दूरदर्शिता में पिछड़ जाते हैं कांग्रेस अध्यक्ष!
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चुनावी हार के सदमें से
बाहर ही निकल पा रहे हैं जीत के बाद वायनाड पहुंचे राहुल ने प्रधानमंत्री पर झूठ
बोल कर चुनाव जीतने का आरोप लगाया। यहीं नहीं उन्होंने प्रधानमंत्री पर नफरत
फैलाने का आरोप भी मढ़ दिया और विरोध में मुखर राहुल गांधी ने यहां तक कह दिया कि वो ज़हर से लड़ रहे हैं। फिर उन्होंने
दावा किया वो ये लड़ाई प्यार और मोहब्बत से जीतेंगे। केरल की जनता को धन्यवाद देने
के राहुल के इस तरीके में कितना प्यार है, कितनी नफरत और नाकामी को लेकर कितनी
खीज़ भरी है इसे आसानी से समझा जा सकता है। राहुल जनमत सम्मान शिष्टाचार भी
प्रदर्शित ना कर सके और वो वायनाड की धरती से पूरे भारतीय मतदाताओं का अपमान कर
बैठे।
जिस वक्त 8 जून 2019 को राहुल वायनाड में रोड शो कर प्रधानमंत्री को
भला-बुरा कह रहे थे उसी वक्त करीब
200 किलोमीटर दूर त्रिशूर में मोदी ने केरल लोगों को भरोसा दिया कि केरल उनका उतना
ही अपना है जितना बनारस। पीएम मोदी ने कहा कि
हम राजनीति में सरकार बनाने के लिए नहीं बल्कि लोगों की सेवा करने के लिए हैं। पीएम मोदी ने कहा कि
जनता-जर्नादन ईश्वर का रूप है। राजनीतिक दल जनता के मिजाज के नहीं पहचान
पाए लेकिन जनता ने भाजपा और एनडीए के पक्ष में प्रचंड जनादेश दिया, मैं सिर झुकाकर जनता
को नमन करता हूं।
इस तरह देखा जाये तो मोदी भले ही केरल में चुनाव हार
गये हो लेकिन राजनीतिक शिष्टाचार में बाजी मार ली और केरल के लोगों का दिल जीत
लिया। यहीं नहीं वो पूरी तरह से केरल के परम्परागत वेषभूषा में थे, उन्होंने
गुरूवायूर मंदिर में जाकर विशेष पूजा की। यहां मोदी को तराजू पर कमल के फूलों से
तौला गया। अपनी इस यात्रा से उन्होंने केरल और गुजरात के कृष्ण कनेक्शन की
कहानियों को यहां कि फिजा में एक बार फिर से जिंदा कर दिया। किवदंतियों के मुताबिक
द्वारिका के एक मंदिर की भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति एक बार समुद्री तूफान में बह
गई और कलयुग के प्रारंभ में वो मूर्ति देवगुरू बृहस्पति और वायुदेवता को मिली। दोनों
ने मिलकर करीब 5000 साल पहले इस जगह पर इस मंदिर की स्थापना की। गुरूवायूर केरल की
हिंदू धार्मिक आस्था के सबसे बड़े क्रेंद में एक है। केरल में हिंदुओं की आबादी करीब
55 प्रतिशत है सियासत में सकेंतों के बड़े मायने होते हैं। मोदी ने भविष्य के लिए अपने विश्वास को इस तरह
और प्रगाढ़ कर लिया।
वहीं राहुल राजनीतिक दूरदृष्टि की बात करें राहुल ने
जिस दिन अमेठी के अलावा वायनाड से चुनाव लड़ने का ऐलान किया था वो चुनाव उसी दिन
हार गये थे। जनता के बीच ये संदेश साफ-साफ गया कि उनके पास सांसद की सीट बचाने के
लाले पड़ गये थे। कहते हैं जिस तरह मछली के बच्चे को तैरना नहीं सिखाना पड़ता उसी
तरह राजनीतिक घराने के बच्चे गर्भ से सियासी संस्कार लेकर आते है लेकिन राहुल गांधी
को सियासत में अब लंबा वक्त हो चुका है वो एक को पाने के चक्कर में दस का नुकसान
कर बैठते है। फिर वो चाहे कर्नाटक हो, चाहे उत्तर प्रदेश हो या देश में कहीं पर भी
उन्होंने सियासी गठबंधन किया हो उनको नुकसान और अपमान के सिवा कुछ नहीं मिला।
जहां तक केरल की जीत का सवाल है अगर राहुल इसे अपनी
जीत मान रहे हैं तो वो एक बार फिर गलतफहमी में है क्योंकि इस जीत में भी बीजेपी की
भारी मेहनत छुपी है। बीजेपी ने शबरीमला आंदोलन को लेकर यहां जबरदस्त मेहनत की थी ।
पिनरई विजयन सरकार को लेकर बहुसंख्यकों का गुस्सा उफान पर था। लेकिन ये गुस्सा
बीजेपी के वोट में तब्दील नहीं हो सका क्योंकि जानकारों का मानना है कि बीजेपी से सहानुभूति
रखने वाले वोटर्स ने ऐन मौके पर क्रॉस वोटिंग कर दी। इन वोटर्स ने संभवत:
ऐसा सोचा कि अगर विजयन सरकार को सबक सिखाना है तो इसके लिए कांग्रेस एक बेहतर
विकल्प हो सकता है। यह विचार काम कर गया कि जब लड़ाई एलडीएफ और यूडीएफ के बीच है
तो अपना वोट बीजेपी को देकर खराब क्यों जाए। बाकी जो धार्मिक समीकरण
थे वो तो थे ही। लगता है अपनी नाकामी में राहुल में हाथ आये केरल के इस अवसर को भी
कहीं गवां ना दें।
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