Tuesday, December 1, 2020

 

ये कैसा कोरोना आया 

हमको होश में लाया 

कमाई के चक्कर में जिस घर से भागे थे 

अब जान- बचाने उस घऱ के आगे थे

सालों से आस-पड़ोस से अनजाने थे 

आंगन में स्वागत को चेहरे सारे जाने- पहचाने थे  

परदेश में हम भूलें चूके थे बंधु और भाई, 

 पड़े मुश्किल में तो दोस्ती ही  काम आई

भागम- भाग के दिनों में अम्मा के फोन से भी बचते थे 

देखो कुदरत की माया... नाती-पोते दादा की गोद में हंसते है

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ये कैसा कोरोना आय़ा 

हमको होश में लाया 

पहले सुबह-शाम को भूलें थे 

गर्मी में कूलर, बारिश में पकौड़े, देखों सर्दी की धूप में झूलें हैं 

कुछ दिन पहले तक हम अपने में खोय़े थे 

 फिर क्यो जैकी हमसे ही खाता है गाय का बछड़ा दौड़ा आता है 

सिर पर आसमान का भान नहीं था

खिड़की की गौरया, छत की बुलबबुल ने बताया पहचान पुराना है

सेहत, स्वाद, सुगंध  से... छूटा सारा नाता था 

बाड़ी की भाजी, बगिया की फुलवारी से तन -मन में छायी हरियाली है 

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ये कैसा कोरोना आया 

हमको होश में लाया 

 नकली हंसी में जीते थे 

अब पेट पकड़ कर हंसते है 

मतबल से ही मिलते थे 

रिश्तों में गर्माहट.. देखों देर रात तक बतियाते हैं  

कल के चक्कर में खूब कलह मचाते थे 

अब तो हम अपने आज को सजाते है 

दौलत-शोहरत का सपना था 

  समझ आ गया खुश रहना और खुशियां देना ही जीना है 

ये कैसा कोरोना आया 

हमको होश में लाया 

सबको होश में लाया 

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Monday, June 1, 2020

हर हर गंगे

आज गंगा दशहरा है । ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दसमी तिथि को भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा धरती पर अवतरित हुई और तब से अब तक युग बीत गये है मां गंगा  अनवरत मानव को तार रही हैं। महान भागीरथ और दिव्य  गंगा के चरणों में मेरा कृतज्ञता का भाव समर्पित हैं।
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एक राजा ने जीवन जंगल में बिता दिया 
भूख -प्यास को भूल वो सर्दी-गर्मी में तपता रहा 
बारिश में गला नहीं, आंधियों में अडिग रहा 
दिन, महीने साल और ना जाने कितनी सदियां एक ही नाम जपता रहा 
थकता था, पर थका नहीं 
हताशा से घिरता था , पर गिरा नहीं 
मृत्यु भी आई लेकिन वो  मरा नहीं 
काल का हर चक्र जब विफल हुआ 
तब उस योगी का पराक्रम सफल हुआ 
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स्वर्ग का द्वार खुला 
दिव्य किरणों  से धरती धन्य हुई
फिर ना रूकी वो ऐसे दौड़ी  
अंतरिक्ष में पायल गूंजी 
क्षितिज में पदचाप का शोर उठा   
देव, यक्ष, गंधर्व, अप्सराएं   तकते रह गये 
उस आमंत्रण में सब के सब सम्मोहित रह गये 
उस देवी की  आतुरता ने उसे भूमंडल पर पहुंचा दिया ।
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दिव्य हिमालय कृतकृत्य हुआ 
वो उपवन हरितिमा से  भर गया  
वृक्षों ने किल्लोल किया 
पक्षियों ने कलरव के  गाये गीत  
औषधियों ने सुगंध किया
पर्वतराज का रोम- रोम झंकृत था 
तपोभूमि में अदभुत उमंग 
बरसों का वो योगी सहसा सूर्य सा दमक उठा 
उस तेज के सम्मुख,  एक पावन प्रकाश उपस्थित  
आनंद इधर भी,  आनंद उधर भी  
कैसा क्षण था वो
एक, अब भी  आंखों को मूंदे विश्वस्त 
कि वो आएगी 
मेरी पुकार ना व्यर्थ जाएगी 
तो वो, करूणा नयन देखें
कि ये कैसा नर जिसने स्वर्ग को झुका दिया 
अपने पूजन और पुरषार्थ से मुझे धरती पर बुला लिया। 
नभ से सुमन वृष्टि हुई 
देवों के आशीषों की सृष्टि हुई 
संगीत सा स्वर गूंजा 
उठो तपस्वी आंखें खोलों देखों तप कैसे साकार हुआ 
आखिर तुमने गंगा को धरती पर बुला लिया । 
आखिर तुमने धरती पर गंगा को बुला लिया ।    
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हम भागीरथ के वंशज है आईये उनके महान तप का सम्मान करें और मां गंगा का मान करें।  सदैव गंगा भारत में अविरल और निर्मल रहे ये सुनिश्त करें ताकि आने वाले पीढ़ियां गंगाजल से वंचित ना रहे और गंगा दशहरा का उत्सव हमारे आचरण में जीवंत रहे । 

