जाती है उनमें पांच साल में किसने क्या  काम किया ये उनको पता ही नहीं होता, वहीं पुराने-पुराने चेहरों को अंधा बांटे रेवड़ी चीन्ह-चीन्ह अपनों को देय की तर्ज पर काम चल रहा है।  हरियाणा कांग्रेस हुड्डा कांग्रेस बनती नजर आ रही है यानी हरिय़ाणा में कांग्रेस को हराने का ऐलान कर चुके हैं तंवर। आखिर उनको भी तो अपना ताकत दिखानी है।

लोकसभा चुनावों के बाद के कांग्रेस पार्टी के भीतर के पूरे घटनाक्रम को समझे तो आसान भाषा में यहीं समझ में आ रहा है कि पार्टी ने नेता फिलहाल पार्टी की नहीं बल्कि अपनी-अपनी सोच रहे हैं। राहुल के जमाने में जिन वरिष्ठों ने जिल्लत झेली थी अब वो लोग चुन-चुन अपना बदला ले रहे हैं। शायद वो ये मान चुके हैं कांग्रेस की जीत तो होनी नहीं है कम से कम इस माहौल में अपने विरोधियों को तो निपटाया ही जा सकता है। सो राहुल समर्थकों ने भी कसम खा ली है कि कांग्रेस की जमानत जब्त करवा कर दिग्गजों को उनकी हैसियत बतायी जाये। इस तरह राहुल और सोनिया का गुट मिल कर अपने अपने तरीके लग गया है बची- खुची कांग्रेस को भी ठिकाने लगाने में।

Monday, August 12, 2019

Wednesday, August 7, 2019

धारा 370 की धार में उलझ गयी कांग्रेस

क्या ये कांग्रेस के खत्म होने का संकेत है?

Wednesday, June 19, 2019

Thursday, June 13, 2019

बजट में हर भारतीय की भागीदारी और सम्मान सुनिश्चित हो


अपनी बातों को रखने से पहले मैं ये स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं कोई अर्थशास्त्र का विद्वान नहीं हूं, हां अनुभव और व्यवहारिक ज्ञान से जो मेरे संज्ञान में आया उससे सरकार और वित्त मंत्री को अवगत कराना मेरा कर्तव्य है और अपेक्षा भी।

1-      टैक्स जुटाने के नये स्रोत – इस देश में अभी भी बहुत सारे ऐसे क्षेत्र है जिनसे टैक्स वसूलने के सरकार के पास कोई कारगर और वैज्ञानिक तरीके नहीं है। जैसे कि प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर । भारत के गांव से लेकर महानगरों तक प्राइवेट प्रैक्टिस करनेवाले  डॉक्टर पूरा लेने-देने कैश में करते हैं। इसी तरह सिविल इंजीनियरिंग से लेकर इंटीरियर डिजाइनिंग का काम करने वाले लोग है। बहुत सारे हाई प्रोफाइल कारीगर है,  हाईप्रोफाइल मैकेनिक हैं, बड़े बड़े ठेकदार हैं, मटेरियल सप्लायर है, कोचिंग सेंटर और ट्यूशन पढ़ाने वाले टीचर और प्रोफेसर हैं। बहुत सारे वकील और सीए ऐसे हैं जो मोटी रकम अपने क्लाइंट से वसूलते हैं लेकिन टैक्स के नाम पर सरकार को उसका हिस्सा नहीं मिलता। इसके अलावा ऐसे कई प्रोफेशन है जिसमें व्यक्तिगत तौर कमाई मोटी है लेकिन उनसे टैक्स वसूलने का ऐसा कोई मैकेनिज्म कभी फक्शन में आया नहीं। सरकार को ऐसे क्षेत्रों की पहचान कर उन्हें टैक्स के दायरे में लाने के मैकेनिज्म के बारे में जरूर कदम उठाना चाहिए।

2-      राष्ट्र का तन और मन बेहतर होगा तो धन आएगा ही - स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में अभी भी सरकार को बहुत ज्यादा काम करने की जरूरत है ताकि किसी भी भारतीय को इस मामले में भेदभाव का सामना ना करना पड़े। इसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार लें। इस क्षेत्र में बजट आवंटन के साथ-साथ उसका सही उपयोग हो इसके बारे में भी वित्त मंत्रालय कोई प्रणाली विकसित करें ।   
3-      भारत की नये सिरे से दुनिया में न्याय पूर्ण ब्रांडिंग हो – पिछले 70 साल से दुनिया भर में हमारी ब्रांडिंग ताजमहल और लालकिले तक ही सीमित है। सपेरो और मदारियों वाली छवि साजिश के तरह भारत की बनाई गई है तो क्यों ना हम भारत की प्राचीन स्थापत्य कला, वैभव शाली मूर्तिकला, अद्भुत कर देने वाली वास्तुकला, बेजोड़ चित्रकला, शानदार बुनकर, वस्त्रकला, अस्त्र-शस्त्र विद्या जैसे तमाम ज्ञान को उभारें। इस क्षेत्र में  शिक्षा का भी  अवसर है, रोजगार का भी अवसर है और सबसे ज्यादा पर्यटन उद्योग का और कमाई का। सरकार को इस दिशा कुछ क्रांतिकारी करना चाहिए क्योंकि भारत में प्राचीन वैभव और ज्ञान बिखरा पड़ा है और हम सपेरों और मदारियों की छवि को ढोने को मजबूर हैं। उस पर दुर्भाग्य ये हैं कि भारतीय  ही भारतीय वैभव से अनजान है। जैसे की हम्पी, तमिलनाडु के विशाल मंदिर, दुनिया को बताने की जरूरत है संसद भवन का नक्शा भी मुरैना के योगिनी मंदिर से प्रेरित मालूम पड़ता हैं।

4 - वैदिक विश्वविद्यालय और शोध संस्थान – अपेक्षा है, आशा है और प्रार्थना है कि भारत के वैदिक ज्ञान को एक विश्वविद्यालय का रुप देकर उसे बचाया जाय, संऱक्षित, संवर्धित हो और शोध को बढ़ावा मिले । उसमें वेद हो, आयुर्वेद हो, योग हो, मानवता हो, प्राचीन वैदिक स्थापत्य, मूर्तिकला, प्राचीन टैक्सटाइल,  तमाम प्राचीन भारतीय ज्ञान पर नये सिरे से  वैज्ञानिक तर्कों के साथ शोध हो। इस क्षेत्र में रोजगार, व्यापार के नये अवसर तलाशे जाये।  

5 -     टैक्स पेयर का सम्मान हो – सबसे बड़ी और सबसे अहम बात ये है जिसके पैसों से सरकार चल रही है उस आदमी को, उसके योगदान को कहीं ना, कहीं किसी ना किसी तरह सम्मान सुनिश्चित किया जाये। उसके धन के बदले उसे कम से कम अपमान ना मिले इसकी गारंटी लें सरकार।  टैक्स पेयर के अंदर स्वामित्व का भाव विकसित हो और तमाम नेताओं औऱ सरकारी कर्मचारियों को ये पता हो कि देश टैक्सपेयर के पैसे से चल रहा है और हम सब उनके प्रति कृतज्ञ हैं। इससे टैक्सपेयर का हौंसला बढेगा और लोगों आगे आकर टैक्स देंगे और कहेंगे -
 
नाचीज के हौसले में जितना इजाफा होगा-जमाने में शोहरत और सुकून का उतना ही इजाफा होगा

Saturday, June 8, 2019

जीत कर भी केरल में मोदी से हार गये राहुल

दूरदर्शिता में पिछड़ जाते हैं कांग्रेस अध्यक्ष! 

Thursday, June 6, 2019

बंगाल के रोम-रोम में राम हैं


राम को मिटाने में कहीं ममता ना मिट जायें

भारतीयों के लिए राम-लक्ष्मण और सीता जितने सत्य है उतने उनके घर के लोग नहीं, परिपूर्णता के प्रति भारत वर्ष के लिए प्राणों की आकांक्षा हैं राम – गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर
हरे राम-हरे कृष्ण ये नाम तो सब पापों का नाश करता है ये नाम प्रेम का कारण है और भक्ति को प्रकाशित करता है–चैतन्य महाप्रभु

टैगोर की कविता पर राम की कृपा  रही है तो चैतन्य महाप्रभु की चेतना के मूल में भी राम ही मिलते हैं। ईश्वरचंद्र विद्यासागर के ज्ञान का आधार भी राम है और रामकृष्ण परमहंस के नाम में ही राम है। उन्नीसवीं सदी में हिंदुत्व का जागरण करने वाले विवेकानंद का एक किस्सा मशहूर है कि जब वो तार घाट स्टेशन पर भूखे-प्यासे बैठे थे तब एक अजनबी उनके पास खाना लेकर आया और बोला कि भगवान राम ने स्वप्न में आकर उन्हें भोजन करवाने का आदेश दिया है। जाहिर है बंगाल के साहित्य में, संस्कृति में, सभ्यता में, सुधारवादी आंदोलन में, धर्म और भक्ति में, संस्कार और रक्त में सर्वत्र राम ही स्रोत हैं।

राम की चेतना से भरी ऐसी बंगाल की धरती में ये दृश्य कितना अजीब है कि जयश्रीराम सुनते ही वहां की महिला मुख्यमंत्री अपना आपा खो बैठती हैं। गाड़ी से उतर कर बीच सड़क में चीखने-चिल्लाने लगती हैं। अपनी सियासत को बचाने के लिए राम को मिटाने पर वो किस कदर आमादा है उसकी एक छोटी सी मिसाल ये है कि सरकार ने स्कूल की किताबों में बंगाली शब्द 'रामधनु', जिसका अर्थ इंद्रधनुष है, को बदल दिया है। राम शब्द से छुटकारा पाने के लिए तीसरी क्लास की किताबों में पर्यावरण के पाठ में 'रामधनु' शब्द को बदलकर 'रोंगधोनु' कर दिया गया है।

    सियासत के लिए राम को मिटाने की ये मुहिम क्या इतनी आसान है क्या अब बंगाल में रामकृष्ण परमहंस का नाम बदल जायेगा? क्या राम के उदाहरणों से भरे ईश्वरचंद्र विद्यासागर के भाषण जला दिये जाएंगे?  बंगाल की राम भक्ति और राम शक्ति की चेतना, चैतन्य महाप्रभु को विस्मृत कर दिया जाएगा? चलो एक बार मान लिया कि अपनी बौखलाहट में आपने  गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर के साहित्य पर भी प्रतिबंध लगा दिया लेकिन बंगाल का रक्त और वहां की आत्मा को कैसे बदलेंगीं? टैगोर ने शायद इसीलिए कहा था कवि का मस्तिष्क ही राम का जन्मस्थान है जो अयोध्या से कहीं ज्यादा वास्तविक है।

