Wednesday, June 22, 2016

सब ठीक है लेकिन ( पार्ट -6)


सलीम खान की माफी से सब ठीक कैसे हो सकता है?
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कहते है सिनेमा समाज का दर्पण होता है और सिनेमा के सितारे उसे परदे पर जीते है  और ऐसा करते-करते कभी -कभी वो समाज के उस दोहरे मापदंड की सीमाओं को भूल जाते हैं । शायद सलमान खान ने भी यही कर दिया । जी हां,  मैंने सुना है, आप भी अगर खुद से सच बोलेंगे तो यकीन मानिए आपने भी सुना होगा और इसे पढ़नेवाले और ना पढ़नेवाले ना जाने कितने लोगों ने बोला भी होगा कि यार! आज तो रेप हो गया, वैसे ही जैसे एक इंटरव्यू में अपनी आने वाली फिल्म-सुल्तान को लेकर सलमान ने कहा "जब मैं शूटिंग के बाद रिंग से बाहर निकलता था तो बलात्कार की शिकार एक महिला की तरह महसूस करता था, मैं सीधा नहीं चल पाता था" शायद सलमान ने आपसी बोलचाल में ना जाने ऐसा कितनी बार बोला होगा और इसी लगी में वो ये बात मीडिया में बोल गये और फिर क्या था मच गया हंगामा  ।  इस मुद्दे पर जहां सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना  हो रही है वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी सलमान ख़ान को नोटिस भेजकर सात दिन में जवाब दाख़िल करने को कहा है। 
जब मैं ऐसा लिख रहा हूं तो यकीन मानिए मैं कोई सलमान के प्रति सहानुभूति नहीं जता रहा । बल्कि मेरा तो ये मानना है कि वो एक सफल एंटरटेनर है इससे ज्यादा कुछ नहीं । जिस तरह का उनका जीवन रहा है उससे मैं उनको यूथ आइकन भी नहीं मानता  और वो आदमी आइकन हो भी  कैसे सकता है जिसके गैरजिम्मेदाराना  बयान के चलते उनके पिता को माफी मांगनी पड़ी होए  ये कहना पड़ा हो कि बेटे से गलती हो गई । 

हो सकता है कि एक बाप की माफी ने सारे पाप सेटल कर दिया हों , हो सकता है  सब ठीक हो गया हो । लेकिन फिर भी मेरा मानना है कि एक माफी  सबकुछ  ठीक कैसे हो सकता हैए जब बड़े- बड़े कॉरपोरेट हाउसेज मे,  बड़े- बड़े मीडिया हाउसेज में, बड़े -बड़े   वाइस प्रेसीडेंट, सीईओं और तमाम बॉसेज की बातचीत अंग्रेजी के"एफ" अक्षऱ से  शुरू होनेवाले शब्द के बिना पूरी नहीं होती । पढ़ी- लिखी अंग्रेजी बोलनेवाली महिलाओं में भी इसका चलन खूब है ।  

सलीम खान के माफी मांगने से सब ठीक कैसे हो सकता है जब इस देश के गली .मोहल्लों से लेकर सरकारी दफ्तरों में,  मवाली टाइप के लोगों से लेकर तथाकथित  संभ्रांत वर्ग के लोगों तक,    गुस्से और हंसी मजाक तक में लोग मां-बहन की गालियों का इस्तेमाल सहायक क्रिया के तौर पर करते हों । 

सलीम खान के माफी मांगने से सब ठीक कैसे हो सकता है जब इस देश के बुध्दिजीवियों में ही दो भाषा का चलन हो । एक संसदीय भाषा का और एक असंसदीय भाषा का । संसद में अगर  किसी नेता ने अंससदीय भाषा का इस्तेमाल कर लिया तो उसे रिकॉर्ड से हटा दिया जाता है,  लेकिन एक अभिनेता ने असंसदीय भाषा को इस्तेमाल किया  दिया तो उसे रिकॉर्ड की तरह मीडिया ने बजा दिया    और बना दिया राष्ट्रीय मुद्दा । 

जिस देश में, जिस समाज में लोग ऑन द रिकॉर्ड कुछ बोलते हो और ऑफ द रिकॉर्ड कुछ,  वहां आप यकीन के साथ कैसे कह सकते हैं कि सब ठीक है । 
सलमान के साथ- साथ अपनी रोजमर्रा की बातचीत पर भी जरा गौर करिएगा और फिर सोचिएगा क्या सब ठीक है? 

