Wednesday, June 19, 2019

बीमारियां स्लीपरसेल की तरह तो क्या मीडिया गिद्ध की तरह?

मेरे देश में मौत का मुजफ्परपुर ताक में रहता हैं


बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से होने वाली मौतों का सिलसिला रूकने का नाम नहीं ले रहा उस पर मीडिया के लोगों ने जाकर जिस तरह से आईसीय़ू में कोहराम मचाया उसने दवा की बजाय दर्द ही दिया । ड्यूटी कर रहे डॉक्टर पर मीडिया के माइक की धौंस दिखाने से क्या हासिल हुआ ? नर्स और वॉर्ड ब्वॉय की हैसियत क्या होती है, बेचारे वो तो अपना काम ही कर रहे थे । इस दबाव में जितने संसाधन है अस्पताल प्रबंधन उसमें अपना बेहतर ही कर रहा होगा ऐसा मेरा यकीन है। इस वक्त तो माइक प्रशासन के मुंह में होना चाहिए, अधिकारियों और नेताओं माथे से पसीना छूट जाना चाहिए लेकिन वो तो मीडियावालों से क्रिकेट का स्कोर पूछ रहे हैं।

मीडिया अगर वाकई कुछ करना चाहता है तो सर्वे करा लें देश भर के अस्पतालों की स्थिति क्या है? आपको पता चल जाएगा सैकड़ों जिलों में स्वास्थ्य केंद्र की इमारतें इतनी जर्जर हैं कि मैदान में, खेत में टेबल लगाकार डॉक्टर अस्पताल चलाने को मजबूर हैं। ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों  की हालत इससे भी ज्यादा बदतर है । कई जगह तो स्वास्थ्य़ केंद्र कागज और सरकारी फाइलों में हैं।

कई जगह स्थिति इसे उलट है लोकप्रियता हासिल करने के लिए नेता कई इलाकों में भारी-भरकम स्वास्थ्य केंद्र खुलवा तो देते है आलीशान इमारत बना कर सबको कमीशन मिल जाता है लेकिन वहां डॉक्टर तक का पता नहीं होता । उपकरण और दवाएं नहीं होती । यानी की अस्पताल की इमारत तो है लेकिन डॉक्टर नहीं।

वहीं कई जिलों में चिकित्सा के आधुनिक और नये उपकरण धूल खा रहे हैं । नयी- नयी मशीनें को चलाने वाला ऑपरेटर तक नहीं है । हकीकत है सर्वे करा लीजिए स्टाफ नहीं है चिकित्सा उपकरणों के साथ न्याय करने के लिए ।

आंकडों के लिए गूगल ही काफी है देश डॉक्टरों की भारी कमी हैं, किसी भी चिकित्सालय में डॉक्टरों का पूरा- पूरा स्टाफ शायद ही आपको मिले । अस्पताल है तो डॉक्टर नही और डॉक्टर है तो अस्पताल नहीं । अगर दोनों है दवा नहीं, संसाधन नहीं।

उस पर जो अस्पताल चल रहे हैं ज्यादातर नर्क से कम नहीं है अस्पताल संचालन से लेकर सुविधा तक रोना ही रोना है ।प्रशिक्षित स्टाफ नहीं है । ज्यादातर वार्ड ब्वॉय और नर्सों का व्यवहार ऐसे नकारात्मक माहौल को और खराब बना देता है । ज्यादातर लोग सिर्फ नौकरी करते हैं सवेंदना और सहानुभूति भाग्यशाली लोगों को ही मिलती है।

