Saturday, April 22, 2017

ब्रम्हांड में तैरती धरती की नैय्या में छेद हो चुका है

22 अप्रैल -धरती दिवस पर विशेष 


धरती को समझने के लिए हमें सबसे पहले इस अस्तित्व को समझना होगा । इस अस्तिव की गूढ़ता को जाने बिना हम धरती का उध्दार कर ही नहीं सकते । इस धरती पर मुख्य रुप से चार चीजे हैं पहला पदार्थ- जिसमें  पहाड़, मिट्टी खेत, खदान आदि जैसी चीजें आती है । दूसरा है प्राण - जिसमें पेड़- पौधे आते हैं । तीसरा है जीव- जिसमें पशु-पक्षी कीड़े-मकोड़े आते हैं । और चौथी चीज है ज्ञान जिसे हमने मानव की संज्ञा दी है ।
सबसे पहले हम धरती पर मौजूद  पदार्थ को समझते हैं । मिट्टी उपजाऊ है इसलिए हमारे खेत लहलहा रहे हैं । खदानें है इसलिए हम जरूरत का सारा सामान धरती भीतर से निकाल पा रहे हैं । पानी , तेल से लेकर सोना और चांदी तक धरती हमको दे रही हैं । जरा सोचिए  कि इनमें से कई चीजें जिसका हम भंडार कर रहे हैं उनका जिंदा रहने के अर्थ में कितना उपयोग है ।
दूसरी चीज है प्राण जिसका मोटा मतलब है  पेड़-पौधे  । धरती के लिए सबसे खतरनाक चीज है कार्बनडाई आक्साइड जिसे पैड़ पौधे ग्रहण करते हैं और आक्सीजन से वातावरण को भर देते है यानी लेते कम है और वायुमंडल , धरती को देते बहुत कुछ हैं ।
तीसरी चीज है जीव-जंतु जितनी जरूरत होती है उनता आहार लेते हैं, मौसम और प्रकृति के अनुकूल मैथून करते हैं और जरा चिंतन करें तो देखेंगे पशु अपने मल से इस धरती पर पेड़- पौधे को पोषण प्रदान करने का सबसे बढ़िया तरीका रहा है ,वहीं वनों के विस्तार में पक्षियों के मल की उपयोगिता स्वयं में प्रमाणित है ।
अब अगर तीनों का बारीकी से अध्ययन करें तो पायेंगे पदार्थ, प्राण और जीव एक दूसरे के पूरक है जितना एक -दूसरे से लेते हैं उससे ज्यादा एक दूसरे को देने का भाव इन तीनों में स्वस्फूर्त है । जबकि अस्तित्व ने इनको सोचने- समझने और जानने की शक्ति से वंचित कर रखा है ।
और आइये इस अस्तित्व में मानव को पहचानते हैं । मानव जिसे जिंदा रहने के अर्थ में प्रतिदिन थोड़ा सा भोजन चाहिए । वो सभ्यता का दावा करता है इसलिए तन ढंकने के लिए कपड़ा चाहिए और खुद को अनुशासित कहता है इसलिए उसे सिर पर छत चाहिए । उसकी ये जरूरते इस विशाल अस्तित्व में कुछ भी नहीं है, बहुत थोड़ी है ।
आप कल्पना करिए कि जीव-जंतु, पेड़-पौधे,  जिनके पास सोचने की समझने की शक्ति नहीं वो कभी भूख, से, दरिद्रता से नहीं मरे तो फिर मानव कैसे मर सकता है !
लेकिन मानव ने अपने सुविधा के लिए जंगल के जंगल साफ कर दिये । मानव की कृत्रिम भूख के चलते  नदियों का वजूद खत्म होने की कगार है । कई नदियां तो जीते जी मर गई । मानव ने अपने  शरीर को सुविधा सम्पन्न बनाने के लिए वायुमंडल को जहरीला बना दिया । मानव के चलते जीव-जंतुओं की कई प्रजातियां, वनस्पतियों की असंख्य प्रजातियां लुप्त हो चुकी है ।
तो ये समझ आता है कि पदार्थ, प्राण और जीव की तरह मानव को भी इस व्यवस्था में पूरक होकर जीना था। लेकिन सिर्फ मानव का  प्रकृति से व्यवहार एक तरफा रहा । उसने सिर्फ लिया ही लिया है दिया कुछ भी नहीं ।
कल्पना की असीम शक्ति से भरा मानव दरिद्रता के दुर्गण में इस कदर लिप्त है कि उसकी सोचने, समझने की शक्ति ही खत्म हो गई है । यहां दरिद्रता से तात्पर्य ये हैं कि जितना भी आपके पास है आप उससे संतुष्ट नहीं हो । सुविधा का संग्रह करने में मनुष्य ने अपने ज्ञान का और कल्पना शक्ति का दुरूपयोग किया और सिर्फ जिंदा शऱीर बन कर रह गया । इस चक्कर में जीवन उससे कोसों पीछे छूट गया । लोभ में ग्रस्त मानव जीवन -जीने की कला ही नहीं सीख पाया । जिनता साधन-सम्पन्न मनुष्य वो अस्तित्व का उनता बड़ा अपराधी ।  
तो इतना जान लीजिए कि मानव जब तक खुद को जानने की शिक्षा से अछूता रहेगा वो इसी तरह धऱती को विनाश की तरफ लेकर जाता रहेगा और एक दिन खुद इस विनाश में अपने खूबसूरत अस्तित्व को खो देगा ।
आपको पता है इस विशाल ब्रम्हांड में तैरती धरती की नैय्या में  ओजोन नामक  छेद हो चुका है वायुमंडल में ज़हर तेजी से घुस रहा है अभी भी आप नहीं चेते तो आप ,अपने बच्चों के कातिल कहलाओगे ।

( ये लेख भारत के परंपरागत ज्ञान और बाबा नागराज के मध्यसस्थ दर्शन पर आधारित है )
  

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