Sunday, April 26, 2020

मृत्यु शैय्या पर पड़ी कांग्रेस को धर्म और नीति की दुहाई शोभा नहीं देती!

अरनब बनाम सोनिया मामले में अपने जाल में ही फंस गयी कांग्रेस


कहते हैं जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है एक ना एक दिन वो गड्ढा उसके लिए खाई का काम करता है। सवाल ये हैं कि इस देश की मीडिया को सरकारी भोंपू बनाने की परंपरा  किसने शुरू की ? सरकारी विज्ञापनों के जरिए मीडिया में भेदभाव की शुरूआत किसने की? किसने मीडिया में अपने चहेते लोगों को उपकृत करने की परंपरा शुरू की? वो कौन से नेता थे, वो कौन सी पार्टी थी और वो कौन से सरकारें थी जिसने मीडिया को दशकों दलाल बना कर रखा । मीडिया के माध्यम से विरोधियों को निपटाने में  छद्म लड़ाई की शुरूआत किसने की? सरकार विरोधी पत्रकारों को जेलों में ठूंसने की परंपरा किसने और क्यों शुरू की? ऐसे हर सवाल पर पहली ऊंगली कांग्रेस और उसके नेताओं पर ही उठती है । यही वजह है कि आज कांग्रेस अपने बुने जाल में ही फंस गयी है ।


ना तो मैं अरनब गोस्वामी स्टाइल की पत्रकारिता का फैन हूं और ना ही चीख-चिल्लाकर अपनी बात कहने का । लेकिन इस वक्त देश के जो भी मूर्धन्य पत्रकार अरनब गोस्वामी को दिन-रात पानी पी- पी कर कोस रहे हैं, उन्हें पत्रकारिता का बुरा उदाहरण बता कर पेश कर रहे हैं , ऐसे जितने भी स्वनाम धन्य पत्रकार है वो खुद अपने गिरेबां में झांके और देखें कि जब उनके हाथ में अधिकार था तो उन्होंने क्या किया था? कैसे उन्होंने सत्ता की दलाली की थी। सरकार की सहूलियत के हिसाब से खेल -खेलते थे । भले ही तरीका गरिमामय दिखता हो । आज उनमें से बहुत सारे नैतिकता की दुहाई देते नहीं थक रहे । 