Saturday, June 18, 2016

सब ठीक है लेकिन ...( पार्ट -5)

क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं
तुझ में शोले भी हैं बस अश्कफ़िशानी ही नहीं
तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं
अपनी तारीख़ का उनवान बदलना है तुझे
कैफी आजमी की लिखी इन  पंक्तियों  में बहुत असर है । फ्लाइंग कैडेट्स भावना कांत, अवनी चतुर्वेदी और मोहना सिंह ने शनिवार को इंडियन एयरफोर्स में इतिहास रच दिया। एयरफोर्स में कमीशन मिलने के साथ ये ऐसी पहली वुमन पायलट्स बन गई हैं, जो फाइटर जेट्स उड़ाएंगी। शनिवार सुबह हैदराबाद के हकीमपेट में इनकी पासिंग आउट परेड हुई। इन वुमन फाइटर पायलट्स को कर्नाटक के बिदर में स्टेज-3 की ट्रेनिंग दी जाएगी। वहां इन्हें 6 महीने तक एडवांस्ड जेट ट्रेनर हॉक उड़ाना सिखाया जाएगा।  इसके बाद वे सुपरसोनिक वॉरप्लेन्स उड़ाएंगी । यानी की खेल, विज्ञान, राजनीति , अंतरिक्ष, एवरेस्ट,  उद्योग-कारोबार, सिनेमा, लगभग हर जगह भारत की बेटियों  ने अपना लोहा मनवा लिया है । जिस बेटी ने हिम्मत दिखाई जिसने हौंसला दिखाई उसने आसमान को झुका दिया ।
सब ठीक है लेकिन क्यों कई समाज में बेटियों को पैदा होने से पहले मार दिया जाता है?
सब ठीक है लेकिन क्यों कई परिवारों  में बेटियों के जन्म पर मातम जैसा माहौल हो जाता है?
सब ठीक है लेकिन क्यों कई इलाकों में बेटियां स्कूल नहीं जा पाती ?
सब ठीक है लेकिन क्यों कई जगहों पर बेटियां जब तक घर नहीं आ जाती मां-बाप की जान हलक में अटकी रहती है?
सब ठीक है लेकिन कई घरों में रसोई गैस के सिलेंडर और केरोसिन बेटियों और बहुओं में फर्क कैसे कर लेते हैं ?
सब ठीक है लेकिन हम गालियों में भी उनकों क्यों नहीं बख्शते?
सब ठीक है लेकिन ...इस लेकिन ने कैफी साहब का भी चैन छीन लिया और इसीलिए उन्हें कहना पड़ा
गोशे-गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिये
फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिये
क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिये
ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिये
रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे

Friday, June 17, 2016

सब ठीक है लेकिन .. पार्ट -4

एक बार अलबर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि आय कर को समझना दुनिया में सबसे कठिन  है । भारत में  जो सबसे ज्यादा कमाई करते है वो उनके पास आयकर चुराने के हजारों तरीके है । और जो वेतन भोगी है वो  टैक्स चुकाने से बच नहीं सकते। 125 करोड़ लोगों के देश में लगभग सिर्फ 5 करोड़ लोग टैक्स देते है । और एक अध्ययन के मुताबिक इतनी तादाद में लोग  सीधे- सीधे इतना ही टैक्स चुरा लेते है । अब भारत के प्रधानमंत्री मोदी की नजर उन पांच करोड़ लोगों पर है । शुक्रवार को आयकर अधिकारियों के एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने आह्वान किया भारत में करदाताओं की संख्या बढ़ाकर 10 करोड़ की जाय । आप सब जानते है कारोबारी, वकील, ठेकेदार , नेता ,डॉक्टर, सीए, कोचिंग शिक्षक जैसे संभ्रात पेशवर लोग आयकर विभाग को चकमा देने में कामयाब हो जाते हैं । और जानिए इस देश में करोड़ों लोगों ऐसे है जिनके लिए लहसुन और प्याज खाना पाप लेकिन रिश्वत खाने में, कर चुराने में कोई पाप नहीं । लेकिन मोदी की मान्यता है कि देश में ज़्यादातर लोग ईमानदार हैं, वे खुद ही टैक्स का भुगतान कर देंगे.। और उसके लिए उन्होंने मंत्र भी दिया है कैसे जवाबदेही सुनिश्चित की जाय । कैसे सत्यनिष्ठा को स्थापित किया जाये । सब ठीक है लेकिन इतने सालों में सरकार करदाओं को ये विश्वास नहीं दिला सकी उनके पैसे का सदुउपयोग होगा ।
सब ठीक है लेकिन आज भी इस देश में सबको  मुफ्त औऱ अच्छी शिक्षा का कोई इंतजाम नहीं है ।
सब ठीक है लेकिन आज भी इस देश में सबको मुफ्त औऱ अच्छी स्वास्थ्य सुविधा का कोई इंतजाम नहीं है ।
सब ठीक है लेकिन आज भी इस देश में सबको साफ पीने का पानी मिल पाता ।
सब ठीक है लेकिन सड़क , बिजली, रोजगार , निर्माण कार्यों औऱ सामाजिक कल्याण जैसे कार्यक्रमों के नाम पर नेता औऱ अधिकारी बेखौफ लूटते हैं ।
सब ठीक है लेकिन जब तक आप कर दाताओं को ये यकीन नहीं दिलाएंगे उनके पैसे का इस्तेमाल सही जगह हो रहा है आप करदाताओं की संख्या नहीं बढ़ा सकते प्रधानमंत्री जी । पांच करोड़ टैक्स पेयर के मत्थे 125 करोड़ लोगों की बात करने वाले प्रधानमंत्री जी कम से कम इस देश के करदाताओं को उनके हिस्से का सम्मान ही दिला दीजिए ।    

