Monday, June 13, 2016

सब ठीक है लेकिन ..पार्ट -3

 #UDTA PUNJAB # UDTA CINEMA # UDTA KASHYAP
महान फिल्मकार सत्यजीत रे ने कहा था कि सिनेमा का सबसे असरदार गुण ये है कि वो मानवमन की सूक्ष्मतम बातों को  ग्रहण कर उसे उसी तरीके से प्रस्तुत भी कर देता है । लगता है फिल्म अनुराग कश्यप की फिल्म उड़ता पंजाब  नशे की मानसिकता को इतने असरदार तरीके से प्रस्तुत कर रही है कि जिसे देखने के बाद सेंसर बोर्ड के सर्वेसर्वा पहलाज निहलानी के सिर पर अपने पद का नशा हो गया है और दुनिया को नशे से बचाने के लिए उन्होंने 89 कट का फरमान जारी कर दिया और कह दिया कि नशा कितना भी हो फिल्म के शीर्षक में पंजाब नहीं उड़ेगा ।  उड़ता पंजाब से पंजाब हटाओ । बांबे हाईकोर्ट के आदेश के बाद पहलाज निहलानी  का नशा उतर गया होगा । क्योकि अदालत ने कहा कि  ''सीबीएफ़सी को क़ानून के मुताबिक फ़िल्मों को सेंसर करने का अधिकार नहीं है क्योंकि सेंसर शब्द सिनेमाटोग्राफ़ अधिनियम में शामिल नहीं किया गया है.'' हाईकोर्ट ने कहा कि सेंसर बोर्ड को किसी भी सीन को काटने या बदलने का अधिकार तभी है जब वो संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार हो। अब सब ठीक है फिल्म एक कट के साथ 17 जून को उड़ता पंजाब के नाम से ही रीलीज होगी ।
सब ठीक है लेकिन  ये सवाल अनुराग कश्यप से पूछना तो बनता है कि अभिव्यक्ति की आजादी के  नशे में उनका  भारत की तुलना उत्तर कोरिया से करना कितना जायज था ?
सब ठीक है लेकिन अपने रसूख पर हमला होते देख पहलाज निहलानी का खुद को सबसे बड़ा चमचा ठहराना कितना सही था ?
सब ठीक है लेकिन उड़ता पंजाब में वाकई क्या  कुछ नशा है? जो फैसला राकेट की रफ्तार से आया और फिल्म के रीलीज की सारी रूकावटे खत्म हो गई !
 सब ठीक है लेकिन मै और मेरे देश के लोग जानना चाहते है बलात्कार के मामलों में , भष्ट्राचार के मामलों में,  ( लिस्ट बहुत लंबी है ) कास्टिंग काउच के मामलों में , सलमान खान जैसे सितारों के सड़क हादसे के मामले में , काले हिरण शिकार के मामले में , फरदीन खान जैसे सितारों के ड्ग्स लेने के मामलों में, गोविंदा जैसे लोगों के चांटा मारने के मामले में , फिल्मी सितारों के आर्थिक अपराधों के मामलों में अदालतों में फैसले इतनी फुर्ती से क्यों नहीं आते ?
सब ठीक है लेकिन तब फिल्म इंडस्ट्री के  एकजुट होकर  न्याय मांगने का नारा क्यों ठंडा पड़ जाता है ?
सब ठीक है लेकिन कोई फिल्मकार , फैंटम बनकर "उड़ता सिनेमा" भी बना कर दिखाए ,ताकि  महान सत्यजीत रे की उक्ति के अनुसार आखिर वर्तमान सिनेमाजगत की मानसिकता स्क्रीन पर भी स्पष्ट हो ।    

2 comments:

Smita Rajesh said...

बेहतरीन विश्लेषण। बिलकुल सिने fraternity ऐसे ही कई सवालों के घेरे में है। और इतना त्वरित निर्णय ।। इस पर भी चर्चा होनी चाहिए।

jaideep shukla said...

Ye kafi dilchasp hai bhaiya.... aur ham sabko sochne par majboor bhi karta hai