राष्ट्रपति महात्मा गांधी की समाधि पर हे राम! लिखा है क्या बंगाल के लोग ममता बनर्जी को इतना बड़ा जनादेश देने वाले है कि वो समाधि से भी राम को मिटा दे? भारत की तरह बंगाल में भी मूल्य का विनियम गांधी की तस्वीर वाले नोट से ही होता औऱ उसी गांधी ने कहा है कि मेरे द्वारा जो कुछ समाज की सेवा हो सकी वह राम नाम की देन है। मेरे पास राम नाम के सिवा कोई शक्ति नहीं है, वही मेरा एकमात्र सहारा है  
    
बंगाल के भूगोल में भी राम हैं हिमालय से निकल कर बंगाल की खाड़ी में समाहित होने वाली गंगा को इस धरती पर राम के पूर्वजों ने ही उतारा था। तो क्या ममता दीदी गंगा की धारा को भी मोड़ देंगी । जिस लोकतंत्र ने आप जैसी साधारण महिला को मुख्यमंत्री बनाया वो राम के लोकतांत्रिक मूल्यों के कारण ही है। लोकतंत्र की जीवंत बनाने के लिए इस देश में राम से बड़ी कुरबानी किसी ने नहीं दी। जब तक भारत में राम है तब तक लोकतंत्र है अब आप सत्ता के अहंकार में उसी राम को और उसी लोकतंत्र को कुचलने निकली है लेकिन ये हो ना पाएगा क्योंकि आपने राम को नहीं जाना। अरे आप गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर को ही अच्छे से पढ़ लेतीं तो जान लेतीं की राम हैं क्या। टैगोर ने कहा है कि रामायण हमारे सामाजिक जीवन का महाकाव्य है।

ममता दीदी प्रार्थना है भारत के जिस इतिहास को आपने पढ़ा है उसका मनन कीजिए, आपको पता चलेगा कि इस देश में दुराचारियों ने अपना  प्रभाव जमाया जरूर है लेकिन लेकिन जब जब राम नाम का संकल्प लेकर भारत के लोग खड़े हुए उनका नामोनिशान मिट गया। रावण से लेकर कंस तक, कौरवों से लेकर घनानंद तक। मुगलों लेकर अंग्रेजों तक सबने राम को मिटाने की कोशिश की और खुद मिट गये क्योंकि राम भारत के पंचतत्वों में है क्षिति, जल, पावक, गगन समीरा में राम की ही गूंज है।  राम की महिमा का समझिए ममता दीदी, जम कर राजनीति करिए लेकिन राम को पकड़ कर चलिए। राम को नकारने वाले वामपंथियों के पतन का उदाहरण आपके सामने है, लोकसभा 2019 की झांकी आपने देख ली है, अभी भी वक्त है संभल जाइये राम को मिटाने कोशिश मत करिए।   

Tuesday, June 4, 2019

सियासत के लिए मत करो भाषा का अपमान

ज्ञान की कांति और विकास की क्रांति का आधार है हमारी भाषाएं

भाषा अभिव्यक्ति का जीवंत माध्यम है व्यक्ति भाषा के माध्यम से बड़ी सरलता से व्यक्त होता है जो व्यक्त नहीं हो पाता उसकी बेचैनी, उसकी पीड़ा और उसकी व्यथा अंधेरे काल कोठरी में कैद मानव से भी ज्यादा कष्टप्रद है। कल्पना कीजिए भाषा ना होती तो क्या होता? कुछ ना होता, ना ज्ञान, ना विज्ञान, और मानवता। बिना भाषा के मानव पशुवत होता।

धन्यवाद दीजिए उन ऋषियों का, मनीषियों का और विद्वानों का जिन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी अपने अपने क्षेत्र में अपनी अपनी भाषा को संजोया, सहेजा, संकलित किया फिर उसे वैज्ञानिक और तर्कसम्मत बनाया। अपने ज्ञान के श्रम से उसे व्याकरण में ढाला। उसे ग्रंथों में, किताबों में, उतारने के लिए लिपियों का सृजन किया। ना जाने कितने युग और कितनी पीढ़ियां खप गई होंगी एक भाषा को बनाने में। तब कही जाकर व्यक्ति ने स्वयं को दूसरे व्यक्ति के सामने व्यक्त किया होगा । व्यक्ति से परिवार, फिर समाज और फिर राष्ट्र की कल्पना साकार हुई होगी। ये भाषा ही मानव और मानवता के उत्थान का भाषण है।

अब आईये भारत की बात करते है। जितने राज्य उतनी भाषा और इसमें समाहित और प्रस्फुटित ना जाने कितनी बोलियां। कैसे लोग रहे होंगे वो कर्नाटक वाले कि उन्होंने कन्नड़ बनाया, कैसी मिट्टी रही होगी कि पास के ही तमिलनाडु में तमिल भाषा ने जन्म लिया इन दोनों के बीच में क्या हवा चली होगी कि तेलगू भाषा ने आकार लिया, गाड़ी से आधे दिन का सफर भी पूरा नहीं होगा कि आप खुद को मलयाली भाषा के लोगों के बीच पायेंगे, गुजराती, मराठी, पंजाबी, असमिया, सिंधी, उड़िया जैसे दर्जनों भाषाएं, सैकड़ों बोलियां एक ही भू-भाग में पुष्पित और पल्लवित हुईं। ये भाषाएं प्रमाण है हमारे महान पूर्वजों के ज्ञान की। उनकी मेधा और प्रतिभा युगों-युगों से आप को ये अहसास करा रही है कि आप असाधारण लोग है। ज्ञान की कांती और परिवर्तन की क्रांति को हमारे पूर्वजों ने अपनी भाषायी विविधता से ही परिभाषित कर दिया है।

हर क्षेत्र की भाषा वहां का संस्कार है संस्कार वो जिससे मानव और मानवता दोनों सुखी होते है । और जब सुख की कल्पना होती है तो अहंकार, लोभ और क्रोध पर विजय होती है। ऐसे में ही एक भाषा दूसरी भाषा से जुड़ती है, मिलती है सीखती है समझती है और संस्कारों का, ज्ञान का आदान-प्रदान करती हैं। यहीं इस देश में भाषा की परिपाटी रही है। तभी तो केरल में पैदा हुआ शंकर मध्यप्रदेश में नर्मदा तट पर ज्ञान प्राप्त कर शंकराचार्य बनता और काशी में  गंगा के तट पर मंडनमिश्र से शास्त्रार्थ करता है। भारतीय भूभाग के चारों दिशाओं में चार धाम और चार ज्ञान मठों की स्थापना कर शंकराचार्य ने भारत को  सांस्कृतिक, धार्मिक और साहित्यिक तौर पर एक कर दिया। शंकर विरचित जो देव स्त्रोत मल्लिकार्जुन में गाये जाते है उन्हीं स्त्रोतों से काशी में विश्वनाथजी की वंदना होती है। रामेश्वरम में बाबा को प्रसन्न करने तमिल लोग गंगाजल लेने त्रिवेणी संगम तक आते है। ऐसे में भारत अलग कैसे हो सकता है। जाहिर है भाषा हमारी समृद्धि का प्रतीक है जो हमारी एक संस्कृति को व्यक्त करती है। युगों-युगों से हम ऐसे ही एक दूसरे को सीखते-सिखाते रहे हैं और आपस में बंधु-बांधव बन कर रहे हैं।

आज भी भारतीय करेंसी पर विविध भाषाओं में अंकित मुद्रा का मूल्य दरअसल मुद्रा के मूल्य से ज्यादा भारतीयों मूल्यों को ही व्यक्त करता है, व्यक्त करता है भारत की समृद्धि को। भारत के भाषायी वैभव को। भाषा भारत में विभेद का नहीं, वैभव का प्रतीक है। आइये हम भारत की भाषाओं को अपनायें. उनका सम्मान करें, उन्हें सशक्त करे और उनका वैभव बढ़ाये। भारत की नयी शिक्षा नीति भी भारतीय भाषायी मूल्यों की गरिमा से प्रेरित है उसका स्वागत करें।

Monday, May 13, 2019

मोदी ने बर्रे के छत्ते में सीधे हाथ डाला है

नेहरू-गांधी परिवार का ब्रांडिंग गेम बेनकाब!

स्पोर्ट्स चैनल में काम करते हुए मेरा देश में अलग-अलग शहरों के खेल स्टेडियम और स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में जाने,  घूमने और काम  का मौका मिला इस दौरान जिस नाम से सबसे ज्यादा वास्ता पड़ा वो था कभी नेहरू तो कभी गांधी,  है ना हैरत की बात! केरल के कोच्चि में जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, गोवा के फटोरदा मैदान का नाम जवाहर लाल, दिल्ली में जवाहर लाल, चेन्नई के मरीना एरिना का नाम जवाहर लाल स्टेडियम, हैदराबाद में क्रिकेट मैच कवर करने पहुंचे तो नाम राजीव गांधी इंटरनेशनल स्टेडियम । इस तरह आप पाएंगे कांग्रेस के राज में जो भी बड़ा स्टेडियम बनता था नाम सोचने की कवायद ही नहीं करनी पड़ती थी नेहरू, इंदिरा, राजीव । इस वक्त देश में 20 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय स्तर के ऐसे स्टेडियम है या फिर ऐसे  स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स है जो सीधे परिवार को समर्पित हैं । नेहरू इंटरनेशनल फुटबॉल कप जैसे करीब 30 बड़े टूर्नामेंट हैं जिसमें परिवार का नाम चलता है। राजीव गांधी खेल रत्न जैसे इस देश करीब 50 बड़े अवॉर्ड्स है जो इस परिवार के नाम पर दिये जाते है। स्पोर्ट्स में गांधी-नेहरू परिवार की ब्रांडिंग इतनी तगड़ी रही कि ध्यानचंद, मिल्खा सिंह, पीटी उषा जैसी खेल हस्तियों की उपलब्धि फीकी पड़ जाती है । आजादी के बाद से खेलप्रेमी ध्यानचंद के लिए भारत रत्न के लिए तरस रहे है । लेकिन ऐसा लगता है कि परिवार ने खुद के सामने कभी किसी को रत्न समझा ही नहीं । कांग्रेस के शासन में खेलों की जो दुर्गति और खेल आयोजन को लेकर जो बदनामी हुई है वो पाप जगजाहिर हैं।  
राहुल गांधी भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या का नाम ठीक से उच्चारण नहीं कर पाते । कैसे करते? कभी उस तरह सुने होते जिस तरह नेहरू- गांधी परिवार का नाम रटाया और बसाया गया है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिछले 70 सालों में कैसे लोगों ने घुसपैठ की ये बात मोदी राज में उजागर हो चुकी है।  इस देश में एक चाणक्य, राधाकृष्णन, सावित्रीबाई फुले, विवेकानंद, दयानंद सरस्वती जैसे महान शिक्षाविद हुये लेकिन आजादी के बाद शिक्षा के क्षेत्र में भी ब्रांडिंग हुई तो सिर्फ परिवार की । इस देश में 100 से ज्यादा यूनिवर्सिटी, कालेज, स्कूल और शिक्षण संस्थान है जिनके नाम परिवार से प्रेरित है ।  करीब 20 स्कॉलरशिप और फैलोशिप परिवार के नाम पर सरकार देती है।

