Wednesday, June 22, 2016

सब ठीक है लेकिन ( पार्ट -6)


सलीम खान की माफी से सब ठीक कैसे हो सकता है?
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कहते है सिनेमा समाज का दर्पण होता है और सिनेमा के सितारे उसे परदे पर जीते है  और ऐसा करते-करते कभी -कभी वो समाज के उस दोहरे मापदंड की सीमाओं को भूल जाते हैं । शायद सलमान खान ने भी यही कर दिया । जी हां,  मैंने सुना है, आप भी अगर खुद से सच बोलेंगे तो यकीन मानिए आपने भी सुना होगा और इसे पढ़नेवाले और ना पढ़नेवाले ना जाने कितने लोगों ने बोला भी होगा कि यार! आज तो रेप हो गया, वैसे ही जैसे एक इंटरव्यू में अपनी आने वाली फिल्म-सुल्तान को लेकर सलमान ने कहा "जब मैं शूटिंग के बाद रिंग से बाहर निकलता था तो बलात्कार की शिकार एक महिला की तरह महसूस करता था, मैं सीधा नहीं चल पाता था" शायद सलमान ने आपसी बोलचाल में ना जाने ऐसा कितनी बार बोला होगा और इसी लगी में वो ये बात मीडिया में बोल गये और फिर क्या था मच गया हंगामा  ।  इस मुद्दे पर जहां सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना  हो रही है वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी सलमान ख़ान को नोटिस भेजकर सात दिन में जवाब दाख़िल करने को कहा है। 
जब मैं ऐसा लिख रहा हूं तो यकीन मानिए मैं कोई सलमान के प्रति सहानुभूति नहीं जता रहा । बल्कि मेरा तो ये मानना है कि वो एक सफल एंटरटेनर है इससे ज्यादा कुछ नहीं । जिस तरह का उनका जीवन रहा है उससे मैं उनको यूथ आइकन भी नहीं मानता  और वो आदमी आइकन हो भी  कैसे सकता है जिसके गैरजिम्मेदाराना  बयान के चलते उनके पिता को माफी मांगनी पड़ी होए  ये कहना पड़ा हो कि बेटे से गलती हो गई । 

हो सकता है कि एक बाप की माफी ने सारे पाप सेटल कर दिया हों , हो सकता है  सब ठीक हो गया हो । लेकिन फिर भी मेरा मानना है कि एक माफी  सबकुछ  ठीक कैसे हो सकता हैए जब बड़े- बड़े कॉरपोरेट हाउसेज मे,  बड़े- बड़े मीडिया हाउसेज में, बड़े -बड़े   वाइस प्रेसीडेंट, सीईओं और तमाम बॉसेज की बातचीत अंग्रेजी के"एफ" अक्षऱ से  शुरू होनेवाले शब्द के बिना पूरी नहीं होती । पढ़ी- लिखी अंग्रेजी बोलनेवाली महिलाओं में भी इसका चलन खूब है ।  

सलीम खान के माफी मांगने से सब ठीक कैसे हो सकता है जब इस देश के गली .मोहल्लों से लेकर सरकारी दफ्तरों में,  मवाली टाइप के लोगों से लेकर तथाकथित  संभ्रांत वर्ग के लोगों तक,    गुस्से और हंसी मजाक तक में लोग मां-बहन की गालियों का इस्तेमाल सहायक क्रिया के तौर पर करते हों । 

सलीम खान के माफी मांगने से सब ठीक कैसे हो सकता है जब इस देश के बुध्दिजीवियों में ही दो भाषा का चलन हो । एक संसदीय भाषा का और एक असंसदीय भाषा का । संसद में अगर  किसी नेता ने अंससदीय भाषा का इस्तेमाल कर लिया तो उसे रिकॉर्ड से हटा दिया जाता है,  लेकिन एक अभिनेता ने असंसदीय भाषा को इस्तेमाल किया  दिया तो उसे रिकॉर्ड की तरह मीडिया ने बजा दिया    और बना दिया राष्ट्रीय मुद्दा । 

जिस देश में, जिस समाज में लोग ऑन द रिकॉर्ड कुछ बोलते हो और ऑफ द रिकॉर्ड कुछ,  वहां आप यकीन के साथ कैसे कह सकते हैं कि सब ठीक है । 
सलमान के साथ- साथ अपनी रोजमर्रा की बातचीत पर भी जरा गौर करिएगा और फिर सोचिएगा क्या सब ठीक है? 

4 comments:

Unknown said...

इंतज़ार था इस पर तुम्हारी प्रतिक्रिया का ...जहाँ सब कुछ ग़लत है वहां सब ठीक कैसे? उड़ता पंजाब कुछ या बहुत (मानसिकता पर दावा नहीं कर सकती ) सिर्फ इसलिए देखने गए की बोले गए अपशब्द या खुली भाषा में कहें तो गालियाँ मस्त थीं और रेप सीन उनकी तृष्णा को शांत कर रहे थे तो वहां कैसे सब ठीक? ये है हमारा दोहरा समाज ! ऑन थे रिकॉर्ड कुछ और ऑफ थे रिकॉर्ड बहुत कुछ ...!
संतुलित और अंतस को छूने वाली प्रतिक्रिया !

Shilpa Sharma said...
This comment has been removed by the author.
Shilpa Sharma said...

सलमान खान को मै न तो सपोर्ट करती हूं, न ही पसंद करती हूँ. लेकिन ये मानती हूँ कि ज़बान सबकी फिसलती है, फिसल सकती है. ये भी मानती हूँ कि सितारों व नामचीन हस्तियों को ज़बान खोलने पहले दस बार सोचना चाहिए, क्योंकि उनकी ज़बरदस्त फैन फॉलोइंग होती है, लाग उन्हें आइकॉन की तरह देखते हैं. लेकिन जब किसी को कुछ बोलते ही अपनी ग़लती का एहसास हो जाता है और वो तुरंत इसे मान लेता है तो बखेड़ा खड़ा करने का क्या औचित्य है? मीडिया को क्या हो गया है श्रीधर, क्या उसकी कोई ज़िम्मेवारी नहीं ? क्या टीअारपी सब पे भारी है? ज़रा ये लिंक देखो...
http://www.bbc.com/hindi/entertainment/2016/06/160622_salman_khan_rape_flip_say_sp_ssm

Shilpa Sharma said...

और जहां तक हमारे देश के पुरुषों के महिलाओं की गालियां दे कर बात करने की बात है.. वो तो इसे कूल समझते हैं... जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं, इससे उनकी मर्दानगी को बल मिलता है... पुरूषों की बराबरी करने की चाह मे कई महिलाएं भी इसे कूल समझती हैं और प्रयोग करती हैं... ये कुंठा है.... खुद प्रयास करेंगे तभी ऐसा करने से रोक पाएंगे खुद को लोग... और कोई तरीका नही है...चरित्र तो हर व्यक्ति खुद ही बना सकता है.