Sunday, April 12, 2020

सकंट की इस घड़ी में किसानों को कमजोर नहीं होने देंगे - डॉ. विनय सहस्त्रबुद्दे






कोरोना संक्रमण के इस दौर में जब किसान सबसे ज्यादा हताश और परेशान दिख रहा था तब रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी मुंबई और कनेक्टिंग ड्रीम फांउडेशन दिल्ली  के संयुक्त प्रयासों के तहत कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए सक्रिय इंडिया को-विन एक्शन नेटवर्क की एक पहल ने किसानों को उम्मीदों से भर दिया । राज्यसभा सांसद और प्रबोधिनी के वाइस -चेयरमैन डॉं. विनय सहस्त्रबुद्धे की अध्यक्षता में भारतीय किसान संघ के प्रतिनिधियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एकजुट किया गया । जहां सहस्त्रबुद्धे ने बताया कि कोरोना संक्रमण के इस दौर में केंद्र सरकार किसी भी कीमत पर किसानों को अकेला नहीं छोड़ेगी और  होने वाले  नुकसान की भरपाई करने के लिए उन्हें हर संभव मदद करेगी । इस वेबनार के दौरान उन्होंने किसानों को cowinactionnetwork.in के बारें में भी बताया कि कैसे इस पोर्टल के जरिए समाज से मदद लेने और देने वाले एक मंच पर आकर परस्पर सहयोग कर रहे हैं । लॉकडाउन के इस दौर में "आई-कैन" के इस प्रयासों को किसान नेताओं ने अपने लिए भी उपयोगी बताया ।


वेबनार में मौजूद देशभर के किसान प्रतिनिधियों ने  सहस्त्रबुद्दे के सामने मौजूदा दौर की तमाम चुनौतियों से अवगत कराया जैसे कि थोक बाजार और मंडियों का कामकाज सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है । किसानों को खुदरा बाजार में भी अपने उत्पादों को लेकर कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है । डिजिटल साक्षरता का कमी के चलते ऑनलाइन खरीदी और ब्रिकी का भी ज्यादातर खेतिहर किसान लाभ नहीं ले पा रहे है ।  किसानों के प्रतिनिधियों ने बताया कि परिवहन पूरी तरह से ठप पड़ जाने की वजह से कृषि यंत्रों की आवाजाही नहीं पा रही जिसके चलते खेतों में खड़ी फसलों को नुकसान हो रहा है । समय पर उनकी कटाई नहीं हो पा रही ।  फसल और बीजों के वितरण की समस्या से भी किसान दो-चार हो रहे हैं।




किसान नेताओं की बातों को सुनने के बाद सहस्त्रबुद्धे ने किसानों को सरकारी योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी और भरोसा दिया कि इस मुश्किल घड़ी में समाज के लोग भी किसान के साथ खड़े हैं । उन्होंने बताया कि इंडिया को-विन एक्शन नेटवर्क के जरिए हम उन तमाम उपायों को एक फोरम से जोड़ने की कोशिश करेंगे जहां किसान अपनी फसल, बीज, खाद, कीटनाशक दवाइयां और कृषि उपकरणों से संबंधित अपनी जरूरतों  और परेशानी को खुलकर रखेंगे और उसी फोरम में ऐसे जानकार लोग होंगे जिनके पास किसानों की हर समस्या का समाधान होगा । किसान और समाधान से भरे जानकार जब आमने -सामने होंगे तो  मुसीबत कितनी भी बड़ी हो उसे हल किया जा सकता है ।


लॉकडाउन के इस दौर में किसानों के नेताओं ने वेबनार के जरिए सहस्त्रबुध्दे की इस पहल की बहुत तारीफ की और आत्मविश्वास से भरे किसानों को अब लगता है  कि ट्रैक्टर और कंम्प्यूटर का साथ ही  भारत के किसानों को आत्मनिर्भर और समृद्ध बनाने में सक्षम है ।