2019 का चुनाव भी कांग्रेस गरीब को न्याय के नाम पर लड़ रही है । विनोबा भावे, लोहिया, जेपी, कांशीराम और दीनदयाल उपाध्याय के इस देश में गरीबी से लड़ने की ब्रांडिंग, विकास की ब्रांडिग पर भी गांधी-नेहरू परिवार की कब्जा है । कांग्रेस के राज में 18 से ज्यादा बड़ी केंद्रीय कल्याणकारी योजनाओं का नाम परिवार के नाम पर है। और राज्य कांग्रेस सरकारों ने भी चाटुकारिता की होड़ में पचास से ज्यादा जनकल्याणकारी योजनाओं का नाम परिवार को ही समर्पित किया है। चरक, सुश्रुत, बाणभट्ट, बाराह मिहिर जैसे प्राचीन भारत के विद्वानों को तो कांग्रेस के लोग कल्पना मानते है लेकिन जयंत विष्णुदनार्लीकर, विक्रम साराभाई,जगदीश चंद्र बोस , होमीजहांगीर भाभा,सत्येंद्रनाथ बोस, हरगोंविंद खुराना और सीवी रमन जैसे तमाम विभूतियों की तो ब्रांडिग हो सकती थी लेकिन आप पायेंगे पॉवर प्लांट, वैज्ञानिक शोध संस्थान, कई खगोलीय महत्व की चीजें बिना झिझक के परिवार के नाम कर दी गई । करीब 40 से ज्यादा इंस्टीट्यूशन्स, करीब 40 से ज्यादा मेडिकल कॉलेज और स्वास्थय केंद्र परिवार ने नाम पर थोक के भाव  झोंक दिये गये है।

कांग्रेस के शासन काल में आजादी से जुड़े महापुरूषों को धीरे-धीरे कर ऐसे मिटाया गया कि वर्तमान पीढ़ी के लोग तिलक, गोखले, राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल, बोस, मौलाना आजाद जैसे महान कांग्रेसी नेताओं को गूगल में खोजते है । वो भी मिल गये तो ठीक वर्ना  कई तो इतिहास में खो चुके हैं । क्योंकि इस देश 70 से ज्यादा महत्वपूर्ण सड़कें और इमारतें परिवार के नाम पर है। गूगल में आप सर्च कीजिये 20 से ज्यादा राष्ट्रीय उद्यान और सेंचुरीज गांधी-नेहरू परिवार के नाम पर है । इस देश में 10 हवाई अड्डे परिवार के नाम पर है । इसके अलावा आप भारत के नगर, गांव, पंचायत,गली-मोहल्ले स्तर पर जायेंगे तो परिवार के चाटुकारों ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है।

आजादी के बाद आप सिर्फ हिसाब लगाइये  इस परिवार की ब्रांडिंग पर कांग्रेस ने सरकार का लाखों नहीं , करोड़ों नहीं , अरबों भी नहीं, खरबों रूपया लुटा दिया । ये रुपया परिवार का नहीं है ये रूपया था भारत के गरीब किसान, मजदूर औऱ जवानों के खून पसीने का । देश के आय़कर दाताओं का । सोचिए कांग्रेस के लोग मोदी के सरकारी विज्ञापन का हिसाब मांग रहे हैं । विदेश जाने का ब्योरा मांग रहे हैं । विंग कमांडर अभिनंदन की वापसी उनकी विदेश नीति की कामयाबी का सबसे बड़ा और जिंदा प्रमाण है ।  नेहरू और राजीव की सरकारी पिकनिक को मान्यता देनेवाले लोग मोदी से उनके कपड़ों का हिसाब मांग रहे । मशहूर है जिनके कपड़े पैरिस में धुलने जाते थे और जिनकी सिगरेट के इंतजाम के सरकारी विमानें उड़ान भरा करती थी वो मोदी के दौरे का हिसाब मांग रहे हैं। आखिर दुनिया में परिवार की साख का सवाल जो है।  
   
सरदार पटेल की मूर्ति और उनके कद को देखकर परिवार और उनके चाटुकारों की बेचैनी का समझा जा सकता है। कभी वो कहते हैं इस पैसे से गरीबी दूर हो सकती थी, कभी तर्क देते  है कि इस पैसे से बेरोजगारी दूर हो सकती थी कभी कोई विद्वान इसे फिजूलखर्ची बता गया । ऐसा पूछने वालों ने कभी देशभऱ में खड़ी परिवार के लोगों की लाखों  मूर्तियों का हिसाब जोड़ा है क्या ?  दरअसल कहानी ये है कि मोदी के राज में परिवार की ब्रांडिंग पर पटेल की ये महामूर्ति सबसे बड़ा सवाल खड़ा करती है । उन तमाम साजिशों में बेनकाब करती है कि कैसे इस परिवार ने इस देश के महापुरूषों के साथ और देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है।

मोदी को लेकर  कांग्रेस में छटपटाहट  है क्योंकि मोदी ने महन मोहन मालवीय को भारत रत्न दिया । जब  कांग्रेस के प्रणव मुखर्जी को भारत रत्न मिला तो उस दिन पार्टी में जश्न होना चाहिए था क्योंकि ये सम्मान विरोधियों ने दिया है लेकिन नहीं उल्टे पार्टी और परिवार को सांप सूंघ गया । आखिर उनकी सालों की ब्रांडिग पर चोट जो हो रही थी । आप खुद सोचिए लाल बहादुर शास्त्री और गुलजारी लाल नंदा भी कांग्रेस से प्रधानमंत्री बने लेकिन कभी वो कांग्रेस का चेहरा नहीं बन पाये । नरसिम्हा राव भी कांग्रेस से ही प्रधानमंत्री थे लेकिन परिवार की कठपुतली बने मनमोहन सिंह ने अंतिम संस्कार के लिए उन्हें दिल्ली में जगह नहीं दी और पार्टी दफ्तर में शव को रखने की इजाजत भी कांग्रेस ने नहीं दी। क्योंकि इससे परिवार की ब्रांडिंग टूटती ।

नेहरू से लेकर राजीव ने नाम तक कांग्रेस ने हमेशा चुनावी फायदा लिया है और ले रही थी । लेकिन जब मोदी ने आइना दिखाना शुरू किया तो परिवार और इनके चाटुकारों की चूलें हिल गई । संस्कार और मर्यादा की दुहाई दी जाने लगी । लेकिन भारत के लोग अब बातें करने लगे कि कैसे परिवार ने अपने प्रभाव को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए तंत्र का भयंकर दुरुपयोग किया । कैसे सरकारी खजाने की लूट हुई? कैसे अपने नाम के सामने बाकी महापुरुषों के खिलाफ साजिश रची गई? आप अंदाजा लगाइये कि प्रधानमंत्री ने परिवार को बेनकाब करने के लिए  बर्रे के छत्ते में हाथ डालने का जो जोखिम लिया है उससे सबसे ज्यादा तकलीफ किसको हुई है?       

Thursday, May 9, 2019

कांग्रेस का तुरूप का इक्का भी बेकार निकला

दरकती विरासत को बचाने की आखिरी कोशिश भी नाकाम!

आनन-फानन की राजनीति, तुक्के की राजनीति, करिश्मे की राजनीति, ग्लैमर की राजनीति, चमक-दमक की राजनीति, विरासत में कलई लगाने की राजनीति, वंशवाद के महिमामंडन की राजनीति  ये वो तमाम कारण है जिसको ध्यान में रखकर कांग्रेस ने 2019 के चुनाव में प्रियंका गांधी का सहारा लिया । प्रियंका को सियासत में उतार कर कांग्रेस ने ये भी  साबित कर दिया की मोदी से जीतना राहुल के अकेले के बस की बात नहीं है। प्रियंका को कांग्रेस ने हमेशा तुरूप के इक्के की तरह अपने भविष्य के सियासत के लिए बचा कर रखा था लेकिन खेल हो या राजनीति टाइमिंग का बड़ा महत्व होता है । मीडिया में प्रियंका गांधी की एंट्री की झांकी सजने ही वाली थी कि पाकिस्तान पर भारतीय सेना ने एयरस्ट्राइक कर दिया और राजनीति में प्रियंका के शुरूआती दस दिन में जो अपेक्षित माहौल बनना था वो बन ही नहीं पाया।

राजनीति की जमीन पर खड़े होने वाले यूं तो आपना कद मेहनत से बनाते हैं लेकिन प्रियंका को ये विरासत में हासिल था। उनके हिस्से में विरासत की कलई चमकाने की जिम्मेदारी थी, लेकिन उनका पहला ही कदम राजनीति में फ्लॉप साबित हुआ । प्रियंका भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर उर्फ रावण से मिलने चली गईं । इस मुलाकात से कांग्रेस को कुछ मिला नहीं बल्कि मायावती से नाराजगी अलग मोल ले ली । कुल मिलाकर दलित वोटों को साधने की उनकी मंशा भी जाहिर हो गई और हाथ  भी कुछ नहीं आया । इसी को कहते ना खुदा मिला ना बिसाले सनम।

राजनीति में सकेंतों के बड़े मायने होते है, भाषा, उपमा, अलंकार, बॉ़डी लैंग्वेंज भी राजनीति के महत्व को बनाते और बिगाड़ते हैं । जिस गंगा को देखकर मॉरीशस के राष्ट्रध्यक्ष ने डुबकी लगाने का कार्यक्रम रद्ध कर दिया था उस गंगा के तट पर  प्रियंका ने गंगाजल को हाथ में लेकर होंठों से लगाया था हिंदुत्व को साधने के लिए और  विरोधियों ने देर नहीं की नमामि गंगे की सफलता को प्रमाणित करने में । प्रियंका गांधी ने जनता से संवाद करने के लिए गंगा में  नौका यात्रा की और विरोधियों ने गंगा की सफाई पर अपनी मुहर लगावा ली । प्रियंका को मालूम होना चाहिए था कि जिस गंगा को लेकर वो राजनीति करने जा रही है उसमें उनकी भद पिट सकती है क्योंकि गंगा सफाई के नाम पर एक बार उनके पिता राजीव गांधी भी वोट मांग चुके थे ।  हनुमान मंदिर जाना, विंध्यवासिनी के मंदिर, यूपी के मंदिरों में प्रियंका गांधी का दौरा कोई छाप नहीं छोड़ पाया । जगजाहिर है कि  चुनाव के हिसाब से प्रियंका  अपनी वेशभूषा भी बदल  लेती है। राहुल की तरह प्रियंका की राजनीति में भी मौलिकता का अभाव है जिसकी वजह से वो जनता से  विश्वनीय संवाद कायम करने में वो नाकाम रही।

