Tuesday, May 20, 2008

ये कैसी पूरनमासी...

जाने ये कैसी पूरनमासी है
चांद गगन में चमचम चमके
लेकिन धऱती की छाती को ठंडक नसीब नहीं
शायद उसके दिल का कोई कोना सुलग रहा है
अंबर से मिलने को मचल रहा है
लेकिन इस चांदनी में वो बात नहीं
जो इस चकोर को दे सके सुकून
उसकी चाहत को कर सके पूरा
जाने ये कैसी पूरनमासी है ...
तन को सुलगाती, मन को उलझाती ...

1 comment:

UjjawalTrivedi said...

arre wah rao sahab. kya khoob kahin hain..