Thursday, September 3, 2009

शोक और श्रद्धा

शोक



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2001 में माधवराव सिंधिया, फिर राजेश पायलट और अब 2009 में वाइ एस राजशेखर रेड्डी । ना केवल कांग्रेस का, बल्कि देश का बहुत बड़ा नुकसान हो गया है। सालों के कठिन परिश्रम के बाद वाईएसआर जैसा करिश्माई नेता बनता है। वादों को निभाने वाली, दोस्तो को याद रखने वाली और दुश्मनों को कभी ना भूलने वाली वो शख्सियत। राजशेखऱ करीब 1500 किलोमीटर पैदल क्या चले, सॉफ्टवेयर क्रांति से पूरी दुनिया में हैदराबाद को चमकाने वाले चंद्रबाबू नायडू का सत्ता में काबिज रहने का सपना टूट गया। ये आंध्रप्रदेश की तकदीर थी कि सत्ता में वाइएसआर थे, तो विपक्ष में उतने ही उर्जावान चंद्रबाबू नायडू । अब आंध्र का वो सिक्का अधूरा- अधूरा लगेगा।

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श्रद्धा


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उधर, आंध्र में शोक का सागर था तो इधर मुंबई में अरब सागर बौना हो गया था । महासागर के मिलने पहुंचा था जनसागर। जब-जब गणपति बाप्पा मोरया की ऊंची-ऊंची लहरें उठती तो सामने शोर मचाने वाला समुंदर थम जाता था। सैकड़ों, हजारो, लाखों पता नहीं और कितने। लेकिन कहां से आये थे ये लोग? । क्योंकि घर से निकलते वक्त जो पान की दुकान पड़ती है वहां पर भीड़ वैसी ही थी। आगे एक सुपरमार्केट था वो भी रोज की तरह भरा- भरा दिखा । हाईवे का ट्रैफिक भी कम नहीं था जबकि स्कूल कॉलेज और दफ्तरों की छुट्टी थी। ऑफिस और उसके आसपास का माहौल भी वैसा ही था। जिन दोस्तों की छुट्टियां थी वो घरों में मौज कर रहे थे और फिर इस शहर में वो लोग ज्यादा है जो रोज कमाते है और रोज खाते है, वो अपना काम छोड़ कर इस भीड़ का हिस्सा नहीं बन सकते । तो फिर गणपति को विदा करने लोग कहां से निकल थे?
शहर में स्वाइन फ्लू की दशहत है लेकिन वो गुलाल उड़ा रहे थे। सबको पता है आतंकवादी घात लगा कर बैठे है लेकिन वो अपने छोटे- छोटे बच्चों को कंधे पर लाद कर साथ सड़क पर झूम रहे थे। हिंदू-मुसलमान के नाम पर कई बार बेकाबू हुआ है ये शहर, लेकिन सैकड़ों मुस्लिम युवक ऐसे दिखे जो थके हुए लोगों को पानी पिला रहे थे, उनके खाने- पीने का इंतजाम कर रहे थे। औरतें और लड़कियां पता नहीं उन्हें क्या हो गया था, वो भी बेखौफ थीं, बारिश में भींगते हुए बढ़ रही थीं समुंदर की तरफ। क्या इन लोगों को थकान नहीं हुई होगी, सुबह से शाम और शाम से रात लेकिन सब के सब मस्ती में चूर? क्या ये लोग नशे में थे? कौन सा नशा किया था इन लोगों ने?
शायद ये वो नशा है जो मीरा ने किया था, दीवानी ज़हर का प्याला पी गई थी अमृत समझ कर।
शायद ये वो नशा है जो रसखान ने किया था, बृंदावन में लोटते थे कि इस मिटटी का कोई तो कण कृष्ण के पैर में लगा होगा।
शायद ये वो नशा है जो भगत सिंह ने किया था, आजादी दुल्हन लगती थी और फांसी का फंदा वरमाला।
ये भी वही नशा है, श्रद्धा का नशा, विश्वास का नशा, आस्था का नशा, भक्ति का नशा । बस मुंबई वालों का ब्रांड बदल गया है।
शबरी को रामभक्ति का नशा था
रसखान को कृष्णभक्ति का नशा था
भगत सिंह को देशभक्ति का नशा था
और मुंबई को नशा है गणपति बाप्पा मोरया की भक्ति का । एक बार चढ़ता है लेकिन पूरे साल खुमार रहता है और तब तक रहता है जब तक दोबारा फिर ना चढ़ा लो, और इसी तड़प में लोग कहते हैं अगले बरस तू जल्दी आना .....

1 comment:

Unknown said...

shok me mai bhi aapke sath hoon, bahut kuch to nahi janti ysr reddy ke bare me, lekin aadmi ki karmathta uske vyaktitva se jhalakati hai aur is desh ko yuva netaon ki zaroorat hai. aise me yuva netaon ka is tarah ke hadson me guzar jana niyati ka krur khel hi hai.