कांग्रेस ने स्टैंड तैयार किया कि चौकीदार चोर है प्रियंका ने चौकीदार को शहंशाह कह कर ये जता दिया कि इस कैम्पेन में कांग्रेस गच्चा खा चुकी है। प्रिंयका इससे पहले भी रायबरेली और अमेठी में अपने परिवार के लिए कैम्पेन कर चुकी है इसलिए आकर्षण वाला फैक्टर भी ज्यादा प्रभाव नहीं दिखा सका।

अगर इस चुनाव कोई चीज प्रियंका को सबसे ज्यादा सुर्खियां दिला सकती थी, अगर इस चुनाव में आखिरी चरण तक कोई बात कांग्रेस में जान फूंक सकती थी तो वो थी प्रधानमंत्री के खिलाफ प्रियंका की बनारस से दावेदारी । प्रियंका ने प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने का सवाल पूछ कर दांव तो बहुत तगड़ा चला था और अगर वो ऐसा करने का दम दिखा देती तो जनता को यकीन भी दिला पाती कि वाकई वो इस चुनाव को लेकर बेहद गंभीर है । ये चुनाव अपने आखिरी लम्हों तक जिंदा रहता।  ज्यादा से ज्यादा क्या होता प्रियंका चुनाव हार जाती । चुनाव तो इंदिरा जी भी हारी थी, अटल जी भी हारे थे लेकिन राजनीतिक करियर खत्म नहीं हुआ बल्कि संघर्ष के अगले पड़ाव की ओर अग्रसर हो चला । प्रियंका ने जोखिम नहीं लिया और जनता के बीच ये संदेश चला गया कि मोदी को हराना नामुमकिन है। बनारस से चुनाव लड़ने के मामले में प्रियंका खोदा पहाड और निकली चुहिया साबित हुई। उल्टे पीएम की खिलाफ  कमजोर प्रत्याशी उतारने वाले उनके बयान ने कांग्रेस की छवि यूपी में वोट कटवा पार्टी की बना दी ।  
पंडित नेहरू ने विदेशियों को सांप-सपेरों का खेल दिखा कर भारत की छवि सपेरों वाले देश की मजबूत की तो प्रियंका ने भी सपेरों से मन बहलाकर परिवार की इस परंपरा को आगे बढ़ाया । यूपी में  बच्चों से चौकीदार चोर के नारे लगवा कर प्रिंयका गांधी ने अपनी सस्ती सोच भी जाहिर कर दी औऱ जब छोटे-छोटे बच्चे गाली-गलौज पर उतर आये तो उनको शर्मिंदा भी होना पड़ा। उस पर प्रधानमंत्री पर ताबड़तोड़ निजी हमलों ने इस चुनाव में उनके स्वर्गीय पिता राजीव गांधी पर लगे  भष्ट्राचार के आरोपों को भी जिंदा कर दिया । 

इस चुनाव के चक्रव्यूह में प्रियंका बुरी तरह फंस गयी, ना तो वो  विरासत की गरिमा बचा सकी । ना परिवार की प्रतिष्ठा और ना ही अपनी पार्टी की विश्वसनीयता । मुहावरा है बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो खाक की । प्रियंका गांधी का सक्रिय राजनीति में प्रवेश कुछ ऐसा रहा । 


Tuesday, April 30, 2019

वंशवाद का खात्मा कर सकता है ये आम चुनाव

लोकतंत्र के आसाराम और नारायणसाई बेनकाब होने को हैं

राहुल गांधी अगर राष्ट्रीय स्तर पर वंशवाद के प्रतीक हैं तो अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, कुमार स्वामी, स्टालिन, चंद्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक, जगनमोहन रेड्डी जैसे नेता क्षेत्रीय स्तर पर परिवारवाद के पोषक । इसके बाद आप स्थानीय पर स्तर पर शोध करेंगे तो हजारों ऐसे परिवारों को  पायेंगे जो पॉवर और पैसे के लिए  लोकतंत्र का इस्तेमाल शातिर तरीके से कर रहे हैं। आजादी के बाद इस देश में सबसे बड़ी लड़ाई इसी परिवारवाद से, वंशवाद से लड़ी जा रही है।

अब सवाल ये है कि आखिर लोकतंत्र इस वंशवाद और परिवारवाद की चपेट में फंसा कैसे है? जाहिर है उम्मीदों और अपेक्षाओं के साथ जनता ने जिनती बार अपना प्रतिनिधि चुना उसमें से अधिकांशत: लोगों ने खुद को  सेवक की जगह भगवान मान लिया । जी हां! भगवान मान लिया और अपनी  झूठी खुदाई को बचाने के लिए  पद और प्रभाव का जमकर दुरूपयोग किया गया। लोकतंत्र के मंदिर में  इन पुजारियों ने अपने अहंकार के दीपक को जलाया । लोभ की वेदी सजाई , शक्ति का शंखनाद  किया, महत्वाकांक्षा का घंटा बजाया और इस शोर में राष्ट्र भक्ति प्रदर्शन बन गई, जिस मंदिर में सत्य, प्रेम और न्याय को प्रमाणित करना था वहां पर पथभ्रष्ट लोगों के लिए आरती गायी जाने लगी । लोकतंत्र के भक्तों को  वैसे ही ठगा गया जैसे आसाराम, राम-रहीम, और तमाम ठोंगी बाबाओं धर्म के नाम पर लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ किया।

सोचिए जिस कांग्रेस के महान नेताओं ने अपने त्याग से, बलिदान से भारत को गुलामी से छुटकारा दिलाया उन महान लोगों की पार्टी आजादी के बाद कैसे एक विशेष परिवार तक सिमट कर रह गयी । जाहिर है जब परिवार ने अपनी महत्वाकांक्षा को पोषित किया तो सबसे पहले बड़ी चालाकी से उन लोगों को हटाया जो उनके लिए चुनौती बन सकते थे। अवसरवादी और चाटुकार लोग वक्त के साथ इस परिवार की ताकत बनते चले गये और उसूलों और सिंद्धांतों के लिए कांग्रेस का झंडा लेकर चलने वाले अब इतिहास में भी नहीं दिखते । इतिहास में अगर कुछ दिखता है तो वो है इस परिवार के नाम पर यूनिवर्सिटी, कॉलेज, स्टेडियम, चौराहे, सड़क, इमारतें, स्टेशन औऱ हवाई अड्डे । नामदार बनने की अभिलाषा में इस परिवार ने लाखों महापुरुषों को मिटाने की कामयाब साजिश रची।

 आप अध्ययन करेंगे तो पायेंगे सत्रह साल तक पंडिंत नेहरू ने अपने जीते जी किसी को भी प्रधानमंत्री पद के आसपास फटकने नहीं दिया।  उसके बाद उनके चाटुकारों ने धीरे से उनकी बेटी इंदिरा को औऱ फिर उनके बेटे राजीव  को और उसके बाद उनकी बहू सोनिया गांधी को शक्तिमान बनाये रखा । इस दौरान सरदार पटेल , कामराज, वी पी सिंह, नरसिम्हा राव, सीताराम केसरी जैसे तमाम वो लोग  जिन्होंने ने  भी इनको चुनौती देने की कोशिश की उन्हें कांग्रेस के इतिहास से ही मिटा दिया गया। मौजूदा दौर के कांग्रेसी इन्हें खुलकर कांग्रेसी नेता  तक नहीं मानते । इनके साथ हुए अपमानों की कहानियों को  लोकतंत्र में गांधी-नेहरू परिवार से टकराने के अंजाम के तौर सुनाया जाता है।

आप देखिए मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह परिवार, सिंधिया परिवार, दिग्विजय सिंह परिवार , छत्तीसगढ़ में सिंहदेव परिवार, महाराष्ट्र में चव्हाण परिवार, राजस्थान में पायलट परिवार ऐसे सैकड़ों उदाहरण है जिन्होंने ने इस परिवार के आगे घुटने टेक दिये वो लोकतंत्र में अपने वंशवाद को लेकर स्थानीय स्तर पर शक्तिशाली बना हुआ है।

भारत में गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, बेरोजगारी, आपातकाल को लेकर इस परिवार के खिलाफ ऐतिहासिक लड़ाईयां लड़ी गयी लेकिन दुर्भाग्य कि जनता ने जिन पर भी भरोसा किया वो खुद मठाधीश बन गये। लोहिया के बलिदान को मुलायम सिंह यादव के पारिवारिक समाजवाद ने कलंकित कर दिया । जेपी के जनआंदोलन को जेल में सड़ रहे लालू यादव के परिवार ने बर्बाद कर दिया । दुर्भाग्य देखिए दक्षिण में कांग्रेस से लड़ने वाले  देवेगौड़ा परिवार, स्टालिन परिवार, चंद्रबाबू नायडू, उड़ीसा में पटनायक परिवार भी जनता को भूल कर अपने वंश को सींचने में लगे हैं ।  महाराष्ट्र में शरद पवार ने सोनिया के विदेश मूल के खिलाफ सबसे बड़ी लड़ाई छेड़ी लेकिन वो भी बेटी और भतीजे में जाकर फंस गये और बाकियों की तरह  भष्ट्र राजनीति का चेहरा बन कर रह गये । मायावती जैसी दलित की बेटी भी ताकत पाकर महारानी जैसा बर्ताव कर रही हैं और सबके सब मिलकर इस परिवार की महत्वाकांक्षा में सहयोगी बनने को बेकरार है।
  
