Monday, April 24, 2017

शिक्षा के निजीकरण, व्यवसायीकरण पर लगाम लगानी होगी

शिक्षा देना सरकार और समाज की जिम्मेदारी है 

राजधानी दिल्ली के बदलते सरकारी स्कूलों की इनसाइड स्टोरी 

दिल्ली के शिक्षामंत्री मनीष सिसौदिया मंत्रालय संभालने के अपने शुरूआती दिनों में एक दिन एक विद्यालय के औचक दौरे पर गये । वहां उन्होंने देखा कि टीचर बच्चों को गांधीजी का सफाई सिद्दांत पढ़ा रही हैं  लेकिन जब कमरे में चारो तरफ नज़र दौड़ाई तो उन्होंने देखा छत मकड़ी के जालों से अटा पड़ा है, दीवारे गंदी है, कुर्सी -टेबल पर धूल जमी है और फर्श साफ नहीं है । उन्होंने फौरन शिक्षक से पूछा क्यों पढ़ा रही हैं गांधी का सफाई का सिद्धांत? तो उस टीचर के पास सिवाय इस बात के कोई जवाब नहीं था कि ये पाठ्यक्रम का हिस्सा है इसलिए पढ़ा रही हूं । और बच्चों ने कह दिया कि जो टीचर पढ़ाती हैं हम तो वहीं पढ़ते हैं । 
कुल मिलाकर शिक्षामंत्री को ये समझ आ गया कि ना टीचर को पता है कि वो क्यों पढ़ा रहा है? और क्या पढ़ा रहा है?  और ना छात्रों को पता है कि वो क्यों पढ़ रहे हैं । इस तरह उन्होंने दिल्ली के स्कूलों का हाल जाना ।
दिल्ली के कई पिछड़े इलाकों में सरकारी स्कूलों का हाल तो इससे भी बुरा था । वहां अभिभावक और पैरेंट्स के बीच कोई संवाद ही नहीं है । शिक्षक दो घंटे स्कूल जाकर खुद को ऐसे जाहिर करता था जैसे वो उस विद्यालय पर एहसान कर रहा हो और रोज-मर्रा की रोजी-रोटी के लिए परेशान अभिभावक को ये लगता था कि कम से कम उसकी संतान स्कूल तो जा रही है ।
इन दो उदाहरणों से आप समझ लीजिए दिल्ली के करीब 90 हजार सरकारी शिक्षक,  करीब ढाईलाख से ज्यादा छात्रों का जीवन और उनसे जुड़े परिवार और परिवार से जुड़ा समाज  किस दिशा में जा रहा था।   सिसौदिया समझ गये कि सालों से जिस  वैल्यू ऐजुकेशन  की बात हो रही है वो पूरी तरह से फेल है और उन्होंने वैल्यू ऑफ ऐजुकेशन को ही अपना लक्ष्य बना लिया ।
शिक्षामंत्री ने सुधार की प्रक्रिया अफसरों से शुरू की । मंत्रालय का कार्यभार संभालने के महीनेभर में वो करीब पैंतीस जिम्मेदार अफसरों को लेकर वो रायपुर में ऐसी जगह पहुंचे जहां मानव दर्शन को पढ़ाया जाता है,  जहां मानवीकरण पर बात होती । जहां मनुष्य जीवन के गूढ़ रहस्यों पर नित शोध होता है । सिसौदिया अपने अफसरों के साथ वहां सात दिन डटे रहे  और इस दौरान ना कुछ बोलना पड़ा, ना कहना पड़ा,  अफसर समझ गये कि मंत्री क्या चाहता है ।
अस्तित्व में मानव की महती भूमिका को समझने के बाद दिल्ली के  अफसरों में एक नया जोश था। इसके बाद  दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में शिक्षकों को मानव शिक्षा का महत्व बताने के लिए महाशिविर किया गया जिसके चमत्कारी नतीजे सामने आये और इसके साथ ही ऐसे शिक्षकों और प्राचार्यों की पहचान शुरू की गई जो वाकई दिल से शिक्षा से जुड़े हुए थे । जिनके पास शिक्षा को लेकर एक विजन था । वो इस काम में अपना जी जान लगाना चाहते थे ।
