Tuesday, April 30, 2019

वंशवाद का खात्मा कर सकता है ये आम चुनाव

लोकतंत्र के आसाराम और नारायणसाई बेनकाब होने को हैं

राहुल गांधी अगर राष्ट्रीय स्तर पर वंशवाद के प्रतीक हैं तो अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, कुमार स्वामी, स्टालिन, चंद्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक, जगनमोहन रेड्डी जैसे नेता क्षेत्रीय स्तर पर परिवारवाद के पोषक । इसके बाद आप स्थानीय पर स्तर पर शोध करेंगे तो हजारों ऐसे परिवारों को  पायेंगे जो पॉवर और पैसे के लिए  लोकतंत्र का इस्तेमाल शातिर तरीके से कर रहे हैं। आजादी के बाद इस देश में सबसे बड़ी लड़ाई इसी परिवारवाद से, वंशवाद से लड़ी जा रही है।

अब सवाल ये है कि आखिर लोकतंत्र इस वंशवाद और परिवारवाद की चपेट में फंसा कैसे है? जाहिर है उम्मीदों और अपेक्षाओं के साथ जनता ने जिनती बार अपना प्रतिनिधि चुना उसमें से अधिकांशत: लोगों ने खुद को  सेवक की जगह भगवान मान लिया । जी हां! भगवान मान लिया और अपनी  झूठी खुदाई को बचाने के लिए  पद और प्रभाव का जमकर दुरूपयोग किया गया। लोकतंत्र के मंदिर में  इन पुजारियों ने अपने अहंकार के दीपक को जलाया । लोभ की वेदी सजाई , शक्ति का शंखनाद  किया, महत्वाकांक्षा का घंटा बजाया और इस शोर में राष्ट्र भक्ति प्रदर्शन बन गई, जिस मंदिर में सत्य, प्रेम और न्याय को प्रमाणित करना था वहां पर पथभ्रष्ट लोगों के लिए आरती गायी जाने लगी । लोकतंत्र के भक्तों को  वैसे ही ठगा गया जैसे आसाराम, राम-रहीम, और तमाम ठोंगी बाबाओं धर्म के नाम पर लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ किया।

सोचिए जिस कांग्रेस के महान नेताओं ने अपने त्याग से, बलिदान से भारत को गुलामी से छुटकारा दिलाया उन महान लोगों की पार्टी आजादी के बाद कैसे एक विशेष परिवार तक सिमट कर रह गयी । जाहिर है जब परिवार ने अपनी महत्वाकांक्षा को पोषित किया तो सबसे पहले बड़ी चालाकी से उन लोगों को हटाया जो उनके लिए चुनौती बन सकते थे। अवसरवादी और चाटुकार लोग वक्त के साथ इस परिवार की ताकत बनते चले गये और उसूलों और सिंद्धांतों के लिए कांग्रेस का झंडा लेकर चलने वाले अब इतिहास में भी नहीं दिखते । इतिहास में अगर कुछ दिखता है तो वो है इस परिवार के नाम पर यूनिवर्सिटी, कॉलेज, स्टेडियम, चौराहे, सड़क, इमारतें, स्टेशन औऱ हवाई अड्डे । नामदार बनने की अभिलाषा में इस परिवार ने लाखों महापुरुषों को मिटाने की कामयाब साजिश रची।

 आप अध्ययन करेंगे तो पायेंगे सत्रह साल तक पंडिंत नेहरू ने अपने जीते जी किसी को भी प्रधानमंत्री पद के आसपास फटकने नहीं दिया।  उसके बाद उनके चाटुकारों ने धीरे से उनकी बेटी इंदिरा को औऱ फिर उनके बेटे राजीव  को और उसके बाद उनकी बहू सोनिया गांधी को शक्तिमान बनाये रखा । इस दौरान सरदार पटेल , कामराज, वी पी सिंह, नरसिम्हा राव, सीताराम केसरी जैसे तमाम वो लोग  जिन्होंने ने  भी इनको चुनौती देने की कोशिश की उन्हें कांग्रेस के इतिहास से ही मिटा दिया गया। मौजूदा दौर के कांग्रेसी इन्हें खुलकर कांग्रेसी नेता  तक नहीं मानते । इनके साथ हुए अपमानों की कहानियों को  लोकतंत्र में गांधी-नेहरू परिवार से टकराने के अंजाम के तौर सुनाया जाता है।