लेकिन 2014 के बाद पहली बार इस परिवार को दिन में तारे नजर आ रहे है क्योंकि पाला इस बार ऐसे शख्स से पड़ा है जिसके ना तो आगे कोई है और ना पीछे। और उससे बड़ी बात इस शख्स को इस परिवार की हर शातिर चाल का जवाब उसी की भाषा में देना आता है । इस परिवार ने नरेंद्र मोदी को हत्यारा कहा, हिटलर कहा, मौत का सौदागर कहा, नीच कहा लेकिन जितनी बार हमला बोला परिवार का दांव उतना ही उल्टा पड़ा । भष्ट्राचार का आरोप मढ़ने के चक्कर में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अदालत के सामने नाक रगड़ रहे हैं । 2019 आते -आते आलम ये है कि  गांधी परिवार के साथ- साथ  इनके चमचे भी पनाह मांग रहे हैं । सोनिया गांधी  और राहुल गांधी  जमानत पर पर है । दामाद रोज कचहरी के चक्कर लगा रहे है । कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को उनकी असली नागरिकता को लेकर नोटिस गया है, पहली बार किसी ने इस परिवार से पूछा है कि बताओं किस देश के हो? जाहिर है  परिवार के खिलाफ लड़ाई निर्णायक दौर में पहुंच गयी है। लोकतंत्र के मंदिर में  आसाराम और नारायणसाई बना बैठा ये परिवार और इनके चेले सब बेनकाब होने को है।      

Wednesday, April 24, 2019

इतनी जिल्लत कांग्रेस ने कभी नहीं झेली

डिजिटल दौर में जनता जेब में सच लेकर घूम रही है 

मुंह पर विरोध, आमने-सामने जलील करना, नेताओं को आइना दिखाने का एक नया ट्रेंड इस बार के लोकसभा चुनावों में बहुत तेजी से उभर कर सामने आया  है । हाल ही में भोपाल संसदीय सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजिय सिंह को अपने ही कार्यक्रम में शर्मिंदगी झेलनी पड़ी जब उन्होंने मोदी पर हमला बोलने के लिए भीड़ में खड़े एक युवक को मंच पर बुला लिया । अब उस ग्रामीण युवक ने बिना डरे जिस तरह अपनी बात रखी उससे बाद दिग्विजय सिंह अपने ही लोगों के बीच लज्जित हो गये । पंद्रह लाख रूपये सवाल पर युवक ने कहां कि मेरे रुपये तभी वसूल हो गये जब प्रधाममंत्री ने पाकिस्तान पर  एयर स्ट्राइक कर दिया । इसके बाद दिग्विजय सिंह ने उस युवक से माइक छीन ली और एक समर्थक ने धक्के देकर उसे मंच से उतार दिया । इस घटना से एक बात साबित हो गई कि लोग जागरूक हो रहे है और नेताओं से बिना डरे अपने मन की बात कह रहे हैं।  

हाल ही में मुंबई में कांग्रेस प्रत्याशी फिल्म स्टार उर्मिला मातोंडकर खुली गाड़ी में रोड शो के जरिए अपने लिए वोट मांग रही थी तभी दादर स्टेशन के पास कुछ युवक जो ट्रेन से उतरे थे उन्होंने मोदी -मोदी के नारे लगाने शुरू कर दिये। इस बात को लेकर बवाल तो बहुत मचा लेकिन ये स्पष्ट हो गया कि भारत का मतदाता निर्भीक हो गया है।

कांग्रेस ने इस चुनाव अपना सबसे बड़ा दांव चला प्रियंका गांधी को चुनाव के मैदान में उतार कर । लेकिन उनका ये दांव भी इस नये ट्रेंड से से नहीं बच पाया । यूपी में रोड शो के दौरान मोदी समर्थकों के जयकारे सुनने को मजबूर होना पड़ा प्रियंका को ।

पुणे और बेंगलुरू में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जनता से बात करने के दौरान लोगों ने मोदी के मामले में ना केवल उन्हें दो टूक जबाव दिया बल्कि कार्यक्रम में भी  मोदी -मोदी के नारे गूंजने लगे।

हालही में एक न्यूज चैनल के कार्यक्रम में एसपी और कांग्रेस के नेताओं ने  मुसलमानों के मुद्दे पर बीजेपी को घेरने की कोशिश की लेकिन कार्यक्रम की महिला एंकर जो खुद एक मुसलमान थी  और शो  में मौजूद मुसलमानों ने इन आऱोपों को खुल कर खारिज कर दिया कि मोदी राज में मुसलमान डरा हुआ है । 

पूरे देश में इस तरह के सैकड़ों उदाहरण है इसके अलावा टिवट्रर और सोशल मीडिया आप खोल कर देखिए पब्लिक पूरी बेबाकी से पार्टियों को, उनके नेताओं के जवाब दे रही है और इस लड़ाई में बीजेपी बहुत मजबूत है । नाम के आगे चौकीदार लगाने के ट्रेंड ने चौकीदार चोर के विपक्ष के अभियान को पूरी तरह से फेल कर दिया है । 
गौर करने वाले बात ये हैं कि टीवी, मीडिया और डिजिटल इस दौर में जनता लोकतंत्र को लेकर निर्भीक हुई है और वो वोट की ताकत को ना केवल समझती है बल्कि उसे समझाने का दम भी रखती है । ये प्रमाण है कि भारत का लोकतंत्र आने वाले दिनों में और मजबूत होगा ।

दूसरा जनता की इस बेबाकी से नेता बहुत डरे हुए है इससे ये तय हो गया कि अब वो अपनी जनसभाओं में और संवाद कार्यक्रमों में झूठ बोलने की राजनीति से बचेंगे । डिजिटल दौर में जनता जेब में सच लेकर घूम रही है ।
तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि मुंह पर जनता के विरोध का सबसे बड़ा दंश झेल रही है कांग्रेस जबकि बेचारी ये कमजोर विपक्ष है । जबकि अमूमन होता ये है कि जनता से सबसे ज्यादा डर सरकार को लगना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है। इसका मतलब है कि लोगो को सरकार पर भरोसा है और भरोसा इस कदर है कि वो उसके विरोधियों को मुंह पर नकारने का दम भी रखती है । 


2019 आम चुनाओं  में नेताओं को सामने से खड़ा उन्हें आइना दिखाने का ये जो देशव्यापी चलन चल निकला है अगर इसका आंकलन करें तो मुझे फिलहाल यही समझ आ रहा कि मौजूदा सरकार और मजबूती से रीपीट होने वाली है । 


Monday, April 22, 2019

राहुल ने कांग्रेस की भी विश्वसनीयता गवां दी

सत्ता के लोभ में देश की सुरक्षा से खिलवाड़ तो नहीं! 

आखिकार सुप्रीम कोर्ट में माफी मांग कर राहुल ने जनता की अदालत में  अपने साथ -साथ अपनी पार्टी की विश्वसनीयता भी खो दी । सोचिए चुनाव के मौसम में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की जनता के सामने जो फजीहत होने वाली है उसका कितना नकारात्मक असर पड़ने वाला है कांग्रेस पार्टी के प्रदर्शन पर । राहुल गांधी ने अपने हलफ़नामे में लिखा है कि  "मेरा बयान सियासी प्रचार की गर्मा-गर्मी में दिया गया था. इसे मेरे विरोधियों ने ग़लत ढंग से पेश करके जान-बूझकर ऐसा जताया कि मैंने ये कहा हो कि अदालत ने कहा है कि चौकीदार चोर है. ऐसी सोच तो मेरी दूर-दूर तक नहीं थी, ये भी साफ़ है कि कोई भी अदालत ऐसा कुछ कभी नहीं कहेगी, इसलिए इस दुर्भाग्यपूर्ण संदर्भ जिसके लिए मैं खेद व्यक्त करता हूँ को ये न समझा जाए कि अदालत को दिया हुआ कोई निष्कर्ष या टिप्पणी है.." राफेल मामले में सियासी फायदा उठाने के राहुल के  मंसूबों पर ये तगड़ा झटका है  अब वो किसी मुंह से अपने मतदाताओं से बात करेंगे ।
इससे पहले राहुल फ्रांस के राष्ट्रपति एमानुएल मेक्रॉन के हवाले से राफेल के मामले में गलतबयानी कर  सारी दुनिया के सामने अपनी और पार्टी की खिल्ली उड़वा चुके हैं । राहुल ने संसद में खड़े होकर फ्रांसीसी राष्ट्रपति से मुलाकात का जिक्र करते हुए कहा था कि उन्होंने स्पष्ट किया कि राफेल खरीद मे कोई गोपनीयता का क्लाज नहीं था । उन्होंने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए ये भी कह दिया कि  फ्रांस के राष्ट्रपति ने उनसे कहा कि पूरे देश को डील की सच्चाई बता दो राहुल । लेकिन दो घंटे के अंदर ही खुद फ्रांस ने साफ कर दिया कि राहुल झूठ बोल रहे हैं । इस तरह उन्होंने विपक्ष के साथ -साथ भारतीय संसद की गरिमा को भी चोट पहुंचाई।
राफेल को लेकर राहुल गांधी हंसी के पात्र भी बन चुके हैं क्योंकि जितनी चुनावी सभा में उन्होंने इसे घोटाला बता कर रकम का जिक्र किया उतनी बार उन्होंने नयी नयी रकम बतायी । जाहिर है हवा में तीर चला रहे है वर्ना एक फिगर पर कायम रहते ।  
राफेल को लेकर राहुल जिस तरह से आक्रामक है उससे पहले जानकारों को ये  समझ में तो आता था  कि वो अपने परिवार पर लगे बोफोर्स के दाग को कम करना चाहते हैं । पर हर बार और हर मोर्चे पर उन्हें मुंह की खानी पड़ी है । सुप्रीम पर कोर्ट भले ही नये सिरे से दस्तावेजों को लेकर  राफेल मामले की सुनवाई कर रही हो लेकिन इससे पहले वो  सरकार को क्लीन चिट दे चुकी है । इतना कुछ होने के बाद भी  राहुल गांधी जिस तरह से राफेल को लेकर चौकीदार चोर है के नारे को बुलंद कर रहे है उससे ये आशंका दिन ब दिन गहराने लगी है कि राफेल  को लेकर कोई और साजिश तो नहीं ? । राफेल की नाकामी से सिर्फ तीन लोगों को सबसे बड़ा फायदा होगा एक चुनाव में कांग्रेस को और दूसरा  सुरक्षा के मामले में भारत के सबसे बड़े दुश्मन पाकिस्तान को । लेकिन पाकिस्तान की इतनी हैसियत नहीं कि वो भारत के चुनावों को प्रभावित कर सके । अब तीसरी आशंका  बचती है  चीन को लेकर  । चीन किसी कीमत पर नहीं चाहता कि राफेल के जरिए भारत की सैन्य ताकत मजबूत हो । ये एक आशंका है और  देश की सुरक्षा ऐजेंसियों को इस दिशा में भी जांच करने की जरूरत है आखिर भारत की सुरक्षा का मसला है ।      
रक्षा मामले में कांग्रेस पर एक कलंक पहले ही लगा हुआ है जब उन्होंने अटल जी सरकार को कारगिल शहीदों के कफन घोटाले के नाम पर  चुनावों में बदनाम किया था और  जार्ज फर्नांडिस जैसे फकीर आदमी पर आरोप लगाया । लेकिन जब तक सच्चाई सामने आती तब तक कांग्रेस ने  सियासी फायदा ले लिया था । उम्मीद है जनता राफेल को लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस के हमलों से इस बार सतर्क रहे । चुनाव के चक्कर में देश का नुकसान ना हो ये जनता कि जिम्मेदारी है । क्योंकि राहुल तो संसद , संसद के बाहर और दुनिया में अपनी साख गवां चुके हैं।
  