क्या कभी इस देश में सरकार ने, मीडिया ने ये जानने की कोशिश की सरकारी अस्पतालों में जो डॉक्टर तैनान है वो कितना दक्ष है कितना काबिल है कितना अनुभवी है । इस देश में ये एक बहुत बड़ा संकट ये भी है कि डॉक्टर तो है लेकिन कई बार हैरानी होती है कि ये कैसा डॉक्टर है ?  उसे अपना काम भी ठीक से नहीं मालूम । डॉक्टरों की गुणवत्ता को परखने का क्या सिस्टम है? नर्स और वॉर्ड ब्वॉय की काबिलियत और अनुभव को जानने का, उसकी दक्षता को पहचानने का क्या पैमाना है ? इस देश में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर क्या कभी कोई आंदोलन हुआ ? क्या मीडिया ने कोई देशव्यापी अभियान चलाया ? समय रहते सरकार का ध्यान कमियों की ओर खींचना ही मीडिया का काम है मरने के बाद तो मातम मनाने के लिए पूरा गांव जुटता है इसमें मीडिया का क्या अहसान।

सरकारी अस्पतालों की नाकामी के चलते प्राइवेट क्लीनिक और अस्पताल स्कूलों की तरह देश में कुकरमुत्तों की तरह उग रहे हैं । इनकी गुणवत्ता और इनकी विश्वसनीयता को लेकर भी कोई गंभीर मापदंड व्यवहारिक तौर पर नहीं पाया गया । झोलाछाप डॉक्टर गांवों में लोगों को लूट रहे हैं इनको रोकने में कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं है । कई होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक डॉक्टर कमाई के चक्कर में सर्जरी तक कर रहे हैं । झोलाछाप डॉक्टर बेधड़क लोगों की जिंदगी की खिलवाड़ कर रहे हैं । उन्हें रोकने का कोई सिस्टम नहीं है।

भारत में शिक्षा की तरह चिकित्सा भी सेवा नहीं विशुद्ध व्यवसाय है और ऐसा व्यवसाय जिसमें कमाई ही कमाई है वर्ना सोचिए सरकारी अस्पताल खंडहर में और प्राइवेट अस्पताल फाइवस्टार होटल जैसे ।  मरीज के साथ उसके परिजन सूटकेस में पैसा लेकर जाते हैं उसके बाद भी अच्छे इलाज की गारंटी नहीं । उस पर पालिसी का खेल अलग चलता है। प्राइवेट अस्पतालों को पता है मरीज की आ़ड़ में पालिसी से पैसा कैसे निकाला जाता है ।
देश में चिकित्सा लेकर, किसी की मौत को लेकर, किसी महामारी को लेकर किसी की कोई जिम्मेदारी ही नहीं बनती । जब जिम्मेदारी ही नहीं तो बच्चे मरे या किसान, जवान मरे या इंसान क्या लेना -देना ।

हां इस देश में भगवान की कृपा जरूर है तभी तो इक्का- दुक्का डॉक्टर ऐसे जरूर मिलेंगे जिनके लिए चिकित्सा वाकई में सेवा है व्यवसाय नहीं । लेकिन अकेला चना कभी भाड़ नहीं फोड़ सकता ।

देश में ऐसे जर्जर स्वास्थ्य सेवाओं को देखते हुए आप सिर्फ अंदाजा लगाइये, रोगों के रोकथाम के लिए, सरकारी सुविधाओं को लेकर , सरकारी  योजनाओं का जमीनी स्तर पर क्या हाल होता होगा । जाहिर है मौत का मुजफ्फरपुर भारत के कोने-कोने में घात लगाये बैठा है । हमारी नस्लों को बरबाद करने के लिए महामारियां आंतकी स्पीलर सेल की तरह सांसें ले रही हैं  । वो भारत के किसी भी प्रदेश में, कभी भी, कही भी, किसी भी वक्त अपना फन फैला सकती हैं और एक झटके में सैकड़ों जानें ले सकती हैं और उसके बाद  मीडिया इसी तरह अस्पतालों में जाकर डॉक्टरों और नर्सों से बहस करते रहेंगे और हम टीवी देखकर देखकर अपने बच्चों की मौत पर मायूस होते रहेंगे ।


No comments: