Sunday, August 29, 2021

खेल क्या है #NationalSportsDay #राष्ट्रीय_खेल_दिवस



 खेल, उत्सव है,  खेल संस्कृति है, खेल विरासत है 

खेल, हौसला है, खेल हिम्मत है, खेल में गिरना, फिर उठना भी है   


खेल, आशा है, खेल, विचार है , खेल इच्छा है 

खेल, श्रम है, खेल में गति है , खेल परिणाम है  


खेल में खुशी है, खेल सेवा भी है, खेल से सद्भाव भी है 

खेल अच्छा तन  है, खेल उच्च मन है, खेल ही धन है   


खेल में जबरस्त हेल-मेल है 

खेल में बल है, खेल एकता का दल है 


खेल में दिल है, खेल में दिमाग है, खेल दीवानगी है  

खेल साधना है, खेल वरदान है


खेल पराक्रम है, खेल पुरूषार्थ है

खेल विश्वास है,  खेल गौरव का एहसास है 


खेल रणनीति है, खेल में कौशल है 

खेल विजय है, तो खेल के पराजय की भी जय है


खेल में कल्पना है, खेल में भावना है,  

खेल आन है, खेल शान है, अरे! ये है तो जान है 


खेल जीवन का दर्शन है, खेल में मानव मर्म है, खेल में धर्म है 

खेल है तभी तो दुनिया में सारा सदकर्म है 


खेल निश्छल है, खेल सुंदर है  

खेल में सत्य है, खेल में प्रेम है खेल में न्याय है 


खेल ज्ञान है, खेल विज्ञान है, खेल अनुसंधान है 

तू मान या ना मान ..खेल ही ये सारा जहान है 

यही ईश्वर का विधान है 

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नेशनल स्पोर्ट्स डे को समर्पित है

विनम्र 

श्रीधर राव  

#NationalSportsDay

#राष्ट्रीय_खेल_दिवस


Monday, April 26, 2021

जिंदगी कैसे कैसे मौके देती है

शहडोल के स्थानीय चैनल पर चाय पे चर्चा  

https://www.youtube.com/watch?v=JiEQz7FMbjs&t=5s

Tuesday, December 1, 2020

 

ये कैसा कोरोना आया 

हमको होश में लाया 

कमाई के चक्कर में जिस घर से भागे थे 

अब जान- बचाने उस घऱ के आगे थे

सालों से आस-पड़ोस से अनजाने थे 

आंगन में स्वागत को चेहरे सारे जाने- पहचाने थे  

परदेश में हम भूलें चूके थे बंधु और भाई, 

 पड़े मुश्किल में तो दोस्ती ही  काम आई

भागम- भाग के दिनों में अम्मा के फोन से भी बचते थे 

देखो कुदरत की माया... नाती-पोते दादा की गोद में हंसते है

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ये कैसा कोरोना आय़ा 

हमको होश में लाया 

पहले सुबह-शाम को भूलें थे 

गर्मी में कूलर, बारिश में पकौड़े, देखों सर्दी की धूप में झूलें हैं 

कुछ दिन पहले तक हम अपने में खोय़े थे 

 फिर क्यो जैकी हमसे ही खाता है गाय का बछड़ा दौड़ा आता है 

सिर पर आसमान का भान नहीं था

खिड़की की गौरया, छत की बुलबबुल ने बताया पहचान पुराना है

सेहत, स्वाद, सुगंध  से... छूटा सारा नाता था 

बाड़ी की भाजी, बगिया की फुलवारी से तन -मन में छायी हरियाली है 

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ये कैसा कोरोना आया 

हमको होश में लाया 

 नकली हंसी में जीते थे 

अब पेट पकड़ कर हंसते है 

मतबल से ही मिलते थे 

रिश्तों में गर्माहट.. देखों देर रात तक बतियाते हैं  

कल के चक्कर में खूब कलह मचाते थे 

अब तो हम अपने आज को सजाते है 

दौलत-शोहरत का सपना था 

  समझ आ गया खुश रहना और खुशियां देना ही जीना है 

ये कैसा कोरोना आया 

हमको होश में लाया 

सबको होश में लाया 

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