Tuesday, September 1, 2009

बीजेपी की ये दुर्गति जारी रहेगी!

कहां गईं मेरी पंखुड़ियां?
-------------------------------------------------------------------------------------------------
मेरे पिताजी ने कॉलेज के दिनों में मुझे बताया था पांच अटल बिहारी बाजपेयी को एक साथ मिलाआगे तो भी दीनदयाल उपाध्याय जैसी महान शख्सियत को तैयार करना मुश्किल होगा। मेरे मन में अटलजी की छवि इतनी ऊंची है तो पता नहीं दीनदयालजी का कद कितना महान रहा होगा। कांग्रेस के शासन दौर में विपक्ष के सबसे बड़े नेता सिर्फ दो जोड़ी धोती-कुर्ते में अकेले ही एक कार्यकर्ता बनाने के लिए गांव- गांव में घूमते थे। धोती के पीछे लगे बवासीर के खून को दाग छुपाने के लिए अखबार हमेशा पीछे रखते थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, पता नहीं कैसे मुगरसराय रेलवे स्टेशन में लावारिस की तरह उनकी लाश पाई गई। बीजेपी का शासन आकर चला गया..सरकार, सारा तंत्र मुट्ठी में था, लेकिन किसी को ये सुध नहीं रही.. ये पता लगा लेते कि जिनकी बदौलत वो मलाई खा रहे हैं उस महान दीनदयाल को किसने मारा? क्या वो महज हादसा था या साजिश? श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मौत कैसे हुई? बस्तर के महाराज प्रवीरचंद भंजदेव की हत्या कैसे हुई?
एकात्म मानववाद जैसे सूत्र, राम और राम राज्य का दर्शन, दीन दयाल जैसे नेताओं को हासिल करने का ...मेरे जैसे लाखों नौजवानों का स्वप्न चकनाचूर हो गया। उल्टा गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा से जूझते देश की आंखों में इंडिया शाईनिंग ने नाम की काली पट्टी बांधने की साजिश रची गई। अच्छा हुआ बच गया देश...। वरना मद में अंधा हाथी जो करता है शायद उससे भी बुरी गत होती ...।
इसी को कहते है नीयत। जो सत्ता के नशे में डोल गई। बीजेपी गंगोत्री से लेकर बंगाल की खाड़ी तक मैली हो गई है। जिन नेताओं पर कभी कार्यकर्ता मरने -मिटने को तैयार रहते थे। जिनकी कही एक एक बात पत्थर की लकीर होती थी अब वही नेता बोलते हैं तो लोग टीवी का ट्यून बदल देते हैं। जन सभाओं में जो करिश्मा पहले दिखता था अब पैसे खर्च करने पर भी कामयाब नहीं हो पाता। याद है वो दिन जब राम मंदिर का संकल्प लेकर निकले आडवाणीजी को समस्तीपुर में गिरफ्तार किया गया तो बिना बोले देश बंद हो गया था। आज उन्ही आडवाणीजी को, उन्हीं की पार्टी के शासित प्रदेश की एक जनसभा में उन्हीं की पार्टी के एक शख्स ने चप्पल दिखा दी। बचा क्या?
बीजेपी से जुड़े कार्यकर्ता जानना चाहते है कि इस देश में क्या महापुरूष कम पड़ गये थे, क्या डर लग गया था कि दीनदयाल उपाध्याय का नाम लेने से सांप्रदायिकता का लांछन लगेगा! क्या श्यामप्रसाद मुखर्जी के बलिदान की बातें कथित धर्मनिरपेक्षता की छवि बनाने में रोड़ा बनने लगी थीं, जो पाकिस्तान जाकर जिन्ना की मजार पर मत्था टेककर आना पड़ा था। क्यों? ये हक है बीजेपी के हर उस कार्यकर्ता का जो चना- मुर्रा और पानी पीकर बीजेपी को सत्ता तक लेकर गया था। माननीय जसवंत सिंह ने किताब में जो भी लिखा जिन्ना के बारे में वो उनका बौद्धिक मत हो सकता है। लेकिन बीजेपी को, बीजेपी के कार्यकर्ता को और देश को जिन्ना से क्या लेना- देना। हिंदुस्तान समुंदर डूब कर बाहर आ जाएगा लेकिन दावे के कह सकता हूं कलाम की बातें ये देश कलमा की तरह पढ़ने को तैयार है लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना हमारे प्रेरणास्त्रोत कभी नहीं बन सकते।