Saturday, April 20, 2019

दुनिया में धाक मगर मोदी विरोधियों में धकधक

प्रधानमंत्री की गरिमा के विरूद्ध साजिश!    
इस देश ने एक से बढ़कर एक प्रधानमंत्री हुए सबको को उनके हिस्से का सम्मान भी मिला और आलोचना भी । लेकिन क्या नरेंद्र मोदी को उनके हिस्से का  सम्मान मिला?  उलटे आलोचना की जगह वो पिछले पांच साल  एक खास वर्ग की नफरत और घृणा के शिकार बने रहे । इससे पहले जब तक वो गुजरात के मुख्यमंत्री रहे दिल्ली की मीडिया के एक बहुत बड़े वर्ग  ने मोदी को हमेशा विलेन की तरह पेश किया। इसके बाद जब वो प्रधानमंत्री बने एक ऐसा वर्ग सक्रिय हो गया जिसने बाकायदा उनके खिलाफ अभियान छेड़ दिया, इसके लिए कुछ गणमान्य  लोगों ने पुरस्कार लौटाये, कुछ विद्ववानों ने  टॉलरेंस और इनटॉलरेंस जैसे शब्द गढ़े ताकि दुनिया में मोदी शासन को बदनाम किया जा सके। कुछ एक घटनाओं के चलते मॉब लिंचिंग जैसा भयानक शब्द तैयार किया गया, जैसे इससे पहले इस देश में कभी भीड़ ने कुछ किया ही ना हो। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने  मौत का सौदागर, नीच और चौकीदार चोर तक कह दिया। इस  अभियान में देश का एक खास वर्ग जिसमें विपक्ष भी है, मीडिया भी है, बुद्धिजीवी भी हैं, कई एनजीओज हैं और फिर अलग- अलग विचारधारा के कई लोग शामिल हैं, हैरानी होती है ये लोग एक प्रधानमंत्री को लेकर इस बार तरह क्यों  आक्रामक हैं?  बल्कि ये कहें कि ये चुनिंदा तबका मोदी को हमेशा नीचा दिखाने पर आमदा रहा।      

अब इसके ठीक उलट हम दुनिया में मोदी की इमेज को देखे तो हाल-फिलहाल का भारत का कोई भी नेता उनके आसपास नहीं टिकता है । पिछले पांच साल की अपने विदेश नीति के दम पर मोदी ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया तो चीन पर दबाव बनाने में वो कामयाब रहे । चीन की जरा भी चलती तो रूस उन्हें अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान (Order of St Andrew the Apostle ) देता । दुनिया में मोदीनॉमिक्स का डंका ही था कि उन्हें अक्टूबर 2018 में  "सियोल शांति पुरस्कार" से नवाजा गया । सितंबर 2018 में यूएन ने  उन्हें "चैम्पियन ऑफ द अर्थ अवॉर्ड" से नवाजा । वहीं जनवरी 2019 में उन्हें प्रतिष्ठित " फिलिप कोटलर प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड" से नवाजा गया तो राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर उनकी जमकर खिल्ली उड़ायी।

मोदी विरोधी चुनावों में उनकी इमेज मुस्लिम विरोधी नेता के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहे हैं । भारत में मुसलमान मतदाताओं को मोदी के नाम पर डराया जा रहा है ।  लेकिन इसके उलट पिछले पांच सालों में  दुनिया के मुस्लिम देशों में मोदी सम्मानित करने की होड़ लगी रही । अप्रैल 2016 में सऊदी अरब ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान "किंग अब्दुल्ला अजीज शाह अवॉर्ड", जून 2016 में अफगानिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "अमीर अमानुल्लाह खान अवार्ड" से नवाजा । इजराइल के साथ मोदी ने अपने गर्मजोशी का डंका पीटा तो उसके धुर विरोधी फिलीस्तीन ने फरवरी 2018 में  'Grand Collar of the State of Palestine' से सम्मानित किया । हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात ने मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान "जायेद मेडल" दिया । मुस्लिम देशों में मोदी की धाक ही है कि पांच सालों में हज का कोटा 46 प्रतिशत बढ़ गया पाकिस्तान से ज्यादा भारत के मुसलमान अब हज यात्रा पर हर साल जा सकेंगे ।

पिछले पांच साल में दुनिया भर से मिले सम्मान मोदी की  दुनिया में जो धाक की कहानी बयां कर रहे हैं । लेकिन अब  आप खुद इसका आंकलन करें वो क्या देश के भीतर उन्हें उनके हिस्से का सम्मान मिला तो जवाब होगा नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई देवदूत नहीं कि उनसे और उनकी सरकार से गलतियां ना हुई हो। आलोचना होनी चाहिए और हो भी रही है ये अच्छी बात है लेकिन जिस तरह से चुनावों में  सार्वजनिक मंचों पर उनकी निजी जिंदगी को घसीटा जा रहा है, अपशब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है, तथ्यहीन आरोप लगाने का अभियान जारी है उससे ये बात पुख्ता होती है एक तबका है जो मोदी को नीचा दिखाने पर आमदा है और आलोचना की आड़ में उन्हें नीचा दिखाने की हद तक आमादा हो रहा है ।  मोदी विरोध में ऐसे लोगों ने साजिश के तहत भारत के प्रधानमंत्री की गरिमा को भी नुकसान पहुंचाया है ।          

Friday, April 19, 2019

माया-मुलायम और शर्मसार सियासत!

चुनाव के बहाने बेनकाब होते मसीहा

सत्ता का लोभ स्वाभिमान की बलि कैसे ले लेता है? 19 अप्रैल 2019 मैनपुरी की माया-मुलायम की रैली हमेशा इस बार की तस्दीक करेगी । लखनऊ गेस्ट हाउस कांड में बीजेपी नेता ब्रम्हदत्त द्विवेदी ना होते शायद माया की बोली पर मुलायम को ताली बजाने का मौका नहीं मिलता । यहां माया ने सिर्फ अपने स्वाभिमान का गला ही नहीं घोंटा बल्कि अपने उन हजारो-लाखों समर्थकों को भी नीचा दिखा दिया जो माया के सम्मान में जीने-मरने के लिए तैयार रहते थे । उससे भी बड़ा समझौता नारी की गरिमा के साथ हुआ है । माया ने मैनपुरी के मंच पर बूढ़े -लड़खड़ाते मुलायम को सहारा तो दे दिया लेकिन दलित सम्मान, नारी की गरिमा, कांशीराम के सपने और उसूलों की राजनीति को ठेंगा दिखा दिया । सब कुछ खत्म हो गया शेष कुछ बाकी है तो वो है स्वार्थ, सत्ता और बेशर्म सियासत। 

इससे पहले दिल्ली में अरविंद केजरीवाल में कभी टीवी के कैमरों पर जनता के सामने अपने बच्चों की कसम खाई थी कि कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाउंगा । सोचिए ये आदमी अपने बच्चों से कैसे नजर मिलाता होगा। कांग्रेस के भष्ट्राचार पर अन्ना के साथ मिलकर मुहिम छेड़ी थी और कांग्रेस की तत्कालीन मुख्यमंत्री  शीला दीक्षित को सबसे ज्यादा अपमानित किया था ।  ये शख्स कहां अन्ना हजारे के कंधे पर बैठ कर निकला था और अब शीला चरणों में लोट- लोट कर राजनीतिक दीक्षा की गुहार लगा रहा है।  सत्ता का भांग इस कदर  चढ़ा है कि आंखों में शर्म का पानी भी नहीं बचा । केजरीवाल का अपराध सिर्फ सियासी होता तो कोई बात नहीं थी दरअसल उन्होंने उन लोगों के साथ धोखा किया जो ईमानदारी की, शुचिता की, सत्य और पारदर्शिता की राजनीतिक को स्थापित करने के लिए अपना सबकुछ छोड़ कर आंदोलन औऱ रैलियों में कूद पड़े थे । सत्ता के लोभ में इस आदमी ने एक आंदोलन की हत्या कर दी है।

कल तक कांग्रेसी नेता रही  प्रियंका चतुर्वेदी ने आज बयान दिया कि वो बचपन से शिवसेना को प्यार करती हैं । इसका मतलब पिछले 10 साल वो कांग्रेस के लव जिहाद का शिकार हो गयी थी । प्रियंका को होश आते ही उन्होंने कहां कि कांग्रेस गुंडों की पार्टी है । प्रिंयका ने शिवसेना की सहयोगी पार्टी बीजेपी की नेता स्मृति ईरानी पर दो दिन पहले पैरोडी गाकर उन्हें जलील किया अब उन्हें उन्हीं साथ काम करना है।


जाहिर है ये सियासत है, फिलहाल यहां संघर्ष सुशासन के लिए नहीं सत्ता के लिए है, ये लोग भारत को  नहीं, खुद को बनाने निकले हैं । संविधान की आड़ में देश को लूटने, ठगने, धोखा देने निकले हैं  लेकिन लोगों को  निराश होने की जरूरत नहीं है लोकतंत्र ऐसे ही परिवक्व होता है मतदाता देर से ही सहीं  अब इन्हें समझने लगा है ज्यादा दिन नहीं चलेगा ठगों का महागठबंधन। 

Thursday, April 18, 2019

साध्वी प्रज्ञा से नहीं, हिंदुत्व और संघ से डरती है कांग्रेस

अपने ही बुने जाल में फंस गये दिग्गी राजा!