Monday, June 13, 2016

सब ठीक है लेकिन ..पार्ट -3

 #UDTA PUNJAB # UDTA CINEMA # UDTA KASHYAP
महान फिल्मकार सत्यजीत रे ने कहा था कि सिनेमा का सबसे असरदार गुण ये है कि वो मानवमन की सूक्ष्मतम बातों को  ग्रहण कर उसे उसी तरीके से प्रस्तुत भी कर देता है । लगता है फिल्म अनुराग कश्यप की फिल्म उड़ता पंजाब  नशे की मानसिकता को इतने असरदार तरीके से प्रस्तुत कर रही है कि जिसे देखने के बाद सेंसर बोर्ड के सर्वेसर्वा पहलाज निहलानी के सिर पर अपने पद का नशा हो गया है और दुनिया को नशे से बचाने के लिए उन्होंने 89 कट का फरमान जारी कर दिया और कह दिया कि नशा कितना भी हो फिल्म के शीर्षक में पंजाब नहीं उड़ेगा ।  उड़ता पंजाब से पंजाब हटाओ । बांबे हाईकोर्ट के आदेश के बाद पहलाज निहलानी  का नशा उतर गया होगा । क्योकि अदालत ने कहा कि  ''सीबीएफ़सी को क़ानून के मुताबिक फ़िल्मों को सेंसर करने का अधिकार नहीं है क्योंकि सेंसर शब्द सिनेमाटोग्राफ़ अधिनियम में शामिल नहीं किया गया है.'' हाईकोर्ट ने कहा कि सेंसर बोर्ड को किसी भी सीन को काटने या बदलने का अधिकार तभी है जब वो संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार हो। अब सब ठीक है फिल्म एक कट के साथ 17 जून को उड़ता पंजाब के नाम से ही रीलीज होगी ।
सब ठीक है लेकिन  ये सवाल अनुराग कश्यप से पूछना तो बनता है कि अभिव्यक्ति की आजादी के  नशे में उनका  भारत की तुलना उत्तर कोरिया से करना कितना जायज था ?
सब ठीक है लेकिन अपने रसूख पर हमला होते देख पहलाज निहलानी का खुद को सबसे बड़ा चमचा ठहराना कितना सही था ?
सब ठीक है लेकिन उड़ता पंजाब में वाकई क्या  कुछ नशा है? जो फैसला राकेट की रफ्तार से आया और फिल्म के रीलीज की सारी रूकावटे खत्म हो गई !
 सब ठीक है लेकिन मै और मेरे देश के लोग जानना चाहते है बलात्कार के मामलों में , भष्ट्राचार के मामलों में,  ( लिस्ट बहुत लंबी है ) कास्टिंग काउच के मामलों में , सलमान खान जैसे सितारों के सड़क हादसे के मामले में , काले हिरण शिकार के मामले में , फरदीन खान जैसे सितारों के ड्ग्स लेने के मामलों में, गोविंदा जैसे लोगों के चांटा मारने के मामले में , फिल्मी सितारों के आर्थिक अपराधों के मामलों में अदालतों में फैसले इतनी फुर्ती से क्यों नहीं आते ?
सब ठीक है लेकिन तब फिल्म इंडस्ट्री के  एकजुट होकर  न्याय मांगने का नारा क्यों ठंडा पड़ जाता है ?
सब ठीक है लेकिन कोई फिल्मकार , फैंटम बनकर "उड़ता सिनेमा" भी बना कर दिखाए ,ताकि  महान सत्यजीत रे की उक्ति के अनुसार आखिर वर्तमान सिनेमाजगत की मानसिकता स्क्रीन पर भी स्पष्ट हो ।    