चलिए आदर्श सिद्धांत और महापुरूषों की बाते छोड़िए ...बीजेपी जब सत्ता में आई तो नया क्या हुआ? योजनाएं तो कांग्रेस की सरकार भी बनाती थी, भष्ट्राचार तो कांग्रेस के शासन में भी होता था। आम जनता अब ये जानने लग गई है कि किसी नई योजना का मतलब पैसे बनाने का एक और जुगाड़। बीजेपी में हजारों लाखों नेता ऐसे हैं जिन्होंने भूखे रह संघर्ष किया है लेकिन आज वो कोठियों रहते है...करोड़ों का कारोबार करते हैं...पहले वो आर्दश की बातें कह कर कार्यकर्ता तैयार करते थे अब उन्हें ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि पैसे के दम पर वो चुनावों को मैनेज करना सीख गये हैं। बीजेपी से जुड़े आम लोग समझने लग गये उन नेताओं के पास खाली हाथ जाओगे तो खाली हाथ ही आओगे। इस देश में बीजेपी का सत्ता में आने से एक परिवर्तन ये हुआ है कि एक नया धनाढ्यवर्ग खड़ा हुआ है ...बस! व्यक्तिगत तौर बीजेपी को एक फायदा और हुआ है वो ये कि जिस पार्टी को पहले चुनाव लड़ाने के लिए उम्मीदवार तलाश करने पड़ते थे अब वहां सौदेबाजी होती है ।
न्याय आज भी आम आदमी से कोसों दूर है। देश के किसी भी तहसीलदार के दफ्तर में चले जाइये और देखिए जिस किसान को खेत में फसल खड़ी करने के पसीना बहाना चाहिए, वहां उस किसान के भूखे नंगे बदन को वकील और बाबू कैसे नोंचते हैं। गरीबी पर रौब देखना हो तो किसी भी पुलिस थाने में चले जाइये। नकली दूध, नकली सब्जी, नकली दवाईयां धड़ल्ले से बिक रही है लेकिन एसडीएम के दफ्तर से लेकर प्रदेश और क्रेंद के सचिवालय तक हर जगह मैंनेजमेंट की दुकान चल रही है, फुरसत कहां है अधिकारियों को। सरकार ने गांव गांव में स्कूल तो खोल दिए है लेकिन ये कौन देखगा कि शिक्षक जाता है कि नहीं ...वो क्या पढ़ा रहा है ...हां... वहां जो मिड डे मील बंटता है उसके कमीशन की सबको चिंता है। इनको कौन बताए सिर्फ भत्ता देने बेरोजगारी मिटनेवाली नहीं ...। हां ये सारी बातें चुनावी घोषणापत्र में जरुर दिख जाएंगी ...।
कुल मिला कर बात ये हैं कि बीजेपी कोई परिवर्तन नहीं कर सकीं । उसने अपना विश्वास खो दिया है...वो अब सिर्फ विकल्प बन कर रह गई है..."वो" नहीं तो "ये" वाली बात है...।
बहुत अच्छा लगता है जब राहुल गांधी बातें कम करते हैं और गांव- गांव में घूमते हैं। कम से लोगों से मिल तो रहे है। बिना राजनीतिक लाग लपेट के साथ- सुथरे तरीके से अपनी बात कहते हैं। और ये उसी नीयत का करिश्मा है कि यूपी में मरी हुई कांग्रेस जिंदा हो गई ... बीजेपी ने अपनी इस ताकत को छोड़ दिया है और कांग्रेस ने अपना लिया है।
लेकिन अभी बीजेपी के पास ये सब सोचने का ना तो वक्त है और ना ही ताकत बची है क्योंकि वो अपना बिखरा सामान बटोर रही है...।

2 comments:

Unknown said...

jaari na rehti ye durgati, agar vo zameen se jude raehte...bhala hawai mahal kab tak tikta? achche netaon ka akal hai vahan, jo achche hain ek doosare se hi bhide hue hain. rahul gandhi ne seedhe aam janta se mil kar samwad kayam kiya...vapas jadon ko seecha, parinam to milne hi the. per bjp ke is hashra se achche vipaksh ki kamee, loktantra ke liye achchi kabar nahi hai.

Unknown said...

Aapki tareef apne bade bhrata se suni thi.....
Aur aapke vichar pad bhi liya.

NICE ONE....
Keep it up

Akhilesh Dwivedi
Singhpur (Shahdol)