Friday, April 10, 2020

संकटमोचक की भूमिका में इंडिया को-विन एक्शन नेटवर्क



कोरना संकट से निटपने के लिए सरकार और प्रशासन जिस तरह नित नयी योजनाओं पर काम कर रहे हैं, वहीं रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी मुंबई और कनेक्टिंग ड्रीम फांउडेशन दिल्ली  के संयुक्त प्रयास से स्वयंसेवक जरूरमंदों तक पहुंचने के लिए अपने हर संपर्क को एक्टिव कर रहे हैं।  राज्यसभा सदस्य और प्रबोधिनी के वाइस चेयरमैंन विनय सहस्त्रबुद्धे ने बताया कि हर रोज हमारी कोशिश ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की है जिसके लिए हम फोन, वीडियो कांफ्रेंसिंग, मैसेजिंग और तमाम सोशल मीडिया के प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर रहे हैं । उन्होंने बताया कि हमसे जुड़ने वाले हर वॉलेंटियर से हम फिलहाल  ये अपेक्षा कर रहे हैं कि वो अपने आस-पड़ोस पर नजर रखे और ये सुनिश्चित करें कि कोई भी  भोजन, पानी और दवा जैसी अन्य जरूरी चीजों के लिए परेशान ना हो । सहस्त्रबुद्धे के मुताबिक  cowinactionnetwork.in  की पारस्परिक सहयोग की इस  अनोखी पहल ने पूरे भारत में एक नयी जान फूंक दी है  और बेहद सकारात्मक नतीजे सामने आ रहे हैं ।


आई कैन इंडिया कैन-   इस आइडिया के साथ जब  नेटवर्क के लोगों ने  इस काम को आगे बढ़ाया था तो  मकसद लोगों में आत्मविश्वास जगाना था।  लोगों से लोगों के जुड़ने का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ है कि हर आदमी सकंट की इस घड़ी में आगे आकर अपना योगदान दे रहा है । नेटवर्क की साइट पर हर पल देश के कोने -कोने से लोग खुद को वॉलेंटियर के तौर पर रजिस्टर करवा रहे हैं । अब ये एक आंदोलन बन गया है ।   
अन्न दान महादान - सहस्त्रबुद्दे में बताया कि नेटवर्क पर सबसे ज्यादा जरूरतमंद वो लोग है जो या तो झुग्गियों में रहते हैं, दिहाड़ी मजदूर है या फिर बुजुर्ग जो लॉकडाउन में बाहर निकर कर अपने भोजन का प्रबंध नहीं कर सकते । अब हमारे वॉलेंटियर ने हजारों की तादाद में ऐसे इलाके और लोगों के चिन्हित किया और सुनिश्चत किया है कि जब तक लॉकडाउन  जैसे हालात रहेंगे ऐसे लोगों को भोजन और दवा जैसी जरूरी चीजों के लिए परेशान नहीं होना पडेगा और ये काम सतत जारी है ।
 
परोपकरार्थ ईदम शरीरम - सहस्त्रबुद्धे इस बात को लेकर बेहद उत्साहित है कि संकट की घड़ी हमें लोगों की चेतना को जांचने का भी अवसर  मिला ,इस डिजिटल प्लेटफार्म पर हमने ये पाया कि  दुनिया अन्य देशों के मुकाबले भारत के लोग परोपकार में बहुत आगे हैं । हर वॉलेंटियंर और उससे जुड़ने वाले लोग,  स्वयंसेवी संस्थायें क्षमता से आगे बढ़कर इस संकट से लड़ रहे हैं और अपना तन, मन धन सब लगा रहे हैं ।

वसुधैव कुटंबकम - सहस्त्रबुद्धे ने बताया कि इस प्लेटफार्म पर हजारों की तादाद में जुड़े ज्यादातर वॉलेंटियर्स एक दूसरे से अपरिचित है , कभी कोई किसी से नहीं मिला और ना ही देखा । अलग -अलग धर्म, संप्रदाय, जाति और भाषा के लोग, एक दूसरे से एकदम अनजान होकर भी वॉर रूम से सूचना और जानकारी  पाकर ऐसे एक्टिव हो जाते है जैसे पीड़ित या जरूतमंद उनके परिवार का ही सदस्य  हो । राहत पहुंचाने की उनकी सक्रियता और उनकी कर्तव्यपरायणता से जाहिर होता है कि  पूरे विश्व को एक परिवार मानने का बोध हम भारतीयों के रक्त में कितना गहरा है ।   