Sunday, June 12, 2016

सब ठीक है लेकिन ...( पार्ट -2)

गांधीजी के वर्धा आश्रम में उनका एक दर्शन बोर्ड पर लिखा है जिसका शीर्षक है "पगला दौड़" जिसमें उन्होंने बताया है कि हर व्यक्ति पैसा कमाने की रेस में लगा है और जिसका कोई अंत नहीं है । और नतीजा ये है कि हर किसी के जीवन का उद्देश्य अच्छा इंसान बनना नहीं बल्कि धनवान बनना रह गया है । जी हां आप अपने घऱ, मोहल्ले, आसपास हर जगह नजर दौड़ाकर देख  लीजिए हर शख्स पैसा कमाने की जुगत में लगा है । लेकिन फिर भी हमारे  देश का नाम विकासशील देशों की सूची से हटा दिया गया क्योंकि यहां प्रति व्यक्ति आय 1586 डॉलर प्रति वर्ष रह गई है । और भारत के साथ निम्न मध्यआय़वाले देशों की सूची में पाकिस्तान, यमन, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देश शामिल है ।
अब आप हैरान होंगे कि ज़ांबिया (1715 डॉलर), वियतनाम (2015 डॉलर), सूडान (2081 डॉलर) और भूटान (2569 डॉलर) जैसे देश भारत से आगे हैं. श्रीलंका (3635 डॉलर) में प्रति व्यक्ति आय भारत से दोगुनी है। हैरानी का सिलसिला और आगे बढ़ाते है इस सूची में शीर्ष स्थानों पर यूरोप के छोटे देश शामिल हैं. इसमें मोनाको (187650 डॉलर), लिचटेंस्टाइन (157040 डॉलर) और लग्ज़मबर्ग (116560 डॉलर) काफ़ी अमीर देश हैं. जबकि सिंगापुर (55910 डॉलर) और संयुक्त राज्य अमरीका (54,306 डॉलर) उच्च आय वाले देशों में शामिल हैं।
जरा सोचकर देखिए भारत में सर्दी ,गर्मी और बरसात तीनों मौसम है । भारत में नदियों की, तालाबों की, झरनों और झीलों कभी कोई कमी कभी नहीं रही ।रेगिस्तान , जंगल , पर्वत, पहाड़, समुद्र इसकी शोभा है । भारत प्राकृतिक संपदा से भरा-पूरा देश है । हजारों जातियां, सैकड़ों भाषाएं , और अनंत संस्कृतियों  की विविधता समाये सवा अरब लोग रहते हैं ।  इतने तीज- त्यौहार है कि चाह कर भी पैसा रूक नहीं सकता उसे बाजार में आना ही आना है । ये देश युवाओं का है ।  भारत के पास उसके नागरिकों के मौलिक अधिकारों की हिफाजत के लिए संविधान है ।  भारत में मजबूत अर्थव्यवस्था बनने के सारे तत्व कुदरती तौर पर विद्यमान है । उस पर दुनिया भर के तमाम तरह के टैक्स के बोझ तले दबा भारतीय । यहां सब ठीक है लेकिन  खुद में खुद को झांककर देखता हूं तो  गड़बड़ी मुझमें हैं । क्योंकि अपना काम निकालने के लिए रिश्वत मैं देता हूं । दफ्तर में बॉस की गलत बात पर भी सिर मैं  हिलाता हूं । बदतमीजियों को सहना सीख लिया है मैंने ।  
जी हां इस देश में सब ठीक है लेकिन सदभाव नहीं है ।
सब ठीक है लेकिन व्यक्तियों के लिए सम्मान नहीं है ।
सब ठीक है लेकिन अतिथि को भगवान मानने वाले देश में अजनबियों को ठगनेवाले ज्यादा है ।
 सब ठीक है लेकिन सड़कें हर साल उखड़ती और बनती है ।
सब ठीक है लेकिन बिजली जब चाहे तब चली जाती है।
सब ठीक है लेकिन हजारों टन आलू, प्याज, टमाटर सड़कों पर फेंका जाता है।
सब ठीक है लेकिन नकली दूध, नकली फल, नकली सब्जियां, नकली दवा, मिलावटी सामान हमारी जिंदगी की हिस्सा है ।
सब ठीक है लेकिन हमारे घर के नीचे कचरे का ढेर है ।
सब ठीक है लेकिन नदियों में हम अपनी नाली और फैक्ट्री का पानी छोड़ते है ।
सब ठीक है लेकिन सरकारी स्कूल, सरकारी दफ्तर, ट्रेन, बस को मौका मिलने पर हम आग में झोंकने से नहीं चूकते ।
सब ठीक है लेकिन हम अपने बुजर्गों को बोझ समझते हैं
सब ठीक है लेकिन महिलाओं पर फब्तियां कसने से बाज नहीं आते
सब ठीक है लेकिन ये जान लीजिए हम इंसान ठीक नहीं है । क्योंकि हमारे स्कूलों में, घरों में अब ये नहीं सिखाया जाता । और यकीन मानिए सरकार से ज़्यादा समाज में सुधार की ज़रूरत है. इसी से देश की आमदनी बढ़ती है और प्रति व्यक्ति आय में  बढ़त होती है। सरकार को कोसने के चक्कर में हम सबसे बड़े कसूरवार बन गये है ।  

