Sunday, April 5, 2020

#iSupportLampLighting - दिवालिया दिलजलों का मातम है आज


महामारी से पहले कुछ लोगों को मनोचिकित्सा की जरूरत  


घरों में बंद लोगों को असुरक्षा, निराशा और अवसाद से छुटकारा दिलाने के लिए प्रधानमंत्री ने देशवासियों से अपील की है कि रविवार की रात 9 बजे दीप जला कर पूरा राष्ट्र कोरोना से लड़ाई में एकजुटता का परिचय दे  लेकिन चंद दिलजलों की आग से धधक उठा  मीडिया, अखबार   और सोशल मीडिया का एक तबका । कुछ दूरदर्शी विद्वानों  ने कहा कि प्रधानमंत्री जी कहीं आगजनी हो गयी तो कौन जवाब देगा?, कुछ तकनीकी विद्वान थे उन्होंने लिखा की पावरग्रिड फेल हो जाएगा । कुछ प्रकांड विद्वान है उनका तर्क था कि प्रधानमंत्री अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं ।  कुछ इतने ज्यादा सवेंदनशील ज्ञानी है कि उन्होंने लिखा की गरीबों के पास खाने को तेल नहीं और प्रधानमंत्री दीये में तेल झोंक रहे हैं ।  कुछ कपालफोड़ विद्वानों की माने तो प्रधानमंत्री सियासत कर रहे है और इस गंभीर परिस्थिति को भी इवेंट बना रहे हैं।

    
इस वक्त देश का बच्चा-बच्चा करोना के विरूद्ध एक अभूतपूर्व लड़ाई लड़ रहा है, इस लड़ाई को सफल बनाने के लिए वो कितना कृतसंकल्पित है  इसका परिचय तभी मिल गया था जब प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू का आह्वान किया था  और उस दिन  शाम को पांच बजे अपनी घरों की बालकनी और छतों से थाली और घंटी बजाकर लोगों ने अपने नेता को भरोसा दिया कि हम आपके साथ है । लेकिन घनघोर विद्वानों ने कुतर्कों के ऐसे पुलिंदे खड़े कर दिये कि घंटी से कोरोना कैसे दूर होगा? ताली बजाने से कोरोना कैसे मरेगा, ये कोई मच्छर थोड़े है ? जब देश थाली पीट रहा था तो प्रचंड विद्वान कमरा बंद करके अपनी छाती पीट रहे थे।   

आखिर मौजूदा सरकार विरोधी ये राजनीतिक लोग, ये साहित्यकार, सिनेमाई दिग्गज, वामी, कामी और दामी पत्रकारों की जमात   मुश्किल की इस घड़ी में दीवारों पर सिर क्यों फोड़ रही  हैं? दीप जलाने की जगह ये लोग अपने दिल क्यों जला रहे हैं ? क्यों ऐसी बचकानी दलीलें दे रहे जिससे जनता की बीच इनका मानसिक दिवालियापन खुलकर सामने आ रहा है । 

कोरोना के मामले में विश्वस्वास्थ्य संगठन का साफ-साफ कहना है कि जब तक एक -एक आदमी सावधान नहीं होगा कोरोना से नहीं लड़ा जा सकता । एक आदमी की लापरवाही पूरे समाज की मेहनत पर पानी फेर सकती है । कोरोना से बचाव की इस वक्त कोई दवा नहीं है। कोरोना के सामने दुनिया के विकसित देशों ने घुटने टेक दिये हैं । स्वास्थ्य सेवाओं में अव्वल देशों के राष्ट्राध्यक्ष जनता और मीडिया के सामने फूट-फूट कर रो रहे हैं ।


भारत में कोरोना पूरा दम लगा रहा है । कुछ जाहिल जमात के लोग  कोरोना के साथ मिलकर तबाही की साजिश कर रहे हैं, डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों का मनोबल तोड़ने के लिए नीचता पर उतर आये हैं, उस पर ये विद्वान लोग उनका बचाव ये कह कर कर रहे हैं कि उनके अपने कुछ कायदे है जिसमें किसी को दखल नहीं देना चाहिए । बात- बात में संविधान की दुहाई देने वाले ये विद्वान इन हमलावर जाहिलों के मामले में संविधान को भी नजरअंदाज करने से नहीं चूक रहे ।  दिल्ली में परप्रांतियों को लेकर साजिश लगभग बेनकाब हो चुकी है । विपक्ष इस मुश्किल घड़ी में कोरोना को लेकर सियासी नफे की चालें चल रहा है । आप समझ सकते हैं सरकार के लिए भारत जैसे देश में कोरोना से लड़ना कितना मुश्किल है ।

 इन तमाम विरोधाभासों के बीच भारत का नेतृत्व  जिस तरह से इस वैश्विक आपदा पर फ्रंट से लीड कर रहा  है वो पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल बन चुकी हैं। भारत सरकार एकदम सही ट्रेक पर है ,इस वक्त ये लड़ाई ना तो  वेंटीलेंटर से जीती जा सकती है ना मास्क से । ना ही किसी आधुनिक संसाधन से। हां, इसकी जरूरत को किसी भी कीमत पर नकारा नहीं जा सकता ।   विश्व स्वास्थ्य संगठन का साफ- साफ कहना है कि मानव का मनोबल और उसकी सावधानी ही कोरोना के फैलाव को रोक सकती है।  सोशल और फिजिकल डिस्टेंसिंग ही इस वक्त इसका एकमात्र  इसका उपाय और निदान  है। ऐसे में घरों में बंद कोरोना से लड़ रहे लोगों में अगर प्रधानमंत्री दिये की रोशनी  और घंटी के नाद के जरिए जोश बढ़ा रहे हैं, असुरक्षा, निराशा और अवसाद को मात दे रहे है तो कौन सा गुनाह कर रहे हैं ? साफ है प्रधानमंत्री वातावरण को सकारात्मकता से भरना चाहते है तो उनके विरोधी विद्वान नकारात्मका का जहर घोलने में पूरा दम लगा रहे हैं क्योंकि ये सारे विद्वान घरों में बैठ कर कोरोना से नहीं दुनिया भर में मोदी को लेकर जनता के बढ़ते  भरोसे से  घबरा रहे हैं ।       

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