क्रेंद्र हो या प्रदेश, कांग्रेस का कार्यकाल हमेशा षडयंत्रों से भरा रहा है। शासन करने की मुगलों और अंग्रेजों की नीति कांगेस को हमेशा से सूट करती रही । इसीलिए आजादी के बाद से हिंदु बहुसंख्यक देश में कांग्रेस ने अपनी ताकत का इस्तेमाल हमेशा हिंदुओं को तोड़ने में लगाया बजाय सदभाव से भरे राष्ट्र को बनाने के ।  सत्ता समीकरण बनाने के चक्कर में  कांग्रेस ने धर्म, जाति, समुदाय, अमीर-गरीब ऊंच-नीच, आरक्षण हर पैंतरे का इस्तेमाल किया इसी कड़ी में  हिंदुत्व पर नकेल कसने की उसकी कोशिश भी जारी रही । लेकिन वो ये भूल गई कि दूसरों के लिए खोदा गड्ढा एक दिन उसके लिए खाई भी बन सकता है । वही हुआ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को कमजोर करने की साजिश के तहत हिंदू आतंकवाद को गढ़नेवाले दिग्गी राजा ने जिस प्यादे को चुना था अब वो प्यादा शतरंग के खेल की तरह वजीर बन कर उनके सामने खड़ा हो गया है । साध्वी प्रज्ञा के हाथों दिग्गी को मात मिलनी तय मानी जा रही है।

ये राजनीति है, पावर और पैसे का खेल है, इस खेल में नैतिकता और नियम कानून जैसे चीजें सिर्फ बहलाने के लिए होती है। पूरी दुनिया में युगों युगों  से, सदियों से राजनीति ऐसी ही रही है । मुसलमानों की तरह हिंदुत्व की विचारधारा भी विस्तारवादी रही होती मानचित्र में हिंदुकुश तक फैला भारत आधे कश्मीर तक नहीं सिमटा होता । लेकिन आरएसएस एक मात्र शक्तिशाली संस्था है जो 1925 से  हिंदुत्व की अलख में जगाये हुए है और तभी से कांग्रेस की आंखों में कांटे तरह चुभती रही क्योंकि उसे पता था कोई उसे सत्ता के अखाड़े में पटखनी दे सकता है सिर्फ संघ के स्वयंसेवक । यही वजह रही कि कांग्रेस ने ऊंच-नीच, जात-पात, अगड़े-पिछड़े, सवर्ण-दलित जैसी सामाजिक बुराई को हिंदुत्व के खिलाफ सुनियोजित तरीके से हवा दी ताकि हिंदू कभी एक ना होने पाये ।

आजादी के बाद सोमनाथ के मंदिर से अयोध्या और अब शबरीमला तक आते -आते कांग्रेस ने हजारों बार हिंदुओं का अपमान किया । महात्मा गांधी की हत्या की आड़ में संघ को बदनाम करने की तगड़ी कोशिश की गई । दंगों के नाम पर कभी मुसलमानों को भड़काया, कभी सिखों को, कभी दलितों को । ये बहुत बड़ी श्रृंखला है कि कैसे गौसेवक करपात्री महाराज और उनके समर्थकों पर संसद के सामने गोलियां चलवाई गई । बस्तर के महराजा प्रवीरचंद भंजदेव को कैसे उनके महल में घुस कर मारा गया ? आपातकाल में संघ के स्वयंसेवकों के साथ कैसा सलूक किया गया ?  पंडित दीनदयाल और श्यामाप्रसाद मुखर्जी की हत्या है या स्वाभाविक मौत ये जाहिर ही नहीं हो पाया । दुनिया को पता है आडवानी की सोमनाथ यात्रा को कैसे कुचला गया ।

लेकिन हिंदुत्व का दीप जब दावानल बन गया तब सबसे बड़ी साजिश रची गई और उसे नाम दिया गया हिंदू आतंकवाद का । ताकि प्रज्ञा और असीमानंद की आड़ में  संघ को बदनाम किया जा सके । भगवा आतंकवाद का हौवा कांग्रेस के वोट बैंक को सूट करता था  । मालेगांव ब्लास्ट में अगर कांग्रेस की नीयत साफ होती तो वो प्रज्ञा और असीमानंद की कार्रवाई को सिर्फ कार्रवाई और अपराध तक सीमित रखता  लेकिन जिस तरह दिग्विजय सिंह, चिदम्बरम और सुशील शिंदे ने सोनिया गांधी की शह पर हिंदू आतंकवाद के नारे को उछाला और सियासत में इस्तेमाल किया वो सिर्फ संघ के खिलाफ साजिश ही नहीं बल्कि  हिंदुत्व के खिलाफ घृणित कृत्य भी था । संघ से कांग्रेसी कितना डरते है इसका उदाहरण है कमलनाथ का मध्यप्रदेश के चुनावों के दौरान आया वीडियो टेप था जिसमें वो संघ के नाम पर मुसलमानों को डरा रहे थे और उसके बाद भोपाल  संघ कार्यालय से  उनका सुरक्षा हटाने का फैसला ।

अब कांग्रेस के नेता चिल्ला रहे हैं, उमर अबदुल्ला बेचैन है और मीडिया में बयान दे रहे है कि प्रज्ञा जमानत पर है उसे टिकट देकर बीजेपी ने अच्छा उदाहरण पेश नहीं किया । तो सुनिये राहुल गांधी  और सोनिया गांधी भी जमानत पर है और हिम्मत हो तो बोलिए ।  प्रज्ञा का मामला अब जनता की अदालत में है,  जाहिर है दिग्विजय सिंह और पूरी कांग्रेस अपने ही बुने जाल में फंसती मालूम पड़ रही है ।

Wednesday, April 17, 2019

सिद्धू ने सिद्ध कर दिया कि अवसरवादिता की राजनीति में वो सिद्धहस्त है

ठोको ताली गैंग लेकर इस बार मुसलमानों को डराने निकले हैं सिद्धू 

सिद्धू का हालिया बयान ये है कि "मुसलमानों एकजुट होकर मोदी को सुलटा दो" । आजम खान, अतीक अंसारी, मुख्तार अंसारी, शहाबुद्दीन, शकील अहमद, हामिद अंसारी, ताकिर अनवर, अहमद पटेल, उमर अबदुल्ला, मेहबूबा मुफ्ती और ओवैसी बंधु जैसे तमाम मुस्लिम नेता क्या कम पड़ गये थे जो सिद्धू भी मुसलमानों को डराने की इस होड़ में शामिल हो गये । विपक्ष हर कीमत में इस चुनाव को मोदी वर्सेज मुसलमान बनाने में लगा है और मुसलमानो को ये यकीन दिला रहा है कि वो एकजुट ना हुए तो मोदी आ जाएगा । पहले मुसलमानों को इस देश में आरएसएस के नाम पर डराया गया  जो आज भी कायम है । फिर राजनैतिक मंच पर जनसंघ और बीजेपी के नाम पर डराया गया. इस बार मोदी के नाम पर और इस डर को इतने सुनियोजित तरीके से पाला गया है कि मुसलमान भी इस डर से शायद कभी खुद को निकाल नहीं पाया । वो ये भी नहीं सोच पा रहा कि मोदी ने तो सिर्फ पांच साल केंद्र की सरकार चलाई और उसका क्या नुकसान हुआ और क्या फायदा? फायदा तो सिर्फ सिद्धू जैसे नेताओं का तय है जो कल बीजेपी में थे, आज कांग्रेस में और कल पता नहीं किसमें होंगे । 


मुसलमानों को सिद्दू की बात पर यकीन करने से पहले सिद्दू के पुराने भाषणों को सुनना चाहिए जब वो बीजेपी में थे । सिद्धू कोई बहुत विद्वान नहीं है, उनके पास कुछ रटे-रटाये जुमले हैं एक जमाने में जिन जुमलों को उन्होंने बीजेपी नेताओं की चाटुकारिता में  चिपकाया था अब वो उन्हीं जुमलों को कांग्रेस के नेताओं पर बिना किसी झिझक के चिपका रहे हैं। उनके पास जुमलों का इतना टोटा है कि यहीं जुमले वो क्रिकेट की कांमेट्री के दौरान इस्तेमाल करते थे । ना कोई सोच, ना कोई विजन बस उनका एक मंत्र है ठोको ताली ।  ताली ठुकवाने का उनका ये ये विशेष गुण पहली बार प्रकाश में तब आया जब उन्हे लाफ्टर चैलेंज नाम के एक कार्यक्रम में अवसर मिला । बस फिर क्या था जब उन्होंने देखा कि  क्रिकेट के छक्कों से ज्यादा  मनोरंजक कार्यक्रमों में ताली ठुकवाने में ज्यादा कमाई है उन्होंने टीवी को पकड़ लिया । फिर हर चौके-छक्कों पर ताली ठुकवाने के इस हुनर से सिद्धू एक स्पोर्ट्स चैनल में क्रिकेट कांमेटेटर बन गये । फिर ताली ठुकवाने के लिए ज्यादा बोली लगी तो वो दूसरे टीवी चैनल में पहुंच गये ।  एक कॉमेडी  शो में बकायदा सोफा लगवा कर सिद्धू को ताली ठुकवाने के लिए बैठाया गया । जहां हाल ही में वो ताली ठुकवाने के चक्कर में शो से हाथ धो बैठे ।

ताली ठुकवा ठुकवा कर पैसा कमाने तक तो बात ठीक थी लेकिन पावरगेम में भी इन्होंने ताली ठोकवाने के अपने हुनर को आजमाया और वहां भी कामयाब हो गये ।  ताली ठुकवा कर पैसा और पावर के खेल में सिद्धू मिसाल बन गये । पहले बीजेपी के लिए ताली बजवाते थे अब कांग्रेस के लिए । मुसलमानों को सोचना होगा पैसा और पावर के लिए ताली बजाने और बजवाने वाले इस शख्स पर भरोसा कर वो अपने कौम की किस्मत कैसे तय करेंगे?  


आखिर में एक बात जो ताकत  संविधान ने इस देश के हिंदूओं की दी है, सिखों को दी है ईसायों को दी है हर वर्ग और समुदाय के लोगों को दी ही है वही ताकत मुसलमानों के पास भी है । ये संविधान की ताकत है कि तमाम सांप्रदायिक साजिशों के बाद भी इस देश में मुसलमानों का कोई कभी भी बाल बांका ना कर पाया है ना कर पायेगा । जैसे बाकी लोगों ने भारत को गढ़ा है वैसा योगदान  मुसलमानों का भी है । उदाहरण है जिन मुसलमानों ने भारत पर यकीन किया, संविधान पर यकीन किया  उनकी औलादें अब्दुल कलाम बनकर पूजी जा रही है और सिद्दू जैसे नेताओं के बहकावे में आकर जिन्होंने  नफरत की फसलें तैयार की वो अफजल गुरू बन कर रह गये, उनको भारत के संविधान ने वैसे ही दंड दिया जैसे बाकी देशद्रोहियो को । मेरी प्रार्थना है कि मुसलमान इन चुनावों में  सिद्धू जैसे ठोको ताली गैंग पर नहीं  बल्कि स्वयं के विवेक से वोट करे और जिसे चाहे उसे वोट दे ताकि भारत और भारत का लोकतंत्र कमजोर ना होने पाये 



Tuesday, April 16, 2019

आजम का बयान अशिक्षा और अहंकार का प्रमाण है

बैन लगा कर आयोग ने भी जता दिया कि आजम से सावधान!  

