बहुत दिनों के बाद स्कूल के एक दोस्त से ढेर सारी बातें की तो बज गई घंटी
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बचपन के दोस्त बड़े अच्छे होते हैं
यादों में तस्वीर बना कर रहते हैं
बंद आंखों को भी दिखते रहते हैं
मैं तो बस से स्कूल जाता हूं
लेकिन दोस्तों को देखता हूं, तो मेरा भी मन करता है साइकिल से जाने का ।
पता नहीं पापा कब साइकिल दिलवाएंगे?
बस से जाते वक्त वो कभी- कभी गाना गवाते हैं ( चंदन है इस देश की माटी ...)
मेरे वो दोस्त अब भी शिशु मंदिर की उन्हीं कक्षा में पढ़ते हैं
यादों में भी, स्कूल पहुंचकर प्रार्थना करना बड़ा बोरिंग लगता है
हाजिरी के दौरान रोज- रोज वो "आचार्यजी उपस्थित" चिल्लाना
फिर इंतजार होता है दो पीरियड के बाद होने वाले दस मिनट के रिसेस का
पढ़ाई के दौरान बातें करना, कभी- कभी पकड़े जाना, फिर सवालों से जूझना, बदमाशियां तो मैं अब भी करता हूं
बेबसी,मर्म और मस्ती का ऐसा बढ़िया तालमेल कहां मिलेगा
फिर हाथों में डिब्बा लेकर भोजन मंत्र के लिए जाना।
फिर दो पराठों को फांकों में अलग करके ये कहना कि चार पराठे हो गये तुम भी खालो, सुकून देता है ।
बहुत बुरा लगता है जब लड़कियां, लड़कों से अलग गोला बना कर खाना खाती है
मुड़ना नदी के किनारे विद्यालय के उस प्रांगण में भैय्या-बहिन का कानून बहुत सालता है।
बस अच्छी लगती हैं कीर्तिदीदी।
फिर तो वही चिंतामणि की चिंता। वो सतीश आचार्यजी का खौफ । वो राजकुमारी दीदी का गुस्सा ।
इससे तो अच्छा है दो पीरियड और बर्दाश्त कर लो फिर तो पूरी छुट्टी होगी।
वहां नरेंद आचार्य जी का चीखना ...दक्षक्षक्षक्षक्षक्षक्षक्ष....आररररररररररराम।
बस विसर्जन मंत्र का टेंशन और पंक्ति से जाने का सिरदर्द
फिर तो किसी की साइकिल के डंडे पर बैठ कर ही घर जाने का मन करता है .....।
यादों के इस स्कूल में का हर दिन कुछ ना कुछ नया होता है
तभी तो अगले दिन खाकी निकर और सफेद शर्ट में फिर स्कूल आ जाता हूं ...
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Saturday, August 29, 2009
Sunday, August 23, 2009
आकाश से ऊंचा "पिता"
माँ संवेदना है तो पिता क्या है? ओम व्यास जी की कविता
पिता…पिता जीवन है, सम्बल है, शक्ति है,
पिता…पिता सृष्टी मे निर्माण की अभिव्यक्ती है,
पिता अँगुली पकडे बच्चे का सहारा है,
पिता कभी कुछ खट्टा कभी खारा है,
पिता…पिता पालन है, पोषण है, परिवार का अनुशासन है,
पिता…पिता धौंस से चलना वाला प्रेम का प्रशासन है,
पिता…पिता रोटी है, कपडा है, मकान है,
पिता…पिता छोटे से परिंदे का बडा आसमान है,
पिता…पिता अप्रदर्शित-अनंत प्यार है,
पिता है तो बच्चों को इंतज़ार है,पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं,
पिता है तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं,
पिता से परिवार में प्रतिपल राग है,
पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग है,
पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ती है,
पिता गृहस्थ आश्रम में उच्च स्थिती की भक्ती है,
पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार की पूर्ती है,
पिता…पिता रक्त निगले हुए संस्कारों की मूर्ती है,
पिता…पिता एक जीवन को जीवन का दान है,
पिता…पिता दुनिया दिखाने का एहसान है,
पिता…पिता सुरक्षा है, अगर सिर पर हाथ है,
पिता नहीं तो बचपन अनाथ है,पिता नहीं तो बचपन अनाथ है,
तो पिता से बडा तुम अपना नाम करो,
पिता का अपमान नहीं उनपर अभिमान करो,
क्योंकि माँ-बाप की कमी को कोई बाँट नहीं सकता,
और ईश्वर भी इनके आशिषों को काट नहीं सकता,
विश्व में किसी भी देवता का स्थान दूजा है,
माँ-बाप की सेवा ही सबसे बडी पूजा है,
विश्व में किसी भी तिर्थ की यात्रा व्यर्थ हैं,
यदि बेटे के होते माँ-बाप असमर्थ हैं,
वो खुशनसीब हैं माँ-बाप जिनके साथ होते हैं,
क्योंकि माँ-बाप के आशिषों के हाथ हज़ारों हाथ होते हैं
क्योंकि माँ-बाप के आशिषों के हाथ हज़ारों हाथ होते हैं
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