Saturday, June 11, 2016

सब ठीक है लेकिन ..

संविधान बनाने के बाद डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने कहा था हमने इस पवित्र ग्रंथ में वो सब बाते समाहित की है जिसमें मानव कल्याण की भावना निहित है। लेकिन ये सब बातें तब तक बेमानी रहेंगी जब तक  इसे अमल में लाने के लिए जिम्मेदार लोग और जिनको इस पर अमल करना है उनकी नीयत में खोट रहेगी । 70 साल की आजादी में अम्बेडकर की ये आशंका हर दिन मजबूत हुई है  और इस दौरान ऐसा कोई नेतृत्व भारतीय जनमानस में स्थापित नहीं हो सका जिसने उच्चतम नैतिक मूल्यों को आंदोलन बनाया हो । इसका ये मतलब कतई नहीं है कि इस देश में उच्चतम नैतिक आदर्शों के लोग नहीं हुए , नेता नहीं हुये लेकिन वो राजनीति के अखाड़े में भष्ट्राचार, गरीबी, शोषण और महंगाई को ही हथियार बना कर लड़ते रहे, सपने दिखा -दिखा कर  सरकारें बनाते रहे और गिराते रहे । कितनी पार्टियां आई और गई, कितनी सरकारें बनी और बिगड़ीं  लेकिन समस्या जस की तस रही और आलम ये है कि सबसे बड़े लोकतंत्र का ढिंढोरा पीटनेवाला देश राजनीतिक पार्टियों का  अब तक  खिलौना ही साबित हुआ । 
आजादी के बाद का इतिहास उठा कर देख लीजिए चंद नेताओं की महत्वाकांक्षा में देश बंट गया / करोड़ों लोगों बेघर हो गये लाखों लोग मारे गये । एक व्यक्ति की चूक के चलते संयुक्तराष्ट्र में हमने अपना दुश्मन पाल लिया । कश्मीर का घाव है कि भरने का नाम नहीं ले रहा । पड़ौसी मुल्क ने हमारी जमीन हथिया ली तो हमने बंजर कह कर  वोटरों का मुंह बंद कर दिया । हम सुधरे नहीं . हम चेते नहीं । उनके बाद वारिस को  जनता से सहानुभूति से लादा तो उन्होंने  अदालत को ही ठुकरा दिया  । लोकतत्र का गला घोंट दिया । फिर  जिन लोगों ने लोकतंत्र बचाने के नाम पर लड़ाई लड़ी, सत्ता की मलाई चाटने के चक्कर में वो आपस में ही भिड़ गये । अपना लक्ष्य भूल गये और जनता को ठग लिया । क्या करती भगवान को मानने वाले  देश की जनता ने उसे ही अपना भाग्यविधाता मान लिया जिसने उनके अधिकारों को छीना था। काल के क्रूर चक्र ने वो भाग्यविधाता छीना तो जैसा कि फर्ज था देशवासियों का उसके वारिस को अपना सब कुछ सौंप देने का , सो सौंप दिया ।