Saturday, August 29, 2009

मैं अब भी स्कूल जाता हूं

बहुत दिनों के बाद स्कूल के एक दोस्त से ढेर सारी बातें की तो बज गई घंटी
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बचपन के दोस्त बड़े अच्छे होते हैं
यादों में तस्वीर बना कर रहते हैं
बंद आंखों को भी दिखते रहते हैं
मैं तो बस से स्कूल जाता हूं
लेकिन दोस्तों को देखता हूं, तो मेरा भी मन करता है साइकिल से जाने का ।
पता नहीं पापा कब साइकिल दिलवाएंगे?
बस से जाते वक्त वो कभी- कभी गाना गवाते हैं ( चंदन है इस देश की माटी ...)
मेरे वो दोस्त अब भी शिशु मंदिर की उन्हीं कक्षा में पढ़ते हैं
यादों में भी, स्कूल पहुंचकर प्रार्थना करना बड़ा बोरिंग लगता है
हाजिरी के दौरान रोज- रोज वो "आचार्यजी उपस्थित" चिल्लाना
फिर इंतजार होता है दो पीरियड के बाद होने वाले दस मिनट के रिसेस का
पढ़ाई के दौरान बातें करना, कभी- कभी पकड़े जाना, फिर सवालों से जूझना, बदमाशियां तो मैं अब भी करता हूं
बेबसी,मर्म और मस्ती का ऐसा बढ़िया तालमेल कहां मिलेगा
फिर हाथों में डिब्बा लेकर भोजन मंत्र के लिए जाना।
फिर दो पराठों को फांकों में अलग करके ये कहना कि चार पराठे हो गये तुम भी खालो, सुकून देता है ।
बहुत बुरा लगता है जब लड़कियां, लड़कों से अलग गोला बना कर खाना खाती है
मुड़ना नदी के किनारे विद्यालय के उस प्रांगण में भैय्या-बहिन का कानून बहुत सालता है।
बस अच्छी लगती हैं कीर्तिदीदी।
फिर तो वही चिंतामणि की चिंता। वो सतीश आचार्यजी का खौफ । वो राजकुमारी दीदी का गुस्सा ।
इससे तो अच्छा है दो पीरियड और बर्दाश्त कर लो फिर तो पूरी छुट्टी होगी।
वहां नरेंद आचार्य जी का चीखना ...दक्षक्षक्षक्षक्षक्षक्षक्ष....आररररररररररराम।
बस विसर्जन मंत्र का टेंशन और पंक्ति से जाने का सिरदर्द
फिर तो किसी की साइकिल के डंडे पर बैठ कर ही घर जाने का मन करता है .....।
यादों के इस स्कूल में का हर दिन कुछ ना कुछ नया होता है
तभी तो अगले दिन खाकी निकर और सफेद शर्ट में फिर स्कूल आ जाता हूं ...
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6 comments:

हेमन्त कुमार said...

अच्छी अभिव्यक्ति ।

Unknown said...

tumne to svm shahdol ka poora chitran kar diya...school ke din yaad aa gaye

vijay kumar sappatti said...

bahut hi acchi aur shaandar rachna .school ki yaad dilwa di ..badhai sweekar kare ..

vijay

pls read my poem "jheel " on my blog : www.poemsofvijay.blogspot.com

Unknown said...

Shridhar Bhai...ye kya tha? School ki sabhi yaadon ko kuchha panktiyon mein aisa sameta aapne ki Dil ke saare taar Jhanjhana uthe..Wo Ladkiyon (so called Bahnon) ka alag Bhojan karna...kyon kured rahe ho purane jakhmon ko?

Deepak "बेदिल" said...

khayaal achche lage...

Deepak "bedil"


http://ajaaj-a-bedil.blogspot.com

Anonymous said...

thats amazing Sridhar, I can imagine if we say school SSVM SDL is OUR school thats it! Mindblowing I enjoyed it!