करीब 54 प्राचार्यों के विजन को सिसौदिया के मंत्रालय ने स्वीकृति दी । उन प्राचार्यों ने जो सुविधा मांगी उन्हें वो सुविधा प्रदान की गई  । कर्मचारी से लेकर बजट तक,  बिल्डिंग से लेकर उसके देखभाल की जिम्मेदारी तक, सब प्राचार्यों के मन का किया गया औऱ बदले में उनसे सिर्फ यही अपेक्षा की गई कि स्कूल और बच्चों को लेकर जो उनका सपना है वो पूरा होना चाहिए । शिक्षकों के कहने पर भारीभरकम सलेबस में 25 प्रतिशत तक की कटौती भी कर दी गई । अब वो प्राचार्य और उनकी टीम नतीजे देने में जुट गई है ।
यही नहीं दिल्ली के टीचर्स को जनसंख्या और तमाम दूसरे सरकारी कामों से दूर रखने का फैसला लिया गया और तय किया गया कि उनसे अधिकतम शिक्षा का ही काम लिया जाएगा ।
दिल्ली के पिछड़े तबके के इलाकों से लेकर भगभग हर सरकारी स्कूलों में शिक्षक और अभिभावक सम्मेलन शुरू हुए । शिक्षकों और अभिभावकों में रिश्ता बना, विश्वास जगा और अब दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षक और अभिभावक सम्मेलन उत्सव का रूप ले चुका है ।
इसी  का नतीजा है कि दिल्ली के कई स्कूलों और मोहल्लों में रीडिंग बेला , रीडिंग कैम्पेन शुरू हो गया है जहां बच्चों को जोर- जोर से किताबें पढ़ना सिखाया जाता है । ये करना इसलिए जरूरी था क्योंकि एक एनजीओं की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चे सातवीं- आठवीं की कक्षाओं में पहुंच तो गये थे लेकिन कई बच्चों को दूसरी कक्षा की किताब भी पढ़नी नहीं आती थी । अब ये भरोसा जग गया है कि बच्चे कम के कम स्कूल की किताबों को जान तो सकेंगे कि उसमें है क्या?और क्यों है?
यही नहीं सरकारी स्कूलों में मेंटर शिक्षकों की पहचान की जा रही है उन्हें मानव विज्ञान की ट्रेनिंग दी जा रही है और शिक्षकों का ग्रुप बना बना कर उन्हें तर्क सहित ये बताया जा रहा कि शिक्षा में मूल्यों का होना क्यों जरूरी है । अच्छे इंसान समाज के लिए कितने उपयोगी है । दिल्ली के इन मेंटर शिक्षकों को चुनौती दी गई है वो ऐसा जीवन जिये जिससे दूसरों को प्रेरणा मिले । और ये काम कोई सरकार दबाव से नहीं बल्कि उनकी स्वीकृति से हो रहा है ।
सिसौदिया को उम्मीद है कि अब अगर ये प्रयोग सफल रहा तो गांधी का सफाई सिद्धांत किताबों से बाहर निकलकर व्यवहार के धरातल पर दिखने लगेगा । उन्हें उम्मीद है कबीर के दोहे हमारे व्यहारिक जीवन का हिस्सा होंगे । यही नहीं शिक्षक और छात्र के बीच परिवार जैसा रिश्ता होगा ।
स्कूलों में दिल्ली के शिक्षामंत्री की इस अभिनव प्रयोग की सफलता की मैं दिल से कामना करता हूं । क्योंकि सवाल मानव निर्माण का है ।
( ये लेख हापुड़ में जीवन विद्या अध्ययन शिविरके दौरान मेंटर शिक्षकों को संबोधित करते हुए मनीष सिसौदिया के भाषण पर आधारित है )
ये लेख यूसी न्यूज ने भी प्रकाशित किया है
http://tz.ucweb.com/5_d3qm

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