21वीं सदी का सपना दिखानेवाले उस महानायक ने  शाहबानों के जरिये  गरीब अल्पसंख्यक महिलाओं के लड़ने की ताकत को ही कुचल दिया । हिंदू और मुसलमान के बीच की  खाई को  कांटों से भर दिया । बोफोर्स का डर दिखा कर , एक राजा ने अपनी फकीरी की दुहाई देकर इस  देश को आरक्षण की आग में झोंक दिया । फिर तो वोट के नाम पर हिंदू बंटे, मुसलमान बंटे । जातिया बंटी । गरीब बंटे अमीर बंटे । दलित औऱ महादलित तक बंट गये । औऱ इसके नीचे अभी ना जाने कितना बंटना बाकी है । और सब होता रहा सत्ता के लिए । भगवान भी नहीं बचे । मंदिर के नाम पर सरकार बन गई । लेकिन मंदिर नहीं बना वैसे ही जैसे गरीबी नहीं हटी । वैसे ही जैसे भष्ट्राचार नहीं मिटा । वैसे ही जैसे मंहगाई नहीं रूकी । दिल्ली में तो गजब हो गया एक आम आदमी ने । वाकई एक मामूली से आदमी ने  लोकपाल का सपना दिखा कर  लगभग सारी की सारी सीटें जीत ली औऱ सरकार बना ली । लेकिन आज वो आम आदमी लोकपाल की बात भी नहीं करता । उधर केंद्र में  विकास के नाम पर, कालेधन की वापसी के नाम पर, सत्ता से वंशवाद मिटाने के नाम पर एकदम नई सरकार बनी है । ये सरकार आजाद भारत की सबसे ज्यादा उम्मीदोंवाली सरकार मानी जारी रही है । इस सरकार ने दो साल पूरे कर लिए है, और दो साल में  उपलब्धियों की बहुत लंबी लिस्ट भी प्रचारित है । 
सब ठीक है लेकिन जिन भष्ट्राचारों का जिक्र कर आपने सत्ता पाई उस पर काबू पाने में  पर इतनी देरी क्यों ?
सब ठीक है लेकिन वाड्रा की संपत्ति की जांच पर कोई कुछ क्यों नहीं बोलता? 
सब ठीक है लेकिन कालेधन पर ये चुप्पी क्यों है ?  
सब ठीक है लेकिन विजय माल्या हजारों करोड़ों का चूना लगा कर कैसे फरार हो गये ?
सब ठीक है लेकिन महंगाई क्यों नहीं रुकती ? दाल बहुत महंगी है साहब 
सब ठीक है लेकिन देश दफ्तरों में 500 रूपये से शुरू होने वाली नुचाई क्यों नहीं रूकी? 
सब ठीक है लेकिन ट्रेन में रिर्जेशन अब भी क्यों नहीं मिलता , क्यों नहीं मिलता दलालों से छुटकारा?
सब ठीक है लेकिन सरकारी अस्पतालों में स्वीपरों के मत्थे मरीजों कि जिंदगी क्यों हैं? 
सब ठीक है लेकिन फर्जी लोगों के टॉपर बनने का सिलसिला क्यों नहीं रूका?
सब ठीक है लेकिन नकली डॉक्टर, नकली इंजीनियर, नकली अध्यापकों की मौज क्यों नहीं रूकी? 
सब ठीक है लेकिन खाकी वर्दीवाले अब भी गुंडे क्यों लगते हैं ?  
सब ठीक है लेकिन कल तक फटेहाल घूमनेवाले अचानक कोठियों के मालिक कैसे बन गये?
सब ठीक है लेकिन प्रधानसेवक के मातहत काम करनेवाले  नेता, अधिकारी से लेकर संतरी तक राजा जैसा बर्ताव क्यों कर रहै हैं ? 
सब ठीक है लेकिन  बच्चे भूख से क्यों मर रहे है?   किसान आत्महत्या क्यों कर रहे है,  क्यों इमानदार आदमी अब भी  न्याय के लिए दर- दर की  ठोकर खा रहा है । 
सब ठीक है साहब ... 70 साल हो गये है  ...प्लीज!  इस बार तरस खा लो ।