सर्वे संतु निरामय -   cowinactionnetwork.in का लक्ष्य भारत सरकार और भारत की जनता को सहयोग देना है  और हर हाल में कोरोना से देश को मुक्त करना है । विनय सहस्त्रबुद्दे को भरोसा है जैसे जैसे हमारा नेटवर्क आगे बढ़ेगा हम रोगियों और चिकित्सकों को कैसे मदद पहुंचा सकते हैं उस दिशा में भी आगे बढ़ेंगे। मास्क, सेनेटाइजर, संसाधन और जीवन रक्षक दवाईयों के जरिये भी मदद के लिए हमारे वॉलेंटियर्स कमर कस चुके हैं ।

Register to Be a Co-Win Warrior - cowinactionnetwork.in   

Sunday, April 5, 2020

#iSupportLampLighting - दिवालिया दिलजलों का मातम है आज


महामारी से पहले कुछ लोगों को मनोचिकित्सा की जरूरत  


घरों में बंद लोगों को असुरक्षा, निराशा और अवसाद से छुटकारा दिलाने के लिए प्रधानमंत्री ने देशवासियों से अपील की है कि रविवार की रात 9 बजे दीप जला कर पूरा राष्ट्र कोरोना से लड़ाई में एकजुटता का परिचय दे  लेकिन चंद दिलजलों की आग से धधक उठा  मीडिया, अखबार   और सोशल मीडिया का एक तबका । कुछ दूरदर्शी विद्वानों  ने कहा कि प्रधानमंत्री जी कहीं आगजनी हो गयी तो कौन जवाब देगा?, कुछ तकनीकी विद्वान थे उन्होंने लिखा की पावरग्रिड फेल हो जाएगा । कुछ प्रकांड विद्वान है उनका तर्क था कि प्रधानमंत्री अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं ।  कुछ इतने ज्यादा सवेंदनशील ज्ञानी है कि उन्होंने लिखा की गरीबों के पास खाने को तेल नहीं और प्रधानमंत्री दीये में तेल झोंक रहे हैं ।  कुछ कपालफोड़ विद्वानों की माने तो प्रधानमंत्री सियासत कर रहे है और इस गंभीर परिस्थिति को भी इवेंट बना रहे हैं।

    
इस वक्त देश का बच्चा-बच्चा करोना के विरूद्ध एक अभूतपूर्व लड़ाई लड़ रहा है, इस लड़ाई को सफल बनाने के लिए वो कितना कृतसंकल्पित है  इसका परिचय तभी मिल गया था जब प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू का आह्वान किया था  और उस दिन  शाम को पांच बजे अपनी घरों की बालकनी और छतों से थाली और घंटी बजाकर लोगों ने अपने नेता को भरोसा दिया कि हम आपके साथ है । लेकिन घनघोर विद्वानों ने कुतर्कों के ऐसे पुलिंदे खड़े कर दिये कि घंटी से कोरोना कैसे दूर होगा? ताली बजाने से कोरोना कैसे मरेगा, ये कोई मच्छर थोड़े है ? जब देश थाली पीट रहा था तो प्रचंड विद्वान कमरा बंद करके अपनी छाती पीट रहे थे।   

आखिर मौजूदा सरकार विरोधी ये राजनीतिक लोग, ये साहित्यकार, सिनेमाई दिग्गज, वामी, कामी और दामी पत्रकारों की जमात   मुश्किल की इस घड़ी में दीवारों पर सिर क्यों फोड़ रही  हैं? दीप जलाने की जगह ये लोग अपने दिल क्यों जला रहे हैं ? क्यों ऐसी बचकानी दलीलें दे रहे जिससे जनता की बीच इनका मानसिक दिवालियापन खुलकर सामने आ रहा है । 

कोरोना के मामले में विश्वस्वास्थ्य संगठन का साफ-साफ कहना है कि जब तक एक -एक आदमी सावधान नहीं होगा कोरोना से नहीं लड़ा जा सकता । एक आदमी की लापरवाही पूरे समाज की मेहनत पर पानी फेर सकती है । कोरोना से बचाव की इस वक्त कोई दवा नहीं है। कोरोना के सामने दुनिया के विकसित देशों ने घुटने टेक दिये हैं । स्वास्थ्य सेवाओं में अव्वल देशों के राष्ट्राध्यक्ष जनता और मीडिया के सामने फूट-फूट कर रो रहे हैं ।


