Friday, May 16, 2008

ये शुरूआत ...

हमारे ऑफिस के सिस्टम एडमिनिस्ट्रेटर नरेंद्र दुबेजी के मार्गदर्शन, मेरे प्रिय साथी प्रियंका आहूजा और शंकर सिंह के सहयोग से आज मुझे ब्लॉग की दुनिया में दाखिला मिला है। अपने विचारों को प्रभावशाली तरीके से रखने का इस दुनिया में इससे बेहतर कोई और माध्यम नहीं हो सकता। ब्लॉग मे दाखिला जितना उत्साह वर्धक था उतना ही रोचक । हुआ यूं कि दफ्तर में कुछ काम नहीं था। समाचार की दुनिया में बैठ कर हम सब तमाशा ढूंढ रहे थे । अनायास गूगल की करामाती दुनिया के सौजन्य से महान विभूतियों की गजल शायरी के दीदार हो गये बस फिर क्या था, कभी बशीर बद्र को पढ़ते, कभी साहिर लुधियानवी को , कभी निदा फाजली को । शंकर सिंह को सुनाने से शुरू हुई मेरी ये रसभरी महफिल कुछ ऐसी जमी की दुबेजी बगल में आकर बैठ गये। दूर बैठ हमारे चैनल के सिनेमा के संवाददाता अभिषेक को लगता है ये शोर शराबा कुछ अखर रहा था तो उन्होंने कह दिया कि पगला गये हैं क्या? शायद पगला ही गये थे तभी तो कविता पढ़ रहे थे जबरदस्ती सुना रहे थे। सामने वाले को भले मजा नहीं आ रहा हो लेकिन पढ़ -पढ़ कर सुनाने में हमें तो रस खूब मिल रहा था। और जीवन में चाहिए क्या लेकिन कविता और शायरी की ताकत देखिए कुछ एक मिसरे जो सरल और सुंदर लगे जबरिया अभिषेक का सुनाया तो वो भी खिलखिला कर हंस पड़े और उनके चेहरे के भाव ने जता दिया कि बात में दम है ...बात में दम होता उन्हें उन कवियों की बाते सुनाई थी जिन्हें सरस्वती का वरदान है । बस हमारी तो यहीं चाहत है कि हम एक अच्छे श्रोता, पाठक बन सके और उनकी नज़रिए से दुनिया को समझ सकें ...

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