आप देखिए मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह परिवार, सिंधिया परिवार, दिग्विजय सिंह परिवार , छत्तीसगढ़ में सिंहदेव परिवार, महाराष्ट्र में चव्हाण परिवार, राजस्थान में पायलट परिवार ऐसे सैकड़ों उदाहरण है जिन्होंने ने इस परिवार के आगे घुटने टेक दिये वो लोकतंत्र में अपने वंशवाद को लेकर स्थानीय स्तर पर शक्तिशाली बना हुआ है।

भारत में गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, बेरोजगारी, आपातकाल को लेकर इस परिवार के खिलाफ ऐतिहासिक लड़ाईयां लड़ी गयी लेकिन दुर्भाग्य कि जनता ने जिन पर भी भरोसा किया वो खुद मठाधीश बन गये। लोहिया के बलिदान को मुलायम सिंह यादव के पारिवारिक समाजवाद ने कलंकित कर दिया । जेपी के जनआंदोलन को जेल में सड़ रहे लालू यादव के परिवार ने बर्बाद कर दिया । दुर्भाग्य देखिए दक्षिण में कांग्रेस से लड़ने वाले  देवेगौड़ा परिवार, स्टालिन परिवार, चंद्रबाबू नायडू, उड़ीसा में पटनायक परिवार भी जनता को भूल कर अपने वंश को सींचने में लगे हैं ।  महाराष्ट्र में शरद पवार ने सोनिया के विदेश मूल के खिलाफ सबसे बड़ी लड़ाई छेड़ी लेकिन वो भी बेटी और भतीजे में जाकर फंस गये और बाकियों की तरह  भष्ट्र राजनीति का चेहरा बन कर रह गये । मायावती जैसी दलित की बेटी भी ताकत पाकर महारानी जैसा बर्ताव कर रही हैं और सबके सब मिलकर इस परिवार की महत्वाकांक्षा में सहयोगी बनने को बेकरार है।
  
लेकिन 2014 के बाद पहली बार इस परिवार को दिन में तारे नजर आ रहे है क्योंकि पाला इस बार ऐसे शख्स से पड़ा है जिसके ना तो आगे कोई है और ना पीछे। और उससे बड़ी बात इस शख्स को इस परिवार की हर शातिर चाल का जवाब उसी की भाषा में देना आता है । इस परिवार ने नरेंद्र मोदी को हत्यारा कहा, हिटलर कहा, मौत का सौदागर कहा, नीच कहा लेकिन जितनी बार हमला बोला परिवार का दांव उतना ही उल्टा पड़ा । भष्ट्राचार का आरोप मढ़ने के चक्कर में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अदालत के सामने नाक रगड़ रहे हैं । 2019 आते -आते आलम ये है कि  गांधी परिवार के साथ- साथ  इनके चमचे भी पनाह मांग रहे हैं । सोनिया गांधी  और राहुल गांधी  जमानत पर पर है । दामाद रोज कचहरी के चक्कर लगा रहे है । कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को उनकी असली नागरिकता को लेकर नोटिस गया है, पहली बार किसी ने इस परिवार से पूछा है कि बताओं किस देश के हो? जाहिर है  परिवार के खिलाफ लड़ाई निर्णायक दौर में पहुंच गयी है। लोकतंत्र के मंदिर में  आसाराम और नारायणसाई बना बैठा ये परिवार और इनके चेले सब बेनकाब होने को है।      

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