भारत में कोरोना पूरा दम लगा रहा है । कुछ जाहिल जमात के लोग  कोरोना के साथ मिलकर तबाही की साजिश कर रहे हैं, डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों का मनोबल तोड़ने के लिए नीचता पर उतर आये हैं, उस पर ये विद्वान लोग उनका बचाव ये कह कर कर रहे हैं कि उनके अपने कुछ कायदे है जिसमें किसी को दखल नहीं देना चाहिए । बात- बात में संविधान की दुहाई देने वाले ये विद्वान इन हमलावर जाहिलों के मामले में संविधान को भी नजरअंदाज करने से नहीं चूक रहे ।  दिल्ली में परप्रांतियों को लेकर साजिश लगभग बेनकाब हो चुकी है । विपक्ष इस मुश्किल घड़ी में कोरोना को लेकर सियासी नफे की चालें चल रहा है । आप समझ सकते हैं सरकार के लिए भारत जैसे देश में कोरोना से लड़ना कितना मुश्किल है ।

 इन तमाम विरोधाभासों के बीच भारत का नेतृत्व  जिस तरह से इस वैश्विक आपदा पर फ्रंट से लीड कर रहा  है वो पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल बन चुकी हैं। भारत सरकार एकदम सही ट्रेक पर है ,इस वक्त ये लड़ाई ना तो  वेंटीलेंटर से जीती जा सकती है ना मास्क से । ना ही किसी आधुनिक संसाधन से। हां, इसकी जरूरत को किसी भी कीमत पर नकारा नहीं जा सकता ।   विश्व स्वास्थ्य संगठन का साफ- साफ कहना है कि मानव का मनोबल और उसकी सावधानी ही कोरोना के फैलाव को रोक सकती है।  सोशल और फिजिकल डिस्टेंसिंग ही इस वक्त इसका एकमात्र  इसका उपाय और निदान  है। ऐसे में घरों में बंद कोरोना से लड़ रहे लोगों में अगर प्रधानमंत्री दिये की रोशनी  और घंटी के नाद के जरिए जोश बढ़ा रहे हैं, असुरक्षा, निराशा और अवसाद को मात दे रहे है तो कौन सा गुनाह कर रहे हैं ? साफ है प्रधानमंत्री वातावरण को सकारात्मकता से भरना चाहते है तो उनके विरोधी विद्वान नकारात्मका का जहर घोलने में पूरा दम लगा रहे हैं क्योंकि ये सारे विद्वान घरों में बैठ कर कोरोना से नहीं दुनिया भर में मोदी को लेकर जनता के बढ़ते  भरोसे से  घबरा रहे हैं ।       

Friday, April 3, 2020

#IndiaFightsCorona- आओ भारत दीया जलायें

#9baje9minute


आओ भारत दीया जलायें, संसार से कोरोना का ये तिमिर मिटायें
एक दीया संयम का
एक दीया साहस का
एक दीया संघर्ष का
वायरस पर मानव विजय की ज्योति जगमगाये
आओ भारत दीया जलायें, संसार से कोरोना का ये तिमिर मिटायें

एक दीया , रोग से लड़ते साथियों के नाम
एक दीया दें, दिव्य सेवारथियों को सलाम
एक दीया करे, सारी साजिशों को नाकाम
उत्साह, उल्लास और उमंग का प्रकाश फैलायें
आओ भारत दीया जलाये, संसार से कोरोना का ये तिमिर मिटायें

एक दीया अस्तित्व की प्रार्थना में
एक दीया धर्म की साधना में
एक दीया कर्म की आराधना में
नव दीप के दावानल में हर निराशा  जलायें
आओ भारत दीया जलाये, संसार से कोरोना का ये तिमिर मिटायें