द वायर की पत्रकार से इंटरव्यू करते हुए आजम खान ने बताया कि वो बच्चों को पढ़ाते है और ये भी दावा किया वो बेहतरीन शिक्षा देते हैं, यही नहीं वो वो यूनिवर्सिटी और कालेज के बच्चों को भी पढ़ाते है । उस इंटरव्यू  में उन्होंने दावा किया कि उनकी शिक्षा का असर है कि रामपुर की चौथी पीढ़ी के लोग उन्हें चुनाव में जिताने जा रहे हैं । जयाप्रदा के लिए चुनावी मंच से आजम ने जिस जबान में बात की है जाहिर है ये जबान उनके शिक्षण संस्थानों में भी गूंजती है अंदाजा लगाइये इस शख्स ने रामपुर की आबोहवा में और वहां के शिक्षण संस्थानों में कितना ज्यादा जहर घोल रखा होगा । 

ये सिर्फ एक वाक्या नहीं है आजम खान के पूरे राजनीतिक करियर को उठा कर देखिए ये व्यक्ति बोलता है तो सिहरन होती है । अपनी बदजुबानी से ये सैकड़ों बार  सुर्खियां बटोर चुके है और सबसे बड़ा कारण ये है कि इसके सिवा इन्हें कुछ आता भी नहीं है । आजम खान के भाषण और इंटरव्यूज को सुनें तो पता चलेगा कि इन्होंने हिंदु और मुसलमान के नाम हर होने वाली सियासत को हमेशा हवा दी है । अपनी कौम को खतरे में बता -बता कर आजम जैसे लोग सियासी रोटियां सेंक रहे हैं  और स्कूल -कॉलेज के नाम पर नफरत की नस्ल तैयार कर रहे हैं ।
आजम की भाषा में अशिक्षा और सांप्रदायिकता तो झलकती ही है साथ ही इस आदमी की बोली में अहंकार भी कूट-कूट कर भऱा हुआ है । विदिशा के हालिया प्रवास के दौरान आजम ने एक पत्रकार से कहां कि हम आपके वालिद की मय्यत में शामिल होने आये हैं अंदाजा लगाइये ये आदमी खुलेआम शिष्टाचार की सारी मर्यादाओं को सीना तान कर तोड़ रहा है और वजह है रामपुर । आजम कहते हैं रामपुर की एक एक गली में, एक एक घर में मेरी पैठ है ऐसा बोलकर वो अपनी शेखी नहीं बघारते बल्कि हर पल रामपुर के लोगों को दुनिया के सामने अपमानित कर रहे हैं और ये जताने की कोशिश कर रहे हैं कि मैंने इतना जहर घोल रखा है कि मेरी इजाजत के बगैर यहां कोई अमन और भाईचारे की सांस भी नहीं ले सकता । 

खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा रहनुमा बताने वाले आजम खान को लगता है हिंदुस्तान छोड़ने की उनकी धमकियों से, देश का गाली देने से, चंद घटिया लोगों की करतूतों का हवाला देकर भारत के अंदरूनी मसलों को यूएन में उछालने से  उनकी धाक मजबूत बन रही है लेकिन रामपुर के लोगों को, मुसलमानों को ये सोचना होगा कि जो आदमी अपने देश को दुनिया में बदनाम करने की साजिश रचे उसे क्या कहते हैं ? जो आदमी एक चुनाव जीतने के लिए महिलाओं की इज्जत को तार-तार करे उसे क्या कहते है ? ऱामपुर के लोगों को सोचना होगा वो अपने बच्चों को कितने खतरनाक आदमी का चारा बना रहे हैं? जिस शख्स की शख्सियत अहंकार का प्रतीक बन गई हो, जो जानबूझ कर सांप्रदायिकता को हवा दे रहा हो वो रामपुर के लिए, यूपी के लिए, भारत के लिए कितना ज्यादा नुकसानदेह है ।

चुनाव आयोग ने आजम की बोलती पर बैन लगा कर ये जता  दिया है ये आदमी सिर से पैर तक अशिक्षित है और इससे सावधान रहने की जरूरत है,अब इंसाफ करने की बारी रामपुर के लोगों की है ।              

Monday, April 15, 2019

भक्तों की बयार और प्यार से सराबोर है 2019 का आम चुनाव

भक्ति फैक्टर भटका सकता है बड़े -बड़ों का गणित 

कोलकाता के एक ब्रिज पर पढ़ा-लिखा एक दंपति नमो टी शर्ट पहने अकेले ही मोदी सरकार फिर एक बार के नारे लगाता दौड़ा चला जा रहा था पढ़े -लिखे लोग अगर ये करे तो उनकी बेचैनी को समझा जा सकता है कि वो मोदी पर किस कदर भरोसा लगाये बैठे है और वो पिछली सरकारों से कितने हताश । मोदी विरोधी ऐसे लोगों को भक्त कहते हैं लेकिन उन्हें ये जरूर सोचना होगा कि आखिर विपक्ष ऐसा क्यों नहीं कर सका। भक्ति फैक्टर विपक्ष के लिए  ऐसी चुनौती है जिसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है क्योंकि ये कहां कहां सक्रिय है कितनी तादाद में है? खुद बीजेपी वालों को भी नहीं पता । 
मुंबई में लोकल ट्रेनों में यात्रा करने वालों को पता है कई समूह लंबी यात्रा को आसान बनाने लिए मिलकर सुंदरकांड का पाठ करते है, कई समूह रामधुन गाते चलते है तो कई लोग भजन मिलकर गाते हैं  लेकिन इस बार लोकल ट्रेन में पहली बार देखा कि लोग मोदी सरकार को वापस लाने के लिए भजन गा रहे हैं और ये कोई राजनैतिक कार्यकर्ता नहीं है ये लोग नौकरीपेशा और कामकाजी लोग है । सुबह लोकल ट्रेन से निकलते है और शाम को लौटते है । हर बार रामधुन गाते थे इस बार मोदी धुन गा रहे हैं ताकि मोदी के लिए माहौल बनाया जा सके । 
गुड़गांव के एक पार्क का नजारा देखा मार्निग वॉक के लिए आने वाले लोग मोदी मोदी के नारे लगा कर माहौल बना रहे हैं । वो सारे लोग भी किसी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के लोग नहीं है ना ही पार्टी के कार्यकर्ता । वाकिंग के साथ साथ मोदी के लिए टॉकिंग भी कर ली । 
अब सुनिये एक और दिलचस्प वाक्या  मैं दफ्तर के टी ब्रेक में नीचे चाय की गुमटी पर चाय पी रहा था । चाय पर चर्चा के दौरान मेरे साथियों ने मोदी सरकार की खिंचाई करनी शुरू कर दी । उस इलाके चाय पीने वालों में ज्यादातर लोग मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते है ऐसे ही एक ग्रुप हमारे बगल में खड़ा था और उस ग्रुप से एक आदमी जिसको हम जानते भी नहीं थे वो आया और मेरे मित्र से बोला आप लोग कितना भी मोदी की विऱोध कर लो सरकार तो मोदी की ही बनेगी । 
लंबे समय से मैं राजनीति को समझ रहा हूं इस दौरान चापलूसों को पनपते देखा है । चाटुकारों को देखा है । चमचों की चांदी देखी है लेकिन इस बार ये लोग कुछ अलग है । इनको बदले में कुछ नहीं चाहिए । ये वर्ग अपने पैरों का खड़ा है लेकिन मोदी का जबरदस्त समर्थक है विपक्ष ने अगर ऐसे लोगों को भक्त की संज्ञा दी है तो बिल्कुल सही संज्ञा दी है क्योंकि ये मोदी काम से खुश ही नहीं है बल्कि इनकों लगता है मोदी नहीं तो मुश्किल हो जाएगी जिंदगी । 
हैरान कर देने वाला एक और वाक्या मेरे साथ हुआ मेरी मुलाकात अनायास गौरव प्रधान नाम के एक शख्स से हुई उसने खुद को एनआरआई बताया और वो शख्स शहर शहर घूम कर लोगों को जागरूक कर रहा है लोगों से मिल रहा है और लोगों को बता रहा है क्यों मोदी सरकार को लाना जरूरी है । उसका कहना है मोदी के कारण विदेश में हमारी इज्जत बढ़ गई है लोग देश का नाम बड़ी इज्जत से लेते हैं ।  उस शख्स ने मोदी विरोधी हर बात का जवाब देने के लिए तगड़ी  रिसर्च की हुई है। वो शख्स इस काम के लिए बाकायदा हाल किराये पर ले रहा है उससे मिलने दर्जनों लोग जमा होते हैं उनके बीच बातचीत होती और फिर सब से  मोदी सरकार के लिए माहौल बनाने की अपील की जाती है । 
कई  मां-बाप ऐसे मिले जो अपने बच्चों को मोदी सरकार के समर्थन में नारे रटवा रहे हैं और उन वीडियोज को सोशल मीडिया पर डाउनलोड किया जा रहा है। ये सब फैब्रिकेटेड बिल्कुल नहीं है ये सब मोदी भक्ति का खुल्लम-खुल्ला प्रदर्शन कर है । 
दो हजार चौदह के चुनाव में मोदी के समर्थन में ऐसा बिल्कुल नहीं था । इस बार मोदी के प्रचार की बहुत बड़ी कमान इस तरह के भक्तों ने संभाल रखी है । इन भक्तों में कोई कामकाजी महिला है तो कोई घरेलू। कोई नौकरीपेशा शख्स है तो कोई कारोबारी । कोई शिक्षक है तो कोई चिकित्सक,कोई वकील। मेरे अनुभव में आये ज्यादातर मध्यवर्गीय है और मैं बार बार ये कहने की कोशिश कर रहा हूं कि ये भाजपा के कार्यकर्ता नहीं है बदले में इनकों कुछ नहीं चाहिए लेकिन डरे हुए है मोदी नहीं आये तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी ।
मुश्किल के बारे में पूछने जाओ तो कभी ये राष्ट्रीय सुरक्षा की बात करते हैं तो कभी आतंकियों की बात करते हैं तो कभी कट्टरपंथी सोच के लोगों को बारे में बता कर सिहर जाते हैं देश के सम्मान और ताकत के लिए इन भक्तों को हाल-फिलहाल की राजनीति में मोदी से बेहतर कोई नहीं लगता । भारत की राजनीति में नेता भक्ति की ऐसी बयार दशकों के बाद लौटी है जाहिर है असर तो दिखाएगी ही । कितना!  ये तो 23 मई को ही पता चलेगा ।