Sunday, September 27, 2009

...लेकिन उस नास्तिक को मरने मत देना




वो नास्तिक था क्योंकि उसने...
एक इंसान को दूसरे इंसान से लड़ते देखा।
उसने पूंजीपतियों को गरीबों का खून चूसते देखा।
उसने मजहब के नाम पर मौलवी, पादरी और पंडित की दुकान को देखा।
उसने ताकत के दम पर अंग्रेजों को मां भारती को रौंदते देखा।
तब कहां थे अंग्रेजों के परमपिता?
उस वक्त ना तो भगवान का पता था, ना खुदा का करिश्मा ?
तभी वो नास्तिक निकला।
वो नास्तिक था क्योंकि उसने...
लालाजी पर लाठी चलते देखा तो ऊपर वाले की लाठी को बेबस देखा।
आज़ाद की आजादी पर गोली चल गई तो भी उसने आसमान को मौन देखा।
सुखदेव के दुख को देखा, राजगुरू को तिल-तिल करते देखा, बटुकेश्वर को भटकते देखा।
ये सब के सब आजादी की दीवाने परमपिता के दुश्मन कैसे हो सकते हैं?
अल्ला से इनका क्या बैर, भगवान से क्या दुश्मनी हो सकती है?
तभी तो वो नास्तिक निकला ।
वो नास्तिक था क्योंकि उसने...
चमार और मेहतर के बच्चे को दलित कह कर पढ़ाई से वंचित करने की साजिश को देखा।
गलती से वेद पुराण सुनने वाले नीची जाति लोंगों के कानों में सीसे का लावा पिघलते देखा।
ऊंची जाति के नाम पर अय्य़ाशी में डूबे अन्यायी और दुराचारियों को देखा।
तब पूरी दुनिया को एक पिता की संतान मानने वाले चुप क्यों थे?
बंदे जब हाय राम- हाय राम रट रहे थे, तब लगता है रहीम भी साथ सो रहे थे?
तभी वो नास्तिक निकला।
वो नास्तिक था क्योंकि उसने ...
गूंगी-बहरी सरकार को सुनाने के लिए असेंबली में बम फेंका तो बम बम भोले को सकते में देखा।
उसने भारत को जलते देखा तो नीरो की तरह ऊपर वाले को बंसी बजाते देखा।
हजारों-लाखों लोगों के प्राणों के बलिदान को बौना और करबला को महान देखा।
राष्ट्र के संकट में भी पाखंडियों को पनपते देखा।
मानवता की मौत पर भी उसने दंभियों को मचलते देखा।
तभी वो नास्तिक निकला।
वो पक्का नास्तिक था क्योंकि उसने ...
भारत मां के आंसू के सामने अपनी मां के आंसुओं को अनदेखा कर गया।
देश की जवानी को जगाने की सोच में अपने बूढ़े पिता को दुनिया में अकेला छोड़ गया।
फांसी के फंदे पर झूलने के जोश में वो जिंदगी की प्रार्थना भूल गया।
लेकिन तब भी पीड़ पराई वाले बाबा को नेता की तरह सोचते देखा, सियासत के सौदों में व्यस्त देखा।
राष्ट्र्पुत्र के सामने राष्ट्रपिता को अपने कद का अनुमान लगाते मौन देखा!
तभी वो नास्तिक निकला।
लेकिन मैं कहता हूं ..
सबके सब मर जाएं..लेकिन उस नास्तिक को मरने मत देना ...
वर्ना गूंग- बहरों को सुनाने के लिए बम कौन फेंकेगा?
सम्मान के लिए सांडर्स के सीने पर गोली कौन मारेगा?
पाखंडियों को आइना दिखाने के लिए दम कौन भरेगा?
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ठीक मरने से पहले इंकलाब के उस सिपाही ने जिंदाबाद की जो अलख जगाई उसे पढ़ लो यकीन हो जाएगा कि वो पक्का नास्तिक था ...
उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्ज़-ए-ज़फ़ा (अन्याय) क्या है?
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है?
दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें,

चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें

सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें ।


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5 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

शहीदे आजम के जन्मदिन पर बहुत ही सुंदर प्रस्तुति! बधाई!

richa said...

भगत सिंह के जन्मदिवस पर बहुत ही बढ़िया पोस्ट... मरते समय भी ऐसी साहसी सोच... इंक़लाब के इस सिपाही को सलाम.

प्रिया said...

bhagat singh ki is nastikta ne hi to itihaas rachne par majboor kiya.....aapki post ko padh kar lahoo obaal marne laga.......jaroorat hai bhagat ki ek baar bhir...shayad..ham mein se koi nikle...Bharat maa ke is sapoot ko shat-shat naman

GAME WITH FAME said...

Bhsghat singh ke vicharo ko aap ne apne lakheni se fir jinda kar diya.
humari or se aap ko iske liye tehe Dil se Badahyi.........!
Shankar Singh.
LeMon TV.

dr sumit sinha said...

excellent sirji...........so good to see creative u after long time...we still hav memories of u nd ur sis's speeches on school functions,,,,,,,,,
gr8888888 to see u.........say in touch.