Tuesday, March 24, 2020

#IndiaFightsCorona :राष्ट्रीय चरित्र को जांचने का ये एक अवसर

बाहर जा नहीं सकते तो भीतर ही  झांकिये #StayAtHomeSaveLives

इटली से एक दंपत्ति को बेंगलुरू एयरपोर्ट पर जांच के दौरान कोरोना का संदिग्ध पाया गया गया । प्रशासन ने एहतियातन  दोनों को क्वॉरंटीन कर दिया । लेकिन युवती प्रशासन को चकमा देकर फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली और फिर दिल्ली से ट्रेन पकड़ कर आगरा, अपने मायके पहुंच गयी । जब बेंगलुरू प्रशासन को इसकी भनक लगी तो आनन -फानन में आगरा प्रशासन को सूचित किया गया । आगरा में युवती के पिता रेलवे अधिकारी है उन्होंने पुलिस से झूठ बोला की बेटी उनके पास नहीं है । बाद में प्रशासन को सख्ती करनी पड़ी और 123 साल के बाद महामारी फैलाने की धाराओं आईपीसी 269 और 270 के तहत उन पर कार्रवाई करने पड़ी । आज आगरा पूरी तरह से लॉक डाउन है । कल्पना करिए  बेंगलुरू -दिल्ली फ्लाइट और दिल्ली आगरा ट्रेन में युवती जिन- जिन लोगों के संपर्क में आयी थी उन तक सूचना पहुंचाने में प्रशासन की कितनी ताकत बर्बाद हुई होगी।


लखनऊ में  सेलेब्रिटी स्टेट्स रखने वाली कनिका कपूर और उससे जुड़े अभिजात्य वर्ग का मामला और भी भयावह है। कनिका का गुनाह ये कि कोरोना संदिग्ध होने के बावजूद उसने जानकारी छुपायी और फिर पैसों के लालच में बड़ी -बड़ी पार्टियों में शिरकत की । अपराध उन लोगों का भी है जिन लोगों ने सरकार की एडवायसरी जारी होने के बाद भी पार्टियों का आयोजन किया । इस गैरजिम्मेदाराना हरकत के चलते देश की संसद के भीतर तक कोरोना का हड़कंप मच गया । कई सांसदों को खुद को क्वॉरंटीन करना पड़ा ।

विदेश में रहने  वाले मध्यप्रदेश के जबलपुर के  चार लोग,  बजाय खुद को क्वॉरंटीन करने के खुले आम घूमने फिरने लगे और पूरे जिले को अभिशप्त कर दिया । ऐसे हाइली क्वॉलीफाइड लोगों के चरित्र के चलते भारत के दूर-दराज के इलाकों में महामारी ने अपने पैर जमा लिये है । मजबूरी में सरकार को छोटे छोटे शहरों को लॉक डाउन करना पड़ रहा है ।

मुंबई के पास पालघर में गरीबरथ के य़ात्रियों ने घबराहट में पुलिस को फोन लगा कर सूचित किया कि चार विदेश से लौटे कोरोना संदिग्ध यात्री ट्रेन में सफर कर रहे हैं जिनके हाथ में क्वॉरंटीन होने की मुहर लगी है । पुलिस को उन्हें ट्रेन से उतारना पड़ा । ऐसे पढ़े- लिखे लोगों की चलते भारतीय ट्रांसपोटेशन खतरे में पड़ गया । सरकार की लाख समझाइश के बाद भी लोग नहीं माने तो  मजबूरी में सरकार को सारी ट्रेन सेवाएं बंद करनी पड़ी ।

सरकार के मना करने के बाद भी लोगों ने दुकानें बंद नहीं की थी । सरकार के मना करने के बाद भी प्राइवेट दफ्तरों ने खुद पर लगाम नहीं लगाई थी । सरकार के मना करने के बाद भी प्राइवेट-स्कूल के लोग टीचरों को जबरिया बुला कर बैठा रहे थे । और जिन लोगों को छुट्टी मिल गई वो सस्ती फ्लाइट और सस्ते होटल्स की वजह से सपरिवार छुट्टियां मनाने निकल गये । जबकि चीन ,इटली, अमेरिका और ईरान की बेबसी से वो अच्छी तरह वाकिफ थे ।

