राम को मिटाने में कहीं ममता ना मिट जायें
“भारतीयों के लिए राम-लक्ष्मण और सीता जितने सत्य है
उतने उनके घर के लोग नहीं, परिपूर्णता के प्रति भारत वर्ष के लिए प्राणों की आकांक्षा
हैं राम” – गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर
“हरे
राम-हरे कृष्ण ये नाम तो सब पापों का नाश करता है ये नाम प्रेम का कारण है और
भक्ति को प्रकाशित करता है”–चैतन्य महाप्रभु
टैगोर
की कविता पर राम की कृपा रही है तो चैतन्य महाप्रभु की चेतना के मूल में भी राम ही मिलते हैं। ईश्वरचंद्र
विद्यासागर के ज्ञान का आधार भी राम है और रामकृष्ण परमहंस के नाम में ही राम है। उन्नीसवीं
सदी में हिंदुत्व का जागरण करने वाले विवेकानंद का एक किस्सा मशहूर है कि जब वो तार
घाट स्टेशन पर भूखे-प्यासे बैठे थे तब एक अजनबी उनके पास खाना लेकर आया और बोला कि
भगवान राम ने स्वप्न में आकर उन्हें भोजन करवाने का आदेश दिया है। जाहिर है बंगाल
के साहित्य में, संस्कृति में, सभ्यता में, सुधारवादी आंदोलन में, धर्म और भक्ति में,
संस्कार और रक्त में सर्वत्र राम ही स्रोत हैं।
राम की चेतना से भरी
ऐसी बंगाल की धरती में ये दृश्य कितना अजीब है कि जयश्रीराम सुनते ही वहां की महिला
मुख्यमंत्री अपना आपा खो बैठती हैं। गाड़ी से उतर कर बीच सड़क में चीखने-चिल्लाने
लगती हैं। अपनी सियासत को बचाने के लिए राम को मिटाने पर वो किस कदर आमादा है उसकी
एक छोटी सी मिसाल ये है कि सरकार ने स्कूल की किताबों में बंगाली शब्द 'रामधनु', जिसका अर्थ इंद्रधनुष है, को बदल दिया है। राम
शब्द से छुटकारा पाने के लिए तीसरी क्लास की किताबों में पर्यावरण के पाठ में 'रामधनु' शब्द को बदलकर 'रोंगधोनु' कर दिया गया है।
सियासत
के लिए राम को मिटाने की ये मुहिम क्या इतनी आसान है क्या अब बंगाल में रामकृष्ण परमहंस
का नाम बदल जायेगा? क्या राम के उदाहरणों से भरे ईश्वरचंद्र विद्यासागर के भाषण जला दिये जाएंगे? बंगाल की राम भक्ति और राम शक्ति की चेतना,
चैतन्य महाप्रभु को विस्मृत कर दिया जाएगा? चलो एक बार मान लिया कि अपनी बौखलाहट में आपने गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर के साहित्य पर भी
प्रतिबंध लगा दिया लेकिन बंगाल का रक्त और वहां की आत्मा को कैसे बदलेंगीं? टैगोर ने शायद इसीलिए कहा था कवि का मस्तिष्क ही राम का जन्मस्थान है जो अयोध्या
से कहीं ज्यादा वास्तविक है।
राष्ट्रपति महात्मा गांधी की समाधि पर हे राम! लिखा है क्या बंगाल के लोग ममता बनर्जी को
इतना बड़ा जनादेश देने वाले है कि वो समाधि से भी राम को मिटा दे? भारत की तरह बंगाल में भी मूल्य का
विनियम गांधी की तस्वीर वाले नोट से ही होता औऱ उसी गांधी ने कहा है कि “मेरे द्वारा जो कुछ समाज की सेवा हो सकी
वह राम नाम की देन है। मेरे पास राम नाम के सिवा कोई शक्ति नहीं है, वही मेरा
एकमात्र सहारा है”
बंगाल के भूगोल में भी
राम हैं हिमालय से निकल कर बंगाल की खाड़ी में समाहित होने वाली गंगा को इस धरती
पर राम के पूर्वजों ने ही उतारा था। तो क्या ममता दीदी गंगा की धारा को भी मोड़
देंगी । जिस लोकतंत्र ने आप जैसी साधारण महिला को मुख्यमंत्री
बनाया वो राम के लोकतांत्रिक मूल्यों के कारण ही है। लोकतंत्र की जीवंत बनाने के
लिए इस देश में राम से बड़ी कुरबानी किसी ने नहीं दी। जब तक भारत में राम है तब तक
लोकतंत्र है अब आप सत्ता के अहंकार में उसी राम को और उसी लोकतंत्र को कुचलने
निकली है लेकिन ये हो ना पाएगा क्योंकि आपने राम को नहीं जाना। अरे आप गुरूदेव रवींद्रनाथ
टैगोर को ही अच्छे से पढ़ लेतीं तो जान लेतीं की राम हैं क्या। टैगोर ने कहा है कि
रामायण हमारे सामाजिक जीवन का महाकाव्य है।
ममता दीदी प्रार्थना है
भारत के जिस इतिहास को आपने पढ़ा है उसका मनन कीजिए, आपको पता चलेगा कि इस देश में
दुराचारियों ने अपना प्रभाव जमाया जरूर है
लेकिन लेकिन जब जब राम नाम का संकल्प लेकर भारत के लोग खड़े हुए उनका नामोनिशान
मिट गया। रावण से लेकर कंस तक, कौरवों से लेकर घनानंद तक। मुगलों लेकर अंग्रेजों
तक सबने राम को मिटाने की कोशिश की और खुद मिट गये क्योंकि राम भारत के पंचतत्वों
में है क्षिति, जल, पावक, गगन समीरा में राम की ही गूंज है। राम की महिमा का समझिए ममता दीदी, जम कर राजनीति
करिए लेकिन राम को पकड़ कर चलिए। राम को नकारने वाले वामपंथियों के पतन का उदाहरण
आपके सामने है, लोकसभा 2019 की झांकी आपने देख ली है, अभी भी वक्त है संभल जाइये राम
को मिटाने कोशिश मत करिए।
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