मजबूरी में प्रधानमंत्री को पूरे देश में जनता कर्फ्यू का आह्वान करना पड़ा, रविवार शाम पांच बजे तक तो सब ठीक था लेकिन पांच बजते ही देश के कई शहरो में लोगों ने रैली ही निकाल दी  और पूरी मेहनत पर पानी फेर दिया ।सरकार ने जोर देकर  कहां था कि बहुत जरूरी हो तभी घर से बाहर निकले तो लोगों के बहाने सुनिए - किसी को टैटू कराने जाना था , तो किसी को ब्यूटी पार्लर। इस तरह लोगों के जरूरी काम सुनेंगे तो आप अपने बाल नोंच लेंगे । दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में सड़कों पर गाड़ियों का  जाम लगना कायम रहा । मजबूरी में महाराष्ट्र समेत कई प्रदेशों में कर्फ्यू लगाना पड़ा । पुलिस को लोगों को घर में रखने के लिए सख्ती करनी पड़ रही है । लेकिन लोगों को समझ नहीं आ रहा है । कई लोग वीआईपी होने की धौंस दिखा कर पुलिस को चकमा रहे हैं ।  सब्जी और राशन की दुकानें देखते ही लोग टूट पड़ रहे हैं । सरकार कह रही है कालाबाजारी मत करो लेकिन लोग सैनेटाइजर और मास्क से पैसा बनाने में नहीं चूक रहे हैं । पानी, सब्जी, राशन, दवा सब को लेकर जहां जिसकों जैसा मौका मिल रहा है लोग लूट है ।

धार्मिक लोगों की बात ही मत करिए वर्ना लोग आप को सांप्रदायिक कहेंगे, मस्जिदों में लोग पहले की ही तरह  जुट रहे है ।   मंदिरों में भी भक्तों की आवाजाही जारी रही  । तब मजबूरी में धार्मिक स्थलों को भी बंद करने का फैसला लेना पड़ा । शाहीन बाग जैसे प्रदर्शनकारी जब ना सरकार की सुने और ना कोर्ट की, तब पुलिस को ही अपना काम करना पड़ा।

 एक तरफ कुछ लोग ईमानदारी से सरकार की सलाह मान कर राष्ट्रीय चरित्र को फॉलो कर रहे हैं तो दूसरी तरफ ज्यादातर लोग अभी भी अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहे हैं ।  औरते अपने अपने छोटे -छोटे बच्चों के साथ टहल रही है । कई जगह बुजुर्ग बैठकी के लिए बेचैन हो रहे हैं, तो युवा मौका पाते ही परिवार को लेकर आसपास ड्राइविंग कराने के बाज नहीं आ रहे ।कर्फ्यू के चलते कई सोसायटी में कचरेवाला नहीं पहुंच पा रहा है तो लोग अपने दरवाजे में ही कचरे का ढेर लगा कर बैठे है क्योंकि ये उनका काम नहीं है ।

ज्यादातर विरोधी पार्टियां ऐसे संवेदनशील मौके पर क्या कर रही है आप जरा विरोधी नेताओं के ट्विट पढ़ लीजिए । कई मीडिया समूह जागरूकता को लेकर जान झोंक रहे हैं तो कुछ मीडिया समूह  दुनिया के सामने भारत को शर्मिंदा करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं । वो मुद्दों की नहीं, बल्कि निजी मनभेदों को लेकर भड़ास निकाल रहे हैं । वो इस आपदा को निजी राजनीतिक अवसर के तौर पर कैश करा रहे हैं । 

 हालत बहुत बुरी है, लोग स्वअनुशासन में नहीं है , ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों के पास सख्ती करने के सिवा कोई चारा नहीं था क्योंकि आपने प्रमाणित किया कि इससे कम में आप मानेंगे नहीं  और फिर सरकारों से  चूक हो गयी तो यही मौज -मस्ती करने वाले सरकार को जिम्मेदार ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे । इनता सब होने के बाद भी आइना दिखाने वालों को आप जी भर कोस लेते और खुद को महान बता लेते है ये क्या कम है।